Sahir Samagra
Author:
Sahir LudhianviPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
साहिर लुधियानवी को जनसाधारण आम तौर पर फ़िल्मों के गीतकार के रूप में ही जानता-पहचानता है। लेकिन तथ्य यह है कि फ़िल्में उनके जीवन में बहुत बाद में आईं, उससे पहले वे एक प्रगतिशील शायर के तौर पर अपनी बड़ी पहचान बना चुके थे। फ़िल्मों ने बस उन्हें रोज़गार दिया जिसके जवाब में उन्होंने फ़िल्मों को कुछ ऐसे अमर उपहार दिए जिन्हें उन्होंने अपने ऊबड़-खाबड़ और गहरी उदासी में बीते जीवन में कमाया था।</p>
<p>एक ऐसे परिवार में पैदा होकर, जिसका शायरी और अदब से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था, और एक ऐसे पिता का पुत्र होकर जिसके साथ उनके सम्बन्ध कभी पिता-पुत्र जैसे नहीं रहे और एक ऐसे समाज में जीकर जिसका सस्तापन, नाइंसाफ़ी और संकीर्णताएँ उनकी उदास आँखों से बचकर निकल नहीं पाती थीं, उन्होंने वह कमाया जिसे भले ही उस वक़्त के आलोचकों ने बहुत मान नहीं दिया, लेकिन जो आम आदमी की यादों में हमेशा के लिए पैठ गया। फ़िल्मों में आने से पहले ही वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय और चहेते शायरों में शुमार हो चुके थे।</p>
<p>साहिर की ऐसी कई नज़्में और ग़ज़लें हैं, और गीत भी, जिनमें उन्होंने समाज की आलोचना दो-टूक लहज़े में की है। प्रगतिशील आन्दोलन से जुड़े साहिर की चिन्ताओं में गाँव में भूख और अकाल से जूझ रहे किसानों के दु:ख से लेकर शहरों में भूख के हाथों बिकतीं उन औरतों जिन्हें समाज वेश्या कहता है—तक का दर्द एक जैसी गहराई से आया है, जिसका मतलब यही है कि दु:ख को देखना, जीना और पकड़ना, शायर के रूप में यही उनका एकमात्र कौशल था, और इसी के विस्तार में उन्होंने हर माथे की हर सिलवट को पिरोकर तस्वीर बना दिया।</p>
<p>यह किताब उनकी रचनाओं का समग्र है, अभी तक उपलब्ध उनकी तमाम ग़ज़लों, नज़्मों और गीतों को इसमें इकट्ठा करने की कोशिश की गई है। उम्मीद है दर्द-पसन्द पाठकों को इसमें अपना वह खोया घर मिल जाएगा जो इधर की चमक-दमक में खो गया है।
ISBN: 9788126729272
Pages: 432
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Jhukna Kisi Ko Ropna Hai
- Author Name:
Shriprakash Shukla
- Book Type:

- Description: नब्बे के बाद की हिन्दी कविता को कवियों की जिस पीढ़ी ने अपने सरोकारी एवं सतत लेखन से सँवारा-बनाया है उनमें श्रीप्रकाश शुक्ल एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनकी कविताई का विस्तार तीन दशकों में फैला हुआ है, लेकिन इसकी खासियत है इसका सातत्य। 1999 में श्रीप्रकाश शुक्ल का पहला संग्रह ‘अपनी तरह के लोग’ के आने से लेकर 2022 में सातवें संग्रह ‘वाया नई सदी’ तक की यात्रा में एक निरन्तरता है। ये कृतियाँ क्रमशः संस्कृति, दर्शन और राजनीतिक चेतना की धुरी पर अपने समय को कातती हैं। इनके पूरे परिस्पन्द के बीच एक चीज सर्वनिष्ठ है और वह है लोकभाषा और जनपदीयता। बनारस अंचल श्रीप्रकाश शुक्ल की कविताओं की शिराओं में रक्त बनकर दौड़ रहा है। सोनभद्र, मिर्जापुर, प्रयाग और गाजीपुर का ‘लोकेल’ उनकी कविता में बुनियाद की तरह बिछा हुआ है। उनकी कविताओं पर इस क्षेत्र की लोककथाओं, लोक धुनों और गीतों का गहरा असर है। आख्यान-परम्परा का तो सबसे गहरा और व्यापक। श्रीप्रकाश शुक्ल की आख्यान शैली में लोक और शास्त्र दोनों में मौजूद दन्तकथाओं, किंवदन्तियों और मिथकीयता के आधुनिक सन्दर्भों का काव्यमय सन्धान अद्भुत और व्यापक है। लोककथाओं व मिथकीय पृष्ठभूमि के साथ श्रीप्रकाश शुक्ल ने बहुत साभिप्राय लोक देवों-देवियों, लोकनायकों और अति साधारण किरदारों के साथ मामूली जगहों, पेशों, रिवाजों व चीजों को अपनी कविताओं का विषय बनाया है। प्रशस्त इतिहासबोध और जनपदीयता के भीतर से कविता में इतिवृत्त और प्रकृति के संश्लेष के कारण श्रीप्रकाश शुक्ल इस प्रवृत्ति के प्रतिनिधि कवि हैं।
Abhi, Bilkul Abhi
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

-
Description:
'बिकल मन/ठहरो/हम उपेक्षा नहीं करते/किसी की आवाज़ की/और फिर वह/गली/सागर पार/निर्जन, कहीं से भी आए!’
केदार जी सबकी आवाज़ सुनते हैं। प्रकृति का कण-कण। घर का कोना-कोना, मन का रेशा-रेशा; जहाँ भी स्पन्दन है, केदार जी की कविता अपनी पूरी संवेदना के साथ वहाँ पहुँच जाती है। हर स्वर की प्रतिध्वनि को व्यक्त करने को उनके शब्दों का रोम-रोम खुला है। खुलते दिन, उतरती साँझें, गहराती रातें—सभी बिम्ब यहाँ उपस्थित हैं और साथ में है रचने को कवि के आतुर हाथ...
'खोल दूँ यह आज का दिन/जिसे/मेरी देहरी के पास कोई रख गया है/एक हल्दी रँगे/दूरदेशी पत्र-सा...इस सम्पुटित दिन के सुनहले पत्र को/जो द्वार पर गुमसुम पड़ा है/खोल दूँ।’
प्रकृति केदार जी की कविताओं का विषय नहीं, उनकी सहचरी है। वे प्रकृति को देखते भी हैं, उससे उजास भी लेते हैं और उसकी पुनर्रचना भी करते हैं। इसी तरह लोक और उसमें रचा-बसा घर, और घर में बुने हुए रिश्ते—इन सबकी इयत्ता उनके शब्दों के साथ-साथ चलती है, उनसे अपना नया रूप पाती है, एक नई परिभाषा जो हमें नए सिरे से जीने का भरोसा और उम्मीद देती है। घर के रूप में एक ख़ाली कमरा भी उन्हें अपनी पूरी भयावहता में अन्तत: एक सकारात्मक बिन्दु दिखाई देता है जहाँ से वे और हम अपनी नई यात्रा शुरू कर सकते हैं...
'आज भी खड़ा है वह/...मेरी प्रतीक्षा में/बड़े-बड़े डैनों वाला कमरे का दानव...उसे सब ज्ञात है/...इसीलिए कभी कुछ पूछता नहीं है/जब बाहर से आता हूँ/चुपके से क्षत-विक्षत डैने उठाकर/मुझे जगह दे देता है/मानो कहता हो : अब बहुत थक गए हो तुम/योद्धा, विश्राम करो!’
Via Nayi Sadi
- Author Name:
Shriprakash Shukla
- Book Type:

-
Description:
‘वाया नई सदी’ दस्तावेज़ है समय की असहजताओं और अस्वाभाविकताओं का जिन्हें हमने जीवन की स्वाभाविक मुद्राओं की तरह स्वीकार कर लिया है। ये कविताएँ इस स्वीकृति के विरुद्ध उठी मुट्ठियों की तरह हैं। यह समय जहाँ बोलने, चीखने और विरोध करने पर लगातार कठोर होती पाबन्दियाँ हमारी चुप्पियों पर हँसने लगी हैं, और हम प्यार को, जनतन्त्र को, मानवीयता को धीरे-धीरे छीजते देख रहे हैं, और ख़ामोश हैं।
‘हमारे समय के करुण इतिहास पर/हिंसा की तरह दर्ज अभिलाषाओं में/महामौन की तरह खड़ी है एक गाय/जो अभी-अभी खूँटे पर आई है/लहूलुहान’—‘गाय’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ भारत की नयी सदी की उस महाविडम्बना की ओर संकेत करती है जहाँ करुणा में रसे-बसे सांस्कृतिक प्रतीकों को हिंसक बिम्बों में बदलने की कोशिश बाक़ायदा सत्ता के इशारों पर हो रही है और समाज, जैसे कि उसे इसी का इंतज़ार था, इस प्रक्रिया को पूरा करने में जुटा हुआ है : ‘उनमें ग़ज़ब की सामूहिक सहमति है’, और ‘एक सीधी सरल गाय/हिंसक पशु में बदल जाती है।’
श्रीप्रकाश शुक्ल भारतीयता के इस क्षरण के प्रति अपनी असहमति, अपना प्रतिरोध दर्ज कराना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बोलें, 'चुप्पी के काइएँपन से दूसरे की हत्या करने से बेहतर है/बोल-बोलकर ख़ुद के भीतर जमी काइयों का वध करना।’ वे कहते हैं कि ‘बोलता आदमी जब चुप हो जाए/तो समझिए कि इस व्यवस्था में एक तानाशाह का जन्म हो चुका है/जो हमारे मुँह से प्रवेश करता है और जीभ को चीरता हुआ/अंतड़ियों में उतर जाता है।’ इसीलिए वे एक मुखर आदमी के पक्ष में अपना बयान देते हैं, ‘मनुष्यों के मुद्दे राजनीति से बड़े होते हैं/और अर्थनीति से ज़्यादा उलझे हुए/...कि लोकतंत्र के मुद्दे भुजा से नहीं/भाषा से तय होते हैं।’
श्रीप्रकाश शुक्ल के इस नए संग्रह में कई कविताएँ ऐसी हैं जो इस विचित्र सदी को सीधे-सीधे सम्बोधित हैं और कई ऐसी जो समय के शोर में बिला रही मनुष्यता की सरस, सहज, सकारात्मक भंगिमाओं को आवाज़ देती हैं। उनके ‘नहीं होने’ को रेखांकित करती हैं ताकि हम उन्हें लौटा लाएँ। कोरोना काल के भीषण विद्रूप भी इन कविताओं में अंकित हुए हैं, और प्रकृति के साहचर्य से पल्लवित संवेदनाएँ भी। लेकिन ‘वाया’ की ओट से समय की लय को भंग करनेवाली ताक़तों को लेकर चेतावनी कहीं धूमिल नहीं पड़ती : ‘बादल होंगे लेकिन नमी नहीं होगी/...रक्षक होंगे लेकिन रक्षार्थ कुछ नहीं होगा.../और तब वे अपने वर्तमान से मुक्त होकर/एक शानदार विरासत का जश्न मनाएँगे/...मानव-मुक्त विकास का जश्न!’
Itihas Mein Abhage
- Author Name:
Dinesh Kushawah
- Book Type:

-
Description:
दिनेश कुशवाह हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनकी काव्य-प्रतिभा का क्या कहना! निरन्तर अमूर्त, नीरस, उजाड़ और अपठनीय होती हिन्दी कविता को उन्होंने 'इसी काया में मोक्ष' जैसा मुहावरा दिया जो समकालीन हिन्दी कविता के लिए नया अध्याय साबित हुआ। उनका दूसरा कविता-संग्रह 'इतिहास में अभागे' मानुष सत्यों की बेजोड़ कविताई है। दिनेश जी 'असिधाराव्रती' हैं। तलवार की धार पर चलने में उन्हें मज़ा आता है।
अद्भुत कथन-शैली, देशी मिठास और शास्त्रीय परिर्माजन से भरी भाषा का जो मणिकांचन योग दिनेश कुशवाह की कविता में उपस्थित होता है, अन्यत्र दुर्लभ है। कल्पना, प्रतीकों और बिम्बों से सज्जित अपनी कविता में वे वैज्ञानिक-दार्शनिक तर्कों के साथ ऐसी सरसता न जाने कहाँ से लाते हैं। जबकि वैचारिक आधार और राजनीतिक दृष्टि ही उनकी कविता के पाथेय हैं। प्रेम एवं करुणा की जो पुकार दिनेश कुशवाह की कविता में मिलती है, उसके अनुकरण में बार-बार अनेक कवि कंठ फूट पड़ते हैं। वे कबीर की तरह सच को सबसे बड़ा तप मानते हैं, और मुक्तिबोध की तरह अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाना जानते हैं।
'चल्लू भर पानी का सनातन प्रश्न', 'भूमंडलीकृत आषाढ़ का एक दिन', 'महारास', 'आज भी खुला है अपना घर फूँकने का विकल्प', 'उजाले में आजानुबाहु', 'इतिहास में अभागे', 'मैंने रामानन्द को नहीं देखा', 'बहेलियों को नायक बना दिया', 'अच्छे दिनों का डर', 'विश्वग्राम की अगम अँधियारी रात', 'भय सेना', 'प्रेम के लिए की गई यात्राएँ', 'ईश्वर के पीछे', 'प्राणों में बाँसुरी' 'हर औरत का एक मर्द है', 'हरिजन देखि', 'यह पृथ्वी बच्चों के लिए है' तथा 'पूछती है मेरी बेटी' आदि कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं।
काव्य विषयों के नवाचार के मामले में तो दिनेश कुशवाह का कोई शानी नहीं है। वे वाणी के उद्भट पंडित और काव्य के मर्मज्ञ कवि हैं। रूढिय़ों, अवैज्ञानिक धारणाओं, अन्धविश्वासों, अविचारित आस्थाओं, नियोजित पाखंडों, सुनियोजित षड्यंत्रों तथा कपट कुचालों पर कठिन कुठाराघाट करने से वे कभी नहीं चूकते। कविता और जीवन, दोनों में उनकी वाक्शक्ति से हतप्रभ विरोधी भी सहज बैर बिसराकर उनका बखान करने लगते हैं।
—शिवमूर्ति
Varuna Ka Hona
- Author Name:
Bandana Jha
- Book Type:

- Description: collection of poems
Harf Dar Harf
- Author Name:
Kailash Manhar
- Book Type:

- Description: तुम्हारा खून तुम्हीं को पिलाया जाता है/तुम्हारा गोश्त तुम्हीं को खिलाया जाता है॥/काट कर टैक्स खज़ाने को भरा जाता है।/और फिर उसको ही विकास कहा जाता है॥/तुम्हारी खेतियाँ सरकार की अमानत हैं।/ तुम्हारे हाथों की मेहनत यहाँ जमानत हैं॥ /तुम्हारे पाँवों के सफर की कहाँ मंजि़ल है। /तुम्हारा दर्द सुने किसके पास वह दिल है॥ /तुम्हारी वोट से ज़्यादा कोई औकात नहीं। /वायदों से बड़ी मिलती कोई सौगात नहीं॥ /हरेक तरह की शहादत तुम्हीं को देनी है। /और बदले में बस फाकापरस्ती लेनी है॥/तुम भी हो मुल्क के बासिंदे तो उन्हें क्या?/तुम्हारे गम की लीडरों को भला क्या चिन्ता?/ये सियासत ही है आपस में तुम्हें लड़वाये।/ तुम कमाओ तो उसे भी ये सियासत खाये॥/ये जो जम्हूरियत की झूठी बातें करते हैं।/तुम ही मरते हो फसादी ये कहाँ मरते हैं॥/तुम अगर बात को समझो तो कोई बात बने।/तुम अगर होश में आओ तो कोई बात बने॥/ उठो इन्साफ की आवाज़ को बुलन्द करो।/नफरतों से भरे माहौल को अब बंद करो॥/उठो कि इंकलाब! जि़ंदाबाद बोलो तुम।/उठो कि फितरतों की सारी पोल खोलो तुम॥
Varsha Ki Subaha
- Author Name:
Sitakant Mahapatra
- Book Type:

-
Description:
गहरे उद्वेगों, सूक्ष्म संवेदनों, और शब्दों के माधुर्य तथा संगीत से फूटती हैं सीताकांत महापात्र की कविताएँ। दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यापार, प्रकृति की अपार लीलाएँ, दिक्काल का अनन्त विस्तार—हम इनमें एक गहरे मानवीय राग के साथ देख-सुन सकते हैं। इनमें वर्तमान में खड़े रहकर बहुत पीछे लौटना भी है तथा बहुत आगे देखना भी। समुद्र, आकाश, धरती, सूरज-चद्रमा, दूब, पेड़-पौधे, फल-फूल, पशु-पक्षी, ऋतुचक्र—हमें जिस जीवन-बोध से इन कविताओं में जोड़ते हैं, वह अपूर्व है। मृत्यु इस जीवन-बोध पर अपनी छाया डालती ज़रूर है, पर वह इस जीवन-बोध को न तो परास्त कर पाती है, न ही भयभीत। और इस संग्रह की कविताओं में तो ‘मृत्यु मानो लम्बी छुट्टी पर’ भी
है।सीताकांत महापात्र की कविताओं में आख्यानों के प्रसंग भी इस जीवन-बोध को और गहरा करने के लिए ही हैं। इन कविताओं में मानवीय सम्बन्धों का भी एक विशिष्ट आकलन है जो जीवन-संग्राम के ऐन बीच, हमें गहरे मानवीय भरोसे, विश्वास और सम्बल की ही प्रतीति कराता है। कवि-संवेदना की व्याप्ति निकट से निकट और दूर से दूर की चीज़ों पर कुछ इस तरह से है कि हम एक ‘यात्रा’ पर होने का अनुभव करते हैं—ऐसी यात्रा, जो आदि-अन्तहीन लगती है, पर जिसके कविता-पड़ाव ‘शून्यता को (भी) शब्दों की सस्नेह श्रद्धांजलि’ बन जाते हैं। और बन जाते हैं एक ऐसा उपक्रम जहाँ, ‘हमारा काम है केवल जोड़ते चले जाना सान्त्वना भरे सरल शब्द’। हम सब जानते हैं कि सान्त्वना भरे सरल शब्दों को जोड़ना आसान नहीं होता। उसके लिए चाहिए धीरज, साहस, गहरा प्रेम, आश्वस्ति और भाषा के प्रति एक अकुंठित तीखी तृष्णा। यह सब सीताकांत महापात्र की कविता में हैं, और इनकी मात्रा में लगातार बढ़ोतरी होती गई है। प्रमाण हैं इस संग्रह की कविताएँ जो उनके ओड़िया में कुछ अरसा पहले प्रकाशित ‘वर्षा सकाल’ संग्रह का हिन्दी अनुवाद हैं।
ओड़िया से हिन्दी में प्रकाशित सीताकांत महापात्र का यह एक महत्त्वपूर्ण संग्रह है।
इसका अनुवाद, सीताकांत महापात्र की कविता और ओड़िया साहित्य के जाने-पहचाने अनुवादक राजेन्द्रप्रसाद मिश्र ने कवि के साथ मिल-बैठकर किया है। ज़ाहिर है कि इससे इनकी प्रामाणिकता और बढ़ गई है।
Jidhar Kuchh Nahin
- Author Name:
Devi Prasad Mishra
- Book Type:

- Description: ‘जिधर कुछ नहीं’ की विशिष्टता यह नहीं है कि यह हिन्दी की सबसे लम्बी कविताओं में एक है बल्कि यह कि यह एक नई तरकीब से लिखी गई है और वैकल्पिक नागरिकता को आविष्कृत करने के लिए एक दुष्कर और लम्बी अन्तर्यात्रा पर निकली हुई है। यह वैकल्पिक सृष्टि को खोजना तो है लेकिन इसके लिए भारतीय पृथ्वी के कोलाहल, वैषम्य और क़ैद से गुज़रने से कोई निज़ात नहीं है। दरअस्ल, जो शोर, दिग्भ्रम, अमर्ष, धुंध और अँधेरा मौजूद है, उसी के पीछे और नीचे वैकल्पिक नागरिकता छिपी हुई है। तो खोज का प्रश्न राजनीतिक प्रबोध और बड़ी समाजार्थिक परिकल्पना से जुड़ा हुआ है। देवी एक ऐसी सामाजिक सुरंग से गुज़रने और पाठक को गुज़ारने का चयन करते हैं जिसके कितने ही स्टेशन और अड्डे ढहा दिये गये हैं या जला दिये गये हैं। यह कठिन समय में लिखी गई कविता है जब राज्य के चरित्र को बदल दिया गया है, जब उत्तर-सत्य का बोलबाला है, जब बड़ी संकल्पनाएँ नष्ट की जा रही हैं, जब ज्ञान की जगह अंधी आस्था को स्थापित किया जा रहा है, जब अपराध को वैधता दी जा रही है, जब सामाजिक रचना के लिए मानवीय अन्तर्दृष्टि की जगह घृणादृष्टि ले रही है, जब ज्ञान को संदेहास्पद बनाया जा रहा है और इतिहास का विभाजक पाठ तैयार किया जा रहा है। उजाड़ने का यह काम भले ही बहुत क्रूर तरीक़े से किया गया दिख रहा हो, इस अमानवीय और नागरिकता विरोध की दीर्घ और सत्तात्मक परंपरा है। इस रौशनी में देखने पर यह साफ़ होगा कि यह कविता किसी भी तरह से प्रतिक्रियात्मक संरचना भर नहीं है बल्कि एक दस्तावेज़ी और ऐतिहासिक कामकाज है जिसकी प्रासंगिकता असमाप्य है क्योंकि ताक़त का दुरुपयोग ख़त्म होता नहीं दिखता। इस कविता में देवी कहन का अप्रतिम हुनर दिखाते हैं, हिन्दवी की तमाम प्रविधियों से लेन-देन शुरू कर देते हैं और इस कारोबार की अनायासता में एक नयी काव्य तकनीक हासिल कर लेते हैं। वह अनुभव की विपुलता से गुज़रते हुए कितनी ही बार रेटरिक को काव्यात्मक विज़न और परानुभूति की बड़ी सूझ में बदल देते हैं। इस महाकविता का पाठ उतना कठिन नहीं है जितना वह अपनी संरचना में दिखता है जो भले ही समकालीनता के कोने में किये गये एकांतिक दुस्साहस का नतीजा हो या किसी फक्कड़ के हाथ लग जाने वाली मौलिकता की जादुई भभूत। वैकल्पिक की खोज में भटकती कविता की परिकल्पना और संरचना दोनों अपूर्व हैं जो भारतीय और विश्व कविता के बीच गर्दन बहुत ऊँची करके खड़ी हो सकती हैं। किताब के अन्त में आता उत्तर कथन इस कविता के आलोक में राजकीय दमन और रचना के बीच के जटिल सम्बन्ध को जिस तरह से देखता है, हिन्दी विचार जगत में वह विरल है।’
I Love You (Hindi Translation )
- Author Name:
Kaajal Oza Vaidya
- Book Type:

- Description: प्रेम में डूबा हर व्यक्ति विवाह को ही जीवन का अंतिम ध्येय समझता है। अन्य लोगों के विवाह देखने के बाद भी ऐसा ही सोचता है कि हमारा विवाह दूसरों की अपेक्षा अलग ही होगा! विवाह के बाद के सात वर्षो के दौरान अधिकतर विवाह सामान्य विवाहों जैसे ही हो जाते हैं। रोमांस और आदर्श विवाह की सारी कल्पनाएँ, सारे वचन और प्रतिज्ञाएँ धीरे-धीरे मंद पड़ती जाती हैं। विवाहित जीवन खंडित हो जाने के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते पति-पली धीरे-धीरे एक-दूसरे से विपरीत दिशा में प्रवास करने लगते हैं। किसी भी रिश्ते को थोड़ा सँभालने की आवश्यकता होती है। विवाह जैसा नाजुक रिश्ता रख-रखाव एवं समभाव के अभाव में एकदम टूट जाता है। इसके बावजूद विवाह को सफल बनाकर दो व्यक्ति सुख व संतोष से जीवन भर साथ जी सकते हैं। टूट चुके और मृतप्राय हो चुके विवाह भी फिर से नवपल्लवित हो सकते हैं। जरूरत है थोड़ी समझदारी की, थोड़ा स्वीकार करने की, थोड़ी कोशिश और थोड़ा समझौता करने की। यह पुस्तक धीरे-धीरे आपको एक नई दुनिया में ले जाएगी और आपको आपकी गलतियाँ समझाएगी। आप कहाँ और किस प्रकार से गलत थे, यह भी आपके मन को समझाएगी।
Main Samay Hoon
- Author Name:
Pawan Jain
- Book Type:

-
Description:
कुछ लोग कविता को एक ऐसा साज बनाना चाहते हैं जिसकी मधुर आवाज़ से थके-हारे इनसानों को नींद आ सके। लेकिन, पवन जैन उनमें से हैं जो कविता को ऐसा हथियार बनाना चाहते हैं जिसे लेकर समाज के शोषण और दुनिया के अँधियारे से युद्ध किया जा सके। पवन जैन की कविताएँ एक जागते हुए कवि की रचनाएँ हैं जो अपने चारों ओर पल-पल बदलती और बिगड़ती दुनिया को देख रहा है और हमें दिखाना चाहता है और साथ ही बिन पूछे हमसे पूछना चाहता है कि करना क्या है?
—जावेद अख्तर
कविता किसे कहते हैं? वह शब्द है या शब्दार्थ? भाव है या भाव का भाषिक विस्फोट या फिर अति संवेदनशील लोक-मानस की असाधारण भाव प्रतिक्रिया—इस सब पर बरसों से विचार होता चला आ रहा है और समाज और कला-संस्कृति की परम्परा में इस सबको अलग-अलग समयों में स्वीकार-प्रतिस्वीकार किया जाता है।
यह भी कि कविता को कोई एक सुनिश्चित आकार-प्रकार, सुनिर्धारित ढाँचा या फिर अभिव्यंजना पद्धति आज तक अपनी सीमा रेखा में नहीं बाँध सकी। करोड़ों-करोड़ जाने-माने चेहरों की अपूर्वता और मौलिकता की तरह कविता भी हमेशा अपूर्व और मौलिक को अपनी आधारभूत पहचान मानती आई है—ठीक निसर्ग-सृजन की तरह। तथापि वह एक अभिव्यंजना-कला भी है। कवि द्वारा प्रयुक्त जाने-पहचाने से शब्द जब सर्वथा एक नई मुद्रा में आकर हमसे रोचक या उत्तेजक संवाद करने लगते हैं, हम मान लिया करते हैं, यह तो कविता है। तब भाषा के इस प्रकार की बनावटों को कविता कहना कोई अनहोना कथन कैसे कहा जाए?
पवन जैन की इन कविताओं का अन्तरंग गहरा राजनीतिक है। रचनात्मक तौर पर राजनीतिक किन्तु भारी सामूहिक व्यथा और क्षोभ से उपजा हुआ है। आदर्श नहीं बचे, मूल्य अवमूल्यों के द्वारा खदेड़ दिए गए, विचार की जगह कुविचार और घर को नष्ट-भ्रष्ट कर बाज़ार हमारे बीच किसी महानायक का प्रेत बन आ खड़ा है। ऐतिहासिक और क्रूर यथार्थ से ये कविताएँ हमारा साबक़ा करवाती हैं।
इन कविताओं में भाषा एक चीख़ बनकर फूटी है। इससे हम कविता की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियों और भाषा के आवेग-विह्वल विचलनों का अनुमान लगा पाएँगे और यह भी कि समय की बहुरूपी जटिलता और मानव-संवेदना की छटपटाहटों के बीच छिड़ा संग्राम किस तरह कविता का चेहरा-मोहरा बदल दिया करता है।
—डॉ. विजयबहादुर सिंह
Pratinidhi Shairy : 'Majaz' Lakhnavi
- Author Name:
Majaz Lakhnavi
- Book Type:

-
Description:
‘मजाज़’ की गिनती उन थोड़े से शायरों में की जा सकती है जिन्होंने कम उम्र में ही ऐसी शोहरत हासिल की कि आगे आनेवाली सारी नस्लें उनकी शायरी पर सर धुनें। ‘मजाज़’ की ख़ासकर ‘आवारा’ जैसी नज़्में तो भाषा की तमाम दीवारें तोड़कर व्यापक रूप से तमाम साहित्य–प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘मजाज़’ की शायरी उस दौर की शायरी है जब उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द अदब का आन्दोलन रफ़्ता– रफ़्ता अपने लड़कपन से शबाब की ओर बढ़ रहा था। आज़ादी की जंग और उसी के साथ तरक़्क़ीपसन्द अदब की सारी आशा–निराशा, उसके उतार–चढ़ाव, उसके सारे दु:ख–दर्द, ख़ुशियाँ, उसकी सारी उमंगें और उसका सारा आदर्शवाद कला के स्तर पर ‘मजाज़’ की शायरी में साफ़ दिखाई देते हैं, और यही सब तत्त्व हैं जिन्होंने ‘मजाज़’ को इनसान की क़ुव्वत और उसके सुनहरी मुस्तक़बिल में भरोसा रखना सिखाते हुए उनसे ‘ख़्वाबे–सेहर’ और ‘रात और रेल’ जैसी ख़ूबसूरत नज़्में कहलवार्इं। और यही कारण है कि जहाँ तरक़्क़ीपसन्द मुसन्निफ़ीन की अंजुमन को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए कोई आधी सदी का अरसा गुज़र चुका है, वहीं उसकी बेहतरीन पैदावारों में से एक के रूप में ‘मजाज़’ की शायरी आज भी अपने पूरे तबो–ताब के साथ हमारे सामने आती है, और ज़िन्दगी-भर दर्दो–रंज से निहाल रहनेवाला यह ‘शायरे–आवारा’ अपने तमाम दर्दो–रंज से ऊपर उठकर दुनिया और दुनिया के सारे दुखों पर छा जाता है।
एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Pratinidhi Kavitayen : Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
दुर्धर्ष भाग्य और क्षुद्र समय से आजीवन घिरे रहे महा-कवि और महा-प्राण मनुष्य निराला ने हिन्दी कविता को अपने ही हाथों वह दे दिया जिसे अर्जित करने में युगों की प्रतिभा और शक्ति व्यय हो जाती है। छायावाद के दौर में ही उन्होंने एक कदम बढ़कर मुक्त छन्द में यथार्थवादी कविता को सम्भव किया तो स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान और आजादी के बाद भारतीय राजनीति तथा समाज की स्थितियों को लक्षित कर कविताएँ और उपन्यासों की रचना भी की। ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी कविताओं से उन्होंने कविता की सामर्थ्य के नए मानक गढ़े, तो गीतों में परम्परा, प्रयोग और लोकचेतना के असंख्य अर्थसघन बिम्ब अगली पीढ़ियों के लिए छोड़े। लेकिन यह नवीनता और प्रयोगधर्मिता किसी मामूली चमत्कार-प्रियता का परिणाम नहीं थी, यह निश्चय ही दुख के ताप से नित नूतन होते उनके मन का स्वाभाविक प्रवाह रहा होगा जो क्षणों की अवधि में वर्षों-दशकों को लाँघता चलता है।
उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में प्रयास किया गया है कि पाठक निराला के विराट कृतित्व के कुछ सबसे दीप्तिमान शिखरों का साक्षात्कार कर सके।
Kavitayen : Vol. 2
- Author Name:
Sarveshwardayal Saxena
- Book Type:

-
Description:
नई कविता की लोक–सम्पृक्ति के प्रतिनिधि कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की ‘कुआनो नदी’ और ‘जंगल का दर्द’ से पूर्ववर्ती सम्पूर्ण काव्य–साधना का पहला खंड ‘कविताएँ–1’ कविताओं का यह दूसरा खंड है। इसमें पूर्व प्रकाशित कवि के दो संग्रहों (‘एक सूनी नाव’ और ‘गर्म हवाएँ’) की कविताएँ सम्मिलित हैं। इन कविताओं में कवि के निजी जीवन और समसामयिक सामाजिक, राजनीतिक जीवन की त्रासदी परस्पर गुम्फित है। ये कविताएँ राजनीति से भागती नहीं क्योंकि वह आज के जीवन का हिस्सा हैं लेकिन राजनीतिक मतवाद से उनका अलगाव अवश्य है। दरअसल, सर्वेश्वर के तर्इं इनसान से बड़ा कुछ भी नहीं है—न ईश्वर, न प्रकृति—सबका क़द उनके यहाँ एक
है।सर्वेश्वर की कविताएँ भाषा से दुर्व्यवहार करनेवाले कवियों की इधर बढ़ती हुई भीड़ के लिए एक सबक भी है। वे अपनी निजी दुनिया में ले जाकर, सामाजिक ‘सच्चाई’ से सूक्ष्म सम्पर्क करती हुर्इं, पाठक के मन में भाषा के प्रति एक धड़कता हुआ रिश्ता बनाती हैं। ‘एक सूनी नाव’ और ‘गर्म हवाएँ’—ये शीर्षक ही सर्वेश्वर की काव्य–यात्रा के बदलाव को सूचित करते हैं। पर सर्वेश्वर की कविता में जो ‘ग़ुस्सा’ धीरे–धीरे अपेक्षाकृत अधिक मुखर हुआ है, उसके पीछे भाषा पर पड़नेवाले दबाव की स्थिति से एक गहरा रचनात्मक मुक़ाबला है। कविता में निषेधी भाषा की तीव्र उपस्थिति कुछ करने और बदलने की इच्छा से अनुप्रेरित है—सिर्फ़ ग़ुस्से से ही नहीं।
Sukh Ko Bhi Dukh Hota Hai
- Author Name:
Shruti Kushwaha
- Book Type:

- Description: श्रुति की कविता का मानवीकरण किया जाए तो वह दिखेगी कच्ची लकड़ी के धुएँ से घिरी उस स्त्री की तरह जो जीवन का बुझता चूल्हा पूरे प्राणपण से फूँके जा रही है। कभी इधर से उचकुन लगाती, कभी उधर से यानी कभी इस ध्रुवान्त से, कभी उस ध्रुवान्त से और अन्त में उसकी धौंकनी देखती है कि आग तो दोनों ध्रुवान्तों के बीच से निकलती ऊर्ध्वमुखी हुई जा रही है। न इस अतिरेक में, न उसमें बल्कि उस सम्यक् दृष्टि में जो बुद्ध और गांधी की है : ‘जिन्होंने दुख दिया/उनके लिए अतिरिक्त उदार’, ‘जब भी मिलूँ ख़ुद से, आँखें नीची न हों’, ‘छोड़ना सबसे आसान हो जब, तब रोक लेना उसे’, ‘कड़वी बात निगल जाएँ बुख़ार की गोली की तरह’—इस तरह के कई आप्त वाक्य मिलेंगे इस संग्रह में जो यह सिद्ध करते हैं कि वैयक्तिक नैतिकता में इनकी आस्था है और ये बख़ूबी समझती हैं कि स्वयं में आचरणगत परिवर्तन घटित किए बिना कोई स्थायी परिवेशगत परिवर्तन असम्भव है। इस महीन प्रज्ञा पारमिता के बिना जीवन का गम्भीर सत्य अदेखा ही छूट जाता है—‘माँ की कोख’ और ‘पेड़ की जड़ों’ की तरह। जो भी ‘बत्तीस दिसम्बर’ को घटना है, यानी कि कभी नहीं घटना, उस बदलाव में और जो ‘रेगुलेटर’ से मौसम सँवारता है, उस परिवर्तन में कवि की आस्था नहीं है। वह हैरान है यह देखकर कि दुनिया ने चकित होना छोड़ दिया है, जबकि उसके लिए तो प्रकृति से निःशब्द ध्वनियाँ सीखने का सिलसिला ख़त्म ही नहीं होता। तभी तो उसके लिए पूरी पृथ्वी ही प्रेमपत्र है। वाक् संयम और कुछ प्रसिद्ध कविताओं से अन्तःपाठीय संवाद इस संग्रह को एक अलग खनक देते हैं। —अनामिका
Vishwarath : Vishwamitra
- Author Name:
Krishnakant 'Eklavya'
- Book Type:

-
Description:
कृष्णकान्त 'एकलव्य' के प्रबन्ध काव्य ‘विश्वस्थ’ से गुज़रना सुखद लगा। दरअसल जब पौराणिक कथा काव्य-रचना के लिए ली जाती है तो वह अपने मूल रूप में होकर भी समय के अनुसार कुछ परिवर्तित होती है। कवि उस पुरा-कथा के माध्यम से अपने समय के सत्य को उद्घाटित करता है। कवि इसीलिए पुराण या इतिहास की ऐसी कथाएँ या पात्र लेता है जिनमें नए समय के साथ जुड़कर कुछ नया कहने की क्षमता हो। वशिष्ठ और विश्वामित्र ऐसे महर्षि हैं जिनके चरित्रों की अलग-अलग छवियाँ हैं जो परस्पर टकराती भी हैं। 'एकलव्य' जी ने इन्हीं दो महर्षियों के माध्यम से आज के समय में व्याप्त अनेक समस्याओं को रूपायित किया है और कथा को समकालीनता की दीप्ति देकर अधिक प्रासंगिक बना दिया है।
—रामदरस मिश्र
YOON DARD KA AHSAS HOTA HAI
- Author Name:
Dr. Sanjeev Kumar Verma
- Book Type:

- Description: collection of ghazals
Jyamiti
- Author Name:
Shanti Nair
- Book Type:

- Description: भारतीय स्त्री-कविता को बहुत दिनों से तलाश थी एक ऐसे स्त्री-स्वर की जिसके लेखन में निराला की नायिका पूरे ठस्से के साथ हँसती दिखाई दे, सबको दाँव देती हुई-सी हँसी। शान्ति नायर के कविता-संग्रह ‘ज्यामिति’ की कविताओं में सबको दाँव देती उसी हँसी का ताना-बाना मुझे विस्मय-विमुग्ध कर गया। उनमें बृहत्तर जगत के सरोकार अधिक मुखर और स्पष्ट रूप से सामने आते हैं, पर कविता की व्यंजना शक्ति की तिलांजलि दिये बग़ैर। संग्रह की ‘मैच द फ़ॉलोइंग’, ‘संजीवनी’, ‘दूध फटना’, ‘अनुष्ठान’ जैसी कविताओं में हमारे राजनीतिक-सामाजिक जीवन की समस्त विडम्बनाएँ जिस सजग बाँकपन के साथ व्यक्त हैं, वह किसी को भी एक झटके में उठाकर बैठा सकती हैं। ‘ट्रैफ़िक जाम’ कविता भास्वर प्रमाण है इस बात का कि पढ़ी-लिखी मध्यवर्गीय स्त्रियों पर अब कोई यह अभियोग लगा नहीं सकता कि दमित वर्गों-वर्णों की स्त्रियों का दुख उनके निजी दुखों में शामिल नहीं। चौके-चूल्हे, पास-पड़ोस, हाट-बाज़ार, दैनन्दिन जीवन के अन्य जीवंत प्रसंगों से धारोष्ण बिम्ब उठाकर जैसे भक्त-कवयित्रियाँ ध्वनि और रस-बोध से उच्छल कविताएँ सहज ही रच देती थीं, शान्ति नायर भी घरेलू बिम्बों को अद्भुत दार्शनिक उठान दे लेती हैं—‘अनिद्रा’ कविता में उदासीनता में ख़मीर का उठकर रात की सीमा के पार फूल जाना एक ऐसा बिम्ब है जो स्त्री ही साध सकती है। इसी तरह ‘पुट्टू’ कविता में तैयार पुट्टू को साँचे के बाहर कर देने की ख़ातिर जो धक्का दिया जाता है, उसका मर्म स्त्री, एक समधीत स्त्री ही समझ सकती है जो घर के काम ही नहीं करती, सब कामों से समय चुराकर पढ़ती भी है, जिसमें यह समझने की भी विलक्षण प्रज्ञा है कि जीवन की असल चुनौती है ज्ञान का संज्ञान में बदलना। दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना—कैसे—यह आपको शान्ति नायर की कविताएँ बख़ूबी समझा देती हैं। स्त्री की पसलियों का ‘लाड़ला दर्द’, ‘कर्तव्य के बिछावन’ पर यहाँ कुनमुनाकर सोता है पर नींद में मुस्कुराता हुआ।
Parimal
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
महाकवि ‘निराला’ की युगान्तरकारी कविताओं का अति विशिष्ट और सुविख्यात संग्रह है—‘परिमल’।
इसी में है ‘तुम और मैं’, ‘तरंगों के प्रति’, ‘ध्वनि’, ‘विधवा’, ‘भिक्षुक’, ‘संध्या-सुन्दरी’, ‘जूही की कली’, ‘बादल-राग’, ‘जागो फिर एक बार’—जैसी श्रेष्ठ कविताएँ, जो समय के वृक्ष पर अपनी अमिट लकीर खींच चुकी हैं।
‘परिमल’ में छाया-युग और प्रगति-युग अपनी सीमाएँ भूलकर मानो परस्पर एकाकार हो गए हैं। इसमें दो-दो काव्य-युगों की गंगा-जमुनी छटा है, दो-दो भावधाराओं का सहजमुक्त विलास है।
Antas
- Author Name:
Dr. Yashika
- Book Type:

- Description: ‘अंतस’ डॉ. यशिका के अंतकरण की अनुभूतियों का सीधा-सरल काव्यानुवाद है। किसी काव्य-कौशल की स्पर्धा में प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ खुद को शामिल नहीं करतीं, ये केवल मन की निष्पाप, पवित्र और प्रांजल अनुभूतियों की छलकन हैं और फिर भी पूर्ण हैं। भारतीय स्त्री के संस्कार, उसका सहज समर्पण और नेह जैसे इन कविताओं में साकार देह पाकर इठला रहा है। मन्नत पूरी हो जाने जैसी उपलब्धि और जिस्मोजान निछावर कर डालने के समर्पित अहसास, सामीप्य की सिहरन और दूरी होते ही हृदय का अरमान बना लेने की सोच...एक स्त्री के समर्पण और प्रेम का इससे आगे क्या उदाहरण हो सकता है?
Kahi Ankahi (Poems)
- Author Name:
Nandita Shukla Bhaskar
- Book Type:

- Description: "यह नियति ही है जिसे भोगना है सोचती हूँ हँसकर झेलूँ पर जब भी ये सोचती हूँ रो पड़ती हूँ भरे गले से तुम्हारा नाम लेना चाहती हूँ तुम्हें कृतज्ञता के दो शब्द कहना चाहती हूँ। कितना तो हमें कहना-सुनना है कह-सुन भी लेंगे इर्द-गिर्द के लोगों की दृष्टि में हम मौन हैं सिर्फ बरसों बाद मिले अपरिचितों की भाँति। देखते-देखते नीले आकाश में बादल रुई के फाहे-से छा गए हैं एकाएक सफेद परोंवाले पक्षी अपने पंख फड़फड़ा के उड़ने लगे हैं मैं दुबककर तुम में और समा जाती हूँ अपने बसेरे में, चिडि़या-सी! बस यों ही जीना सीख लिया है अपने काँधों पर अपने ही अस्थिकलशों को ढोना शुरू कर दिया है। —इसी संग्रह से बचपन में ही माँ के साए से संचित हो गई एक बालिका के मनोभावों का संकलन है यह पुस्तक। पिता की स्नेहिल छाँव और ममत्व से जिसका पालन हुआ, उस बालिका की आशा-उत्कंठाओं का संकलन है यह पुस्तक। ईश्वर सबकुछ ले ले, पर माता-पिता के साए से वंचित न करे क्योंकि वही दुनिया का सबसे सुरक्षित कवच होते हैं—यह प्रार्थना करनेवाली बालिका की ‘कही-अनकही’ भावनाओं का संकलन है यह पुस्तक। "
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...