Prabhash Parv
Author:
Prabhash JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
‘प्रभाष पर्व' पुस्तक प्रभाष जोशी पर अब तक लिखे गए महत्त्वपूर्ण लेखों का प्रतिनिधि संग्रह है। इसमें उनके समकालीन और बाद की पीढ़ी के पत्रकारों, लेखकों तथा नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले लोगों ने उनका मूल्यांकन किया है। उनको लेकर संस्मरण लिखे हैं।</p>
<p>इन लेखों में अपने समय और समाज के साथ प्रभाष जोशी की रचनात्मक रिश्ता विस्तार से परिभाषित हुआ है। समकालीन राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं को लेकर उनके विचार और सक्रियता को नए सिरे से समझने की कोशिश की गई है। इसलिए यह पुस्तक प्रभाष जोशी की ज़िन्दगी के साथ ही उनके समय का भी दस्तावेज़ है। पुस्तक के अध्याय हैं : ‘धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्रֺ’, ‘पत्रकारिता की नई ज़मीन’, ‘जनसत्ता की दुनिया’, ‘क़रीब से प्रभाष जोशी’ तथा ‘प्रभाष जोशी घर में’। इन्हीं के तहत विभिन्न कोणों से प्रभाष जी की भीतरी-बाहरी दुनिया को बारीकी से समझने की कोशिश की गई है।</p>
<p>पुस्तक के अन्त में प्रभाष जी के कुछ व्याख्यान भी दिए गए हैं जो सुव्यवस्थित ढंग से कहीं प्रकाशित नहीं हुए थे। ‘नई दुनिया’ में 50 साल पहले प्रकाशित उनकी दो कविताएँ और कहानियाँ भी दी गई हैं। इन कहानियों में प्रभाष जोशी के श्रेष्ठ कथाकार व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। पत्रकरिता की व्यस्तताओं के बीच वे ज़्यादा कहानियाँ लिख नहीं पाए। उनकी कविताओं में नैराश्य के साथ जीवन संकल्प है। गीतात्मकता की अनुगूँज है।</p>
<p>यह पुस्तक पत्रकार प्रभाष जोशी की समाज-सम्बन्ध, मानवीय और संवेदनात्मक दुनिया में प्रवेश का पारपत्र है।
ISBN: 9788126720965
Pages: 470
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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उपन्यासकारों और कहानीकारों के लिए फ़िल्म व टेलीविज़न जैसे अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यमों के लिए लेखन-कार्य चुनौतीपूर्ण रहा है। उपन्यास और कहानी से सम्पृक्ति बनाए रखने के बावजूद पटकथा-लेखन थोड़ा अलग है। यहाँ ‘दो आँखों को चार’ बनाने की ज़रूरत पड़ती है। रचनात्मक प्रतिभा, बुनियादी जानकारी, अभ्यास और अनुशासन ही सफल पटकथा का राज़ है। यह पुस्तक विषयगत प्राथमिक जानकारियाँ देने के साथ उक्त सभी गुर बनाती है और प्रेरित भी करती है।
टेलीविज़न लेखन में व्यावहारिक पक्षों को सोदाहरण मित्रवत् शिक्षक की तरह समझाया गया है। पुस्तक हमें बताती है कि बुद्धि, विचार, संवेदना तथा प्रतिक्रिया को किस तरह गुंफित कर उसे ‘विजुलाइज’ करना है। यहाँ पृष्ठभूमि सम्बन्धित तमाम वांछित जानकारियाँ हैं। टेलीविज़न लेखन की संरचना और उसके निर्माण की सभी प्रविधियों के उल्लेख के साथ महत्त्पूर्ण और चर्चित पटकथाओं के अंश भी दिए गए हैं। जिनकी पटकथाएँ आज मानक की हैसियत अख़्तियार कर चुकी हैं, ऐसे नामचीन पटकथा लेखकों—कमलेश्वर, मनोहर श्याम जोशी, अशोक चक्रधर और अरुण प्रकाश से लिए गया साक्षात्कार विषयगत कई बारीकियाँ खोलता है। अन्त में दी गई तकनीकी शब्दावली पुस्तक को महत्त्पूर्ण बनाती है।
Anchalik Samwaddata
- Author Name:
Suresh Pandit
- Book Type:

- Description: लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के बावजूद संचार के विकेन्द्रीकरण का मुद्दा अभी विमर्श का विषय नहीं बन सका है। इसके बिना लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की सफलता भी आंशिक ही रहेगी। जब ज्ञान और सूचना को शक्ति माना जाता है तो भला केन्द्रीकृत सूचना-व्यवस्था से विकेन्द्रीकृत शासन-व्यवस्था की आशा कैसे की जा सकती है! जनता के क़रीब के शासकीय पायदानों अर्थात् पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर निकायों और गाँवों तथा क़स्बों के समाचारों की महत्ता अख़बारों में बढ़े, तो ही विकेन्द्रित सत्ता का सही आभास हो पाएगा। राजधानी और बड़े शहरों की चमक-दमक-भरे समाचारों को उनका सही स्थान दिखा देने की ज़रूरत है। यह तभी सम्भव है जब कुशल आंचलिक संवाददाता ग्रामीण समाज और नवीन विकेन्द्रीकृत व्यवस्था पर केन्द्रित अच्छे समाचारों को प्रकाशन के लिए भेज सकें जिनमें लोगों के दिल की धड़कन सुनाई पड़े। इसके सामने राज्य और केन्द्र की सत्ता तथा शहर की चमकीली छवि भी फीकी पड़ जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में आंचलिक संवाददाता की मदद के लिए तैयार की गई यह पुस्तक बहुत प्रासंगिक है। निश्चय ही यह पुस्तक कुशल आंचलिक संवाददाता तैयार करने और उनके निरन्तर विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेगी।
Idea Se Parde Tak : Kaise Sochta Hai Film Ka Lekhak?
- Author Name:
Ramkumar Singh +1
- Book Type:

- Description: यह किताब सिनेमा के एक सहयोगी पेशेवर के रूप में फ़िल्म-लेखक के कामकाज का सिलसिलेवार वृत्तान्त प्रस्तुत करती है। फ़िल्म का अपना तौर-तरीक़ा है, जिसके दायरे में रहकर ही फ़िल्म-लेखक को काम करना पड़ता है। इसलिए एक हद तक अपनी स्वायत भूमिका रखने के बावजूद उसको अपना काम करते हुए निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, कैमरा-निर्देशक आदि अनेक सहयोगी पेशेवरों के साथ संगति का ख़याल रखना पड़ता है। ज़ाहिर है, फ़िल्म-लेखन जिस हद तक कला है, उसी हद तक शिल्प और तकनीक भी। एक सफल फ़िल्म लेखक बनने के लिए जितनी ज़रूरत प्रतिभा की है, उतनी ही परिश्रम, कौशल, अनुशासन और समन्वय की। सबसे लोकप्रिय कला के रूप में अपनी जगह बना चुका सिनेमा आज एक महत्त्वपूर्ण इंडस्ट्री भी है जो लाखों-लाख युवाओं के सपनों का केन्द्र बन चुकी है। ऐसे में फ़िल्म-लेखन की दिशा में कदम बढ़ाने वालों के लिए यह किताब एक अपरिहार्य हैण्डबुक की तरह है।
Corporate Media : Dalal Street
- Author Name:
Dilip Mandal
- Book Type:

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Description:
राडिया कांड मीडिया की ताक़त और उसकी ख़ामी, दोनों को एक साथ दर्शाता है। ताक़त इस बात की कि मीडिया जनमत बना सकता है, जनमत को बदल सकता है, लोगों के सोचने के एजेंडे तय करता है और ख़ामी यह कि मीडिया पैसों के आगे किसी बात की परवाह नहीं करता। मीडिया को पैसेवाले पैसा कमाने के लिए और ताक़त के लिए चलाते हैं। इसलिए इसके दुरुपयोग की आशंका इसकी संरचना और स्वामित्व के ढाँचे में ही दर्ज है।
राडिया कांड से यह ज़गज़ाहिर हो गया कि ख़ासकर ऊँचे पदों पर मौजूद मीडियाकर्मी पैसे और प्रभाव के इस खेल में हिस्सेदार बन चुके हैं। पिछले 20 वर्षों में मीडियाकर्मियों के मालिक बनने की प्रक्रिया भी तेज़ हुई है। कुछ सम्पादक तो मालिक बन ही गए हैं। इसके अलावा भी मीडिया संस्थानों में मध्यम स्तर पर काम करनेवाले पत्रकारों तक को कम्पनी के शेयर दिए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पत्रकार ही क्यों न हो, उस कम्पनी या उस व्यवसाय के विरुद्ध काम क्यों करेगा जिसमें उसके शेयर हों? इस तरह पत्रकारों की प्रतिबद्धता को नए ढंग से परिभाषित कर दिया जाता है। पत्रकारों का ईमानदार या बेईमान होना अब उनकी निजी पसन्द का ही मामला नहीं रहा। कोई पत्रकार अपनी मर्ज़ी से ईमानदार नहीं रह सकता। यह बात कई लोगों को तकलीफ़देह लग सकती है। राडिया कांड ने मीडिया को सचमुच गहरे ज़ख़्म दिए हैं।
—इसी पुस्तक से
Patrakarita Ke Naye Ayam
- Author Name:
S. K. Dubey
- Book Type:

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Description:
पत्रकारिता एक बौद्धिक कर्म है। पत्रकारिता अतीत का मन्थन करती है, वर्तमान को सँवारती है और भविष्य को सुधारने का ताना-बाना बुनती है। युग-चेतना से समृद्ध पत्रकारिता ही विषम परिस्थितियों का सम्यक् विवेचन करके जनमानस को आम सहमति के बिन्दु तक ले जाने का मंच प्रदान करती है। युगीन समस्याओं, जन-आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और सम्भावनाओं पर मनन करके एक रचनात्मक चिन्तन का कैनवस तैयार करती है।
चेतना का प्रवाह करना पत्रकारिता है। परस्पर विरोधी विचारों को समर्थन-विरोध प्रणाली से तौलते हुए तत्त्व की बातें तथ्य सहित पाठकों के सामने लाना पत्रकार कर्म की सफलता है। पत्रकारिता जन-जन को जोड़ने का काम करती है। इसका प्रमुख कार्य मेल-जोल की संस्कृति का विकास करना है। 21वीं सदी की पत्रकारिता महज़ सैद्धान्तिक या वैचारिक ही नहीं रह गई है, उस पर व्यावसायिकता निरन्तर हावी होती जा रही है। विश्वविद्यालयों के अध्यापक पहले से तथा कार्यरत पत्रकार दूसरे से सम्बन्ध रखते हैं। पत्र-पत्रिका आख़िर व्यावसायिक उत्पाद भी हैं।
पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में अपने समय के विभिन्न आयामों से गुज़रती एक महत्त्वपूर्ण और संग्रणीय पुस्तक।
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