Pant, Prasad Aur Maithilisharan
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
यह पुस्तक दिनकर की महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक कृतियों में से एक है। इसमें हिन्दी के तीन प्रसिद्ध कवियों पर स्वतंत्र रूप से विशद विवेचन किया गया है। इसमें संगृहीत तीन अलग-अलग निबन्धों में पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण गुप्त का जो अनदेखा-अनछुआ आकलन है, उससे आधुनिक युग के हिन्दी साहित्य में उनके उस योगदान को रेखांकित किया जा सकता है, जो आज भी अपने चिन्तन और काव्य-वैशिष्ट्य में समीचीन है। <br>पुस्तक में मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं का अध्ययन इस दृष्टि से किया गया है कि उन्नीसवीं सदी में आरम्भ होनेवाले हिन्दू जागरण अथवा भारतीय पुनरुत्थान की अभिव्यक्ति उनमें कैसे और किस गहराई तक हुई है। वहीं दिनकर मानते हैं कि पंत साहित्य में ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘गुंजन’ और ‘ग्रन्थि’ को जो प्रसिद्धि मिली, वह बाद की पुस्तकों को नहीं मिली। इसलिए उन्होंने इन पुस्तकों को छोड़ दिया है और उनके इस निबन्ध का मुख्य ध्येय इस बात का अनुसन्धान है कि गुंजन के बाद से लेकर अब तक पंत जी क्या कार्य करते रहे हैं। दिनकर रेखांकित करते हैं कि पंत जी का गुंजनोत्तर साहित्य भी काफ़ी सुन्दर, सुगम्भीर और विशाल है। इसलिए अपने इस निबन्ध के ज़रिए उन्होंने गुंजनोत्तर पंत-साहित्य की एक छोटी सी पीठिका तैयार की है, जो बेहद प्रभावशाली है। प्रसाद जी पर जो निबन्ध है, उसमें केवल ‘कामायनी’ का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। दिनकर द्वारा ‘कामायनी’ के इस सुगम्भीर अध्ययन में अध्येता के विचारों को ऊँचे धरातल पर विचरण करने का अवसर प्राप्त होता है, जैसा कि उनका प्रयास भी है कि इस काव्य के अध्ययन-क्षितिज को विस्तृत बनाया जाए।<br>निश्चित ही यह पुस्तक पंत, प्रसाद और मैथिलीशरण गुप्त के काव्य-परिदृश्य को लेकर मूल्य-निर्णय का जो सृजनात्मक पक्ष पेश करती है, वह शोधार्थियों और अध्येताओं के लिए उपयोगी तो है ही, विरल भी है।
ISBN: 9788180313189
Pages: 167
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।
इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे, संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अंग्रेज़ी का स्वाद मिलेगा, प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध–अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।
पुस्तक की शैली ललित निबन्धात्मक है। इसमें कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों, लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी–क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए, स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सब को अच्छी लगती है, पर पुर्लिंग ‘दाद’ (चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है।…‘मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई–बन्धु हैं…(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिन्दी–प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे—दुबले को दो असाढ़। ...अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों है। उदाहरण—आपके नसीब में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। (जबकि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।)
यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है।
Kavita : kya kahan kyon
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक विधिवत् लिखी गयी पुस्तक नहीं है : पिछले छह दशकों से कविता के बारे में समय-समय पर जो सोचा-गुना-लिखा, उसका संचयन है।
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स्वयं कवि होने के नाते मैंने कविता की, अल्पसंख्यकता के बावजूद, अपनी जगह खोजने-पाने की जद्दोजहद और उस पर बेजा क़ब्ज़ा न करने देने की सावधानी भरसक अलक्षित नहीं जाने दी है। कविता किसी बिल में नहीं दुबकी है और, सौभाग्य से, वह साहस-संघर्ष-सौन्दर्य-अन्त:करण का अवाँगार्द बनी हुई है। वह साहचर्य का स्थल है : कल्पना और स्वप्न की रंगभूमि भी। यह आरोप लग सकता है कि मैंने कविता से बहुत अधिक की उम्मीद लगा रखी है : मैं उसे स्वीकार करता हूँ क्योंकि मुझे कभी कविता के सिलसिले में कम-से-कम का ख़याल नहीं आया। एक कारण यह भी कि संसार की कविता कम-से-कम की नहीं अधिक-से-अधिक की भावना जगाती रही है। अगर पाठकों में कविता को लेकर कुछ उद्वेलन और उत्सुकता यह संचयन जगा पाये तो उसकी मेरी लम्बी और निस्संकोच पक्षधरता अकारथ नहीं जायेगी।
Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Jaishankar Prasad
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

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Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
आधुनिक हिन्दी साहित्य के शुरुआती निर्माताओं में से एक जयशंकर प्रसाद भारतीय संस्कृति के मूल्यवान तत्वों को साहित्य में पुनर्स्थापित करने वाले लेखक-चिन्तक हैं। उन्होंने दिखाया कि साहित्य इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार है कि वह दर्शन की गहराइयों को अपने भीतर जगह दे। उन्होंने इतिहास के नायकों को अपना साहित्य नायक बनाया और परम्परा से निरन्तर संवादरत रहे लेकिन वे अतीतजीवी नहीं थे। आज जब राजनीतिक पूर्वाग्रहों से लैस होकर इतिहास का उत्खनन किया जा रहा है ऐसे में हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब उस धुन्ध को साफ करने में हमारी मदद करेगी जिसकी गिरफ्त में इतिहास और वर्तमान दोनों ही डूबे हुए हैं।
Marx, Trotsaki Aur Ashiyayi Samaj
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

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Description:
पुराने इतिहास का विवेचन वर्तमान काल की राजनीति से कहीं-न-कहीं जुड़ा होता है। इस इतिहास से देश के छात्रों और अध्यापकों को गहरी दिलचस्पी है। ऐसे काफ़ी लोग हैं जो साहित्य का अध्ययन करते हुए उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि को समझना चाहते हैं। जो लोग मार्क्सवादी ढंग से इतिहास का विश्लेषण करना चाहते हैं, उनकी संख्या बराबर बढ़ रही है। किन्तु शिक्षा केन्द्रों में अधिकतर मेलोत्ती, ऐंडरसन और बैरिंगटन मूर जैसे लेखकों की कृतियाँ ही उन्हें सुलभ होती हैं। इनके प्रभाव से वे मार्क्सवाद और त्रोत्स्कीवाद में भेद नहीं कर पाते। आशा है, इस तरह का भेद करने के लिए कुछ आवश्यक सामग्री उन्हें इस पुस्तक में मिलेगी।
यह पुस्तक पुराने इतिहास के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाने के अलावा आज की अन्तरराष्ट्रीय परिस्थिति के विश्लेषण में भी सहायक हो सकती है।
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