Mein Prem Tere Ka Deewana
Author:
Manish RaosahabPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 144.5
₹
170
Available
ये बादल, बारिश, ये बूंदे, ये मिट्टी की ख़ुशबू, है कुछ और नही, जो माने दिल br>तेरा, तो पैगाम सही, ना माने तो है कुछ और नही, ये हवा, जो लहरा जाती जुल्फ़े br>तेरी, धड़का दिल को जाती, इशारा है गर तू पहचाने, ना पहचाने तो है कुछ और नही। बस इसी तरहा, ये किताब उन जज़्बातों को समेटे हुए है जो प्रेम के दोनों पहलुओं को एक साथ जोड़े हुए है। जब दिल प्रसन्न हो तो भव्य सागर की खामोशी से विशालकाय आसमान की गर्जन तक सब लुभावना प्रतीत होता है और कभी जब दिल को उदासी का अनुभव हो, पीड़ा का एहसास हो, तो वह भी उसी प्रेम का हिस्सा है जो किसी का नाम भर लेने से हमारे चेहरे को एक सरल व मीठी मुस्कान से अलंकृत कर देता है। भले ही ये कविताये कल्पना की स्याही से लिखी गयी हो, मगर जिस रंग से लिखी गयी है वह प्रेम का रंग है और जो खुशबू है वो वही जज़्बात है जो अक्सर हम प्रेम के मार्ग में अनुभव करते है। जितना मुझे लिख कर मिला, उम्मीद है, उतना ही आनंद आपको पढ़ने में मिलेगा।.
ISBN: 9789390006052
Pages: 100
Avg Reading Time: 2 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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गीतांजलि श्री के लेखन में अमूमन, और ‘तिरोहित’ में ख़ास तौर से, सब कुछ ऐसे अप्रकट ढंग से घटता है कि पाठक ठहर–से जाते हैं। जो कुछ मार्के का है, जीवन को बदल देनेवाला है, उपन्यास के फ्रेम के बाहर होता है। ज़िन्दगियाँ चलती–बदलती हैं, नए–नए राग–द्वेष उभरते हैं, प्रतिदान और प्रतिशोध होते हैं, पर चुपके–चुपके। व्यक्त से अधिक मुखर होता है अनकहा। घटनाक्रम के बजाय केन्द्र में रहती हैं चरित्र–चित्रण व पात्रों के आपसी रिश्तों की बारीकियाँ।
पैनी तराशी हुई गद्य शैली, विलक्षण बिम्बसृष्टि और दो चरित्रों—ललना और भतीजा—के परस्पर टकराते स्मृति प्रवाह के सहारे उद्घाटित होते हैं ‘तिरोहित’ के पात्र : उनकी मनोगत इच्छाएँ, वासनाएँ व जीवन से किए गए किन्तु रीते रह गए उनके दावे।
अन्दर–बाहर की अदला–बदली को चरितार्थ करती यहाँ तिरती रहती है एक रहस्यमयी छत। मुहल्ले के तमाम घरों को जोड़ती यह विशाल खुली सार्वजनिक जगह बार–बार भर जाती है चच्चो और ललना के अन्तर्मन के घेरों से। इसी से बनता है कथानक का रूप। जो हमें दिखाता है चच्चो/बहन जी और ललना की इच्छाओं और उनके जीवन की परिस्थितियों के बीच की न पट सकनेवाली दूरी। वैसी ही दूरी रहती है इन स्त्रियों के स्वयं भोगे यथार्थ और समाज द्वारा देखी गई उनकी असलियत में।
निरन्तर तिरोहित होती रहती हैं वे समाज के देखे जाने में। किन्तु चच्चो/बहन जी और ललना अपने अन्तर्द्वन्द्वों और संघर्षों का सामना भी करती हैं। उस अपार सीधे–सच्चे साहस से जो सामान्य ज़िन्दगियों का स्वभाव बन जाता है। गीतांजलि श्री ने इन स्त्रियों के घरेलू जीवन की अनुभूतियों—रोज़मर्रा के स्वाद, स्पर्श, महक, दृश्य—को बड़ी बारीकी से उनकी पूरी सैन्सुअलिटी में उकेरा है।
मौत के तले चलते यादों के सिलसिले में छाया रहता है निविड़ दु:ख। अतीत चूँकि बीतता नहीं, यादों के सहारे अपने जीवन का अर्थ पानेवाले ‘तिरोहित’ के चरित्र—ललना और भतीजा—अविभाज्य हो जाते हैं दिवंगत चच्चो से। और चच्चो स्वयं रूप लेती हैं इन्हीं यादों में।
Tirange Ki Gaurav Gatha
- Author Name:
Lt. Cdr. K.V. Singh
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- Description: किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज उसका सर्वाधिक समादृत प्रतीक होता है। देश का हर व्यक्ति—चाहे राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री अथवा सामान्य जन—सभी अपने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हैं। राष्ट्रीय ध्वज कहा जानेवाला कपडे़ का यह टुकड़ा पूरे राष्ट्र, उसकी गरिमा एवं प्रतिष्ठा का प्रतिनिधित्व करता है। भारत के गौरव का प्रतीक तिरंगा ध्वज अब लगभग साठ वर्ष का होने जा रहा है। यदि हमारे राष्ट्र को कोई एकता के सूत्र में बाँध सकता है तो वह हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ ही है, जिसका न कोई अपना धर्म है और न ही कोई देश या प्रदेश। इसलिए आज देश के लिए तिरंगे से अच्छा और सच्चा पे्ररणास्रोत अन्य क्या हो सकता है! एक समय था जब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय ध्वज का प्रयोग नहीं कर सकते थे, पर आज हमें संवैधानिक रूप से इसे फहराने का अधिकार प्राप्त है। हमारे देशवासी अब तिरंगे को मात्र 15 अगस्त व 26 जनवरी के दिन ही नहीं, बल्कि प्रतिदिन फहरा सकते हैं और देशप्रेम की अपनी भावना का प्रकटीकरण कर सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक की रचना का उद्देश्य पाठकों को अपने देश के राष्ट्रीय ध्वज का संपूर्ण परिचय देना और विनय भाव से इसके प्रति यथोचित सम्मान प्रकट करने को प्रेरित करना है। विश्वास है, ‘तिरंगे की गौरव गाथा’ पढ़कर पाठकगण भारत के गौरव को पहचानेंगे और इसकी रक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित होने को सन्नद्ध होंगे।
Rajyapal
- Author Name:
B. Puttaswamayya
- Book Type:

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Description:
कन्नड़ देश की भाषा और संस्कृति के इतिहास में कल्याणी चालुक्य राजाओं का शासनकाल अनेक दृष्टियों से महत्त्व का तथा प्रभावशाली रहा है। चालुक्य राजाओं में पेर्माडी जगदेकमल्ल के पश्चात् जिन तैलप (शतम्) ने सिंहासन का आरोहण किया वे विलासी, आलसी, राजनीति के क्षेत्र में एकदम अनुभवहीन थे। उनकी इन दुर्बलताओं के फलस्वरूप उनके सामन्त तथा दंडनायक कलचूरी वंशीय बिज्जल के हाथ में राज्य का सूत्र चला गया।
राज्यापहरण की इस घटना के बाद बारहवीं सदी में एक अभूतपूर्व साहित्यिक-धार्मिक क्रान्ति का प्रादुर्भाव हुआ। इस क्रान्ति के कारण बिज्जल का राज्यकाल इतिहास में अपना एक पदचिह्न छोड़ गया है। इस क्रान्ति के कर्णधार थे बिज्जल के मंत्रिपरिषद् के सदस्य भक्ति-भंडारी बसवेश।
इस कालावधि में जो घटनाएँ हुईं, वे ही इस ‘राज्यपाल’ उपन्यास की कथा-वस्तु हैं। उपन्यास की पीठिका के रूप में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों का समसामयिक साहित्य, शिला-लेख आदि की सहायता से चित्रित करने का प्रयत्न किया गया है।
सिद्धहस्त लेखक बी. पुट्टस्वामय्या ने प्रांजल भाषा में एक युग को साकार कर दिया है। भालचन्द्र जयशेट्टी का सतर्क अनुवाद उपन्यास को मूल आस्वाद से अभिन्न रखने में समर्थ सिद्ध हुआ है।
Apne Apne Konark
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Chandrakanta
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Description:
अपने-अपने कोणार्क यानी कश्मीर से ओडिशा का सफ़र। कश्मीर की सरसब्ज़ वादी में जन्मी और पली-बढ़ी चन्द्रकान्ता को भारत के अनेक प्रान्तों में रहने-बसने का मौक़ा मिला। लेकिन ओडिशा में बिताए गए छह वर्ष उनकी सर्जनात्मकता के लिए अमूल्य बन गए। उन्होंने वहाँ की जीवन-शैली, लोक-रंगों और परम्पराओं की महक महसूस की है, जिसका जीवन्त प्रमाण है ‘अपने-अपने कोणार्क’।
ओडिशा की संस्कृति धरोहर—पुरी और कोणार्क, जीवन के दो पहलू; सम्पूर्ण जीवन का फ़लसफ़ा यहाँ मौजूद है, जिसे लेखिका ने ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिदृश्य के साथ वर्तमान की सच्चाइयों से जोड़कर देखा है। उपन्यास की नायिका कुनी के माध्यम से उन्होंने आम ओड़िया जन को उसके विगत और वर्तमान के साथ प्रस्तुत किया है। 'मोर गौरव जगन्नाथ' में विश्वास करता आम ओड़िया जन अपने परम्परागत आलोक से मुग्ध, रक्षणशील तथा संस्कारवान भी है और हम सबकी तरह अन्धविश्वासी और रूढ़ मानसिकता से ग्रस्त भी। कुनी इसी रक्षणशील परिवार की बड़ी बेटी है, हज़ारहा दायित्वों की साँकलों में क़ैद, गोकि वह उन्हें साँकलें समझती नहीं। वह अपनी लीक आप बनाती, वक्त की सच्चाइयों के रू-ब-रू होते अपने भीतर को जानने और पाने की कोशिश करती है। ओडिशा की पृष्ठभूमि में वहाँ के इन्द्रधनुषी रंगों को समेटे कुनी की यह कहानी सच की तलाश है।
Pahachan Ke Naam Par Hatyaye
- Author Name:
Amin Maluf
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Description:
‘‘प्रत्येक युग में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो यह मानते हैं कि हर व्यक्ति की एक प्रमुख निष्ठा होती है जो हर तरह से औरों से इतनी उत्कृष्ट होती है कि उसे न्यायिक रूप से उसकी पहचान मान लिया जाता है। कुछ के लिए यह उनका राष्ट्र होता है, कुछ औरों के लिए धर्म या वर्ग। किन्तु सारी दुनिया में चारों तरफ़ फैले तरह-तरह के झगड़ों, विवादों पर नज़र दौड़ाने के बाद यह समझने में देर नहीं लगती कि कोई भी एक निष्ठा पूरी तरह सर्वोपरि नहीं होती।
वहाँ जहाँ लोगों को अपने धर्म के प्रति ख़तरा महसूस होता है, वहाँ उनकी धार्मिक आस्था उनकी सम्पूर्ण पहचान बन जाती है। लेकिन अगर उनकी मातृभाषा या जातीय समुदाय को ख़तरा हो तो वे अपने सधर्मियों से जमकर क्रूरता से लड़ाई करते हैं। तुर्की और खुर्द दोनों ही मुसलमान हैं, हालाँकि उनकी भाषाएँ अलग-अलग हैं; क्या उनके झगड़े कोई कम रक्तरंजित होते हैं? हुतु और टुट्सी दोनों समान रूप से कैथोलिक हैं और एक ही भाषा बोलते हैं, लेकिन यह उन्हें एक-दूसरे का संहार करने से रोक पाता है? चैक और स्लोवेक दोनों कैथोलिक हैं, क्या इसके सहारे वे साथ रह पाते हैं?’’
ऐसे कई प्रश्न हैं जिन पर प्रस्तुत पुस्तक में बड़ी संजीदगी से विचार किया गया है। लेखक ने जीवन और समाज के कुछ मूलभूत मुद्दों को रेखांकित किया है। दृष्टिकोण वैश्विक है और उद्देश्य मानवता की प्रतिष्ठा। यह कहना उचित होगा कि प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को संकीर्णताओं से मुक्त चिन्तन के लिए प्रेरित और निमंत्रित करती है।
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