Bhoole-Bisre Din
Author:
Arun KhorePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘भूले-बिसरे दिन’ अरुण खोरे की आत्मकथात्मक पुस्तक है जिसमें रिमांड होम की सख़्त दीवारों के पीछे लाखों बच्चों की वेदना को मार्मिक स्पर्श दिया गया है। उन वेदनाओं का स्वयं लेखक भी साक्षी रहा है, जहाँ उसके बचपन के नौ वर्ष उन्हीं यातनाओं में गुज़रे।</p>
<p>बकौल लेखक : “रिमांड होम में आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति और इस संस्था के बारे में कई ग़लतफ़हमियाँ हैं—चोरी, ख़ून-ख़राबा कर आए हुए, ग़लत राहों पर भटके हुए बच्चे रिमांड होम में आते हैं, यह पहली बड़ी ग़लतफ़हमी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में इस सन्दर्भ में जो अध्ययन किया गया और जो निष्कर्ष सामने आए, उससे स्पष्ट होता है कि भारत में रिमांड होम और अनाथाश्रम में आनेवाले अस्सी प्रतिशत बच्चे पालकों की पारिवारिक समस्याओं के कारण आते हैं। सौतेली माँ का छल, माँ या पिता में से किसी एक का ही पालक के रूप में रहना, बहुत ग़रीबी, रोटी का यक्षप्रश्न जैसे अनेक कारणों से बच्चे ऐसी संस्थाओं में आते हैं।</p>
<p>पुलिस केस से आनेवाले सभी बच्चे ‘बाल अपराधी’ नहीं होते। कई बार ग़रीबी से तंग आकर माँ-बाप डाँट-डपटकर छह-सात वर्ष के अपने बच्चों को जबरन भीख माँगने भेजते हैं, पैसों के लिए घर से निकालते हैं; तब, ऐसे में इन बच्चों को रिमांड होम में लाने का काम पुलिस को करना होता है।</p>
<p>अपने जीवन की समस्याओं का जब उत्तर खोज नहीं पाते, तब अपने सवालों के जवाब के लिए पालक अपने अबोध बच्चों को झोंक देते हैं। यह हमारे समाज की एक दर्दनाक सच्चाई है। ये बच्चे अपने व्यक्तित्व के विकास से पहले ही संसार की व्यावहारिकता पर बलि चढ़ाए जाते हैं और यहीं से उनके दुर्दिन की शुरुआत होती है।</p>
<p>पारिवारिक समस्याओं का तनाव तो इससे भी भयानक और क्लेशदायक होता है। माँ है तो असमय पिता गुज़र गए; पिता हैं तो माँ की असमय मृत्यु और कुछ लोगों के भाग्य में तो जन्म से ही अनाथ होना लिखा होता है। हमारे देश के अविभक्त और संयुक्त परिवार का हम कितना ही गौरवगान करें, लेकिन रिमांड होम में अथवा अनाथाश्रम में आनेवाले बच्चे इन्हीं संस्थाओं के दुत्कारे हुए होते हैं तथा अपरिहार्यता से ही आते हैं। कुटुम्ब नामक संस्था के सुरक्षित कवच से छिटककर जब बच्चे रिमांड होम की सख़्त दीवारों के पीछे धकेल दिए जाते हैं, तब उनके बचपन, किशोरावस्था के मुरझाने की शुरुआत होती है।”</p>
<p>‘भूले-बिसरे दिन’ अरुण खोरे की ऐसी आत्मकथात्मक पुस्तक है, जो रिमांड होम और अनाथाश्रमों में व्याप्त भ्रष्टाचारों का पर्दाफ़ाश ही नहीं करती; उन माँ-बाप को भी कठघरे में खड़ा करती है, जिनके कारण ये भोले-भाले, मासूम बच्चे नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशप्त होते हैं।
ISBN: 9789348157638
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।
'अंधविश्वास उन्मूलन : आचार' पुस्तक में धर्म के नाम पर कर्मकांड और पाखंडों के ख़िलाफ़ आन्दोलन, जन-जागृति कार्यक्रम और भंडाफोड़ जैसे प्रयासों का ब्योरा है।
पुस्तक में भूत से साक्षात्कार कराने का पर्दाफाश, ओझाओं की पोल खोलती घटनाएँ, मंदिर में जाग्रत देवता और गणेश देवता के दूध पीने के चमत्कार के विवरण पठनीय तो हैं ही, उनसे देखने, सोचने और समझने की पुख्ता ज़मीन भी उजागर होती है। निस्सन्देह अपने विषयों के नवीन विश्लेषण से यह पुस्तक पाठकों में अहम भूमिका निभाने जैसी है।
अंधविश्वास के तिमिर से विवेक और विज्ञान के तेज की ओर ले जानेवाली यह पुस्तक परम्परा का तिमिर-भेद भी है और विज्ञान का लक्ष्य भी।
Jati : Badalte Pariprekshya
- Author Name:
Surinder Singh Jodhka
- Book Type:

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Description:
आज के दौर में जाति की बात करने का क्या औचित्य है? क्या चुनावी राजनीति के अलावा जाति का कोई मतलब रह गया है? इसमें क्या बदला है और क्या बचा हुआ है? क्या जाति आधारित कोटा और आरक्षण से समाज में दरारें चौड़ी हुई हैं या इससे दरार को पाटने में मदद मिली है? आधुनिक समय में श्रम बाजारों में, सामाजिक जिन्दगी में, और लोकप्रिय संस्कृति में जाति कैसे काम करती है?
यह छोटी सी किताब जाति की समकालीन अभिव्यक्तियों के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान लेखन और लोकप्रिय चर्चा में जाति पर बदलते दृष्टिकोण का एक आकर्षक विवरण पेश करती है। यह भारत में जाति की वास्तविकता से सम्बन्धित कई विषयों और मुद्दों को शामिल करती है- पारंपरिक धारणाएँ, सत्ता की राजनीति में एक संवैधानिक तत्व, रोजमर्रा की जिन्दगी में अवमानना और तिरस्कार, जाति की अभिव्यक्ति और ‘नीचे से’ आन्दोलनों द्वारा और ‘ऊपर से’ नीतियों द्वारा इसका विरोध। भारतीय सामाजिक जीवन के इस सर्वव्यापी पहलू में रुचि रखनेवाले विद्वानों, छात्रों, कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं और सामान्य पाठकों के लिए यह सुगम और विचारोत्तेजक पुस्तक काफी पठनीय है।
Andhavishwas Unmoolan : Vol. 3 : Siddhant
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

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Description:
अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।
'अंधविश्वास उन्मूलन : सिद्धांत' पुस्तक में गहन विचार-मंथन है। ईश्वर, धर्म, अध्यात्म, धर्मनिपेक्षता जैसे विषयों पर समाज-सुधारकों और विवेकवादी चिन्तकों ने समय-समय पर जो विचार व्यक्त किए, उनके मतभेदों को आन्दोलन के अनुभवों के आधार पर और व्यक्तिगत चिन्तन द्वारा परिभाषित किया गया है। ईश्वर के अस्तित्व पर विचार करते हुए लेखक का मुख्य उद्देश्य है कि—'व्यक्ति को विवेकशील बनाकर ही विवेकवादी समाज-निर्माण का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।'
अंधविश्वास के तिमिर से विवेक और विज्ञान के तेज की ओर ले जानेवाली यह पुस्तक परम्परा का तिमिर-भेद भी है और विज्ञान का लक्ष्य भी।
Andhvishwas : Prshnchihn Aur Purnviram
- Author Name:
Parsharam Rao Arde +1
- Book Type:

- Description: चमत्कारी कहलानेवाले बाबा क्या सच में चमत्कार करते हैं? आखिर क्या कारण है कि विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा के इतने प्रसार के बाद भी समाज में अंधविश्वासों की जगह बची हुई है? क्यों लोग आज भी अपने दु:खों का, अपनी बीमारियों का इलाज ढूँढ़ने गुरुओं-साधुओं की शरण में जाते हैं? वशीकरण और सम्मोहन क्या वास्तव में होते हैं? कुछ लोग भूतों को देखने तक का दावा करते हैं, इसका आधार क्या है? देवी-देवता या भूतों का संचार ज्यादातर स्त्रियों में ही होता है, ऐसा क्यों? पुनर्जन्म की सच्चाई क्या है? मृतात्मा का आह्वान क्या बला है? और ज्योतिष जिस पर तर्कपरायण लोग भी विश्वास करते पाए जाते हैं, वह क्या है? ‘अंधविश्वास उन्मूलन आन्दोलन’ के अगुआ नरेंद्र दाभोलकर की यह किताब इन सभी सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर देती है। प्रश्नोत्तर शैली में तैयार इस पुस्तक में उन प्रश्नों को संकलित किया गया है, जो साधारण लोगों ने अलग-अलग संवाद शिविरों और व्याख्यान-सत्रों के दौरान प्रस्तुत किए। उन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में यह पुस्तक तैयार हुई इसमें हमें अंधविश्वासों के कारण और निवारण, दोनों प्राप्त होते हैं।
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