Aadhunik Hindi Kavita Mein Bimbvidhan
Author:
Kedarnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
<span style="font-weight: 400;">आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान का यह नया संस्करण एक ऐसे साहित्यिक दौर में प्रकाशित हो रहा है, जब बिम्ब हिन्दी काव्यालोचन का स्वीकृत शब्द बन चुका है। परन्तु जिस समय (लगभग छठे दशक के अन्त में) यह शोधकार्य सम्पन्न हुआ था, उस समय तक हिन्दी में बिम्ब-विचार की कोई सुस्पष्ट परम्परा नहीं बन सकी थी। यह पुस्तक उस दिशा में पहले महत्त्वपूर्ण प्रयास के रूप में सामने आई थी। यहाँ पहली बार भारतीय परम्परा में बिम्ब-विचार के मूल स्रोतों को सुसंगत ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की गई थी। शायद इन्हीं बातों के चलते, इस बीच लिखी गई बिम्ब-सम्बन्धी अनेक पुस्तकों के बावजूद, आधुनिक कविता के प्रेमी पाठकों और शोध-कर्मियों के बीच आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान की माँग बराबर बनी रही। यह संस्करण–जो लगभग अपने मूल रूप में प्रकाशित हो रहा है–उसी माँग के दबाव का परिणाम है। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बिम्ब-चिन्तन के लिए एक नई भाषा गढ़ने के साथ-साथ यहाँ पहली बार यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि आधुनिक कविता का बिम्बात्मक चरित्र किस बिन्दु पर मध्यकालीन अलंकार-विधान से अलग होता है। इस व्याख्या के क्रम में आधुनिक हिन्दी कविता के कल्पनात्मक विकास का एक सुस्पष्ट दृश्यालेख भी यहाँ पहली बार प्रस्तुत हुआ है, पाठक इसे लक्ष्य किए बिना नहीं रहेंगे।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान आज भी जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही प्रासंगिक भी।</span>
ISBN: 9788171191994
Pages: 32
Avg Reading Time: 1 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी राष्ट्रभाषा बन गई, राजभाषा का दर्जा भी पा गई, लेकिन यह एक दुखद सत्य है कि स्वतंत्रता के इतने वर्ष बाद भी उसकी राह के रोड़े और समस्याएँ कमोबेश बनी हुई हैं। समस्याएँ अन्दरूनी भी हैं और बाह्य भी। अन्दरूनी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना तो भाषाविज्ञानियों और विद्वानों का ही है, किन्तु बाह्य समस्याओं का समाधान पूरे राष्ट्र की मानसिक जागरूकता पर निर्भर करता है। भारत जैसे बहुजातीय, बहुभाषी देश में राष्ट्रभाषा की राह में रोड़े आना अस्वाभाविक नहीं है, किन्तु जागरूक राष्ट्र के लिए उन्हें हल कर लेना भी कठिन नहीं है।
प्रस्तुत पुस्तक के विद्वान् लेखक देवेन्द्रनाथ शर्मा ने राष्ट्रभाषा हिन्दी की सभी समस्याओं पर बड़ी गहराई से अध्ययन करके उनका समाधान खोजने का स्तुत्य प्रयास किया है। उन्होंने समस्याओं पर चिन्तन करने के पूर्व भाषा, धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीयता के अन्तर्सम्बन्ध पर गहन विचार करने के पश्चात् हिन्दी के महत्त्व का गहराई से विवेचन किया है, जिससे इस भाषा के राष्ट्रभाषा का स्वरूप और उसकी अनिवार्यता पूरी तरह स्थापित हो जाती है। इसी सन्दर्भ में विद्वान् लेखक ने हिन्दी भाषा की सरलता का विवेचन किया है। किसी भाषा के राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसका सरल होना एक अनिवार्य शर्त है। इस सम्बन्ध में विचार करते समय हिन्दी के और अधिक सरलीकरण पर भी विचार किया गया है।
Hindi Kahani Ka Itihas : Vol. 1 (1900-1950)
- Author Name:
Gopal Ray
- Book Type:

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Description:
यह हिन्दी कहानी का पहला व्यवस्थित इतिहास है और हिन्दी-उर्दू का पहला समेकित इतिहास तो यह है ही। उल्लेखनीय है कि इस अवधि के अनेक कहानीकार एक साथ हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में लिख रहे थे। इनमें प्रेमचन्द प्रमुख हैं। इसके अलावा सुदर्शन, उपेन्द्रनाथ अश्क आदि भी उर्दू और हिन्दी में साथ-साथ लिख रहे थे। इनकी हिन्दी और उर्दू में भी, लिपि को छोड़कर, कोई विशेष अन्तर नहीं है। कथ्य और संरचना में, भाषिक आधार पर तो, कोई अन्तर है ही नहीं। उर्दू की अधिकतर उल्लेखनीय कहानियाँ हिन्दी में रूपान्तरित या देवनागरी में लिप्यन्तरित भी हो चुकी हैं। ...उर्दू कहानियों पर अधिकतर सामग्री उर्दू साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों और आलोचना-पुस्तकों से ली गई है, और यथास्थान उनका सन्दर्भ भी दे दिया गया है। इस किताब में हिन्दी और उर्दू के साथ-साथ भोजपुरी, मैथिली और राजस्थानी के कहानी-साहित्य को भी स्थान दिया गया है। इस पुस्तक में जिस अवधि के कहानी-साहित्य का इतिहास प्रस्तुत किया गया है, उस अवधि में अहिन्दीभाषियों और प्रवासी भारतीयों द्वारा लिखित कहानी-साहित्य का कोई सुनियोजित विवरण उपलब्ध नहीं है। इस कारण उस विशाल, और कदाचित् मूल्यवान, साहित्य को इस ‘इतिहास’ में स्थान देना सम्भव नहीं हो सका है।
इस किताब में उर्दू-हिन्दी और मैथिली-भोजपुरी-राजस्थानी के लगभग 100 कहानी-लेखकों और 3000 कहानियों का कमोबेश विस्तार के साथ विवेचन या उल्लेख किया गया है। कहानी-लेखकों और कहानी-संग्रहों की अक्षरानुक्रम सूची अनुक्रमणिका में दे दी गई है। इसके साथ ही जो कहानियाँ किसी भी कारण चर्चित रही हैं, या उल्लेखनीय हैं, उनकी अक्षरानुसार सूची भी उपलब्ध करा दी गई है। आशा है, इससे पाठकों की जिज्ञासाओं की तुष्टि हो सकेगी।
Kant Ke Darshan Ka Tatparya
- Author Name:
Acharya Krishnachandra Bhattacharya
- Book Type:

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Description:
आचार्य ने पदावली को विशेष पारिभाषिक रूप दिया है। अपनी परिभाषाओं को कृष्णचन्द्र जी खोलते भी चलते हैं। आचार्य का प्रतिपादन भी बड़ा कसा-गठा है, उसके विचार-सूत्र अपनी बुनावट में निबिड़ परस्परभाव के साथ आपस में गझिन गुँथे हुए हैं।
आपको याद न दिलाना होगा कि आचार्य कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य ने स्वातंत्र्य आन्दोलन के समय विचार के स्वातंत्र्य—स्वराज—का उद्घोष किया था। अंग्रेज़ी में किया था, जो विचार की भाषा बन चली थी। और है। पर उनके कथन में सहज ही ऊह्य और व्यंजित था कि ऐसे स्वराज का मार्ग अपनी भाषा के ही द्वार की माँग करता है।
प्रस्तुत निबन्ध में उन्होंने काण्ट के दर्शन का नितान्त स्वतंत्र स्थापन-प्रतिपादन किया है जो अपनी तरह से विलक्षण है। इसके लिए उन्होंने भाषा भी अपनी ही ली है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, बांग्ला में यह उनकी अकेली रचना है। पर इस एक रचना से ही स्पष्ट है कि वे अपने शेष चिन्तन को भी बांग्ला में विदग्ध अभिव्यक्ति दे सकते थे। उनके इस एक प्रौढ़ लेखन में भाषा की सम्भावनाओं का स्पष्ट, समृद्ध इंगित है।
आचार्य संस्कृत के निष्णात पण्डित थे। उनकी पदावली यहाँ स्वभावत: पुराने परिनिष्ठित शब्दों की ओर मुड़ती है पर इस मार्ग पर वे स्वभावत: ही नहीं, 'स्वरसेन’ चलते दिखते हैं। पुरानी पदावली रूढ़ ही नहीं है—जो कि कोई भी पदावली होती है—उसमें महत् लोच है। आचार्य इस पदावली को एक नई दिशा, नई व्याप्ति, नया आयाम देते हैं।
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