Mamooli Cheezon Ka Devata
Author:
Arundhati RoyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main"><p>एक विशुद्ध व्यावहारिक अर्थ में तो शायद यह कहना सही होगा कि यह सब उस समय शुरू हुआ, जब सोफ़ी मोल आयमनम आई। शायद यह सच है कि एक ही दिन में चीज़ें बदल सकती हैं। कि चंद घंटे समूची ज़िन्दगियों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। और यह कि जब वे ऐसा करते हैं, उन चंद घंटों को किसी जले हुए घर से बचाए गए अवशेषों की तरह—करियाई हुई घड़ी, आँच लगी तस्वीर, झुलसा हुआ फ़र्नीचर—खंडहरों से समेटकर उनकी जाँच-परख करनी पड़ती है। सँजोना पड़ता है। उनका लेखा-जोखा करना पड़ता है।</p>
<p>छोटी-छोटी घटनाएँ, मामूली चीज़ें, टूटी-फूटी और फिर से जोड़ी गईं। नए अर्थों से भरी। अचानक वे किसी कहानी की निर्वर्ण हड्डियाँ बन जाती हैं।</p>
<p>फिर भी, यह कहना कि वह सब कुछ तब शुरू हुआ जब सोफ़ी मोल आयमनम आई, उसे देखने का महज़ एक पहलू है।</p>
<p>साथ ही यह दावा भी किया जा सकता था कि वह प्रकरण सचमुच हज़ारों साल पहले शुरू हुआ था। मार्क्सवादियों के आने से बहुत पहले। अंग्रेज़ों के मलाबार पर क़ब्ज़ा करने से पहले, डच उत्थान से पहले, वास्को डी गामा के आगमन से पहले, ज़मोरिन की कालिकट विजय से पहले।</p>
<p>किश्ती में सवार ईसाइयत के आगमन और चाय की थैली से चाय की तरह रिसकर केरल में उसके फैल जाने से भी बहुत पहले हुई थी।</p>
<p>कि वह सब कुछ दरअसल उन दिनों शुरू हुआ जब प्रेम के क़ानून बने। वे क़ानून जो यह निर्धारित करते थे कि किस से प्रेम किया जाना चाहिए, और कैसे।</p>
<p>और कितना।</p>
<p>बहरहाल, व्यावहारिक रूप से एक नितान्त व्यावहारिक दुनिया में...वह दिसम्बर उनहत्तर का (उन्नीस सौ अनुच्चरित था) एक आसमानी नीला दिन था। एक आसमानी रंग की प्लिमथ, अपने टेलफ़िनों में सूरज को लिए, धान के युवा खेतों और रबर के बूढ़े पेड़ों को तेज़ी से पीछे छोड़ती कोचीन की तरफ़ भागी जा रही थी...</p></
ISBN: 9788126710188
Pages: 296
Avg Reading Time: 10 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘दाता पीर’ विविधताओं से भरे भारतीय समाज के ऐसे एक हिस्से से रू-ब-रू कराता है जो हमारी नजरों से लगभग ओझल रहा है।
यह सवाल अकसर पूछा जाता रहा है कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में मुस्लिम जनजीवन की उपस्थिति इतनी विरल क्यों है, और अगर उसका उल्लेख होता भी है तो प्रायः साम्प्रदायिकता जैसे मसलों के साथ ही क्यों होता है। इस सन्दर्भ में ‘दाता पीर’ निश्चय ही एक उल्लेखनीय कृति है। इसमें मुजाविरों और शहनाई बजाने वाले एक घराने की कथा है जो, अपने आस-पड़ोस को समेटती हुई चलती है और आम भारतीय जनजीवन का आख्यान बनकर सामने आती है। यह उनके जीवन संघर्ष को उनकी धार्मिक पहचान तले नहीं दबाती, न ही कथा को मौजूदा दौर के बँधे-बँधाए विमर्श के खाँचे में फिट कर कोई ‘पॉलिटिकली करेक्ट’ फॉर्मूला पेश करती है। उपन्यासकार जीवन का सूत्र पकड़कर पाठक को विशाल भारतीय समाज के उन हिस्सों तक ले जाता है, और ऐसी सचाइयाँ दिखलाता है जिसे मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिवेश पर तेजी से हावी हो रही संकीर्णता के कारण देख पाना आज आसान नहीं रहा।
इस उपन्यास में स्मृतियों की कई पेंचदार गलियाँ हैं जिनमें खानकाहों-दरगाहों-मज़ारों और पीर-फकीरों की कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं तो मौसिकी के सदियों पुराने सिलसिले के सुर भी। साथ ही इसमें मौजूद हैं वर्तमान की ऐसी धड़कनें जहाँ कब्रिस्तान में भी प्रेम के बिरवे फूट पड़ते हैं।
वस्तुतः उपन्यासकार ने इस कृति में बिना किसी बड़बोलेपन के ऐसा एक अर्थगर्भी संसार रचा है जिसमें प्रवेश कर पाठक मनुष्य के जीवनानुभव को उसकी सम्पूर्णता में देख सकता है। यह उपन्यास बतलाता है कि जीवन का राग हो या विराग, अन्ततः एक मानवीय जीवनदृष्टि ही जीने की राह निर्मित करती है।
एक अत्यन्त पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास।
Hindutva : Ek Jeevan Shaili
- Author Name:
Ed. Kalraj Mishra
- Book Type:

- Description: आज भारत के राजनीतिक परिवेश में चारों ओर संकट दिखाई दे रहा है। देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। धर्म-जाति के नाम पर वोट पाने हेतु राष्ट्रीय हितों को तिलांजलि दी जा रही है। छद्म धर्म-निरपेक्षता के नाम पर संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज के इस कलुषित वातावरण में हिंदुत्व की अप्रतिम जीवन-शैली को अपनाकर ही समाज में एक जन-जागरण पैदा किया जा सकता है, जिससे अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सके। जीवनपर्यंत राष्ट्रवाद की राजनीति के आदर्शों पर चलनेवाले वरिष्ठ राजनेता पं. कलराज मिश्र ने हिंदुत्व की परंपराओं, वेद, पुराणों और स्मृतियों के माध्यम से सभी समस्याओं का हल खोजने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में सम्मिलित अनेक आध्यात्मिक गुरुओं, राजनेताओं, लेखकों के मर्मस्पर्शी लेख बालविवाह, जातिप्रथा, टूटते परिवार, भ्रष्टाचार, महिलाओं के प्रति दुराचार जैसी बुराइयों को दूर करने में अवश्य सफल होंगे। हिंदुत्व की व्यापक अवधारणा, उसकी अप्रतिम जीवन-शैली, उसकी संस्कृति का दिग्दर्शन कराती एक श्रेष्ठ कृति।
Daulati
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

-
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महाश्वेता देवी की रचनाओं की केन्द्रीय चेतना लोकधर्मी है। उनके लेखन का बुनियादी मन्तव्य दलितों की ज़िन्दगी को उभारकर सामने लाना है जो न केवल सामन्ती शोषण के शिकार हैं बल्कि जिन्हें तबाह करने में सरकारी नीतियों की भी बराबर की हिस्सेदारी है।
यह बात साफ़ हो चुकी है कि आदिवासी जन–जीवन की त्रासदी के बीज विषैली राजनीति में हैं और राजनीति की चालाक साज़िशों ने संगठित वर्ग–संघर्ष को विभाजित जाति–संघर्ष में तब्दील कर दिया है। ज़मींदारों ने भूमिहीन आदिवासियों के बीच धर्मों और जातियों के बँटवारे का सहारा लेकर उन्हें संगठित वर्ग की शक्ल में कभी नहीं आने दिया।
महाश्वेता जी के कथानक इन बारीक षड्यंत्रों को बेनक़ाब करते हैं। सरकारी कामकाज के असली चेहरों और ज़मींदारों के साथ सरकारी नुमाइंदों के आर्थिक रिश्तों को देखने–समझने के लिए जिस दृष्टि की ज़रूरत है, महाश्वेता जी की रचनाएँ उस दृष्टि को पैदा करती हैं।
इस पुस्तक के पृष्ठों पर तीन सशक्त उपन्यास छपे हैं। इन उपन्यासों का कथा–केन्द्र आदिवासी स्त्रियों की पीड़ित ज़िन्दगी है। तीन उपन्यासों की तीन प्रतिनिधि स्त्री पात्र हैं, दौलति, बासमती और गोहुअन। समान आर्थिक स्थितियों के बावजूद तीनों की सोच में बुनियादी फ़र्क़ है और यह फ़र्क़ आदिवासी स्त्री के मनोविज्ञान और उसकी संघर्ष–क्षमता को विभिन्न रूपों में उद्घाटित करता है।
स्त्री का क्रय–विक्रय, देह–व्यापार की कसैली विवशताएँ, ‘चुकी’ हुई वेश्याओं की तिरस्कृत वेदनाएँ और उनकी गुमनाम मौत; और इन सबके लिए ज़िम्मेवार सामन्ती व्यवस्था के दाँवपेंच—यह संक्षेप है ‘दौलति’ का।
दूसरा तेज़–तर्रार उपन्यास है ‘पलामौ’। आदिवासियों के शोषण को एक नए कोण से समझने की कोशिश, और आदिवासियों के विकास के सम्बन्ध में सरकारी दावों के खोखलेपन का पर्दाफ़ाश करनेवाला यह उपन्यास आदिवासी–जीवन का प्रतिबिम्ब है।
‘गोहुअन’ की कथा आदिवासी स्त्री के एक भिन्न स्वरूप को सामने रखती है। एक विषैले सर्प ‘गोहुअन’ के प्रतीक के ज़रिए आदिवासी स्त्री का स्वाभिमानी तेवर इस उपन्यास में बहुत गम्भीरता से व्यक्त ह़ुआ है।
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