Kadambari
Author:
BanbhattPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
संस्कृत के प्रख्यात गद्यकार बाणभट्ट सातवीं शताब्दी में राजा हर्षवर्धन के समय में हुए। उनकी दो कृतियाँ ‘हर्षचरितम्’ तथा ‘कादम्बरी’ संस्कृत गद्य का अपार वैभव और सौन्दर्य ही नहीं, भारतीय कथा का अद्भुत संसार भी हमारे सामने खोलती हैं। बाणभट्ट की ‘कादम्बरी’ पारम्परिक कथा की विधा को अद्वितीय योगदान भी है और आधुनिक उपन्यास की विधा का एक भारतीय मानक भी प्रस्तुत करती है। इसके औपन्यासिक कलेवर और विस्तार के कारण ही मराठी में उपन्यास के अर्थ में ‘कादम्बरी’ शब्द एक जातिवाचक संज्ञा भी बन गया।
प्रस्तुत उपन्यास बाणभट्ट की ‘कादम्बरी’ का एक साहसिक और नवीन रूपान्तर है, जिसे संस्कृत के जाने-माने विद्वान् तथा साहित्यकार राधावल्लभ त्रिपाठी ने रचा है। यह ‘कादम्बरी’ पर आधारित एक मौलिक नई कृति होने के कारण भारतीय कथा के आस्वाद के नए धरातल प्रस्तुत करता है।
ISBN: 9788183619073
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Ek Bataa Do
- Author Name:
Sujata
- Book Type:

-
Description:
पद्मिनी नायिकाओं-सी अगाधमना लड़कियाँ जब महानगर के गली-कूचों में जन्मे और अपने मायकों की खटर-पटर से निजात पाने के लिए उस पहले रोमियो को ही ‘हाँ’ कर दें जिसने उन्हें देखकर पहली ‘आह’ भरी तो जीवन मिनी-त्रासदियों का मेगा-सिलसिला बन ही जाता है और उससे निबटने के दो ही तरीक़े बच जाते हैं—पहला, ख़ुद को दो हिस्सों में फाड़ना। जैसे सलवार-कुरते का कपड़ा अलग किया जाता है, वैसे शरीर से मन अलग करना। मन को बौद्ध भिक्षुणियों या भक्त कवयित्रियों की राह भेजकर शरीरेण घर-बाहर के सब दायित्व निभाए चले जाना! दूसरे उपाय में भी बाक़ी दोनों घटक यही रहते हैं पर भक्ति का स्थानापन्न प्रेम हो जाता है—प्रकृति से, जीव-मात्र से, संसार के सब परितप्त जनों से और एक हमदर्द पुरुष से भी जो उन्हें ‘आत्मा का सहचर’ होने का आभास देता है।
स्वयं से बाहर निकलकर ख़ुद को द्रष्टा-भाव में देखना और फिर अपने से या अपनों से मीठी चुटकियाँ लिए चलना भी स्त्री-लेखन की वह बड़ी विशेषता है जिसकी कई बानगियाँ गुच्छा-गुच्छा फूली हुई आपको हर क़दम पर इस उपन्यास में दिखाई देंगी! हर कवि के गद्य में एक विशेष चित्रात्मकता, एक विशेष यति-गति होती है, पर यह उपन्यास प्रमाण है इस बात का कि स्त्री-कवि के गद्य में रुक-रुककर मुहल्ले की हर टहनी के फूल लोढ़ते चली जानेवाली क़स्बाई औरतों की चाल का एक विशेष छंद होता है। अब हिन्दी में स्त्री उपन्यासकारों की एक लम्बी और पुष्ट परम्परा बन गई है। सुजाता का यह उपन्यास उसे एक सुखद समृद्धि देता है और ज़रूरी विस्तार भी।
—अनामिका
Tumhari Roshani Mein
- Author Name:
Govind Mishra
- Book Type:

-
Description:
तुम्हारी रोशनी में गोविन्द मिश्र का अत्यन्त चर्चित उपन्यास है जिसमें उन्होंने आधुनिकता और परम्परा के बीच फँसी भारतीय स्त्री का एक अभूतपूर्व चित्र प्रस्तुत किया है। एक ऐसा चरित्र जो अपनी तमाम संश्लिष्टताओं में इतना सजीव है कि कहना कठिन हो जाए कि हम किसी कथा-पात्र से मिल रहे हैं या अपने आसपास के किसी जीते-जागते व्यक्ति से।
गोविन्द मिश्र को अपने परिवेश और देखे-जाने चरित्रों को लेकर ऐसे पात्र गढ़ने के लिए जाना जाता है जो मनुष्यता के शाश्वत प्रश्नों की खोज का प्रतीक बन जाते हैं। इस उपन्यास में भी उन्होंने तर्क तथा भावना के द्वन्द्व के बीच से ऐसी ही एक कहानी रची है जो प्रेम को केन्द्र में रखते हुए अस्तित्व के गम्भीर प्रश्नों से होकर गुजरती है।
विख्यात कथाकार अमृतलाल नागर ने इसीलिए इस उपन्यास को समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण कथा-कृति बताया था।
सुवर्णा अपने भीतर के बहुमूल्य की खोज में अपने वजूद के कई बिन्दुओं से गुजरती है, अपने विवाहित जीवन, अपने घर-परिवार और कैरियर के अलग-अलग मोर्चों पर संघर्ष करते हुए उसकी यह भीतरी-बाहरी यात्रा एक तरह से आधुनिक संस्कृति के खोखलेपन को उजागर करती हुई, मुक्ति की अवधारणा और पारम्परिक बन्धनों के संघर्ष की यात्रा बन जाती है।
जीवन के यथार्थ को अपने भीतर समेटे वृहत्तर सन्दर्भों तक फैली एक मार्मिक यात्रा।
Ek Gandharv Ka Duswapna
- Author Name:
Haricharan Prakash
- Book Type:

-
Description:
अक्सर देखा गया है कि संगीत, कला और साहित्य से जुड़े लोग अपनी एक निजी और आन्तरिक दुनिया में रमे रहते हैं। वे बाहरी दुनिया की बड़ी-से-बड़ी घटनाओं को भी निरपेक्ष भाव से लेते हैं। उनके भीतरी संसार में बाहर के घटनाचक्र का, यथार्थ का प्रवेश कुछ विचित्र क़िस्म के ऊहापोह और उथल-पुथल पैदा करता है।
उपन्यास का नायक भवनाथ ऐसा ही एक संगीतज्ञ है—बजाने-गाने में मस्त। चारों ओर की चीख़-पुकार में उसे खोए हुए सुरों का ख़याल आता है। वह दिव्यास्त्रों की तरह दिव्यरागों की कल्पना करता है। गन्धर्व कौन-सा सुर जगाते होंगे, कौन-सा राग मूर्त करते होंगे, हमसे कहीं ऊपर उनका सुर होगा—ऐसा सोचता रहता है। संगीत की खोई हुई दुनिया के झिलमिले सपने आते और चले जाते।
गन्धर्व के बहाने हरी चरन प्रकाश द्वारा रचा गया एक बेहद मार्मिक और रोचक उपन्यास है—‘एक गन्धर्व का दुःस्वप्न’।
स्वतंत्रता-प्राप्ति से लेकर आज तक के सामाजिक-राजनीतिक घटनाचक्रों को इस उपन्यास में बड़ी बेबाकी से रेखांकित किया गया है। चाहे वह महात्मा गांधी की हत्या हो या फिर बाबरी मस्जिद के विध्वंस से उपजे दंगे-फ़साद, वह मंडल-कमंडल की राजनीति हो या फिर जाति-धर्म की—देश की सम्प्रभुता को ख़तरे में डालनेवाले तत्त्वों को बड़ी संजीदगी से बेनक़ाब किया गया है इस उपन्यास में।
Chhappar
- Author Name:
Jaiprakash Kardam
- Book Type:

-
Description:
सामाजिक विचार के व्यावहारिक चिन्तक एवं रचनाकार जयप्रकाश कर्दम का यह उपन्यास दलित साहित्य का क्रान्तिधर्मी दस्तावेज़ है। उपन्यास की कथा से गुज़रते हुए महसूस होता है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी संवैधानिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक संरचना के सर्जनात्मक साहित्य की ज़मीन की तलाश ज़रूरी है, ताकि आत्मीय और भावनात्मक प्रसंगों की पृष्ठभूमि में अपनी समझ के तीखे से तीखे सामाजिक-सांस्कृतिक सवालों के समाधान खोजने का उपक्रम किया जा सके। जयप्रकाश कर्दम ने डॉ. अम्बेडकर के जीवन-दर्शन और विचारों को क्रियान्वित करने के लिए कथानायक चन्दन की सृष्टि की है, जो सदियों से अज्ञान और पिछड़ेपन की गति में पड़े हुए दलित समाज को जगाना चाहता है। वह कॉलेज में पढ़ते हुए भी स्कूल चलाता है और बच्चों को स्वयं पढ़ाता है; क्योंकि वह जानता है कि जीवन और समाज में व्याप्त विसंगतियों के ख़िलाफ़ लड़ाई जीतने के लिए शिक्षा सबसे ज़्यादा मारक और शक्तिशाली शस्त्र है।
‘छप्पर’ की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है—दलित समाज का वैचारिक आधार पर संगठित होना तथा सामन्ती-ब्राह्मणी शोषण-उत्पीड़न और जातिगत भेदभाव से मुक्ति के लिए अनथक संघर्ष की प्रेरणा। साथ ही सामाजिक सम्मान की भावना जाग्रत कर स्वाभिमान से जीने की ललक पैदा करना।
उपन्यासकार ने शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए सामाजिक क्रान्ति पर ज़ोर दिया है, क्योंकि सांस्कृतिक क्रान्ति के बिना सामाजिक क्रान्ति अधूरी है और इसके बिना दलित समाज का उत्थान और विकास सम्भव नहीं।
Was It A Murder
- Author Name:
Ritika Singhal +1
- Book Type:

- Description: Abhay Savarkar was enjoying the tea at his home in Ambala. One sudden call, and he was off to Port Blair. Mrs. Jazz was found dead amidst a family get-together. While Savarkar was busy collecting the clues, another death was announced. Were the two deaths linked? Both the deaths sounded natural, but Savarkar was smelling some foul play. Will there be more crimes? No Clues, No motive, No satisfaction, No one to agree with Savarkar. How will Savarkar go about it this time? And the question still prevails "Was It A MURDER?"
Parajay
- Author Name:
A. Fadeyev
- Book Type:

-
Description:
1927 में फ़देयेव का यह पहला उपन्यास ‘पराजय’ प्रकाशित हुआ जो सुदूर पूर्व में क्रान्ति-विरोधियों के विरुद्ध छापामार क्रान्तिकारी युद्ध (1918-20) का व्यापक, गहन और आधिकारिक चित्र प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास से फ़देयेव को राष्ट्रव्यापी ख्याति और मान्यता मिली। 1931 में इस पर एक फ़िल्म भी बनी। प्रकृतवाद और अमूर्त, ऊँची उड़ान वाले स्वच्छन्दतावाद का समान रूप से विरोध करने वाले फ़देयेव ने इस उपन्यास में वास्तविक जीवन का सहज वर्णन करते हुए चरित्रों की संरचना और नैतिक-आत्मिक विकास पर अपना ध्यान गहन रूप में केन्द्रित किया है। उपन्यास की थीम के बारे में स्वयं उन्हीं के शब्दों में :
‘‘गृहयुद्ध के दौरान, मानवीय तत्त्व एक चयनात्मक प्रक्रिया से गुज़रते हैं। हर प्रतिकूल चीज़ को क्रान्ति झाड़-बुहारकर किनारे कर देती है। हर चीज़ जो सच्चे क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए अक्षम होती है और जो धारा के प्रवाह के साथ क्रान्ति के शिविर में आ गई रहती है, उसकी निराई-छँटाई कर दी जाती है, और ईमानदार जड़ों वाली हर चीज़ जो क्रान्ति के बीच से आती है, वह लाखों-लाख सृजनशील जनसमुदाय के बीच, इस संघर्ष के दौरान मज़बूत बनती है, फलती-फूलती है और विकसित होती है। लोग आमूलगामी ढंग से रूपान्तरित हो जाते हैं।’’
इस उपन्यास में लेविन्सन का चरित्र कम्युनिस्ट चेतना के उच्च स्तर को दर्शाता है और यह भी दर्शाता है कि एक सच्चे बोल्शेविक का अपने अनुगामियों पर कितना गहरा प्रभाव होता है। 1920 के दशक में साहित्यिक आलोचकों ने ‘पराजय’ को एक प्रयोगात्मक प्रयास बताया जो क्रान्ति के मानव को क्रान्ति-प्रक्रिया के ‘भीतर से’ देखता है और उसके मनोविज्ञान का सूक्ष्म-सटीक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
—भूमिका से
Samaychakra
- Author Name:
Dhirendra Verma
- Book Type:

-
Description:
संसार के सभी मनुष्यों का पूर्वजन्म और अगला जन्म होता है। पूर्वजन्म की यादें इसलिए भूल जाती हैं क्योंकि प्रत्येक जन्म स्वयं ही इतना विशद और विशाल होता है कि यदि हमें पिछला जन्म याद आ जाए तो इस जीवन का उत्तरदायित्व और भार वहन करना असम्भव हो जाएगा। इसका मतलब यह नहीं कि पूर्वजन्म हम एकदम से विस्मृत कर देते हैं। पूर्वजन्म की स्मृति हमारे अवचेतन में निरन्तर दबी रहती है जो कभी-कभी याद आ जाती है। हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह हमारे पिछले कर्मों के आधार पर हो रहा है और भविष्य में जो कुछ भी हमारे साथ होगा वह हमारे वर्तमान कर्मों के आधार पर होगा। अर्थात अतीत का जो वर्तमान से सम्बन्ध है वही सम्बन्ध वर्तमान का भविष्य से है। सारा संसार ही नहीं समस्त सृष्टि कार्य और कारण के सिद्धान्त के आधार पर चल रही है, जिसे हम कर्म और भाग्य का भी नाम दे सकते हैं। जो कुछ भी हम कर रहे हैं उसका परिणाम हमें भुगतना ही होगा। इसलिए हम यदि अपना भविष्य स्वर्णिम बनाना चाहते हैं तो हमें अच्छे से अच्छे कार्य करने होंगे।
समीर को नैनीताल के ‘जोशी लॉज़’ में एक अद्भुत अनुभव होता है। वहाँ पर समीर अपनी उम्र के पैंतीस वर्ष अतीत में पहुँच जाता है। उसकी भेंट सैम नामक युवक से होती है। सैम से उसे पता चलता है कि योग और मंत्र की साधना से उसने अपना अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों जान लिया है। अर्थात वह साधना की उस स्थिति में पहुँच गया है जहाँ मनुष्य अपना प्रारब्ध जान लेता है।
समीर को यह जीवन्त अनुभव जैसा लगता है परन्तु वास्तव में ऐसा नींद में हुआ। सैम से उसकी भेंट पूर्वजन्म से जुड़ी थी। ‘समयचक्र’ की परिक्रमा प्रत्येक मनुष्य करता है। समीर को यह अनुभव अपने जीवन में अनेक बार होता है। उसे विश्वास हो जाता है कि कर्म और भाग्यवाद का सम्बन्ध अवश्य ही पूर्वजन्म और पुनर्जन्म से है।
Lekin Darwaza
- Author Name:
Pankaj Bisht
- Book Type:

-
Description:
‘‘...महानगरीय कथा-कृतियों में प्रायः समकालीनता को ही उजागर किया जाता है; किन्तु ‘लेकिन दरवाज़ा’ में समकालीनता को चालू भाषा-शैली में चित्रित किया गया है। याद नहीं पड़ता कि हिन्दी की किसी कथा-कृति में इस तरह की चालू भाषा-शैली में महानगरीय समकालीनता को इतने ताज़ेपन के साथ पहले प्रस्तुत किया गया हो...’’
—‘आलोचना’
‘‘...रचनाधर्मिता के नाम पर जोड़-तोड़ के दमघोंटू व कल्टीवेटेड माहौल पर आधारित बिष्ट का यह उपन्यास एक तरफ़ साहित्यिक जीवन की परतों को उधेड़ता है तो दूसरी ओर आभिजात्य वर्ग की पतनशील रूमानी मानसिकता को दर्शाता है।...’’
—‘अमर उजाला’
‘‘ ‘लेकिन दरवाज़ा’ को ‘कुरु-कुरु स्वाहा’ से भी ज़्यादा सफलता मिली। इसका एक मुख्य कारण यह हो सकता है कि मनोहर श्याम जोशी ने जहाँ विलक्षणता, मामूली-मामूली बातों को ग़ैरमामूली ढंग से पेश करने में दिखाई, वहाँ ‘लेकिन दरवाज़ा’ में लेखक ने ग़ैरमामूली ढंग से कहा।’’
—‘नवभारत टाइम्स’
‘‘दरअसल समकालीन साहित्यिक दुनिया के वास्तविक सन्दर्भों को विषय के रूप में उठाना एक जोखिम-भरा काम है। लेकिन पंकज बिष्ट की यह ख़ूबी रही है कि वे इन सन्दर्भों का ब्योरा मात्र पेश करने के बजाय उन्हें सामाजिक परिप्रेक्ष्य की सापेक्षता में उभारते हैं।...’’
—साक्षात्कार
‘‘लेखक दूसरे-दूसरे वर्गों के बारे में तो ख़ूब लिखते हैं, मगर उनके ख़ुद के बारे में कम लिखा जाता है।...यह उत्सुकता का विषय है कि सबके बारे में लिखनेवाले लेखक का अपना सांसारिक परिवेश कैसा होता है या उसकी जीवनगत परिस्थितियाँ, उसके आदर्श, उसका परिवार, उसकी रुचियाँ, उसके संघर्ष किस क़िस्म के होते हैं? पंकज बिष्ट ने इसी कथा-भूमि को उठाया है—महानगर दिल्ली के लेखकों के जीवन को।’’
—‘नई दुनिया’
Nai Paudh
- Author Name:
Nagarjun
- Book Type:

-
Description:
‘नई पौध’ की कहानी अति सरल है। गाँव के बड़े-बूढ़ों की ज़िद तोड़कर तरुणों ने एक लड़की के जीवन को चौपट होने से बचा लिया—बे-मेल शादियों की यह समस्या हमारे ग्रामीण समाज में आज भी विकराल रूप में मौजूद है। इस समस्या का विप्लवी समाधान नई पीढ़ी ही दे सकती है...
नागार्जुन का यह उपन्यास, आकार में लघु होने पर भी, प्रभाव के लिहाज़ से बड़ा ही व्यापक साबित हुआ है...प्रकृति की मनोरम पट-भूमि पर कथाकार ने घटनाओं का मोहक ताना-बाना सजाया है। विशिष्ट आलोचकों ने नागार्जुन की इस कथाकृति की भूरि-भूरि सराहना की है और साधारण पाठकों ने भी इसे बेहद पसन्द किया है।
Agnivyuh
- Author Name:
Shriram Dube
- Book Type:

-
Description:
‘जंगल’ जब तक ‘जंगलों’ में थे, तब तक जंगल के नियम, उसका बाहुबल, कमज़ोरों पर बाहुबलियों के शोषण जंगलों तक ही सीमित थे। आज जंगलों का फैलाव शहरों-गाँवों तक आ पहुँचा है। जंगलों के साथ शहरों-गाँवों तक में जंगली जानवरों के पैरों के निशान दिखाई देने लगे। आदमी भी इनके संग-साथ में तन की ताक़त एवं मन के, विचार के स्तर पर धीरे-धीरे जानवर होने लगा। सोच-विचार एवं विवेक के स्तर पर जिसने जंगल को परास्त कर दिया, वह आदमी रह गया पर जो स्वयं परास्त होकर जंगल के सामने नतमस्तक हो गया, जिसने अपने भीतर जंगल को बसा लिया, वह जंगली जानवरों से भी ज़्यादा भयावह हो गया। उसके पंजे करामात दिखाने लगे। बाहुबल शोषण का स्रोत बन गया, माफ़िया-संस्कृति सर उठाकर चलने लगी और शीघ्रातिशीघ्र ‘कुबेर’ बनने की ललक ने बिना पूँजी-पगहा वाला ‘अपहरण-उद्योग’ खड़ा कर दिया। जंगली चक्की चलने लगी, लोग पिसने लगे।
शोषण बढ़ा तो इसकी प्रतिक्रिया पहले कुनमुनाई, फिर अँगड़ाई लेने लगी। पाँवों तले दबी दूब भी पाँव हटने के बाद सर तो उठाती ही है। उठने लगे विरोधी स्वर...धीरे-धीरे उग्र होने लगे ये स्वर। फैलने एवं पकने लगीं उग्रवाद की फ़सलें।
बाहुबल, माफ़िया-संस्कृति, अपहरण-उद्योग और उग्रवाद के खाद-पानी के लिए कोयलांचल और उसके चारों ओर दूर-दूर तक फैली जंगल-पहाड़ों वाली ज़मीन बड़ी मुफ़ीद बन गई।
कहते हैं कोयलांचल में नोट हवा में उड़ते हैं। जिसके हाथों में ताक़त हो वह आगे बढ़कर लूट ले। लूट की जंगली प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो बाहुबल का प्रदर्शन बढ़ा। लोग दूसरों की लाशें गिराकर उन्हें रौंदते हुए ‘नोट’ तक बढ़ने लगे। ख़ूनी-खेल गुल्ली-डंडा बन गया, उग्रवाद एवं अपहरण भी साथ-साथ क़दमताल करने लगे, इन सबके बीच पिसने लगा आम आदमी और लाल होने लगी काली ज़मीन।
लाल पड़ती जा रही धरती की परत-दर-परत खोलकर इसे देखने, समझने और दिखाने का प्रयास है यह उपन्यास।
Salt And Pepper
- Author Name:
Achal Mogla
- Book Type:

- Description: Salt and Pepper is a collection of 7 thought-provoking short stories that attempt to touch the reader's heart. In today’s world, where time has become a scarcity and maintaining relationships is an art, the stories written here explore various emotions like sacrifice, love, hatred, and helplessness through their multiple characters in various forms. The feelings in the stories add a tinge of colours in numerous shades and add to the life recipe. This precisely a similar situation where just salt and Pepper, when added to food, change their taste altogether if in less or more. Sometimes the addition of both ingredients in the right proportions creates a perfect recipe, and if either one of them, salt or Pepper, is added in excess or fewer amounts can alter the taste of a recipe entirely. All the stories are bonded together where in the standard part are the range of emotions that are depicted, and the characters, while living out their lives daily, also go through the turmoil that their adventures bring along with them. The characters are complex, intriguing and yet beautiful in their way. A wife’s struggle and hard work for maintaining her pride and dignity intact.., a soldier’s sacrifice for his country and his family are coming to terms with that, a gift made by a young girl of her love without any conditions/strings attached, story of 2 people in love being United again by fate under different situations, misunderstanding between 2 people how it brings them closer to each other…..
Adhbuni Rassi : Ek Parikatha
- Author Name:
Sachchidanand Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
रस्सी अगर अधबुनी रह जाए तो वह रस्सी नहीं कहलाती। रस्सीपन न हो तो रस्सी कैसी? बुननेवाले ने आख़िर पूरी क्यों नहीं बुनी? बुननेवाला मिले तभी तो पूछें। और वह नहीं मिलता। डमरुआ गाँव और उसमें रहनेवालों की ज़िन्दगी ऐसी ही एक अधबुनी रस्सी है। जीवन्तता में कोई कमी नहीं है। लेकिन यह एक कड़ी सच्चाई है कि जिजीविषा अपने आपमें कोई गारंटी नहीं—न निर्माण की और न नाश के निराकरण की। फिर यह भी कि जहाँ जिजीविषा, वहाँ आस्था। भले ही अधबुनी ज़िन्दगियाँ हों लेकिन ज़िन्दगीपन से भरपूर हैं —उनका यह पूरापन आकर्षित भी करता है और अपने अधबुनेपन पर करुणा भी उपजाता है। और सबसे ख़ास बात यह है कि लेखक ने कथा बड़ी सहजता से कही है। पूरे भरोसे के साथ उसने पात्रों और उनके परिवेश का पाठकों से परिचय करवाया है और सहृदय पाठक पाता है कि परिचय एक अविस्मरणीय आत्मीयता में बदल गया है। कहना होगा कि औपन्यासिकता कोई अधबुनी नहीं रह गई है। लेखक का यह पहला उपन्यास है लेकिन इसे निस्संकोच ‘मैला आँचल’ और ‘अलग अलग वैतरणी’ की परम्परा में रखा जा सकता है और यह कोई कम उपलब्धि की बात नहीं। डमरुआ गाँव और उसमें रहनेवालों को जानना जैसे स्वयं को और अपने परिवेश को नए सिरे से पहचानना है। जिस सहजता के साथ डमरुआ एकाएक बीसवीं शती के उत्तरार्ध का भारत बन जाता है, वह पाठक के लिए एक सुखद विस्मयकारी घटना है। कथा-रस और यथार्थ का ऐसा संयोग बहुत ही कम देखने को मिलता है और ‘अधबुनी रस्सी : एक परिकथा’ उपन्यास इसीलिए पाठक के अनुभव संसार को अतुलनीय समृद्धि देने में सक्षम बन सका है। कथ्य सहज, शिल्प सहज और फिर भी रस्सी के अधबुनी रह जाने की अत्यन्त विशिष्ट कथा उपन्यास को बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती है। कोई विस्मय की बात नहीं, अगर यह उपन्यास भविष्य में इने-गिने महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में एक गिना जाए।
—वेणुगोपाल
Aawazen Aur Deeware
- Author Name:
Vaikukam Mohammad Bashir
- Book Type:

- Description: ''क्या तुमने अपने आप कोई काम करके उसके सुख का अनुभव नहीं किया है? खेती करना...कम-से-कम एक पौधा रोपकर उसका फूल और फल देखना, कोई नई चीज़ तैयार करना, प्यासे भटकते कुत्ते को पानी पिलाना, भूखे आदमी को खाना खिलाना, ऐसा कोई काम...।'' ''आप तो जानते हैं, मैंने सिर्फ़ आदमियों को गोली मारी है। आदमियों का ख़ून पिया है और एक बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी।'' ''फिर?'' ''अच्छा, अब वह भी बता दूँ! मैं इसी रात यहीं से चला जाऊँगा।'' ''कहाँ?'' ''यह मेरा जन्म-स्थान है न! मैं माँ-बाप को ढूँढने की कोशिश करूँगा। हर घर में जाकर, हर औरत से पूछूँगा—'क्या तुम मेरी माँ हो? क्या तुम्हीं ने मुझे मेरे पैदा होते ही चिथड़ों में लपेटकर चौराहे के अँधेरे में डाल दिया था?' मरने के बाद भी मैं भयंकर प्रेत बनकर रात में हर घर में जाकर, आँखें फाड़कर दरवाजा खटखटाऊँगा।'' —इसी पुस्तक से
Teen Samandar Paar
- Author Name:
Rajiv Shukla
- Book Type:

-
Description:
सिल्विया, प्रशांत वर्मा, स्मिथ, कामता प्रसाद, रॉबिन–ये वे पाँच मुख्य चरित्र हैं जो आपस में मिलकर राजनीतिक त्रिकोण के समानांतर एक चौथा कोण निर्मित करते हैं–यलगार का। सियासत की इस शतरंज की बिसात बिछी है एक छोटे से, प्यारे से खूबसूरत देश त्रिनिदाद में। इस बिसात के बरक्स लेकिन इससे छिटककर एक निश्छल प्रेम कहानी भी विकसित हो रही है–तीन समंदर पार।
उपन्यास के लेखक राजीव शुक्ला के नाम से साहित्य के नियमित पाठक अचकचा सकते हैं लेकिन सघन और विविध अनुभवों से संपन्न, पत्रकारिता में लंबी चमकदार पारी खेल चुके, राजनीति के शिखर पर चहलकदमी करने वाले किसी शख्स का अंततः लेखकीय रूपांतरण असहज नहीं है बल्कि संभाव्य है। तेज रफ्तार से बहने वाले इस उपन्यास में उतरिए, आप हतप्रभ रह जाएँगे।
जाहिर तौर पर ब्रूटस की वापसी इस यात्रा का अहम पड़ाव है। सौ झूठ रचकर और छल से हासिल की गई सत्ताएँ आखिरकार एक दिन ध्वस्त हो जाती हैं। इस शाश्वत नियम को सिद्ध करने की चुनौतियाँ बयान करने में उन्होंने बहुत मुखर ढंग से सत्ता के खेल का अहम जरिया बन चुकी पत्रकारिता, क्रिकेट और फिल्मों के सुपरिचित चेहरों से समर्थन जुटाने की कवायद, पार्टी की ब्रांडिंग और इवेंट मैनेजमेंट में तब्दील हो चुकी राजनीतिक गतिविधियों को बखूबी बेपर्द किया है।
सत्ता तक पहुँचने के तमाम प्रचलित तरीकों का छद्म उजागर करते हुए राजीव इस कहानी के अंत में पाठकों को जहाँ ले जाकर खड़ा करते हैं वह इस बात की आश्वस्ति है कि ढोंग और स्वाँग रचने वाला जननायक एक न एक दिन जनता के आगे बेनकाब हो ही जाता है।
यही इस रोचक उपन्यास का सत्य है और सार भी।
Romeo Juliet Aur Andhera(LOK)
- Author Name:
Kunal Singh
- Book Type:

- Description: भाषा, जाति, धर्म, नस्ल और क्षेत्र को दरकिनार करके किया गया प्रेम एक ताजी, भव्य, सम्मोहक और रोशन दुनिया की कोंपल अपने भीतर रखता है, पर जब हम भीतर और बाहर रोशनी से भर रहे होते हैं तो ठीक हमारे पीछे अँधेरा अपने ज़ंग लगे नाख़ूनों में धार दे रहा होता है। रोशनी और अँधेरे के बीच का यह आदिम खेल सभ्यता के कथित विकास के साथ और भी बर्बर होता गया है। ‘रोमियो जूलियट और अँधेरा’ पढ़ते हुए हम जानते हैं कि हमारे कोमलतम और सपनीले दिनों में बर्बरता सबसे अधिक हमारी ताक में रहती है। यहाँ दो युवा दिलों की मुहब्बत पर तमाम हत्यारी साज़िशों की भुतहा छायाएँ गिर रही हैं। यहाँ भाषा, नस्ल और स्थानीय बनाम बाहरी के द्वन्द्व हैं जिनकी शतरंजी बिसात पर राजनीतिक गोटियाँ सेंकी जा रही हैं, जिनकी गिरफ़्त में आने के बाद पीड़ित लोग अपने ही जैसे दूसरे पीड़ितों के प्रति ज़हर से भर रहे हैं। यहीं, इसी जगह से उपन्यास में अँधेरा प्रवेश करता है। असम की राजनीति में जो ताक़तें और तत्व आज निर्णायक होकर राज कर रहे हैं, उन सबकी गहरी पदचापें इस उपन्यास में सुनी और देखी जा सकती हैं। और यह सब यहाँ एक ऐसी सम्पन्न भाषा में दर्ज हो रहा है जो स्वाद, रंग, गन्ध, ध्वनियाँ, मौसम, रोशनी और अँधेरा सब कुछ को साकार कर देती है। जिसमें आप किसी कली का चटकना या फूल का मुरझाना सुन और देख सकते हैं। जिसमें असम की धरती का ताप दर्ज हुआ है। पढ़ते हुए एक भीषण आह के साथ हम जानते हैं कि हर भाषा के अपने दुख, मातम और अँधेरे हुआ करते हैं।
Sitaron Ki Ratein
- Author Name:
Shobha De
- Book Type:

- Description: सितारे रात में ही चमकते हैं या कहें कि हर सितारे का एक अँधेरा भी होता है। लेकिन दर्शक की नज़र अक्सर सितारों पर ही जाती है, उनके अँधेरों पर नहीं। यह प्रक्रिया हमारी फ़ितरत से भी सम्बन्ध रखती है, और सीमा से भी। शोभा डे इसी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करती हैं। वे उन अँधेरों को भी उघाड़कर देखती हैं, जिन्हें रोशनी ने छुपाया हुआ है। विडम्बना यह कि लेखिका की आँख से देखे और दिखाए गए ये अँधेरे 'बॉलीवुड' की जिन सच्चाइयों को उजागर करते हैं, उन्हें अक्सर ही 'गॉसिप' कहकर नकार दिया जाता है। लेखिका ने इस पुस्तक में मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के जिन चरित्रों को चित्रित किया है, वे अमूर्त नहीं हैं। उन्हें पहचाना जा सकता है—ख़ासकर इसकी केन्द्रीय चरित्र आशा रानी को। यथार्थ और लेखकीय कल्पना के बावजूद उसे हम जीवित-जाग्रत अभिनेत्री के रूप में भी पहचान सकते हैं, और एक प्रतीकात्मक चरित्र के रूप में भी। उसके इर्द-गिर्द और भी कितने ही तारों-सितारों की पहचान की जा सकती है। दरअसल यह एक ऐसी रंगीन दुनिया है, जिसका उद्दाम आकर्षण किसी भी कलाकार को किसी भी हद तक ले जा सकता है। देह इस दुनिया में सिर्फ़ उपभोग और ऊँचाई पर पहुँचने का माध्यम है। निषेध और नैतिकता यहाँ सिर्फ़ शब्द हैं। स्त्री है, जो बिछी हुई है और पुरुष है, जो तना हुआ है। कहना न होगा कि अंग्रेज़ी से अनूदित शोभा डे की यह कृति हिन्दी पाठकों के लिए एक नया अनुभव होगा। अलग-अलग फ़िल्मी चरित्रों की पेशगोई के बावजूद इसे एक दिलचस्प उपन्यास की तरह पढ़ा जा सकता है।
Khambhon Per Tiki Khushabu
- Author Name:
Narendra Nagdev
- Book Type:

-
Description:
भवन-निर्माण के व्यवसाय में गहरी जड़ें जमा चुके, हर क़ीमत पर कांट्रैक्ट हासिल कर लेनेवाले कुख्यात टेंडर माफ़िया की आतंककारी कार्यप्रणाली तथा उन्हें रोकने को कटिबद्ध, एक समर्पित, सृजनशील वास्तुकार का उनके साथ जोखिम-भरे संघर्ष का दस्तावेज़...
संघर्ष में एक सकारात्मक तथ्य को रेखांकित करता कि सृष्टि वह दानव नहीं चलाता जो अपने अहंकारवश बाढ़ ला देता है पूरे शहर में, वरन् उस चिड़िया के पंख चलाते हैं जो चोंच में तिनका दबाकर, तिनके में पानी की एक बूँद उठाकर, बार-बार फेंक आती है शहर के बाहर ताकि धीरे-धीरे बाढ़ से मुक्त हो सके शहर...
आर्किटेक्चर क्षेत्र के सघन व्यावसायिक घटनाक्रम के साथ-साथ एक लोककथात्मक फ़ैंटेसी की महीन बुनावट और विध्वंसक शक्तियों के गाल पर तमाचा-सा जड़ता एक अतियथार्थवादी चरम...
वर्तमान और अतीत के बीच, कल्पना और यथार्थ के बीच, सही और ग़लत के बीच झूलता हुआ सा, एक मोहक शिल्प तथा भाषा के सहज प्रवाह से युक्त नरेन्द्र नागदेव का आत्मीय, संवेदनशील प्रस्तुतीकरण—‘खम्भों पर टिकी ख़ुशबू...’
Panch Aangnon Wala Ghar
- Author Name:
Govind Mishra
- Book Type:

- Description: क़रीब पचास वर्षों में फैली ‘पाँच आँगनों वाला घर’ के सरकने की कहानी दरअसल तीन पीढ़ियों की कहानी है—एक वह जिसने 1942 के आदर्शों की साफ़ हवा अपने फेफड़ों में भरी, दूसरी वह जिसने उन आदर्शों को धीरे-धीरे अपनी हथेली से झरते देखा और तीसरी वह जो उन आदर्शों को सिर्फ़ पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ सकी। परिवार कैसे उखड़कर सिमटता हुआ क़रीब-क़रीब नदारद होता जा रहा है—व्यक्ति को उसकी वैयक्तिकता के सहारे अकेला छोड़कर! गोविन्द मिश्र के इस सातवें उपन्यास को पढ़ना अकेले होते जा रहे आदमी की उसी पीड़ा से गुज़रना है।
Rudra Gufa Ka Swami
- Author Name:
Shiv Vachan Choube
- Book Type:

-
Description:
शिव वचन चौबे लोकगीतों और लोककथाओं में जीवन्तता तलाशनेवाले मिथक प्रेमी, कथाकार प्रेमी मात्र नहीं हैं। वे ग्रामीण जीवन के बदलते चरित्र को उसकी सहजता और चालाकी के साथ रेखांकित करनेवाले संवेदनशील रचनाकार हैं। ‘रुद्रगुफा का स्वामी' आत्मपरक वस्तुपरकता से विकसित आज के गाँवों और नगरों में विद्यमान सम्पत्ति-मोह के भीषण परिणामों का संकेत करनेवाला अत्यन्त रोचक उपन्यास है।
यह उपन्यास लोककथा के रहस्य, रोमांच, जिज्ञासा, कौतूहल आदि तत्त्वों के उपयोग से बना होने के कारण पाठक को अन्त तक बाँधे रहता है। हिन्दी में कौतूहल और रहस्य का सामाजिक यथार्थ के उद्घाटन की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण प्रयोग है।
देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों जैसा यह नाम निम्न जातियों के स्वार्थपरक इस्तेमाल का उद्घाटन करते हुए उनकी उद्बुद्ध विवेकशक्ति को रेखांकित करता है। रुद्रगुफा का स्वामी कौन है? और क्यों बना है? यह प्रश्न यथार्थ के अनेक हेतुओं का उद्घाटन करता है। पाठकों और आलोचकों को अपने स्वरूप और संकेत से आकर्षित करनेवाला एक उल्लेखनीय उपन्यास।
Chalo Kalkatta
- Author Name:
Bimal Mitra
- Book Type:

-
Description:
मैंने पाँच उपन्यासों के द्वारा भारतवर्ष के इतिहास का परिक्रमण शुरू किया था। 1757 ई. में जिस दिन अंग्रेज़ों ने पहले-पहल भारतवर्ष में पाँव रखा था, उसी दिन शुरू हुआ यह परिक्रमण। ‘बेगम मेरी विश्वास’ इस परिक्रमण का सूत्रपात है। उसके पश्चात् ‘साहब बीबी गुलाम’, ‘खरीदी कौड़ियों के मोल’, ‘इकाई दहाई सैकड़ा' के साथ बीसवीं सदी के छठे दशक में जब भारत की पूर्वी सीमा चीनी आक्रमण से आक्रान्त थी, यह परिक्रमण सम्पूर्ण हुआ। उसके बाद स्वाधीनोत्तर युग के अति आधुनिक विक्षुब्ध बंगाल की राजधानी का चित्र हैं—‘चलो कलकत्ता’। बांग्ला में पहली बार जब यह पुस्तक प्रकाशित हुई, यहाँ कांग्रेस सरकार सत्तारूढ़ थी।
पाठक अगर इन पुस्तकों को कालानुक्रमिक भाव से पढ़ें, तो अर्थ के रस-ग्रहण में उन्हें विशेष सुविधा होगी।
—बिमल मित्र
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...