Yogeshwar
Author:
Shakuntala MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Unavailable
योगेश्वर अर्थात श्रीकृष्ण के अनेक रूप जनमानस में अंकित हैं—माखन-चोर से लेकर गीता-उपदेशक तक जिन्हें भारतवासियों ने कई कोणों से देखा और प्रेम किया। यह आख्यान उन्हीं श्रीकृष्ण को एक समग्र व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करने का कथात्मक प्रयास है। उनके वंश-इतिहास और जीवन की हर घटना के साथ। कथाकार का मानना है कि कृष्ण के चरित्र को पूरी तरह समझने के लिए हमें चमत्कारों और भावुकता की मन:स्थिति से निकलकर उन्हें एक ऐसे युगपुरुष के रूप में देखना होगा जिसके जीवन का हर क्षण मानवता के लिए एक बहुमूल्य सन्देश है। यह कथा कृष्ण के माता-पिता और उनके भी पूर्वजों की पृष्ठभूमि के वर्णन से आरम्भ होती है जिसमें देवकी और वसुदेव के तप, उनके सुदीर्घ कष्ट और कंस द्वारा उनके छह पुत्रों की हत्या के लोमहर्षक विवरण हमें देखने को मिलते हैं। कृष्ण के बाल्यकाल और छात्र-जीवन को भी कथाकार ने विभिन्न स्रोतों के आधार पर यहाँ पुनर्सृजित किया है। कृष्ण के जीवन में आए विभिन्न पात्रों के माध्यम से चलती यह कथा भगवान श्रीकृष्ण को एक सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में स्थापित करती है—एक ऐसा मनुष्य जो एक समय इस पृथ्वी पर अपने दुर्लभ और असाधारण गुणों के साथ उपस्थित था।
ISBN: 9789391950866
Pages: 414
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘सती मैया का चौरा’ में भैरवप्रसाद गुप्त गाँवों की मुक्ति का सवाल उठाते हैं। वे साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए किए जानेवाले संघर्ष को भी विस्तारपूर्वक अंकित करते हैं। उपन्यास की कहानी दो सम्प्रदायों के किशोरों—मुन्नी और मन्ने को केन्द्र में रखकर विकसित होती है। मन्ने गाँव के ज़मींदार का लड़का है, जबकि मुन्नी एक साधारण हैसियत वाले वैश्य परिवार से है। उनके किशोर जीवन के चित्र साम्प्रदायिक कट्टरता के विरुद्ध एक आत्मीय और अन्तरंग हस्तक्षेप के रूप में अंकित हैं।
भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में ही उत्पन्न साम्प्रदायिक राजनीति की शक्तियाँ गाँव को भी प्रभावित करती हैं। सती मैया के चौरा के लिए शुरू हुआ संघर्ष उन निहित स्वार्थों को निर्ममतापूर्वक उद्घाटित करता है जो धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लोक-चेतना और लोक-संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करते हैं। ‘हिन्दू-मुसलमान की बात कभी अपने दिमाग़ में उठने ही न दो, यह समस्या धार्मिक नहीं राजनीतिक है और सही राजनीति ही साम्प्रदायिकता का अन्त कर सकती है।’ यह सही राजनीति क्या है? ‘मैं कभी भी महत्त्वाकांक्षी नहीं रहा। धन, यश, प्रशंसा को कभी भी मैंने कोई महत्त्व नहीं दिया। पढ़ाई ख़त्म होने के बाद जो तकलीफ़ मैंने झेली, उसमें और आश्रम के जीवन में जो भी ग्रहण किया है, सच्चाई से किया है। आश्रम, जेल जीवन और पार्टी जीवन ने मुझे बिलकुल सफ़ेद कर दिया, सारी रंगीनियों को जला दिया...मैंने जीवन में जो भी ग्रहण किया है, सच्चाई से किया है। आश्रम में, जेल जीवन में, पार्टी जीवन में और अब पत्रकारिता और लेखक के जीवन में...।’
‘सती मैया का चौरा’ भैरवप्रसाद गुप्त का ही नहीं, समूचे हिन्दी उपन्यास में एक उल्लेखनीय रचना के रूप में समादृत रहा है।
Kya Karen?
- Author Name:
Nikolai Chernyshevsky
- Book Type:

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कोई एक कथाकृति किसी समाज को किस हद तक प्रभावित कर सकती है और इतिहास-निर्माताओं की एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित–दीक्षित करने में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, इसे जानने के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के आख़िरी चार दशकों (और बीसवीं शताब्दी के पहले दशक) के दौरान रूसी समाज, और विशेषकर युवा समुदाय पर, ‘क्या करें?’ के प्रभाव का अध्ययन किया जा सकता है।
यह उपन्यास अपने समय के प्रगतिशील युवाओं के सामने व्यावहारिक कार्रवाई की एक ठोस योजना प्रस्तुत करता है। ‘क्या करें?’ उपन्यास में एकदम नए क़िस्म के लोगों के जीवन की कहानी प्रस्तुत की गई है, जिनके सर्वथा नई क़िस्म की नैतिक और सामाजिक विचार थे, नए क़िस्म का पारिवारिक जीवन था। वे अपने श्रम के सहारे जीवनयापन करनेवाले लोग थे जो अपने व्यावहारिक जीवन के उदाहरण से लोगों को समाजवाद के विचारों का क़ायल करते थे। 1860 के दशक के रूस में प्रस्तुत चरित्र निस्सन्देह भविष्य के नागरिक थे।
Vitt Vasana
- Author Name:
Shankar
- Book Type:

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Description:
संसार में सम्पत्ति का, धन का कोई विकल्प नहीं है, मनुष्य ने सभ्य होने के क्रम में जब मुद्रा का आविष्कार किया होगा, तभी यह तय हो गया होगा कि अब कोई न किसी के बराबर होगा, और न कोई कहीं रुककर यह कह सकेगा कि अब बस, मेरी क्षुधा तृप्त हुई। अब कोई कितना भी जमा करके रख सकता था, और कितने भी और की लालसा में डूबा रह सकता था।
और यहीं उस दो बित्ता ज़मीन को हमारे पैरों के नीचे से निकल जाना था जिसे सुख कहते हैं, और जिस पर पाँव जमाकर आदमी कैसे भी झंझावात का सामना कर सकता था।
यह उपन्यास अस्तित्व के उसी आधार-सुख और धन की असीम लालसा के संघर्ष की कथा है। वनबिहारी और शकुन्तला का वह प्यार जिसने किराए के एक छोटे से कमरे में, छोटी-सी एक नौकरी के सहारे एक बड़ा सुख जिया था, बाद में बिजनेस की ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर ऊँची उड़ानें भरने लगा। धनाभाव के कारण अपने शिशु को गँवा चुकी शकुन्तला ने ठान लिया कि अब धन के ढेर लगाने हैं तो वनबिहारी ने भी अपना सारा कौशल अपना अलग बिजनेस बड़ा करने में लगा दिया। रास्ते अलग हो गए, और प्रेम कहीं का नहीं रह गया।
लेकिन अन्त में लक्ष्मी ने शकुन्तला की परीक्षा ली और वनबिहारी ने अपनी सम्पन्नता को कभी प्रेमिका रही शकुन्तला के लिए न्योछावर कर दिया, तो जीवन जैसे कई प्रश्न लेकर खड़ा हो गया। यही मर्म है वित्त की इस वासना का।
Shahar Se Das Kilometer
- Author Name:
Neelesh Raghuwanshi
- Book Type:

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‘शहर से दस किलोमीटर’ ही वह दुनिया बसती है जो शहरों की न कल्पना का हिस्सा है, न सपनों का। वह अपने दुखों, अपने सुखों, अपनी हरियाली और सूखों के साथ अपने आप में भरी-पूरी है।
वहाँ खेत है, ज़मीन है, कुछ बंजर, कुछ पठार, कुछ उपजाऊ और उनसे जूझते, उनकी वायु में साँसें भरते लोग हैं, उनकी गाएँ भैसें और कुत्ते हैं; और आपस में सबको जोड़नेवाली उनकी रिश्तेदारियाँ हैं, झगड़े हैं, शिकायते हैं, प्यार है!
शहर से सिर्फ़ दस किलोमीटर परे की यह दुनिया हमारी ‘शहरवाली सभ्यता’ से स्वतंत्र हमारे उस देश की दुनिया है जो विकास की अनेक धाराओं में अपने पैर जमाने की कोशिशों में डूबता-उतराता रहता है। इसी जद्दोजहद के कुछ चेहरे और उनकी कहानियाँ शहर के बीचोबीच भी अपने पहियों, अपने पंखों पर तैरती मिल जाती हैं। यह उपन्यास साइकिल के इश्क़ में डूबे एक जोड़ी पैरों की परिक्रमा के साथ खुलता है जो शहर के बीच से शुरू होती है और उसके दस किलोमीटर बाहर तक जाती है। यह शहर है भोपाल। पहाड़ी चढ़ाइयों और उतराइयों को सड़कों की संयत भाषा में व्याख्यायित करता शहर। सड़कों के किनारे अस्थायी टपरों में बसे लोग, तरह-तरह के कामों में लगे वे लोग जो शहरों में रहते हुए भी शहर से बाहर की अपनी पहचान को सँजोए रहते हैं। साइकिल सबका हाल-चाल दर्ज करती हुई घूमती रहती है। एक स्त्री की साइकिल, जिसका अपना एक इतिहास है, जो शहर की आपाधापी से दूर खेतों में, शहर के उन हिस्सों में बरबस निकल जाती है जहाँ शहर तो है लेकिन उसकी कोई ख़ूबी नहीं है। गाँवों की सरहदों का अतिक्रमण करता शहर यहाँ उन लोगों से बहुत बेरहम व्यवहार करता है जो गाँवों की साधनहीनता से भागकर शहर का हिस्सा होने आए हैं।
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