Banbhatt Ki Aatmakatha
Author:
Hazariprasad DwivediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction1 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की विपुल रचना-सामर्थ्य का रहस्य उनके विशद शास्त्रीय ज्ञान में नहीं, बल्कि उस पारदर्शी जीवन-दृष्टि में निहित है, जो युग का नहीं युग-युग का सत्य देखती है। उनकी प्रतिभा ने इतिहास का उपयोग ‘तीसरी आँख’ के रूप में किया है और अतीत-कालीन चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवनधारा से जोड़ पाने में वह आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई है। बाणभट्ट की आत्मकथा अपनी समस्त औपन्यासिक संरचना और भंगिमा में कथा-कृति होते हुए भी महाकाव्यत्व की गरिमा से पूर्ण है। इसमें द्विवेदी जी ने प्राचीन कवि बाण के बिखरे जीवन-सूत्रों को बड़ी कलात्मकता से गूँथकर एक ऐसी कथाभूमि निर्मित की है जो जीवन-सत्यों से रसमय साक्षात्कार कराती है। इसमें वह वाणी मुखरित है जो सामगान के समान पवित्रा और अर्थपूर्ण है-‘सत्य के लिए किसी से न डरना, गुरु से भी नहीं, मंत्रा से भी नहीं; लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं।’ बाणभट्ट की आत्मकथा का कथानायक कोरा भावुक कवि नहीं वरन कर्मनिरत और संघर्षशील जीवन-योद्धा है। उसके लिए ‘शरीर केवल भार नहीं, मिट्टी का ढेला नहीं’, बल्कि ‘उससे बड़ा’ है और उसके मन में आर्यावर्त्त के उद्धार का निमित्त बनने की तीव्र बेचैनी है। ‘अपने को निःशेष भाव से दे देने’ में जीवन की सार्थकता देखने वाली निउनिया और ‘सबकुछ भूल जाने की साधना’ में लीन महादेवी भट्टिनी के प्रति उसका प्रेम जब उच्चता का वरण कर लेता है तो यही गूँज अंत में रह जाती हैद-‘‘वैराग्य क्या इतनी बड़ी चीज है कि प्रेम देवता को उसकी नयनाग्नि में भस्म कराके ही कवि गौरव का अनुभव करे?’’
ISBN: 9788126717378
Pages: 292
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "आनुवंशिक गुप्त लिपि (जेनेटिक कोड) संबंधित रहस्यों के उद्घाटित करने में हर गोविंद खुराना का महत्त्वपूर्ण योगदान है। डॉ. खुराना को उनकी इस खोज के लिए 1968 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ. खुराना ने साधारण रासायनिक प्रतिक्रिया की सहायता से इस पहेली को हल कर दिखाया। अतिरिक्त संदेशवाहक आर.एन.ए. के निर्माण के द्वारा डॉ. खुराना ने संपूर्ण जेनेटिक कोड और जेनेटिक कोड के अपविकास के लिए जिम्मेदार कारणों की व्याख्या संबंधी कार्य को सिद्ध कर दिखाया। डॉ. खुराना ने दरशाया कि कोड में कुछ त्रयी विरामचिह्न का काम करती है। यह एक ऐसी प्रमुख उपलब्धि थी, जिससे आणविक जीव विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भविष्य में होनेवाली विकास का रास्ता खुला। डॉ. खुराना की प्रयोगशाला में हुए अनुसंधान कार्यों से चिकित्सकों को यह समझने में सहायता मिली कि जीवित कोशिकाओं की भाषा क्या है? इस आनुवंशिक भाषा का अनुवाद किस प्रकार होता है? क्या एक संपूर्ण जीन को परखनली में बनाया जा सकता है? डॉ. खुराना ने न केवल आनुवंशिक गुप्त लिपि के अधिकांश रहस्यों पर से परदा हटाया, बल्कि एक संपूर्ण जीन का कृत्रिम संश्लेषण करने में भी सफलता प्राप्त की। क्या एक संपूर्ण जीन को परखनली में बनाया जा सकता है? डॉ. खुराना द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों के फलस्वरूप ही आनुवंशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में तेजी से प्रगति हुई है। भारत के महान् वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना की प्रेरक पठनीय जीवनी।"
Karnataka Ki Lokkathayen
- Author Name:
Prof. B.Y. Lalithamba
- Book Type:

- Description: कर्नाटक की लोककथाएँ क र्नाटक प्रमुख रूप से प्रचीन मैसूर प्रांत; हैदराबाद-कर्नाटक जिला; उत्तर कर्नाटक/उत्तर कन्नड़ प्रदेश तथा दक्षिण कन्नड़ जिले में बँटा हुआ है। कर्नाटक के चारों भागों में लोककथाओं का विपुल भंडार है। इस संग्रह में इन सबका प्रतिनिधित्व है। भूताराधम से संबंधित लोककथाएँ दक्षिण कन्नड़ जिले में खूब प्राप्त होती है। दक्षिण कन्नड़ जिले की तरह उत्तर कन्नड़ जिले की भी कई लोक-जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्राप्त होती हैं। कारवार-गोकर्ण आदि की कहानियों पर कोंकण जिले का प्रभाव गहरा है। धारवाड़-हूली पर मराठी संस्कृति का भी प्रभाव है। फिर प्राचीन मैसूर संस्थान पर महाराजा, राजघराने, भरतनाट्यम्, दशहरा, चामुंडी, पहाड़, महिषासुर, दुर्गा द्वारा राक्षस संस्कार आदि से जुड़ी लोकसंस्कृति का असर है। विजयपुर (बीजापुर)-गुलबर्ग, जिसे हैदराबाद-कर्नाटक का क्षेत्र कहा जाता है, की लोककथाएँ भी बहुत प्रचलित हैं। इस संकलन में इन सभी क्षेत्रों में प्रचलित लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करनेवाली कहानियाँ संकलित हैं।
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