Ulta Daun
Author:
Prabodh Kumar SanyalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 48
₹
60
Unavailable
जीवन के झंझावात के सम्मुख एक संवेदनशील व्यक्ति के असहाय और अकेले हो जाने की कथा है ‘उल्टा दाँव’। बांग्ला के अत्यन्त लोकप्रिय कथाकार<strong>, </strong>यात्रावृत्त-लेखक प्रबोध कुमार सान्याल का यह चर्चित उपन्यास मानव-चरित्र की कई कोणों से पड़ताल करता है।</p>
<p>हेमन्त<strong>, </strong>रूनू और उसके परिवार की सम्पन्न पृष्ठभूमि में यह उपन्यास हमें अपने आसपास की ही कहानी लगती है<strong>, </strong>लेकिन इसके चरित्रों के भीतरी अन्तर्विरोध<strong>, </strong>आकांक्षाएँ<strong>, </strong>कमज़ोरियाँ उन्हें एक ऐसा आईना बना देती है जिसमें हम अपने तथा अपने जीवन से जुड़े अनेक चरित्रों के चेहरे देख सकते हैं।</p>
<p>बांग्ला कथाकारों की वह विशेषता जो उनकी कथाकृतियों को बेहद पठनीय बना देती है<strong>, </strong>इस उपन्यास में भी पाठक को बाँधने के लिए अपने पूरे जादू के साथ उपस्थित है। रहस्य<strong>, </strong>रोमांच और रोमांस से भरे-पूरे इस उपन्यास में न्याय तथा नैतिकता सम्बन्धी प्रश्न को बहुत गहराई में जाकर पकड़ा है।
ISBN: 9788180311420
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मुरदा-घर सामाजिक विसंगतियों और विषमताओं का यथार्थपूर्ण चित्रण है। वर्तमान अर्थव्यवस्था के तहत गाँवों के उजड़ने की प्रक्रिया जैसे-जैसे तेज़ होती गई, महानगरों में गन्दी बस्तियों और झोंपड़पट्टियों या झुग्गी-झोंपड़ियों का उतनी ही तेज़ी से विस्तार होता गया। इन बस्तियों में मानव-जीवन का जो रूप विकसित हुआ, वह काफ़ी विकृत और अमानवीय है। वेश्यावृत्ति और अपराध-कर्म का यहाँ विशेष रूप से विकास हुआ।
‘मुरदा-घर’ में झोंपड़पट्टी की वेश्याओं की दयनीय स्थिति का शक्तिशाली चित्रण है। विद्रूप यथार्थ ‘मुरदा-घर’ के केन्द्र में ज़रूर है, लेकिन उपन्यास की मुख्य धारा करुणा और संवेदना की है। विकृत से
विकृत स्थितियों से गुज़रते हुए भी उपन्यास के पात्र नितान्त मानवीय और संवेदनशील हैं। ‘मुरदा-घर’ में वर्तमान राज्य-तंत्र के अमानवीय रूप को भी उकेरा गया है। पुलिस-स्टेशन, हवालात, कचहरी वग़ैरह का जो रूप यहाँ सामने आया है, काफ़ी अमानवीय और नृशंस है।
‘मुरदा-घर’ आज की हमारी पूरी व्यवस्था पर एक प्रश्नचिह्न है। जैसा कि एक आलोचक ने कहा है, ‘मुरदा-घर’ आधुनिक हिन्दी उपन्यासों की दुनिया में एक चुनौती है। इसका सामना करना आसान नहीं है।’
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