Hindi Sahitya Ka Uttarvarti Kaal
Author:
Satyadev MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
इस कृति में आधुनिक हिन्दी साहित्य की अन्यान्य विधाओं (कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना, पत्रकारिता, जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, डायरी आदि) के उद्विकास का संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक लेखा-जोखा है। हिन्दी गद्य-पद्य की इन आधुनिक विधाओं के उत्स और विकास में पौर्वात्य के साथ पाश्चात्य साहित्य-समीक्षा का अनुप्रभाव भी यथास्थान रेखांकित किया गया है।</p>
<p>पुस्तक पाठक में सहज भाव-बोध अंकुरित करती है क्योंकि विषयाभिव्यक्ति प्रांजल है। इसलिए यह कृति हिन्दी के विश्वविद्यालयी स्तर के पाठकों के लिए नितान्त उपादेय एवं मूल्यवान है।</p>
<p>इस कृति में सूचनाएँ, प्रस्तुतियाँ और स्थापनाएँ प्रामाणिक हैं और यह हिन्दी के सुविख्यात साहित्येतिहास-लेखकों, साहित्यकारों और समीक्षकों की मान्यताओं पर आधारित तथा अनुभावित है।
ISBN: 9788180316821
Pages: 307
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Anuvad Sidhant Evam Prayog
- Author Name:
G. Gopinathan
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत ग्रन्थ को तीन भागों में बाँटा गया है—पहले भाग में अनुवाद के स्वरूप एवं प्रक्रिया पर विचार करते हुए अनुवाद की समस्याओं की सैद्धान्तिक भूमिका को स्पष्ट किया गया है। अनुवाद को एक परकाय-प्रवेश की प्रक्रिया मानते हुए अर्थ को आत्मा और शैली को शरीर माननेवाले सिद्धान्तों की नवीन व्याख्या की गई है तथा अनुवाद के प्रमुख सिद्धान्तों का समन्वय किया गया है। लेखक का विचार है कि अनुवाद विषयक अध्ययन में अर्थ को केन्द्र में रखना चाहिए न कि एक बाह्य तत्त्व के रूप में आनन्दवर्द्धन का ध्वनि सिद्धान्त एवं मैलिनोव्स्की का ‘सांस्कृतिक सन्दर्भ’ सिद्धान्त अनुवाद में अर्थ की समस्याओं के अध्ययन के लिए विशेष उपयोगी है। आधुनिक भाषाविज्ञान का सहारा लेते हुए शैली की समस्याओं का प्रमुख रूप से स्वनिमस्तरीय, शब्दस्तरीय, रूपस्तरीय एवं वाक्यस्तरीय समस्याओं के रूप में वर्गीकरण किया गया है। ग्रन्थ के दूसरे भाग में अनुवाद के रूपों का विश्लेषण किया गया है। तीसरे भाग में अनुवाद की कुछ विशिष्ट अर्थपरक एवं शैलीपरक समस्याओं का अनुप्रयोगात्मक अध्ययन करते हुए उनके लिए व्यावहारिक समाधान ढूँढ़ा गया है।
भारत जैसे बहुभाषा-भाषी राष्ट्र में अनुवाद का महत्त्व स्वयंसिद्ध है। यूरोपीय देशों में प्राचीन काल से ही अनुवाद के कुछ सामान्य सिद्धान्तों को क़ायम करने का प्रयास किया गया है। भारत में सम्भवतः अनुवाद को मौलिक लेखन से अभिन्न या उसके समकक्ष मान लेने के कारण अनुवाद के सिद्धान्तों का विशेष विकास नहीं हो पाया है। भारतीय भाषाओं में प्रायः अनुसृजन, भाषानुवाद या अनुकरण ही ज़्यादातर होते आए हैं। लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक युग की माँग है कि अनुवाद प्रामाणिक हो और उसके लिए कुछ सुनिश्चित सिद्धान्त अपनाए जाएँ।
अनुवाद विषयक प्रारम्भिक चिन्तन बाइबिल के अनुवादकों के आधार पर ही विकसित हुआ। पुनर्जागरण के बाद काव्य तथा अन्य साहित्यिक विधाओं के अनुवाद की प्रक्रिया एवं सिद्धान्तों की ओर अनुवादकों का ध्यान गया। तीसरा युग अनुवाद के भाषा-वैज्ञानिक सिद्धान्तों का युग है। बीसवीं शताब्दी में तुलनात्मक एवं व्यतिरेकी अध्ययन का विकास यंत्रानुवाद के प्रयोग तथा आदिवासियों की भाषा से अनुवाद के सिलसिले में भाषा-वैज्ञानिकों का ध्यान अनुवाद की ओर गया। यंत्रानुवाद की विशेष आवश्यकता संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्थाओं में एक ही समय में विभिन्न भाषाओं में किए जानेवाले अनुवाद के सन्दर्भ में अधिक महसूस की गई। यूनेस्को के अधीन कार्यरत अनुवादकों का अन्तरराष्ट्रीय संगठन तथा यूरोप और अमेरिका के कई अनुवाद परिषदों ने भी अनुवाद-चिन्तन को एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
अनुवाद पर भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से सोचने की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि अनुवाद की समस्याओं का भाषा के विभिन्न पक्षों, विशेषकर स्वनिम, शब्द, रूप, वाक्य तथा अर्थ से अभिन्न सम्बन्ध है। अनुवाद की समस्याओं के विश्लेषणात्मक अध्ययन में भाषा-वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक हो जाता है। पश्चिमी देशों के भाषा-वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के कई अध्ययन प्रस्तुत किए हैं जो अनुप्रयुक्त भाषा-विज्ञान के अन्दर आते हैं। परन्तु जार्ज स्टीनर जैसे विद्वानों का कथन है कि अनुवाद अनुप्रयुक्त भाषा-विज्ञान नहीं है, वह तो साहित्य के सिद्धान्त एवं प्रयोग का एक विशिष्ट क्षेत्र है।
Videshon Ke Mahakavya
- Author Name:
Gopikrishna Gopesh
- Book Type:

-
Description:
इस पुस्तक में अंग्रेज़ी लेखिका एच.ए. गुएरकर की ‘द बुक ऑ़फ एपिक’ से चुनकर विभिन्न भाषाओं के महाकाव्यों में से आठ कथाओं का हिन्दी अनुवाद संकलित है।
किसी भी भाषा की रचनात्मक समृद्धि का पता सिर्फ़ इतने से नहीं चलता कि उसमें मौलिक रचनाएँ कितनी हुर्इं। देश-विदेश की अन्यान्य भाषाओं की कृतियों के अनुवाद से भी भाषा-विशेष समृद्ध होती है। अनुवाद से हमारी भाषा की ग्रहणशीलता का प्रमाण भी मिलता है और उसकी अभिव्यक्ति क्षमता की व्यापकता का भी।
इस दृष्टि से हिन्दी के सामर्थ्य को उजागर करने में अनुवादक के रूप में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका गोपीकृष्ण गोपेश ने निभाई, वह अविस्मरणीय है। उन्होंने कई भाषाओं की क्लासिक कृतियों का हिन्दी में अनुवाद करके हिन्दी के प्रबुद्ध पाठकों और साहित्यानुरागियों को यह अवसर उपलब्ध कराया कि जिन भाषाओं में उनकी गति नहीं है, उन भाषाओं की भी कालजयी कृतियों का आस्वादन वे कर सके।
Aalochak Ke Notes
- Author Name:
Ganesh Pandey
- Book Type:

- Description: ‘आलोचक के नोट्स' गणेश पाण्डेय की आलोचना की नई किताब है। उनकी आलोचना अपने समय के साहित्यक परिदृश्य पर एक ज़रूरी हस्तक्षेप है। आलोचना से रचना और रचना से आलोचना का काम लेना लेखक की ख़ूबी है। उनके लिए आलोचना का मतलब पाठकों के भीतर ज़रूरी बेचैनी और सवाल पैदा करना है। इसीलिए अपनी आलोचना में सुन्दर कविता बरक्स मज़बूत कविता का सवाल उठाते हैं। वे अपने समय की रचना और आलोचना की दुनिया की निर्मम चीरफाड़ करना साहित्य के सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए ज़रूरी मानते हैं। रचना और आलोचना, दोनों की प्रवृत्तियों और विचलन पर नज़र रखते हैं। यह बताना ज़रूरी है कि कवि के रूप में भी गणेश पाण्डेय एक पल के लिए भी आलोचक के दायित्व से मुक्त नहीं होते। जैसे उनके दिमाग़ में कोई पेंसिल है, आप से आप नोट करती रहती है, कवि और आलोचक की कारस्तानी। उनकी आलोचना हिन्दी की प्रशंसामूलक आलोचना का विकास ऩहीं है। वे आलोचना में उद्धरणों की कबूतरबाज़ी और क़तरनबाज़ी में विश्वास नहीं करतें हैं, बल्कि उसका जमकर विरोध करते हैं, उसे आलोचना की मुंशीगीरी कहते हैं। आलोचना अपने विस्तार में नहीं, कई बार सूत्रों में ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है। आलोचना में छोटी और लक्ष्य-केन्द्रित टिप्पणियाँ ज़्यादा मूल्यवान होती हैं। रचना और आलोचना के कोने-अन्तरे में छिपे अँधेरे पर आलोचक की उठी हुई एक उँगली, किसी किताब, लेखकों की किसी पीढ़ी, किसी समूह, किसी सूची की आँख मूँदकर की गई महाप्रशंसा को चीर देती है। पाठक अनुभव करेंगे कि ‘आलोचक के नोट्स’ के लेख और नोट्स उन्हें अपनी तर्कशीलता, सर्जनात्मकता और चुम्बक जैसी भाषा से अपना बना लेंगे; ऐसी पठनीयता विरल है।
Mohan Rakesh Aur Unke Natak
- Author Name:
Girish Rastogi
- Book Type:

- Description: मोहन राकेश के नाटकों का यह अध्ययन वस्तुत: हिन्दी नाटक और रंगमंच की पूर्व स्थिति, उसकी उपलब्धियों और सीमाओं को भी सामने लाता है। नाट्य-भाषा और रंगमंच के अनेक पक्षों पर विचार करने के लिए यह सम्भवत: विवश करे। नाट्य-समीक्षा का स्वरूप भी इस पुस्तक में परम्परा से एकदम भिन्न है। नाट्य-समीक्षा के नए मापदंड सामने लाने में ही मोहन राकेश के नाटकों पर यह पुस्तक निश्चय ही मदद करेगी।
Sahitya, Samaj Aur Jivan
- Author Name:
Ravinandan Singh
- Book Type:

-
Description:
‘साहित्य, समाज और जीवन’ रविनन्दन सिंह का दूसरा निबन्ध-संग्रह है। इसमें अधिकतर निबन्ध साहित्यिक हैं। लगभग एक दर्जन निबन्ध समाज के विविध पहलुओं तथा सामाजिक विसंगतियों पर केन्द्रित हैं। कुछ निबन्ध मनुष्य की जीवन शैली तथा जीवन-दर्शन से सम्बन्धित हैं।
रविनन्दन सिंह जब कोई विषय चुनते हैं तो उस विषय की गहन पड़ताल करते हैं एवं उस विषय की परतों को खोलकर रख देते हैं। वे विषय का विश्लेषण तथा मूल्यांकन बिना किसी आग्रह के, निरपेक्ष होकर करते हैं। उनके निबन्धों को पढ़ने से उस विषय की तस्वीर बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। वे विषय को उलझाते नहीं बल्कि उलझे हुए विषय को भी सुलझाकर प्रस्तुत करते हैं। उनके निबन्धों की भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। उनके निबन्ध अत्यन्त सारगर्भित एवं बोधगम्य हैं। भाषा एवं संवेदना से समृद्ध इन निबन्धों से गुज़रना एक रोचक अनुभव की तरह है। स्नातक, स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों एवं शोध-छात्रों के लिए ये निबन्ध अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगे।
Civil Seva Pariksha Ke Liye Nibandh
- Author Name:
Ganga Singh Rajpurohit +1
- Book Type:

- Description: IAS/PCS परीक्षाओं के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक। अन्तिम रूप से चयनित होने में निबन्ध लेखन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। निबन्ध लेखन के सही तरीक़े क्या हैं? निबन्ध लेखन की सही रणनीति क्या होती है? निबन्ध के पेपर में ज़्यादा से ज़्यादा मार्क्स कैसे स्कोर किए जाएँ? टॉपर्स, कैसे लिखते हैं निबन्ध आदि कई सफल रणनीतियों की जानकारी देती है यह पुस्तक।
Dinkar Ardhnarishwar Kavi
- Author Name:
Nandkishore Naval
- Book Type:

-
Description:
दिनकर आधुनिक हिन्दी कविता के उत्तर–छायावादी व नवस्वच्छन्दतावादी दौर के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। कवि–रूप में उनकी दो विशेषताएँ थीं। एक तो यह कि उनकी कविता के अनेक आयाम हैं और दूसरी यह कि उनमें अन्त–अन्त तक विकास होता रहा। ‘प्रण–भंग’ से लेकर ‘हारे को हरिनाम’ तक की काव्य–यात्रा जितनी ही विविधवर्णी है, उतनी ही गतिशील भी। दिनकर रचनावली के अवलोकन के बाद डॉ. नामवर सिंह ने उचित ही यह टिप्पणी की कि कुल मिलाकर दिनकर जी का रचनात्मक व्यक्तित्व बहुत कुछ निराला की तरह है।
दिनकर की कविता के उल्लेखनीय आयाम हैं राष्ट्रीयता, सामाजिकता, प्रेम और शृंगार तथा आत्मपरकता एवं आध्यात्मिकता। इन आयामों का अतिक्रमण करते हुए उन्होंने अच्छी संख्या में ऐसी कविताएँ लिखी हैं, जिन्हें किसी खाने में नहीं रखा जा सकता। वस्तुत: ऐसी कविताएँ ही उन्हें महान कवि बनाती हैं। सबसे ऊपर उनकी विशेषता है उनके व्यक्तित्व की ओजस्विता, जो उनकी प्रत्येक प्रकार की कविताओं में अभिव्यंजित होती है। स्वभावत: उनकी प्रेम–शृंगार और आध्यात्मिक कविताओं में जो लावण्य है, उसे एक आलोचक के शब्द लेकर ‘ओजस्वी लावण्य’ कहा जा सकता है।
‘नई कविता’ के दौर में दिनकर जी को वह सम्मान न मिला, जिसके वे अधिकारी थे। उन्हें वक्तृतामूलक और प्रचारवादी कवि कहा गया, जबकि सच्चाई यह है कि ये दोनों बातें स्वतंत्रता–आन्दोलन के प्रवक्ता कवि के लिए स्वाभाविक थीं, लेकिन ज्ञातव्य यह है कि उन्होंने श्रेष्ठ कविता का दामन कभी नहीं छोड़ा।
दूसरे, समय के साथ उनकी कविता का तर्ज बदलता गया और वे भी ‘महीन’ कविताएँ लिखने लगे, जिनमें एक नई आभा है। निश्चय ही उनकी कविता हिन्दी की कालजयी कविता है, उसे नया विस्तार और तनाव देनेवाली।
Hindi Lalit Nibandh : Swarup Vivechan
- Author Name:
Vedvati Rathi
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक डॉ. वेदवती राठी के दस वर्षों के अध्यवसाय के फलस्वरूप लिखी गई है। अत: अब तक हिन्दी ललित निबन्ध के विषय में जो धारणाएँ व्यक्त की गई हैं, उनका समावेश तो प्रस्तुत पुस्तक में है ही, विविध प्रश्नों पर मौलिक चिन्तन करके अपना अभिमत देकर विदुषी लेखिका ने भरपूर चेष्टा की है कि ललित निबन्ध के विविध पक्षों पर गहन विश्लेषणाधृत विचार एक पुस्तक में मिल सकें। स्वाभाविक है कि यह पुस्तक हिन्दी ललित निबन्ध विषय पर मील का पत्थर सिद्ध होगी।
प्रस्तुत पुस्तक में अब तक उपलब्ध ज्ञान के विविध पक्षों से सम्बद्ध विषयों पर लेखिका के बेबाक विचार संकलित हैं। इसके निष्कर्ष प्रामाणिक एवं पर्याप्त सूझ-बूझ पर आधारित हैं। विचारों की स्पष्टता एवं भाषाभिव्यंजना की परिपक्वता देखते ही बनती है। लेखिका द्वारा इस पुस्तक के तैयार करने में जो गहन अध्यवसाय एवं असाधारण श्रम किया गया है, इसका अनुमान इस कृति को पढ़कर ही लगाया जा सकता है।
कुल मिलाकर हिन्दी ललित निबन्धों के स्वरूप के विविध पक्षों पर स्पष्ट विचार इस पुस्तक को विशिष्ट बनाते हैं।
—डॉ. श्रीराम शर्मा
Pandit Nehru Aur Anya Mahapurush
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की यह पुस्तक पंडित जवाहरलाल नेहरू और तीन अन्य महापुरुषों—स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी—के विषय में हमें विशेष जानकारी देती है।
राष्ट्रकवि दिनकर पंडित जवाहरलाल नेहरू के संस्मरण में लिखते हैं—‘‘कि क्या पंडित जवाहरलाल नेहरू तानाशाह थे?’’ दिनकर जी नेहरू जी के जीवन-दर्शन, गांधी और नेहरू के आपसी रिश्ते और भारतीय एकता के लिए पंडित जी के प्रयासों को हमारे सामने लाते हैं।
इस पुस्तक में दिनकर जी के तीन रेडियो-रूपकों को भी संगृहीत किया गया, जो क्रमशः स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों के जीवन को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इन रूपकों में न केवल उनके प्रेरक जीवन की झलकियाँ हैं, बल्कि उनमें इन महापुरुषों का जीवन-दर्शन भी समाहित है। ये रेडियो-रूपक जितने श्रवणीय हैं, उतने ही पठनीय भी।
नए रूप और आकार में यह पुस्तक न केवल सामान्य पाठक, बल्कि दिनकर-साहित्य के शोधकर्ताओं के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
Ramvilas Sharma Ka Mahattva
- Author Name:
Ravibhushan
- Book Type:

-
Description:
रामविलास शर्मा उन भारतीय लेखकों, विचारकों, बुद्धिजीवियों और मार्क्सवादी चिन्तकों में अग्रणी हैं जिन्होंने अपने समय में लेखन के ज़रिए निरन्तर और सार्थक हस्तक्षेप किया है। अपने समय और समाज की समस्याओं पर विचार किया है और उनके निदान भी सुझाए हैं।
अपने पहले लेख ‘निराला जी की कविता’ में उन्होंने लिखा था, ‘निराला जी की कविता नए युग की आँखों से यौवन को देखती हैं।’ उन्होंने सदैव नए युग की आँखों को महत्त्व दिया। आज जब बहुत सारे युवाओं ने हथियार डाल दिए हैं, और लेखक-आलोचक उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद जैसी बहसों में लिप्त हैं, हमें रामविलास जी की अडिगता, अविचलता और मार्क्सवादी दर्शन में अटूट आस्था तथा जन-संघर्षों में विश्वास को याद करने की ज़रूरत है।
रामविलास शर्मा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और निराला की अगली कड़ी हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि तुलसीदास को जो राम के नाम पर होता था, वही अच्छा लगता था। देश और जनता के हित में जो होता है, वह मुझे अच्छा लगता है। उनके लेखन की मुख्य चिन्ता हिन्दी और भारत रहे।
सम्भवत: बीसवीं सदी में विश्व की किसी और भाषा में कोई ऐसा दूसरा आलोचक नहीं है जिसने अपने जातीय समाज, जातीय भाषा और साहित्य के सम्बन्ध में एक साथ क्रान्तिकारी स्थापनाएँ दी हों। वे साहित्य समीक्षक, सभ्यता समीक्षक और संस्कृति समीक्षक एक साथ रहे हैं। यह पुस्तक आज के भारत के सन्दर्भ में उनका पुनर्पाठ करने का प्रयास है—अपने लम्बे लेखन-काल में उन्होंने जिन-जिन विषयों को व्यापक ढंग से छुआ, उनके सम्बन्ध में उनके विचारों को दुबारा पढ़ने का भी और वर्तमान घटाटोप में कोई रास्ता निकालने का भी।
Pracheen Bharat Ke Kalatmak Vinod
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: “भारतवर्ष में एक समय ऐसा बीता है जब इस देश के निवासियों के प्रत्येक कण में जीवन था, पौरुष था, कौलीन्य गर्व था और सुन्दर के रक्षण-पोषण और सम्मान का सामर्थ्य था। उस समय के काव्य-नाटक, आख्यान, आख्यायिका, चित्र, मूर्ति, प्रासाद आदि को देखने से आज का अभागा भारतीय केवल विस्मय-विमुग्ध होकर देखता रह जाता है। उस युग की प्रत्येक वस्तु में छन्द है, राग है और रस है।’’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की प्रस्तुत कृति उसी छन्द, उसी राग, उसी रस को उद्घाटित करने का एक प्रयास है। इसमें उन्होंने गुप्तकाल के कुछ सौ वर्ष पूर्व से लेकर कुछ सौ वर्ष बाद तक के साहित्य का अवगाहन करते हुए उस काल के भारतवासियों के उन कलात्मक विनोदों का वर्णन किया है जिन्हें जीने की कला कहा जा सकता है। काव्य, नाटक, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला से लेकर शृंगार-प्रसाधन, द्यूत-क्रीड़ा, मल्लविद्या आदि नाना कलाओं का वर्णन इस पुस्तक में हुआ है जिससे उस काल के लोगों की ज़िन्दादिली और सुरुचि-सम्पन्नता का परिचय मिलता है।
Kabristan Mein Panchayat
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

-
Description:
‘कब्रिस्तान में पंचायत’ कवि केदारनाथ सिंह की एक गद्य कृति है—एक कवि के गद्य का एक विलक्षण नमूना—जिसमें उसकी सोच, अनुभव और उसके पूरे परिवेश की कुछ मार्मिक छवियाँ मिलेंगी और बेशक वे चिन्ताएँ भी जो सिर्फ़ एक लेखक की नहीं हैं। पुस्तक के नाम में जो व्यंग्यार्थ है, वह हमारे समय के गहरे उद्वेलन की ओर संकेत करता है और शायद इस बात की ओर भी कि इस अबोलेपन की हद तक बँटे हुए समय में परस्पर बातचीत के सिवा कोई रास्ता नहीं। यह अबोलापन इतना गहरा है और इतनी दूर तक फैला हुआ कि आज एक माँ और ‘उसके द्वारा रची गई उसकी अपनी ही सृष्टि’ के बीच एक लम्बी फाँक आ गई है। इस पुस्तक के ज़्यादातर आलेख इन्हीं फाँकों या दरारों के बोध से पैदा हुए हैं—फिर वह अक्का महादेवी की पीड़ा-भरी चुनौती हो या एक रहस्यमय दर्द से एक मामूली आदमी का मर जाना।
इन आलेखों में एक सुखद विविधता मिलेगी, जिसका फलक एक ओर वाक्यपदीयम् से कोलकाता की सड़क पर पड़ी घायल चिड़िया तक फैला है और दूसरी ओर विस्मृत दलित कवि देवेन्द्र कुमार से दलित कविता के पितामह तेलगू के महाकवि गुर्रम जाशुआ तक। दक्षिण के कुछ कालजयी रचनाकारों पर लिखी गई तलस्पर्शी टिप्पणियाँ इस पुस्तक को एक और विस्तार देती हैं और थोड़ी-सी अखिल भारतीयता भी।
पारदर्शी और कसी हुई भाषा में लिखे गए ये आलेख कुछ समय पूर्व दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में क्रमिक रूप से छपे थे और वृहत्तर पाठक-समुदाय द्वारा पढ़े-सराहे गए थे। कुछ नई सामग्री के साथ उन आलेखों को एक जगह एक साथ पढ़ना एक अलग ढंग का अनुभव होगा और शायद एक आवयिक संग्रथन का सूचक भी।
Ramrajya Ki Katha
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

-
Description:
इस देश की जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यशाही के शोषण और दासता से मुक्ति के लिए बहुत लम्बे समय तक संघर्ष किया है। भारत की जनता के इस संघर्ष का नेतृत्व भारतीय मुख्यतः राष्ट्रीय कांग्रेस के हाथ में था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व प्रकट तौर पर गांधी जी के हाथ में था, इसलिए कांग्रेस की नीति गांधीवाद के सत्य-अहिंसा के सिद्धान्तों के अनुकूल रही है। भारतीय जनता के संघर्ष का उद्देश्य कांग्रेसी राज बना देने के लिए गांधी जी ने उसे 'रामराज्य' का नाम दे दिया था। कांग्रेस के राज्य को रामराज्य का नाम देने का प्रयोजन था—भगवान राम को सत्य, न्याय और अहिंसा द्वारा अपने सभी दफ़्तरों, अदालतों और जेलों में ‘अहिंसा के अवतार’ गांधी जी के चित्र लटकाकर इन चित्रों के ही नीचे निराकुश और निस्संकोच रूप में धाँधली और दमन करना।
सम्भवतः कांग्रेसी सरकार गांधीवाद को सत्य प्रमाणित करने के लिए संसार को यह दिखाना चाहती रही कि रामराज्य की व्यक्तिगत स्वामित्व की और स्वामी वर्ग द्वारा दास वर्ग पर दया कर उसका पालन करने की नीति समाजवाद की अपेक्षा अधिक सत्य है।
Hindi Sahitya : Ek Parichya
- Author Name:
Fanish Singh
- Book Type:

-
Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, ‘प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अन्त तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना साहित्य का इतिहास कहलाता है।’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का मत है कि ‘साहित्य का इतिहास ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के उद्भव और विलय की कहानी नहीं है, वह काल स्रोत में बहे आते हुए जीवन्त समाज की विकास कथा है।’ हिन्दी के इन दोनों मूर्धन्य विचारकों की परिभाषाओं से स्पष्ट है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिम्ब है।
चित्तवृत्तियाँ समय एवं काल के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। अतएव साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता रहता है। इन परिस्थितियों के आलोक में साहित्य की इस विकासशील प्रवृत्ति को प्रस्तुत करना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है। कहना न होगा कि साहित्य का विश्लेषण, अध्ययन केवल साहित्य एवं साहित्यकार तक सीमित रखकर नहीं किया जा सकता। साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रस्तुति के लिए उससे सम्बन्धित राष्ट्रीय परम्पराओं, सामाजिक परिस्थितियों, आर्थिक परिस्थितियों, उस युग की चेतना, साहित्यकार की प्रतिभा तथा प्रवृत्ति का विश्लेषण आवश्यक है। देशकाल परिस्थिति भेद से समाज का स्वरूप परिवर्तित होता रहता है, साहित्य समाज का ही प्रतिबिम्ब होता है। स्पष्टतः समाज के स्वरूप के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य पर पड़ता है। इस प्रकार साहित्य का इतिहास न केवल विकासशील प्रक्रिया का उद्घाटन करता है, बल्कि इस क्रम में नए और पुराने संघर्ष को भी रेखांकित करता चलता
है।इसके अतिरिक्त इसमें साहित्य एवं समाज को प्रभावित करनेवाले विभिन्न आन्दोलनों, परिवर्तनों और प्रयोगों के सम्बन्ध का भी विवेचन होता है। साहित्य के इतिहास में रचना और रचनाकार की सृजनात्मक क्षमता को वर्तमान की कसौटी पर कसा जाता है। विश्वम्भर मानव के शब्दों में, ‘किसी भाषा में उस साहित्य का इतिहास लिखा जाना उस साहित्य की समृद्धि का परिणाम है। साहित्य के इतिहास को वह भित्तिचित्र समझिए जिसमें साहित्यिकों के आकृति-चित्र नहीं होते, हृदय-चित्र और मस्तिष्क-चित्र ही होते हैं।’
—इसी पुस्तक से
Bharatiya Kavyashastra
- Author Name:
Mahendra Madhukar
- Book Type:

-
Description:
भारतीय काव्यशास्त्र की पृष्ठभूमि में संस्कृत काव्य की अनेक विशेषताओं का योगदान रहा है।... भारतीय काव्यशास्त्र के मूल प्रेरक बिन्दुओं में संस्कृत साहित्य की प्रधानता रही है। प्रायः 12 सौ वर्षों से कुछ अधिक समय तक संस्कृत साहित्य की अबाध धारा प्रवाहित होती रही है।... कई विचारक संस्कृत साहित्य की एकरूपता को उसकी सीमा बताते हैं, लेकिन ध्यानपूर्वक देखने से यह तर्क निरस्त हो जाता है।... कहने के लिए संस्कृत के महाकाव्य का विषय प्रचलित परम्परा का अनुगमन करता है, पर उनमें भी भाषा की मौलिकता, सौन्दर्यशास्त्रीय तत्त्वों जैसे बिम्बों, प्रतीकों, मिथकों और कल्पनाओं का अपूर्व विन्यास देखते ही बनता है।
संस्कृत साहित्य की एक अन्य मुख्य विशेषता है उसकी आशावादी दृष्टि, जो आत्मा की अमरता और पूर्वजन्म के सिद्धान्त से प्रेरित है।... इसी बिन्दु पर भारतीय काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र में एक मौलिक अन्तर मिलता है। यहाँ मुख्यतः कॉमेडी प्रधान रचनाओं का सृजन हुआ है तो पाश्चात्य देशों में त्रासदी या ‘ट्रेजेडी’ का—यह मौलिक अन्तर भारतीय काव्य और काव्य के आनन्दवादी लक्ष्य तक हमें पहुँचाने में सहायक सिद्ध होता है।
संस्कृत आलोचना-शास्त्र की एक अन्य विशेषता है कि वह मुख्यतः सिद्धान्तवादी है। उसका ध्यान इस बात पर है कि काव्य कैसा होना चाहिए, उसकी विशेषताएँ क्या हों, पर किसी काव्य की व्यावहारिक आलोचना का वहाँ प्रायः अभाव दीखता है। आचार्यों ने काव्य की आत्मा की खोज पर ध्यान दिया है। कविता क्या है, इसकी पड़ताल की है, पर कोई अमुक कविता कैसी है—इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी गई है।
‘भारतीय काव्यशास्त्र’ में काव्यशास्त्र विषयक चिन्तन, भारतीय काव्यशास्त्र के बीज-भाव का संकेत और परम्परा का प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है जिसमें प्राचीनता, विवेचन-प्रभाव की दृष्टि से संस्कृत काव्यशास्त्र को भारतीय काव्यशास्त्र के प्रतिनिधि के रूप में लिया गया है।
Rahul Sankrityayan : Jinhen Seemayen Nahin Rok Sakin
- Author Name:
Jagdish Prasad Baranwal 'Kund'
- Book Type:

-
Description:
अद्वितीय प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन की लेखनी से कोई भी ऐसी विधा अछूती नहीं रह गई थी, जिसका सम्बन्ध जन-जीवन से हो। एक साथ कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, भाषाशास्त्री, इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, दार्शनिक, पर्यटक, समाज सुधारक, राजनेता, विज्ञान और भूगोलवेत्ता, गणितज्ञ, शिक्षक, कुशल वक्ता तथा जितने भी समाज के स्वीकार्य रूप हो सकते हैं, उनमें सब विद्यमान थे।
अपने विचार स्वातंत्र्य के लिए ज्ञात राहुल जी ने जो भी लिखा, साक्ष्य सहित और निर्भीकतापूर्वक लिखा बिना यह सोचे कि उनके विचारों से किसी की भावना आहत भी हो सकती है।
संघर्षों से भरा उनका जीवन अन्धविश्वास उन्मूलन और अमीरी-ग़रीबी के भेद से रहित समानधर्मा समाज की स्थापना के लिए समर्पित था। इस त्याग के लिए उन्हें विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, जेल- जीवन और दंड-प्रहार की यातनाएँ भी सहनी पड़ी थीं।
वे कई भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे किन्तु उनका हिन्दी के प्रति प्रेम अटूट था।
जन-जन में यात्राओं के प्रति उत्साह भरनेवाले राहुल जी ने ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्राएँ की हैं और उन्हें लिपिबद्ध किया है, जिनके बारे में सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
Vartman Natyashastra Ka Vishleshan
- Author Name:
Shiv Murat Singh
- Book Type:

-
Description:
नाट्यशास्व की रचना देव-भाषा संस्कृत या देव वाणी में हुई है, जिसकी महिमा से पार नहीं पाया जा सकता है।
नाट्योत्पत्ति, नाट्यशास्त्र क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता। इस विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध नृशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शरीर विज्ञान, भाषा विज्ञान आदि से है। फिर नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर रूपक-संरचना समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। यह मानवीय क्रिया है। इसका सम्बन्ध समाज-प्रकृति-परिवेश से है, प्रगति प्रक्रिया से है, समय और स्थान से है। भविष्य से सम्बन्धित विचारों और तदनुरूप आशाओं से रहित मनुष्य की कल्पना करना असम्भव है। मानव जाति हमेशा ही बेहतर भविष्य का स्वप्न देखती रही है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास ही मानवजाति की मूल समस्या रही है। मनुष्य की गतिशीलता और उनके सक्रिय जीवन से भाषा की भाँति नाट्य का गहरा सम्बन्ध है। लेकिन ऐतिहासिक प्रगति या सामाजिक विकास के आधार को मान्यता न देकर धार्मिकता या दैवाधीनता को महत्त्व देकर इस नाट्यशास्त्र को बड़ा या विस्तृत आकार दिया गया है।
Upanyas Ka Kavyashastra
- Author Name:
Bachchan Singh
- Book Type:

-
Description:
आज का उपन्यास चुनौती देता है। आलोचक इस चुनौती को स्वीकार करता हुआ पुराने समीक्षात्मक पैटर्न को तोड़कर नया पैटर्न तलाशता है।
इस पुस्तक में आलोचनात्मक सिद्धान्तों की कसौटी पर उपन्यासों और कहानियों की परख नहीं की गई है, बल्कि उपन्यासों-कहानियों की कसौटी पर सिद्धान्तों को देखा-कसा गया है। समय के अन्तराल के साथ-साथ पाठकों-आलोचकों के विचार और आस्वाद में परिवर्तन आ जाता है। वे साहित्य को देशकाल की नई ‘कंडिशनिंग’ में देखने के लिए बाध्य होते हैं। ‘गोदान’, ‘सुनीता’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’, ‘कितने पाकिस्तान’ और ‘काशी का अस्सी’ आदि औपन्यासिक प्रतिमानों को तोड़ने-गढ़ने वाले उपन्यासों के अलावा इस किताब में कुछ कहानियों पर भी विचार किया गया है।
सिद्धान्तों की कसौटी कहानियों को भी मान्य नहीं है। इस पुस्तक में पाँच कहानियाँ विवेचित हैं—‘उसने कहा था’, ‘एक रात’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘कफ़न’ और ‘एक राजा निरबंसिया थे’।
मूलतः पुस्तक में सिद्धान्त बरक्स रचना का विवेचन है। विभिन्न उपन्यासों और कहानियों को यहाँ पर एक दृष्टिकोण से विवेचित किया गया है। प्रबुद्ध पाठक इससे टकरा भी सकते हैं और इसे आगे भी बढ़ा सकते हैं।
Pracheen Kavi
- Author Name:
Vishvambhar 'Manav'
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी के विशाल वाङ्मय के अन्तर्गत ब्रज, अवधी और खड़ी बोली तीनों का काव्य आता है; पर खड़ी बोली के प्रति अत्यधिक मोह होने के कारण हमने अपने को एक गौरवशाली परम्परा से विच्छिन्न कर लिया है और इस प्रकार अपने उत्तराधिकार से स्वयं वंचित हो गए हैं। अतीत के काव्य का अपना एक महत्त्व है, एक स्थान है, एक सौन्दर्य है।
आलोचक के लिए साहित्य के सम्पूर्ण विकास की जानकारी अपेक्षित है, अत: आधुनिक काव्य को समझने के लिए भी प्राचीन काव्य का अध्ययन अनिवार्य रहेगा—अपनी परम्परा के परिचय के लिए भी और उसे उचित परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने के लिए भी। यदि हम साहित्य के किसी भी काल से अपरिचित हैं, तो हम उसके किसी अन्य काल के प्रति भी न्याय नहीं कर सकेंगे। हमें अपने साहित्य की सभी युगों की ऊँचाइयों से परिचित होना चाहिए। मेरा विश्वास है कि जो व्यक्ति ‘रामचरितमानस’, ‘पद्मावत’ और ‘सूरसागर’ की गरिमा को नहीं पहचानता, वह ‘साकेत’, ‘कामायनी’ और ‘प्रिय-प्रवास’ के सम्बन्ध में भी अतिरंजित ढंग की बातें करेगा।
रीतिकालीन-काव्य चिन्तन-प्रधान भी है। चिन्तन जीवन की सीमाओं के भीतर से उसकी ज्वलन्त समस्याओं को लेकर हुआ है। जीवन में केवल भावना से काम नहीं चलता, उसके पथ की बाधाओं को पार करने के लिए बुद्धि के सहयोग की भी अपेक्षा है। जीवन की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के लिए जन-धारणाओं को अनुभवी लोगों के व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता पड़ती ही है।
इस समीक्षा ग्रन्थ में चन्द बरदाई से लेकर दीनदयाल गिरि तक सत्रह प्रमुख प्राचीन कवियों के जीवन और काव्य का विवेचन इस रूप में किया गया है, जिससे बीसवीं शताब्दी के पूर्व के सम्पूर्ण ब्रज और अवधी काव्य का सौन्दर्य आज के प्रबुद्ध पाठक के सामने प्रत्यक्ष होकर, कबीर और जायसी, सूर और तुलसी, देव और बिहारी आदि में हमारी अनुरक्ति नए सिरे से जगा सके।
Meera Ka Jeevan
- Author Name:
Arvind Singh Tejawat
- Book Type:

-
Description:
मीराँ के जीवन में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए यह पुस्तक न केवल मीराँ की एक प्रामाणिक जीवनी है वरन् यह जीवनी इतिहास-दृष्टि से परिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण शोध निष्कर्षों का समन्वित परिणाम है।
यह पुस्तक बताती है कि मीराँ के लिए कृष्ण भक्ति एक साधन थी न कि साध्य। कृष्ण भक्ति का सहारा लेकर मीराँ ने मध्यकालीन सामन्ती समाज में व्याप्त सती-प्रथा जैसी तमाम सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया एवं स्त्री-स्वतंत्रता के पक्ष में विद्रोह का स्वर बुलन्द किया।
यह पुस्तक ब्राह्मण कथाकारों एवं परवर्ती आलोचकों द्वारा निर्मित मीराँ की उस पारम्परिक छवि को तोड़ती है जो उसे केवल प्रेम-दीवानी कवयित्री की परिधि में सीमित कर देना चाहते थे। निश्चय ही, मीराँ को समग्र रूप से समझने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...