Stree Lekhan : Swapn Aur Sankalp
Author:
Rohini AgrawalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
स्त्री-लेखन स्त्री की आकांक्षाओं का दर्पण है। यह स्त्री की मानवीय इयत्ता को पाने और जीने का स्वप्न है; मुक्ति की राहों के अन्वेषण का संघर्ष है; और उन राहों पर अविराम चलने की संकल्पदृढ़ता भी। स्त्री-लेखन स्त्री मानस के तलघर को बिना किसी छेड़छाड़ के सामने रखता है जहाँ व्यवस्था के विरोध में उफनते हुंकारों के साथ व्यवस्था में परित्राण पाने की बेचारगियाँ भी हैं और भेड़ की तरह जिबह होने की यंत्रणा के साथ भेड़िया बनकर दूसरों को लील जाने की कुटिलताएँ भी। इसे मानवीय दुर्बलताओं की नैसर्गिक अभिव्यक्ति कहिए या अन्तर्विरोधों का स्वीकार—स्त्री-लेखन पारम्परिक ‘माइंड सेट’ से लड़ने की कोशिश में परम्परा और ‘माइंड सेट’ दोनों की ताक़त को एक ठोस सामाजिक-मानसिक सच्चाई और चुनौती के रूप में सतह पर लाता है। लेकिन क्या वास्तव में स्त्री-लेखन इतनी निःसंग विश्लेषणपरकता के साथ अपने स्व को और समाज के शास्त्र को जाँच सका है?</p>
<p>यह पुस्तक स्त्री के नज़रिए से स्त्री-लेखन का पाठ है; उसकी क्षमताओं, सीमाओं और अन्तर्विरोधों का आकलन करते हुए युग की नब्ज़ को टटोलने का जतन भी। यह पुस्तक उन दरारों-दरकनों में झाँकने का प्रयास भी है जहाँ स्त्री को ‘स्त्री’ बनाए रखने की ‘प्रगतिशील साज़िशों’ में स्त्री-मुक्ति के एजेंडे को गुमराह करने और स्त्री-विमर्श को देह-विमर्श में रिड्यूस करने की कोशिशें निहित हैं। दुर्भाग्यवश हिन्दी आलोचना ‘आरोप’ लगाकर स्त्री-लेखन के महत्त्व को ख़ारिज करती आई है या उसे घर-सम्बन्धों के संकुचित दायरे से बाहर निकलकर बृहत्तर मुद्दों से जुड़ने की ‘सीख’ देती रही है। प्रकारान्तर से दोनों ही स्थितियाँ स्त्री-लेखन के बुनियादी सरोकारों से मुँह चुराने की कोशिशें हैं। यह पुस्तक पहली बार इस तथ्य को रेखांकित करती है कि स्त्री-विमर्श का लक्ष्य पाठक में अब तक के ‘अनदेखे’ को देखने और गुनने की संवेदनशीलता विकसित करना है ताकि लैंगिक विभाजन से मुक्त मनुष्य और समाज की रचना के स्वप्न को साकार किया जा सके।
ISBN: 9788126720217
Pages: 328
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी कहानी साहित्य अन्य साहित्यांगों की अपेक्षा अधिक गतिशील है। मासिक और साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं के नियमित प्रकाशन ने इस साहित्य के विकास में बहुत अधिक योग दिया है। फलस्वरूप कहानी साहित्य में सर्वाधिक प्रयोग हुए हैं और कहानी किसी निर्झरिणी की गतिशीलता लेकर विविध दिशाओं में प्रवाहित हुई है। इस वेग में मर्यादा रहनी चाहिए। बरसात में किसी नदी के किनारे कमज़ोर हों तो गाँव और नगर में पानी भर जाता है। इसलिए वेग को विस्तार देने की आवश्यकता है। प्रवाह में गम्भीरता आनी चाहिए। मनोरंजन की लहरें उठानेवाला कहानी साहित्य, तट को तोड़कर बहनेवाला साहित्य नहीं है। उसमें जीवन की गहराई है, जीवन का सत्य है। दिग्वधू के घनश्यामल केशराशि में सजा हुआ इन्द्रधनुष बालकों का कुतूहल ही नहीं है, वह प्रकृति का सत्य भी है। कितनी प्रकाश-किरणों ने जीवन की बूँदों से हृदय में प्रवेश कर इस सौन्दर्य-विधि में अपना आत्म-समर्पण किया है। कहानी के इस सत्य को समझने की आवश्यकता है। डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल के इस ग्रन्थ से मैं आशा करता हूँ कि साहित्य-जगत का उत्तरोत्तर हित होगा और विद्वान लेखक का भावी पथ अधिक प्रशस्त बनेगा।
—डॉ. रामकुमार वर्मा
Shabdon Ka Jeevan
- Author Name:
Bhola Nath Tiwari
- Book Type:

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शब्दों के जन्म, निर्माण, अर्थ, ध्वनि परिवर्तन और आदान-प्रदान आदि से सम्बद्ध भाषावैज्ञानिक तथ्य प्रायः नीरस होते हैं। उन्हें समझना और समझाना, दोनों ही कार्य किसी चुनौती से कम नहीं है। इसलिए लेखक का ध्यान इस ओर पाठक से भी पहले जाता है और इस विषय को वह अधिकाधिक पठनीय बनाकर प्रस्तुत करता है।
शब्दों का जीवन सुप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी के ऐसे ही प्रयास का परिणाम है। उनकी यह कृति हिन्दी में ऐसा पहला ही प्रयास था, जब किसी ने भाषावैज्ञानिक तथ्यों को ललित निबन्धों के शिल्प में पेश किया हो। भाषाविज्ञान पर यह उनकी सर्वथा अनूठी कृति है। उनकी कल्पना ने इन ललित निबन्धों में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जन्म लेते, मरते, उलटते-पलटते और उठते-बैठते दिखाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे शब्दों का मानवीकरण करने में सफल रहे हैं।
प्रत्येक शब्द का अपना इतिहास है और अपना भूगोल। कहना न होगा कि सामान्य पाठकों के लिए यदि यह कृति ललित निबन्धों का संग्रह है तो विद्यार्थियों के लिए भाषाविज्ञान जैसे विषय को अत्यन्त मनोरंजक भाषा-शैली में हृदयंगम करानेवाली बहुचर्चित कृति।
Aadhunik Hindi Kavya Aur Puran Katha
- Author Name:
Malti Singh
- Book Type:

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प्राचीनता पुराणों का गुण है, लेकिन वे नव्या, नूतन और नवीन भी हैं। अमरकोशकार ने इनकी इस विशेषता की ओर संकेत किया है—प्रत्यग्रोऽभिनवो नव्यो नवीनो नूतनो नवः। इस दि्-आयामी विशेषता के कारण पुराणकथाएँ प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक साहित्य की उपजीव्य बनती रही हैं।
आधुनिक हिन्दी-काव्य में भारतेन्दु युग से लेकर अब तक पुराणकथाओं के प्रयोग की विस्तृत, विविध एवं अविछिन्न परम्परा प्राप्त होती है। विशेष बात यह है कि आधुनिक हिन्दी-काव्य में प्रयुक्त पुराणकथाएँ, पुराण निर्दिष्ट आशय से भिन्न, परिवर्तित होती हुई काव्य-चेतना के परिप्रेक्ष्य में नवीन भावों से अनुवेशित होकर नितान्त नवीन सन्दर्भों की सृष्टि करती हैं।
भारतीय जनता की स्वातंत्र्य-चेतना एवं जीवित जोश को अभिव्यक्ति के लिए पौराणिक कथा-प्रसंगों एवं पत्रों का उपयोग भारतेन्दुयुगीन एवं द्विवेदीयुगीन कवियों की विवशता बन गई थी। छायावादी सूक्ष्म भावानुभूती एवं विचारानुभूती की अभिव्यक्ति के लिए पौराणिक कथाएँ सशक्त माध्यम सिद्ध होती हैं। भौतिक यथार्थवाद को स्वीकृति प्रदान करनेवाले प्रगतिवादी कवियों ने भी पुराणिक प्रतीकों का प्रयोग ख़ूब किया है।
Shesh-Ashesh
- Author Name:
Gajanan Madhav Muktibodh
- Book Type:

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मुक्तिबोध स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता और साहित्य-चिन्तन का वह स्तम्भ हैं जो पिछले कई दशकों से हमारे आदर्श भी बने रहे हैं और चुनौती भी। उन्होंने जो रचा, वह हमें पुनः-पुनः पाठ के लिए आमंत्रित करता है और रचने की प्रक्रिया को लेकर जो कहा, वह एक निर्देशिका की तरह हमारे अन्तःस्तल में रच-बस गया है।
‘शेष-अशेष’ मुक्तिबोध की उन विविध रचनाओं का संकलन है जो उनकी रचनावली के प्रकाशन के उपरान्त प्राप्त हुई हैं। इन रचनाओं में कविता, कहानी, निबन्ध, समीक्षा, पत्र और सिने-समीक्षा तक शामिल हैं। मुक्तिबोध उन लेखकों में नहीं थे जो अपनी लिखी चिन्दियों को भी सँभालकर रखते हैं, वे अपनी रचनाओं को लेकर घोर संकोच और निस्पृहता के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाओं की तलाश एक मुश्किल काम है।
इस संकलन में शामिल मुक्तिबोध की विविधवर्णी रचनाएँ जिनमें कविता और समीक्षा से लेकर फ़िल्म रिव्यू तक शामिल हैं, उनकी रचनात्मकता के कुछ और आयामों को सामने लाती हैं, और हमें अपने उस प्रिय मनुष्य के कुछ और भीतर ले जाती हैं।
Nagarjun Ka Gadya Sahitya
- Author Name:
Ashutosh Rai
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नागार्जुन के व्यक्तित्व, विचार और कृतित्व का परिचय देते हुए लेखक ने उनके अभावग्रस्त जीवन, पारिवारिक स्थिति और अनवरत संघर्ष को जिस तरह रेखांकित किया है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि आरम्भ से ही वे संघर्षों के बीच रास्ता तलाशनेवाले प्राणी एवं लेखक रहे हैं। उनकी मस्ती, व्यंग्य एवं यायावरी एक तरह से उनकी जिजीविषा के प्राण रहे हैं।...
आशुतोष जी ने नागार्जुन की औपन्यासिक कला पर भी ध्यान आकर्षित किया है और उनकी आत्मकथात्मक एवं वर्णन शैली पर प्रकाश डाला है तथा हल देने की उनकी ललक के कारण आई शिल्पगत लचरता को भी रेखांकित किया है।
संक्षेप में ही सही बाबा की कहानियों, निबन्धों, संस्मरणों, यात्रावृत्त, डायरी, नाटक और आलोचना जैसी गद्य-विधाओं पर गहराई से विचार करते हुए आलोचनात्मक टिप्पणियाँ की हैं, जो सार्थक हैं तथा लेखक की तटस्थ पैनी समीक्षा-दृष्टि को आलोकित करती हैं। इस प्रकार नागार्जुन के गद्य साहित्य की समस्त विधाओं की पड़ताल करने के लिए लेखक का लेखकीय प्रयास मुकम्मल और कामयाब है।
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