Chakravarty Samrat Ashok
Author:
Rachna Bhola YaminiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
इतिहास में सम्राट् अशोक को दो चीजों के लिए याद किया जाता है—एक, कलिंग के युद्ध के लिए और दूसरा, भारत के बाहर की दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए। अपने आरंभिक दिनों में अशोक बहुत क्रूर राजा था। अपने निष्कंटक राज्य के लिए उसने अपने सौतेले भाइयों को मरवा दिया था। उसके इन क्रूर कारनामों के कारण उसे ‘चंड अशोक’ कहा जाने लगा था। उसने एक के बाद एक राज्य जीता और साम्राज्यवाद की अपनी महत्त्वाकांक्षा को सींचता रहा। उसका राज्य भारत के पार दक्षिण एशिया और पर्शिया तक को छूने लगा।
आखिर कलिंग का युद्ध हुआ। इसमें भी अशोक को जीत मिली। लेकिन इस युद्ध में दोनों पक्षों के एक-एक लाख लोग मारे गए और इससे भी ज्यादा बेघर हो गए। कलिंग युद्ध में हुए महाविनाश से विचलित हो गया। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। उसने जनकल्याण के कार्य आरंभ कर दिए और राजसी भोग-विलास का परित्याग कर दिया। उसने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया।
सम्राट् अशोक के शौर्य, युद्धकौशल विजय अभियानों और दानव से मानव बनने की मार्मिक कथा प्रस्तुत करनेवाली एक पठनीय पुस्तक।
ISBN: 9789383110094
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: साम्प्रदायिक दंगों को प्रशासन की एक बड़ी असफलता के रूप में लिया जाना चाहिए। हाल के वर्षों में इस विषय पर एक व्यापक समझ तैयार करने में पूर्व पुलिस अधिकारी व प्रतिष्ठित लेखक विभूति नारायण राय का यह अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। श्री राय ने यह अध्ययन नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के लिए एक वर्ष के गहन परिश्रम के बाद पूरा किया था। दुर्भाग्य से, इसकी कुछ स्थापनाओं को छिपाने–दबाने की कोशिश भी की गई। इसको प्रकाश में लाने का श्रेय नेशनल अकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी को जाता है, जिसने इसे सबसे पहले प्रकाशित किया। मेरी राय है कि प्रशासन और पुलिस के तमाम अधिकारियों के लिए इस पुस्तक का पठन–पाठन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। —पदम रोशा, पुलिस महानिदेशक (सेवानिवृत्त) साम्प्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस–व्यवहार पर यह एक ठोस, विश्वसनीय और आधिकारिक अध्ययन है–––लेखक का यह कहना एकदम सही है कि पुलिस में काम करनेवाले लोग उसी समाज से आते हैं जिसमें साम्प्रदायिकता के विषाणु पनपते हैं, उनमें वे सब पूर्वग्रह, घृणा, सन्देह और भय होते हैं जो उनका समुदाय किसी दूसरे समुदाय के प्रति रखता है। पुलिस में भर्ती होने के बावजूद वे ख़ुद को अपने ‘सहधार्मिकों’ के ‘हम’ में शामिल रखते हैं और दूसरे समुदाय को ‘वे’ मानते रहते हैं। —ए.जी. नूरानी (‘फ़्रंटलाइन’ में) गृह मंत्रालय और पुलिस ब्यूरो ऑफ़ रिसर्च एंड डेवलपमेंट तथा अपने सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के विस्तृत विश्लेषण पर आधारित यह शोध बताता है कि प्रत्येक दंगे के 80 प्रतिशत शिकार मुस्लिम होते हैं और जो लोग गिरफ़्तार किए जाते हैं, उनमें भी लगभग 90 प्रतिशत अल्पसंख्यक ही होते हैं। श्री राय के अनुसार, ‘‘यह तर्क–विरुद्ध है। अगर 80 प्रतिशत शिकार मुस्लिम हैं तो होना यह चाहिए कि गिरफ़्तार लोगों में 70 प्रतिशत हिन्दू हों। लेकिन ऐसा कभी होता नहीं है।’’ —सिबल चटर्जी (‘आउटलुक’ में)
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