Krishnavtar : Vol. 2 : Rukmini Haran
Author:
K. M. MunshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
‘कृष्णावतार’ परम पुरुष श्रीकृष्ण की जीवनलीला पर देश की किसी भी भाषा में आधुनिक उपन्यास लिखने का शायद पहला ही प्रयास है। पौराणिक परम्पराओं, विविध भाषाओं के काव्यों और लोक-साहित्य ने श्रीकृष्ण का जो बहुविध व्यक्तित्व और रूप हमारे सामने प्रस्तुत कर रखा है, वह अनन्य है, लेकिन उसे उपन्यास की विधा में बाँध लेने का श्रेय गुजराती के प्रमुख कथाकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को ही प्राप्त हो सका है।</p>
<p>‘रुक्मिणी हरण’ मुंशी के विराट् उपन्यास ‘कृष्णावतार’ का दूसरा खंड है, जिसमें ‘बंसी की धुन’ के बाद की कथा कही गई है। इस भाग में वयस्क कृष्ण के पराक्रमपूर्ण जीवन की गौरवशाली गाथाओं का चित्रण किया गया है। मगध-सम्राट् जरासंध का मान-मर्दन इस कथा-भाग का केन्द्रीय विषय है और इसकी परिणति रुक्मिणी हरण में होती है।
ISBN: 9788126700608
Pages: 316
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Ramdarash Mishra
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- Description: आर्थिक विपन्नता से ग्रस्त किसी युवती को जब जीवन-ज्ञापन के लिए काम करना पड़ता है तो समाज के भूखे भेड़िए उसे ललचाई नज़रों से देखने लगते हैं। लेकिन जब उसकी आर्थिक विपन्नता के साथ उसके पति की शारीरिक निष्क्रियता भी जुड़ जाए, तो उसे सार्वजनिक सम्पत्ति ही समझ लिया जाता है। ‘बिना दरवाज़े का मकान’ की नायिका दीपा निम्न वर्ग की एक ऐसी ही अभिशप्त युवती है जो जीविकोपार्जन के साथ-साथ अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष कर रही है। उसकी जीवन-प्रक्रिया तथा संघर्ष के क्रम में सम्भ्रान्त बेनक़ाब होता जाता है और दो समाज आमने-सामने तने हुए दिखाई पड़ते हैं। दिल्ली की एक भरी-पूरी कॉलोनी की पृष्ठभूमि पर आधारित कथा कभी-कभी गाँव की ओर भी चली जाती है और तब विडम्बना एकदम गहरा जाती है। दर्द और यातना के गहरे प्रसार के बीच जिजीविषा एवं संघर्ष से उत्पन्न मूल्य-चेतना उपन्यास को और सशक्त बनाती है।
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