Kavi Aur Kavita
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Unavailable
‘कवि और कविता’ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के छब्बीस विचारोत्तेजक निबन्धों का पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय संकलन है।</p>
<p>इस संग्रह में ‘मैथिल कोकिल विद्यापति’, ‘विद्यापति और ब्रजबुलि’, ‘कबीर साहब से भेंट’, ‘गुप्त जी : कवि के रूप में’, ‘महादेवी जी की वेदना’, ‘कविवर मधुर’, ‘रवीन्द्र-जयन्ती के दिन’, ‘कला के अर्धनारीश्वर’, ‘महर्षि अरविन्द की साहित्य-साधना’, ‘रजत और आलोक की कविता’, ‘मराठी के कवि केशवसुत और समकालीन हिन्दी कविता’, ‘शेक्सपियर’, ‘इलियट का हिन्दी अनुवाद’ जैसे शाश्वत विषयों के अलावा ‘कविता में परिवेश और मूल्य’, ‘कविता’, ‘राजनीति और विज्ञान’, ‘युद्ध और कविता’, ‘कविता का भविष्य’, ‘महाकाव्य की वेला’, ‘हिन्दी-साहित्य में निगम-धारा’, ‘निर्गुण पंथ की सामाजिक पृष्ठभूमि’, ‘सगुणोपासना’, ‘हिन्दी कविता में एकता का प्रवाह’, ‘सर्वभाषा कवि-सम्मेलन’, ‘नई कविता के उत्थान की रेखाएँ’, ‘चार काव्य-संग्रह’, ‘डोगरी की कविताएँ’ जैसे ज्वलन्त प्रश्नों पर राष्ट्रकवि दिनकर का मौलिक चिन्तन शामिल है, जो आज भी उतना ही सार्थक और उपादेय है।</p>
<p>सरल-सुबोध भाषा-शैली तथा नए कलेवर में सजाई, सँवारी गई कविवर-विचारक दिनकर की यह एक अनुपम कृति है।
ISBN: 9788180313240
Pages: 220
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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शमशेर एक बड़े कवि के साथ-साथ एक आलोचक भी हैं। एक कवि-आलोचक। इस बात का साक्ष्य उनकी पहली आलोचनात्मक कृति ' दोआब' है। उन्होंने भारतीय साहित्य की परम्परा के महान रचनाकारों और साथ ही अपने समकालीन रचनाकारों और उनकी रचनाओं पर दिलचस्पी के साथ आलोचनात्मक चिन्तन किया है। शमशेर ने ऐसे रचनाकारों पर उस समय आलोचनाएँ लिखी हैं जब हिन्दी आलोचना में उन पर बात करना मुनासिब नहीं समझा जाता था; क्योंकि हिन्दी आलोचना बहुधा पूर्वाग्रहों और दायित्वहीनता का शिकार होती रही है।
शमशेर की आलोचना-दृष्टि का सबसे सबल पक्ष उसकी प्रगतिशीलता एवं भारतीयता है। आज का परिवेश इतिहासबोध, सदियों से चली आ रही सामाजिक संरचना और मौजूदा व्यवस्था में जीवनानुकूल परिवर्तन की बात करता है। इसके लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। शमशेर को जिस किसी रचना और रचनाकार में यह संघर्ष दिखता है; वह उन्हें अपील करता है।
उनकी मनोभूमि और रचनात्मक चिन्ताओं को जानने-समझने के लिए उनकी कविताओं से अधिक उनकी आलोचनाओं पर भरोसा किया जा सकता है। शमशेर ने अपनी आलोचनाओं में भारतीय संस्कृति पर भी चिन्तन किया है। वे अपनी आलोचना के लिए भारतीय भाषाओं की ऐसी रचनाओं का चुनाव करते हैं जो भारतीय संस्कृति के 'सामासिक स्वरूप' को सामने लाती हैं।
परम्परा का मूल्यांकन शमशेर की आलोचना-दृष्टि की आधारभूमि है, तो समकालीन रचनाशीलता का मूल्यांकन उनकी तटस्थता और सजगता का प्रमाण। अपने समय के प्रति जागरूक रचनाकार ही साहित्य, समाज और मनुष्य को अपनी 'मनुष्यता खोने के डर' से उबारकर इन सबको 'मनुष्यता की उच्च भूमि' पर खड़ा कर सकता है। शमशेर इस ओर क़दम बढ़ाते नज़र आते हैं।
शमशेर निर्मम आलोचक नहीं हैं। निराला, ग़ालिब, सुभद्रा कुमारी चौहान, नागार्जुन, केदार, त्रिलोचन आदि न जाने कितने रचनाकारों पर लिखी आलोचना उनके सन्तुलित और स्वस्थ दृष्टिकोण की परिचायक है। नागार्जुन को 'मुँहफट कवि', त्रिलोचन को 'साहित्य का हनुमान' आदि कह देना शमशेर की बेबाक आत्मीयता का ही प्रमाण है। शमशेर के बारे में अब तक 'अनकही' अनेक बातों को कहने की कोशिश के साथ यह पुस्तक 'पब्लिक स्फ़ियर' में प्रस्तुत है।
Kabir-Kavya Main Kaalbodh
- Author Name:
Sumita Kukreti
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Description:
कबीर का कालविषयक चिन्तन अद्वितीय है। कबीर ने काल के सन्दर्भ को साधारण मनुष्यों से लेकर सुलतानों अर्थात् सत्ता-प्रतिष्ठानों तक कुशलता से जोड़े और यह दिखाया कि सज्जनों को काल त्रस्त नहीं करता, वे कालभय से मुक्त जीवन व्यतीत करते हैं लेकिन अन्यायी और अत्याचारी हमेशा कालभय से गहरे सन्त्रस्त रहते हैं। इस पुस्तक में सुमीता कुकरेती ने यह रेखांकित किया है कि कबीर जैसे कालजयी कवि ने जनमानस को पहचान कर काल का रचनात्मक विश्लेषण किया। कबीर के लिए मृत्यु मानव-जीवन का ऐसा शाश्वत सत्य है जिसके माध्यम से उन्होंने जीवन की महत्ता का प्रतिपादन किया। कबीर का मुख्य उद्देश्य तदयुगीन मानवीय मूल्यों के क्षरण, सामाजिक विषमताओं और अपसंस्कृतियों के बरक्स सही जीवन जीने में विश्वास, समता और न्याय को रखना था। इसीलिए कबीर करुणा का अचूक इस्तेमाल करते हैं और कहीं-कहीं तीखी फटकार लगाते हैं। वह शोषक और अन्यायी वर्ग को उनके जीवन की क्षणभंगुरता समझाकर डराते भी हैं और मानवीय जीवन को उचित तरीके से जीने की राह भी दिखाते हैं।
‘कबीर-काव्य में कालबोध’ पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें अध्ययन-क्षेत्र को केवल युग-विशेष तक सीमित नहीं रखा गया है बल्कि कबीर के समकालीन कवियों के अतिरिक्त देशी-विदेशी आधुनिक कवियों और आलोचकों की दृष्टियों का गहरा अध्ययन और उनका तार्किक प्रयोग भी किया गया है। यह इसका वह उल्लेखनीय पक्ष है जो इसे परम्परित शुष्क और प्रायः नकलची शोध-प्रबन्धों और कथित आलोचनात्मक ग्रन्थों से अलग करता है। कबीर की कविता की अनउद्घाटित खूबियों को उद्घाटित करने वाला यह मौलिक कार्य कबीर-काव्य के पैराडाइम को विस्तृत करता है और ऐसा निर्भ्रान्त विमर्श भी रचता है जिससे सार्थक बहस सम्भव होती है। यहाँ हम कबीर के माध्यम से पूर्व मध्यकाल यानी भक्तिकालीन कविता को समझने की विशिष्ट आलोचनात्मक सरणी से भी परिचित होते हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि ‘कबीर-काव्य में कालबोध’ एक महान रचनाकार को समझने की नई साहित्यिक पहल है।
पाण्डित्यपूर्ण दार्शनिक विषय को पठनीय बनाते हुए सुमीता कुकरेती ने कबीर का विचार-सम्पन्न समाजशास्त्रीय विवेचन किया है। उन्होंने कबीर काव्य के वास्तविक स्वभाव को जिस गहरी विश्लेषण-दृष्टि के साथ उकेरा है उसमें विचारोत्तेजक बौद्धिक परामर्श मौजूद है। उनके वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष और मौलिक स्थापनाएँ विशेष अर्थ रखती हैं।
Bhartiya Mukti- Andolan Aur Premchand
- Author Name:
Saroj Singh
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प्रेमचन्द के सम्पूर्ण कृतित्व को भारतीय मुक्ति-आन्दोलन की महागाथा कहा जाए तो शायद यह अत्युक्ति नहीं होगी। 1907 से लेकर 1936 तक के भारतीय जीवन-सन्दर्भों का उनके द्वारा प्रस्तुत सर्वांगीण चित्रण का केन्द्र-बिन्दु भारतीय जनता को मुक्ति की प्रबल आकांक्षा है। वे मानते थे कि साहित्यकार—“देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उससे आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सच्चाई है।”
भारतीय मुक्ति-आन्दोलन के सन्दर्भ में उनके इस कथन का विशेष अर्थ इसलिए है कि साहित्य में राजनीतिज्ञों के विचारों का अनुगम करने की आशा की जाती है। लेकिन प्रेमचन्द इस भ्रम को वैचारिक और रचनात्मक दोनों स्तरों पर तोड़ते हैं। सन् 1930 ई. में बनारसीदास चतुर्वेदी को लिखे पत्र में प्रेमचन्द की अभिलाषा इसका प्रमाण है—“मेरी अभिलाषाएँ बहुत सीमित हैं। इस समय सबसे बड़ी अभिलाषा यही है कि हम अपने स्वतंत्रता-संग्राम में सफल हों। मैं दौलत और सोहरत का इच्छुक नहीं हूँ। खाने को मिल जाता है। मोटर और बँगले की मुझे हविश नहीं है। हाँ, यह ज़रूर चाहता हूँ कि दो-चार उच्चकोटि की रचनाएँ छोड़ जाऊँ लेकिन उनका उद्देश्य स्वतंत्रता-प्राप्ति ही हो।” प्रेमचन्द के भारतीय मुक्ति की इसी अप्रतिम सरोकारों को अभिव्यक्त करना ही मेरा लक्ष्य रहा है।
—इसी पुस्तक से।
Aaj Ki Kavita
- Author Name:
Vinay Vishwas
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Description:
'आज की कविता’ आलोचना के नए दर खोलती है और समकालीन कविता के तज़ुर्बों को मुख़्तलिफ़ ढंग से विश्लेषित करती है। समकालीन कविता के लिए, जिस विनम्र और बाशऊर नज़रिए की ज़रूरत थी, वो यहाँ मौजूद है। पूरी किताब विनम्र लेकिन सचेत नज़रिए का प्रतिफल है। ...इस आलोचना-पुस्तक में कविता का होना, जीवन के होने जैसा है। विनय विश्वास इतने शालीन और एकाग्र ढंग से हिन्दी-उर्दू कविता को ज़िन्दगी के तत्त्वों से जोड़ते चलते हैं कि आलोचना-पुस्तक सिर्फ़ विनय की नहीं, बल्कि समकालीन हिन्दी के तमाम कवियों और उर्दू के शायरों की हो जाती है। ...आलोचना में जो उखाड़-पछाड़ (और गुटबाज़ी) चल रही है, यह आलोचना उससे कोसों दूर है। यहाँ मक़सद, बड़ी दयानतदारी के साथ समकालीन कविता को परखना है। उसकी सामाजिकता को पहचानना है। सच मायने में 'आज की कविता’ महज़ आलोचना का नहीं, बल्कि मौजूदा कविता का पर्यावरण रचती है। यही इस आलोचना की विशेषता है और मौलिकता भी। ...इस आलोचना में लोकतांत्रिक छवियाँ हैं। कमज़र्फ़ आग्रह, फ़रेब और छल का नकार है। ...विनय विश्वास ने कविताओं को अपनी आलोचना-पुस्तक में 'भर’ नहीं दिया, उन्हें माकूल और मुस्तकिल स्थान दिया है। संवेदनशील आलोचक यही करते हैं। ...विनय विश्वास के सरोकार स्पष्ट हैं। वो आज की कविता में जीवन की लय तलाश करते हैं। यहाँ एक सादगी है। यही आलोचकीय शक्ति भी है। वो इसी शक्ति के सहारे, समकालीन कविता के जिस्म तक नहीं बल्कि उसकी आत्मा तक पहुँचते हैं।
—ज्ञान प्रकाश विवेक, ‘वागर्थ’, अक्तूबर, 2009
Ramvilas Sharma
- Author Name:
Namvar Singh
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रामविलास शर्मा और नामवर सिंह के कृतित्व की विकास-यात्रा में एक-दूसरे की अपरिहार्य भूमिका और उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। यदि नामवर सिंह नहीं होते तो सम्भवतः रामविलास शर्मा के कृतित्व की विशिष्टता, उनकी उपलब्धि और मूल्यांकन कुछ और प्रतीत होते। उसी तरह रामविलास शर्मा की अनुपस्थिति में नामवर सिंह का व्यक्तित्व और कृतित्व शायद कुछ और प्रतीत होता।
रामविलास शर्मा और नामवर सिंह जीवन, संस्कृति, साहित्य और राजनीति से जुड़ी यात्रा में ‘हमराही' से हैं। दोनों एक-दूसरे के चिन्तन और समालोचना को गहराई से प्रभावित करते प्रतीत होते हैं। शीर्षस्थ समीक्षकों ने एक-दूसरे को प्रभावित करने के साथ-साथ एक-दूसरे का मूल्यांकन भी किया है।
सच तो यही है कि रामविलास शर्मा के कृतित्व, उपलब्धि, प्रासंगिकता और सीमाओं का बोध साहित्य-जगत को लगभग उतना ही है, जितना नामवर सिह ने अपनी समीक्षा से प्रस्तुत किया है। तथ्य है कि आज भी हम रामविलास शर्मा के कृतित्व को ‘...केवल जलती मशाल’ और ‘इतिहास की शव-साधना’ के दो ध्रुवान्तों के मध्य ही विश्लेषित करने को मजबूर हैं। रामविलास शर्मा के सन्दर्भ में यह नामवर सिह की समीक्षा की अपरिहार्यता और केन्द्रीयता का दुर्निवार तथ्य और प्रमाण हैं।
रामविलास शर्मा को समीक्षित करने के क्रम में यह संस्कृति, भारतीयता, साहित्य, आलोचना, विचारधारा और अन्ततः जीवन को समीक्षित करनेवाली अपरिहार्य एवं अविस्मरणीय समालोचना पुस्तक प्रतीत होती है।
Aadhunik Sahitya
- Author Name:
Nandulare Vajpeyi
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‘आधुनिक साहित्य’ आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के निबन्धों का संग्रह है। इसमें सम्मिलित निबन्धों में सन् 1930 से 1942 तक की कालावधि के हिन्दी साहित्य की मुख्य कृतियों और प्रवृत्तियों का विवेचन किया गया है। कुछ अन्य प्रासंगिक निबन्ध भी इसमें जोड़ दिए गए हैं, जो विषय पर भिन्न दिशा और भूमि से प्रकाश डालते हैं। लेकिन जैसाकि स्वयं वाजपेयी जी अपनी भूमिका में कहते हैं : “पुस्तक में इस सामग्री के रहते हुए भी इसे उस समय का साहित्यिक इतिहास नहीं कहा जा सकता। इसका निर्माण इतिहास से भिन्न प्रणाली और प्रेरणा से किया गया है।”
वाजपेयी जी आगे कहते हैं : “मेरी ये समीक्षाएँ और निबन्ध निर्माण की पगडंडियाँ हैं; इतिहास वह ‘रोलर’ है, जो इन अथवा इन जैसी अन्य पगडंडियों को समतल कर प्रशस्त पथ बनाता है। जब तक विविध दृष्टियों और उपादानों को लेकर अच्छे परिमाण में साहित्यिक समीक्षाएँ नहीं प्रस्तुत की जातीं, तब तक इतिहास-लेखन का कार्य वस्तुतः सम्भव नहीं है। ‘हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी’ के साथ ‘आधुनिक साहित्य’ के ये पूरक निबन्ध यदि नई साहित्यिक रुचि और दृष्टि के निर्माण में कुछ भी योग दे सकें, तो यह इनकी सफलता होगी।”
इस पुस्तक में शामिल निबन्ध अपने विषय-काल के साहित्य की एक विहंगम तस्वीर पाठक के सामने प्रस्तुत करते हैं और साहित्येतिहास की दिशा में उन्मुख होनेवाले विद्वज्जनों को एक आधार मुहैया कराते हैं।
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