Upbhokta Vastuon Ka Vigyan
Author:
Ramchandra MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Management0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
प्रत्येक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने दैनिक जीवन में वस्तुतः उपभोक्ता होता है। उपभोक्ता वस्तुओं का प्रयोग सर्वव्यापक और नित्य क्रिया है। खाने-पीने की वस्तुओं और पहनने-ओढ़ने की चीज़ों से लेकर आवास, साफ़-सफ़ाई, सुरक्षा-बचाव, साज-सँवार तथा भोग-विलास से सम्बन्धित अनेकानेक वस्तुओं का दिन-रात निरन्तर प्रयोग किया जाता है।</p>
<p>दैनिक उपयोग की वस्तुओं की गुणवत्ता, संघटन, विश्वसनीयता, उपयोग के लाभालाभ, सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभाव आदि आवश्यक तथ्यों यानी उपभोक्ता वस्तुओं के विज्ञान से उपभोक्ता प्रायः कम ही अवगत होते हैं। दूसरी तरफ़ बाज़ार की नई प्रवृत्ति ने उपभोक्ता वस्तुओं को नया रूप दिया है। अब उपभोक्ता विज्ञापन की चकाचौंध में घटिया वस्तुओं को भी वरण कर लेता है। इसकी वजह है उपभोक्ता जानकारी और मार्गदर्शन का अभाव।</p>
<p>यह पुस्तक उपभोक्ता वस्तुओं के बारे में कही-सुनी बातों के बजाय हमें ठोस वैज्ञानिक जानकारी देती है जिसके आधार पर हम अपने उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
ISBN: 9788183611909
Pages: 268
Avg Reading Time: 9 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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M. N. Mishra
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- Description: ‘बीमा सिद्धान्त एवं व्यवहार’ पुस्तक भारत में अपने स्तर की हिन्दी में एक सफल पुस्तक है, जिसे विभिन्न विश्वविद्यालयों और सेवा आयोगों में मान्यता प्राप्त है। इस पुस्तक में बीमा के समस्त अंगों को शामिल किया गया है। इसमें पाँच भाग हैं। प्रथम भाग परिचय का है जिसके अन्तर्गत परिभाषा, स्वभाव, विकास, बीमा प्रसंविदा का वर्णन है। भाग दो जीवन बीमा का है जिसमें जीवन बीमा प्रसंविदा, बीमापत्र के भेद, वृत्तियाँ, बीमापत्र की शर्तें, जीवन बीमा की आवश्यकता एवं महत्त्व, पिछड़े वर्ग का जीवन बीमा, बीमा कराने की विधि एवं चुनाव, मृतक तालिका, प्रव्याजि निर्धारण, अधो-प्रामाणिक जीवन का बीमा, संचय, कोष का विनियोग, समर्पित मूल्य, मूल्यांकन एवं अतिरेक वितरण, जीवन बीमा का पुनर्बीमा और जीवन बीमा की प्रगति का वर्णन है। निजी क्षेत्रों में बीमा के योगदान का भी विश्लेषण है। तृतीय भाग में सामुद्रिक बीमा के विभिन्न पहलुओं, जैसे—बीमा का प्रसंविदा, सामुद्रिक बीमा के भेद, वाक्यांश, हानियाँ, सामुद्रिक बीमा में प्रव्याजि निर्धारण और वापसी और सामुद्रिक बीमा की प्रगति का विशद विश्लेषण है। अग्नि बीमा के महत्त्वपूर्ण अंग, जैसे-परिचय, प्रसंविदा, बीमापत्र के भेद, शर्तें, प्रव्याजि निर्धारण, पुनर्बीमा, क्षतिपूर्ति निर्धारण एवं भुगतान और अग्नि बीमा की प्रगति का भाग चार में वर्णन है। भाग पाँच में विविध बीमा एवं बीमा अधिनियम का वर्णन है। इसमें महत्त्वपूर्ण बीमा, जैसे-चोरी बीमा, मोटर बीमा, फ़सल, पशु और लाभ बीमा, मशीन बीमा, निर्यात बीमा, युद्ध जोखिम बीमा और प्रगति का विश्लेषण है। अधिनियमों में बीमा अधिनियम, 1938; जीवन बीमा अधिनियम, 1956; सामुद्रिक बीमा अधिनियम, 1963; सामान्य बीमा अधिनियम (राष्ट्रीयकरण) 1972; बीमा नियमन और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2000 और उसके प्रत्यंगों का विशेष रूप से वर्णन है। इस पुस्तक के अध्ययन से छात्र बीमा व्यवसाय में सफल रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। कार्यशील बीमाकर्त्ताओं की समस्याओं का समाधान इसके माध्यम से किया जा सकता है। बीमा अधिकारियों को नई सोच की दिशा मिल सकती है।
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