Peeli Aandhi
Author:
Prabha KhetanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
प्रभा खेतान ने अपने विशिष्ट लेखकीय साहस के साथ स्त्री की सिर्फ़ बाहरी नहीं, उसकी निहायत निजी, आन्तरिक और गोपनीय परतों को भी अपनी रचनाओं में खोला है। उनके यहाँ पुरानी औरत ख़ुद अपने हाथों से अपना सिर काटने वाली और फीनिक्स की तरह पुनः-पुन: अपनी ही आग से एक नए रूप में जन्म लेनेवाली औरत होती है। ‘पीली आँधी’ में तीन-तीन पीढ़ियों की औरतें हैं जो कोई सौ-डेढ़ सौ साल की यात्रा करते हुए, अपनी-अपनी बात कहते हुए हमारे आज तक पहुँचती हैं। शिक्षा, निरन्तर परिवर्तनशील परिवेश के दबाव और बंगाल की सामाजिक जागरूकता के बीच प्रभा खेतान अपने जीवन का चुनाव स्वयं, अपनी तरह से करना चाहती हैं—वह स्वयं अपने आर्थिक स्रोतों की खोज करती है और इस प्रक्रिया में भयावह मानसिक-भावनात्मक रूपान्तरणों से दो-चार होती है। नई-नई चुनौतियों की रचना करने और उन्हें साहसपूर्वक झेलनेवाली इसी औरत की अक्कासी इस उपन्यास में है।</p>
<p><strong> </strong>
ISBN: 9789388211901
Pages: 299
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘आशा कालिन्दी और रम्भा’ नामक उपन्यासों की त्रयी क्रमशः सामन्तवादी, पूँजीवादी और गांधीवादी व्यवस्था में स्त्री की स्थिति पर एक टिप्पणी है।
‘आशा’ उपन्यास की नायिका स्वयं अपनी कहानी सुनाती है। सेठ कालिन्दी प्रसाद आशा अर्थात् जानकी बाई को अपनी रखैल बनाना चाहता है। निर्धन दुकानदार बाप की बेटी होने के कारण ही नवाब के हरम में पहुँचा दी जाती है और बाद में वहाँ से मुक्त होने पर जानकी बाई के रूप में नाचने-गाने का धन्धा करने लगती है। आशा नवाब और सेठ कालिन्दी प्रसाद दोनों के लिए ही स्त्री भोग की सामग्री है।
अगली कड़ी में सेठ कालिन्दी अपनी कहानी कहता है। उसका सबसे बड़ा कष्ट यह है कि रुपए के लालच में उसका पिता उसका विवाह बड़े घर की फूहड़ लड़की से कर देता है। पैसा उसके पास कितना ही हो, श्वसुर की सहायता से दूसरे विश्वयुद्ध में वह और भी कमाई करता है। लेकिन उसका पारिवारिक जीवन नरक बना हुआ है। अंग्रेज़ों और कांग्रेस दोनों के बीच सन्तुलन साधकर वह व्यापार में ख़ूब उन्नति करता है। असफल दाम्पत्य जीवन के कारण वह एक वेश्या से सम्बन्ध बनाता है और उसी से उत्पन्न बेटी का नाम वह रम्भा रखता है।
रम्भा, इसकी नियति भी बहुत भिन्न नहीं है। अलग कोठी में पाली-पोसी जाने के बावजूद उसे सोलह साल की उम्र में चालीस साल के सेठ सोनेलाल की रखैल बनने को बाध्य होना पड़ता है, क्योंकि उसके पिता सेठ कालिंदी चरण में यह साहस नहीं है कि समाज में यह कह सके कि वह उसकी बेटी है। सेठ सोनेलाल की रखैल बन जाने के बाद भी रम्भा अपने विकास के लिए संघर्ष करती है। पढ़कर एम.ए. करने के दौरान आनन्द के सम्पर्क में आती है। सोनेलाल का गर्भ धारण करके भी वह उससे घृणा करती है। आनन्द के सम्पर्क में आकर वह जनसेवा की ओर प्रवृत्त होती है और एक स्कूल चलाने लगती है।
Apne Log
- Author Name:
Suchitra Bhattacharya
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Description:
नितान्त अपनी ज़रूरत, अपने सुख, अपनी महत्त्वाकांक्षा, समृद्धि-लालसा की ख़ुदग़र्ज़ी के तक़ाज़े पर, इनसान ‘समूह’ बनाता है; समाज गढ़ता है; परिवार रचता है और अनगिनत रिश्तों के जाल में, अपने को उलझाए रखता है। लेकिन हैरत है, फिर भी हर इनसान निपट अकेला है, ज़िन्दगी-भर अकेला ही जीता है। ‘अपने लोग’ उपन्यास इसी निःसंग निर्जनता की तलाश है।
इस विशाल कथा की रूपरेखा समसामयिक है, पृष्ठभूमि समकालीन समाज है। माँ और बेटी के माध्यम से दो पीढ़ियों का इतिहास है और इनके इर्द-गिर्द अनगिनत रंग-बिरंगे चरित्र हैं; जिनमें कामयाब इनसान की गोपन नाकामी की स्वीकृति है; नाकामयाब इनसान का कामयाब न हो पाने का दर्द है, वहीं भावी पीढ़ी आशा-आकांक्षाओं, वर्तमान समाज की लाचारी और पापबोध के इर्द-गिर्द घूमती है। निरर्थक विद्रोह की पीड़ा और दो-दो पीढ़ियों के टकराव की दास्तान है। इसी के समानान्तर, पुरानी हवेली के खँडहरों पर नई इमारत के निर्माण की उपकथा है। नई इमारत, मानो समय के विवेक, मूल्यबोध और अनुशासन की मिसाल है। इन्हीं सबके माध्यम से लेखिका ने निःसंगता का उत्स ढूँढ़ने का प्रयास किया है।
इस वृहद उपन्यास में अनगिनत चरित्रों का जुलूस है—कोई बूढ़ा, कोई अधेड़, कोई किशोर, कोई किशोरी; जवान औरत-मर्द या फिर निरा शिशु। अलग-अलग पीढ़ियों से सम्बद्ध होने के बावजूद ये सब अभिन्न और एकमेक हैं। इन सबके अन्तस में दुःख और अवसाद चहलक़दमी कर रहा है। उपन्यास का नाम भी विराट व्यंजना का प्रतीक है। उपन्यास के सभी पात्र हमारे बेहद जाने-पहचाने, नितान्त क़रीबी लोग हैं, लेकिन नितान्त अपने होने के बावजूद, क्या सच ही कोई, किसी के क़रीब है ? क्या सचमुच नितान्त सगा, बिलकुल अपना है ? इन तमाम जीवनमुखी सवालों का जवाब है—‘अपने लोग’।
Path Ka Daava
- Author Name:
Sharatchandra
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शरत् के अत्यन्त लोकप्रिय उपन्यास ‘पथेर दाबी’ का यह नया और प्रामाणिक अनुवाद एक बार फिर आत्ममन्थन और वैचारिक-सामाजिक बेचैनी की उस दुनिया में ले जाने को प्रस्तुत है, जो साठ-सत्तर साल पहले इस देश की आम आबोहवा थी। एक तरफ़ अंग्रेज़ सरकार का विरोध, उसी के साथ-साथ सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति का जोश और एक सजग राष्ट्र के रूप में पहचान अर्जित करने की व्यग्रता—यह सब उस दौर में साथ-साथ चल रहा था। शरत् का यह उपन्यास बार-बार बहसों में जाता है, अपने वक़्त को समझने की कोशिश करता है, और प्रतिरोध तथा अस्वीकार की एक निर्भीक और स्पष्टवादी मुद्रा को आकार देने का प्रयास करता है।
पहली बार सम्पूर्ण पाठ के साथ, सीधे बांग्ला से अनूदित यह उपन्यास भावुक-हृदय शरत् के सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों और चिन्ताओं का एक व्यापक फलक प्रस्तुत करता है। तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों पर दो टूक बात करता यह उपन्यास एक लेखक के रूप में शरत् की निर्भीकता और स्पष्टवादिता का भी प्रमाण है। अंग्रेज़ी शासन और बंगाली समाज के बारे में उपन्यास के मुख्य पात्र डॉ. सव्यसाची की टिप्पणियों ने तब के प्रभु समाज को विकल कर दिया था, तो यह स्वाभाविक ही था। अपने ही रोज़मर्रापन में गर्क भारतीय समाज को लेकर जो आक्रोश बार-बार इस उपन्यास में उभरा है, वह मामूली फेरबदल के साथ आज भी हम अपने ऊपर लागू कर सकते हैं। उल्लेखनीय है डॉक्टर का यह वाक्य, “ऐसा नहीं होता, भारती, कि जो पुराना है वही पवित्र है। सत्तर साल का आदमी पुराना होने की वजह से दस साल के बच्चे से ज़्यादा पवित्र नहीं हो सकता।”
स्वतंत्रता संघर्ष की उथल-पुथल के दौर में भारतीय समाज के भीतर चल रही नैतिक और बौद्धिक बेचैनियों को प्रामाणिक ढंग से सामने लाता एक क्लासिक उपन्यास।
Dear Moon
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Banarsibai
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Ramblings of A Lunatic
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- Description: Somya Matta is a fulltime lunatic and a part time student. She's only recently become an adult. She hates writing in the third person but is doing it right now for your sake. All she knows in her life is to sing badly, write mediocrely, and drink hot beverages quite greedily.
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