Topi Shukla
Author:
Rahi Masoom RazaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘आधा गाँव’ के ख्यातिप्राप्त रचनाकार की यह एक अत्यन्त प्रभावपूर्ण और मर्म पर चोट करनेवाली कहानी है। ‘टोपी शुक्ला’ ऐसे हिन्दुस्तानी नागरिक का प्रतीक है जो मुस्लिम लीग की दो राष्ट्रवाली थ्योरी और भारत विभाजन के बावजूद आज भी अपने को विशुद्ध भारतीय समझता है—हिन्दू-मुस्लिम या शुक्ला, गुप्त, मिश्रा जैसे संकुचित अभिधानों को वह नहीं मानता। ऐसे स्वजनों से उसे घृणा है जो वेश्यावृत्ति करते हुए ब्राह्मणपना बचाकर रखते हैं, पर स्वयं उससे इसलिए घृणा करते हैं कि वह मुस्लिम मित्रों का समर्थक और हामी है। अन्त में टोपी शुक्ला ऐसे ही लोगों से कम्प्रोमाइज नहीं कर पाता और आत्महत्या कर लेता है।</p>
<p>व्यंग्य-प्रधान शैली में लिखा गया यह उपन्यास आज के हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों को पूरी सच्चाई के साथ पेश करते हुए हमारे आज के बुद्धिजीवियों के सामने एक प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
ISBN: 9788126709113
Pages: 119
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘नोबेल पुरस्कार’ सम्मानित लेखिका नादिन गोर्डाइमर का उपन्यास ‘मेरे बेटे की कहानी’ दक्षिण अफ्रीका के नस्लवादी, रंगभेदवादी निरंकुश, अमानवीय शासन के निषेध-दर-निषेध की चक्की में पीसे जाते उन 87 प्रतिशत बहुसंख्य कालों, अश्वेतों तथा अन्यवर्णी जनों पर 13 प्रतिशत विशेष सुविधाभोगी गोरों के संवेदनहीन अत्याचार और शोषण-चक्र की स्मृतियाँ जगानेवाली कृति है। यहाँ से गुज़रना अँधेरी सुरंग की कष्टकर किन्तु अनिवार्य यात्रा की तरह है—एक ऐसी लम्बी, काली रात जिसकी कोई सुबह नहीं है। जैसे-जैसे हम पृष्ठ पलटते हैं एक भयानक बेचैनी जकड़ती चलती है, लेकिन हम उससे भाग नहीं सकते। हमारे अन्दर बैठा मनुष्य अपने नियतिचक्र का यह उद्वेलन अपनी हर शिरा में महसूस करना चाहता है—अगले संघर्ष की तैयारी के लिए, जो कहीं, कभी शुरू हो सकता है।
‘मेरे बेटे की कहानी’ एक ऐसे संसार में ले जाती है जहाँ मनुष्य होने के हर अधिकार को निषेधों और वर्जनाओं के बुलडोज़रों के नीचे कुचल दिया गया है। लेकिन इस दमनचक्र में पीसे जाने के बावजूद संघर्ष जीवित है।
उपन्यास में कथा कई स्तरों पर चलती है। पीड़ा भोगते अधिसंख्य जन, उन्हीं के बीच से उभरकर संघर्ष करनेवाले क्रान्तिबिन्दु किशोर और युवक, जो बड़ी बेरहमी से भून दिए जाते हैं। उनकी क़ब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित करने जुटी भीड़ पर फिर गोलियाँ बरसाई जाती हैं। हर रोज़, हर कहीं यही होता है। कथा का आरम्भ ऐसा आभास कराता है जैसे यह विवाहेतर अवैध काम सम्बन्धों की चटपटी कथा है। ‘दूसरी औरत’ के साथ अपने क्रान्तिकारी पिता को, जो हाल ही में जेल से छूटकर आया है, देखनेवाली किशोर बेटे की आँख इस सन्दर्भ को नए आयाम देती है। एक भयानक, विद्रूपित कंट्रास्ट की क्षणिक आश्वस्ति—और पाठक को लगता है वह क्षण-भर को खुलकर साँस ले सकता है। लेकिन अन्ततः यह किंचित् रोमानी स्थिति भी हमें बेमालूम तौर पर बहुत ऊँचाई से इस संघर्ष के भँवर में फेंक देती है, और हम अन्दर ही अन्दर उतरते चले जाते हैं। स्थितियों का यह प्रतिगामी विचलन एक नए शिल्प के तहत रचना के समग्र प्रभाव को और भी धारदार बना देता है।
Rinala Khurd
- Author Name:
Ishmadhu Talwar
- Book Type:

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Description:
‘रिनाला खुर्द’ लेखक ईशमधु तलवार का एक ऐसा उपन्यास है जिसमें भारत विभाजन का दर्द है, जिसमें सरहद के इस पार की हूक सुनाई देती है तो उस पार की सिसकियाँ। लेखक ने लुप्त नदी सरस्वती की तलाश के माध्यम से स्मृतियों का एक ऐसा कोलाज रचा है जो बार-बार भारत विभाजन की निस्सारता की तरफ़ ध्यान दिलाता है।
इसमें ‘चाईजी’ की कहानियाँ हैं जिनमें विभाजन से पहले का दर्द है तो मेवात के बगड़ गाँव की नर्गिस के दिल का टभकता दु:ख है जो शादी के बाद पाकिस्तान चली गई। वहाँ वह सलमा के नाम से एक प्रसिद्ध लोक गायिका बन गई लेकिन न अपने बचपन के गाँव को भूल पाई न ही अपने प्रेमी मधु को जिससे बरसों बाद पाकिस्तान में उसकी मुलाक़ात होती है। दोनों अपने खोये प्यार को याद करते हैं, भविष्य में एक साथ रहने के सपने देखते हैं लेकिन बीच में सरहद आ जाती है। जहाँ अपने-अपने दु:खों को समेटकर वे जुदा हो जाते हैं।
उपन्यास में सूखी नदी के स्रोत की तलाश के माध्यम से प्रेम के उस विलुप्त होते स्रोत की तलाश की कोशिश भी बड़ी शिद्दत से दिखाई देती है जिसके ऊपर नफ़रत की दीवार खींच दी गई। उपन्यास में क़िस्सों के भी अनेक स्रोत हैं जो अन्त तक पढ़नेवाले का ध्यान नहीं हटने देते।
—प्रभात रंजन
Punjab Ki Lokkathayen
- Author Name:
Phulchand Manav
- Book Type:

- Description: पंजाब की लोककथाएँ प्रेम और अनुराग के संबंधों में धड़कती शाश्वत कहानियाँ हैं। इसलिए कि भारत की आजादी से पहले, पाकिस्तान में स्थित क्षेत्रों में भी ये गूँज छोड़ रही हैं। लोकगीतों में इनके संदर्भ उभरते हैं—टप्पे, सिट्ठणियाँ, बोलियाँ, गिद्दे अथवा भाँगड़े के साथ हमें स्पंदित कर जाते हैं। 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा व हिमाचल के अस्तित्व में आने के बाद भी जो पंजाब आज है, उसमें लोककथाओं की भरपूर विरासत है। यहाँ मालवा, माँझा, दोआबा और पुआध अपनी मूल रंगत में दिपदिपा रहे हैं। सांस्कृतिक संपदा और पारंपरिक कथा-क्षेत्र में प्रेम-प्यार और लोक की लुभावनी गाथाएँ सुना रहे हैं। लोक-व्यवहार, लोक-परंपरा से लेकर लोक-गीतों में भी हमारे यहाँ कहानियों की भरमार है। हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, शीरी-फरहाद या सोहनी-महिवाल से आगे कामकंदला जैसी सैकड़ों प्रेमकथाएँ हैं, जिनमें लोक-रंग गहरा उभरा है और इन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी हम सुनते आए हैं। पंजाबी भाषा के किस्साकारों ने अपनी रचनाओं में काव्य कौतुक दिखाकर दर्जनों चिट्ठे-किस्से, प्यार-गाथाओं एवं लोककथाओं के छपवाएँ हैं। शिव कुमार बटालवी की लूणा पूर्ण भगत को बयान करती लोककथा ही तो है। हिंदी पाठक पंजाब की लोककथाओं का आनंद ले पाएँ, प्रस्तुत संकलन इसी उद्देश्य से तैयार हुआ है।
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