Rituchakra
Author:
Ilachandra JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
इलाचन्द्र जोशी हिन्दी के अत्यन्त प्रतिष्ठित उपन्यासकार थे। उनके प्राय: सभी उपन्यासों का गठन हमारे समाज के जिन पात्रों के आधार पर हुआ है, वे मनोवैज्ञानिक सार्थकता के लिए सर्वथा अद्वितीय हैं। प्रस्तुत उपन्यास ‘ऋतुचक्र’ एक अत्यन्त रोचक रोमांचक उपन्यास है जिसमें सुरम्य पहाड़ी प्रकृति के अन्तर्प्राणों में छिपे आनन्द-कोष के मूलतत्त्वों का उद्घाटन, आज के रेगिस्तानी जीवन की विश्वव्यापी धूल और धुएँ के भीतर से हरियाली के बिखरे हुए बीजों की खोज, सामूहिक पागलपन के विरुद्ध वैयक्तिक आत्मा के विद्रोह का परिचित्रण, रोमांस की एकदम नई और मौलिक परिकल्पना, रोमांचक रोमांसों के रहस्यों की मार्मिक अन्तरकथा, युग-जीवन की विसंगतियों की कहानी इत्यादि तथ्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है। एक प्रभावी और महत्त्वपूर्ण कृति।
ISBN: 9788180314803
Pages: 354
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मॉरिशस के सुप्रसिद्ध हिन्दी कथाकार अभिमन्यु अनत का यह उपन्यास उनकी बहुचर्चित कथाकृति ‘लाल पसीना’ की अगली कड़ी है। ‘लाल पसीना’ मॉरिशस की धरती पर प्रवासी भारतीयों की शोषणग्रस्त ज़िन्दगी के अनेकानेक अँधेरों का दर्दनाक दस्तावेज़ है, लेकिन इस उपन्यास में हम उसी ज़िन्दगी और उन अँधेरों से चेतना का एक नया सूर्योदय होता हुआ देखते हैं।
हज़ारों-हज़ार शोषित मज़दूर-किसानों के बीच होनेवाला यह सूर्योदय शिक्षा, संगठन और संघर्ष का प्रतीक है और इसी का मूर्त रूप है उपन्यास का नायक ‘परकाश’। शैशव में उसने दक्षिण अफ़्रीका से भारत लौट रहे गांधीजी को सुना था। उन्हीं के आदर्श से वह प्रेरित है—अन्याय के अस्वीकार के लिए शिक्षा और राजनीति का स्वीकार तथा मानवोचित अधिकारों की प्राप्ति के लिए संगठन और संघर्ष।
इस अन्तर्वस्तु को उजागर करने के क्रम में लेखक ने जिस वातावरण, घटनाओं और चरित्रों की सृष्टि की है, वह अविस्मरणीय है। आज से सत्तर-अस्सी वर्ष पूर्व के मॉरिशसीय समाज में भारतीयों की जो स्थिति थी—मर्मान्तक ग़रीबी के बीच अपनी ही बहुविध जड़ताओं और गौरांग सत्ताधीशों से उनका जो दोहरा संघर्ष था—उसे उसकी समग्रता में हम यहाँ बखूबी महसूस करते हैं। मदन, परकाश, सीता, मीरा, सीमा आदि इस उपन्यास के ऐसे पात्र हैं, जिनके विचार, संकल्प, श्रम, त्याग और प्रेम-सम्बन्ध उच्च मानवीय आदर्शों की स्थापना करते हैं और जो किसी भी संक्रमणशील जाति के प्रेरणास्रोत हो सकते हैं।
Pahar Dhalte
- Author Name:
Manzoor Ehtesham
- Book Type:

- Description: बीहड़ सर्दियों की एक रात के आहिस्ता-आहिस्ता ढलते पहर। फ़ज़ा को इमरज़ेंसी के नाख़ूनों ने जकड़ रखा है। शहर की आम बस्तियों से दूर एक आलीशान कोठी के अँधेरे-उजाले में हरकत करते कुछ किरदार, लेखन में उन्हें, रात के अँधेरे में, एक शातिर जासूस की महारत के साथ, ऐसे पकड़ा गया है कि वे कभी यथार्थ लगते हैं कभी फ़ैन्टेसी। इन्हें देखकर सहसा मुक्तिबोध की लम्बी कविता ‘अँधेरे में’ के चरित्र याद आते हैं। इन चरित्रों में नवाब, बेगम, अफ़सर, मंत्री, व्यापारी, क़व्वाल, औरतें, ख़ादिम, शोहदे, सब हैं। अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों से बच निकलने का पार्ट अदा करते हुए। इस भुतहा नाटक में पाखंड, गुरूर, नफ़रत, ईर्ष्या, सूफ़ियाना क़लाम, इश्क, पछतावा, आँसू, फ़रेब, मक्कारी सभी के रक़्स हैं। रात के एक हिस्से की कहानी के बाहर जाने कितनी और रातें और दिन हैं जहाँ लेखक हमें ले जाता है, और फिर वापस ले आता है, वर्तमान में सक्रिय भूतों की बारात के बीचोबीच।
Pahachan Ke Naam Par Hatyaye
- Author Name:
Amin Maluf
- Book Type:

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Description:
‘‘प्रत्येक युग में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो यह मानते हैं कि हर व्यक्ति की एक प्रमुख निष्ठा होती है जो हर तरह से औरों से इतनी उत्कृष्ट होती है कि उसे न्यायिक रूप से उसकी पहचान मान लिया जाता है। कुछ के लिए यह उनका राष्ट्र होता है, कुछ औरों के लिए धर्म या वर्ग। किन्तु सारी दुनिया में चारों तरफ़ फैले तरह-तरह के झगड़ों, विवादों पर नज़र दौड़ाने के बाद यह समझने में देर नहीं लगती कि कोई भी एक निष्ठा पूरी तरह सर्वोपरि नहीं होती।
वहाँ जहाँ लोगों को अपने धर्म के प्रति ख़तरा महसूस होता है, वहाँ उनकी धार्मिक आस्था उनकी सम्पूर्ण पहचान बन जाती है। लेकिन अगर उनकी मातृभाषा या जातीय समुदाय को ख़तरा हो तो वे अपने सधर्मियों से जमकर क्रूरता से लड़ाई करते हैं। तुर्की और खुर्द दोनों ही मुसलमान हैं, हालाँकि उनकी भाषाएँ अलग-अलग हैं; क्या उनके झगड़े कोई कम रक्तरंजित होते हैं? हुतु और टुट्सी दोनों समान रूप से कैथोलिक हैं और एक ही भाषा बोलते हैं, लेकिन यह उन्हें एक-दूसरे का संहार करने से रोक पाता है? चैक और स्लोवेक दोनों कैथोलिक हैं, क्या इसके सहारे वे साथ रह पाते हैं?’’
ऐसे कई प्रश्न हैं जिन पर प्रस्तुत पुस्तक में बड़ी संजीदगी से विचार किया गया है। लेखक ने जीवन और समाज के कुछ मूलभूत मुद्दों को रेखांकित किया है। दृष्टिकोण वैश्विक है और उद्देश्य मानवता की प्रतिष्ठा। यह कहना उचित होगा कि प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को संकीर्णताओं से मुक्त चिन्तन के लिए प्रेरित और निमंत्रित करती है।
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