Hindi Bhasha Aur Mahavir Prasad Dwivedi
Author:
Madhu GautamPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
युग-निर्माता आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अपने युग के लेखकों की भाषा में जो सुधार किए एवं उनकी रचनाओं का भाषा-विश्लेषण किया है, उनके योगदान का सम्यक् इस पुस्तक में मूल्यांकन किया गया है। लेखिका ने आलोच्य पुस्तक में महावीरप्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन भाषा-वैज्ञानिक पद्धति पर किया है, जिसके साथ उनका साहित्यिक अवदान भी स्पष्ट होता चला है। ‘सरस्वती’ पत्रिका में द्विवेदी जी के सम्पादन-कर्म का सम्यक् मूल्यांकन भी इस पुस्तक की अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता है।</p>
<p>द्विवेदी जी द्वारा प्रयुक्त शब्दकोश को भी प्रस्तुत किया गया है। जिन पाठकों को द्विवेदी जी के समस्त कार्यों का अवगाहन कर ‘सरस्वती’ के महत्त्व को जानने की जिज्ञासा हो, साथ ही नवजागरण से युक्त हिन्दी साहित्य के व्याकरणिक परिवर्तन को देखने की इच्छा हो उनके लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय एवं मनन योग्य है। महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के मूल्यांकन में यह पुस्तक नए आयाम खोलती है, जिसका आधार भाषाशास्त्र है।
ISBN: 9788194364801
Pages: 350
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Kargil Girl
- Author Name:
Flt Lt Gunjan Saxena
- Book Type:

- Description: सन् 1994 में बीस साल की गुंजन सक्सेना पायलट कोर्स के लिए चौथे शॉर्ट सर्विस कमिशन (महिलाओं के लिए) की चयन प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मैसूर जानेवाली ट्रेन पर सवार होती है। चौहत्तर सप्ताह की कमरतोड़ ट्रेनिंग के बाद वह डिंडीगुल स्थित एयरफोर्स एकेडमी से पायलट ऑफिसर गुंजन सक्सेना के रूप में पास आउट होती है। 3 मई, 1999 को स्थानीय चरवाहों ने कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर दी। मध्य मई तक घुसपैठियों को खदेड़ने के मकसद से हजारों भारतीय सैनिक पहाड़ पर लड़े जानेवाले युद्ध में शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ का आगाज किया, जिसमें उसके सभी पायलट मोर्चे पर थे। महिला पायलटों को जहाँ अब तक युद्ध क्षेत्र में नहीं उतारा गया था, वहीं उन्हें घायलों के बचाव, रसद गिराने और टोह लेने के लिए भेजा गया। गुंजन सक्सेना को अपनी क्षमता प्रमाणित करने का यह स्वर्णिम अवसर था। द्रास और बटालिक क्षेत्रों में बेहद जरूरी आपूर्ति को हवा से गिराने और लड़ाई के बीच से घायलों का बचाव करने से लेकर, पूरी सावधानी से दुश्मनों के ठिकानों की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों तक पहुँचाने और एक बार तो अपनी एक उड़ान के दौरान पाकिस्तानी रॉकेट मिसाइल से बाल-बाल बचने तक, सक्सेना ने निर्भीकतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाया, जिससे उन्होंने यह नाम अर्जित किया—कारगिल गर्ल। महिलाओं की सामर्थ्य, क्षमताओं और अद्भुत जिजीविषा की कहानी है गुंजन सक्सेना की यह प्रेरणाप्रद पुस्तक
'Rag Darbari' Ka Mahatva
- Author Name:
Madhuresh
- Book Type:

-
Description:
श्रीलाल शुक्ल-कृत ‘राग दरबारी’ एक ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। निसंग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिन्दी का शायद यह पहला उपन्यास है। फिर भी ‘राग दरबारी’ व्यंग्य कथा नहीं है। इसका सम्बन्ध एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे हुए गाँवों की ज़िन्दगी से है, जो वर्षों की प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अवांछनीय तत्त्वों के सामने घिसट रही है।
1968 में पहली बार प्रकाशित ‘राग दरबारी’ के विचार और मूल्यांकन की वस्तुपरकता के साथ देखना और परखना आवश्यक है। इस उपन्यास को पूरी तरह समझने के लिए पुस्तक के सभी पक्षों पर लेख बटोरे गए हैं। जिनके माध्यम से ‘राग दरबारी’ समूचे परिवेश में अधिक पूर्णता के साथ समझा जा सकेगा।
Aadhunik Hindi Upanyaas : Vol. 1
- Author Name:
Bhisham Sahni
- Book Type:

-
Description:
प्रेमचन्द ने पहली बार इस सत्य को पहचाना कि उपन्यास सोद्देश्य होने चाहिए अर्थात् उपन्यास या कोई भी साहित्यिक विधा मनोरंजन के लिए नहीं होती वरन् वह मानव-जीवन को शक्ति और सुन्दरता प्रदान करनेवाली सोद्देश्य रचना होती है।
प्रेमचन्द में यथार्थ के जिन दो आयामों (सामाजिक और मनोवैज्ञानिक) का उद्घाटन हुआ, वे प्रेमचन्द के बाद अलग-अलग धाराओं में बँटकर तथा अपनी-अपनी धारा की अन्य अनेक सूक्ष्म बातों में संश्लिष्ट होकर बहुत तीव्र और विशिष्ट रूप में विकसित होते गए। एक ओर मनोविज्ञान की धारा बही, दूसरी ओर समाजवाद की।
प्रेमचन्दोत्तर सामाजिक उपन्यासों में मार्क्सवाद का स्वर प्रधान न भी रहा हो, किन्तु उसका प्रभाव निश्चय ही अन्तर्निहित रहा है। उसके प्रभाव के कारण ही निर्मम भाव से सामाजिक विसंगतियों को उद्घाटित किया गया। आंचलिक उपन्यासों की भी जन-चेतना उन्हें प्रेमचन्द से जोड़ती है, किन्तु अपने स्वरूप और दृष्टि में ये बहुत भिन्न हैं। इन्हें उपन्यास की एक नई विधा के रूप में ही स्वीकारना चाहिए।
यह आकस्मिक नहीं है कि स्वाधीनता प्राप्ति के बाद उपन्यास तो बहुत सारे लिखे गए किन्तु उपलब्धि के शिखरों को वे ही छू सके जो सामाजिक जीवन के अनुभवों के प्रति समर्पित रहे, जिनकी दृष्टि की आधुनिकता एक मुद्रा या तेवर की तरह टँगी नहीं रही, बल्कि सघन जीवन-यथार्थ के अनुभवों के बीच एक रचनात्मक शक्ति बनकर व्याप्त रही।
'आधुनिक हिन्दी उपन्यास' के सफ़र पर केन्द्रित यह पुस्तक 'गोदान' से लेकर आठवें दशक तक के महत्त्वपूर्ण उपन्यासों तक आती है। उल्लेखनीय है कि चालीस से अधिक जो उपन्यास इस चर्चा के केन्द्र में हैं; उनमें से अधिकांश हिन्दी के 'क्लासिक्स' के रूप में प्रतिष्ठित हुए। यह पुस्तक केवल समीक्षा-संकलन नहीं है; सन्दर्भित उपन्यासों के रचनाकारों के आत्मकथ्य इसे एक रचनात्मक आयाम भी देते हैं जिनसे हमें इन उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया का पता चलता है।
Poorva-Rang
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
“ऐसे युग में जहाँ मान्यताएँ विवादग्रस्त और अनिश्चित हों, ऐन्द्रिय विषय ही निश्चित हैं और उन्हीं का यथातथ्य चित्रण सम्भव भी है। यही वजह है कि आज के अधिकांश किशोर तथा किशोर-मति कवि प्राकृतिक चित्रों की खोज में विकल हैं। झंझटों से बाहर निकलने का यह आसान तरीक़ा है। समाज से कम झंझट प्रकृति में है और प्रकृति में भी इन्द्रियग्राह्य प्रभावों के चित्रण में सबसे कम झंझट है।” नामवर जी ने यह टिप्पणी 1957 में 'कवि' पत्रिका के 'विशिष्ट कवि' शीर्षक स्तम्भ में मुक्तिबोध से अन्य कवियों की तुलना करते हुए की थी। उल्लेखनीय है कि इस काल-खंड में उन्होंने श्री विष्णुचन्द्र शर्मा द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘कवि' के लिए ‘कविमित्र' नाम से काफ़ी समय तक एक स्तम्भ लिखा था जिसमें वे समकालीन कविता और कवियों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ करते थे। इस संकलन में उनमें से ज़्यादातर को ले लिया गया है।
पुस्तक में शामिल अन्य आलेख भी ज़्यादातर पाँचवें दशक में लिखे गए थे जिनमें से कुछ प्रकाशित हैं और कुछ अप्रकाशित। ऐसे अधूरे आलेख भी यहाँ जुटाए गए हैं जो किसी कारण से पूरे नहीं लिखे जा सके और जिन्हें काशीनाथ जी ने अपने पास सहेजकर रखा था। कहना न होगा कि इस पुस्तक में उस दौर के नामवर जी से हमारा परिचय होगा जब वे अपनी स्थापनाओं को आकार दे रहे थे और जिन्हें हमने बाद में आई उनकी पुस्तकों में देखा।
Ram Manohar Lohiya Aacharan Ki Bhasha
- Author Name:
Ram Kamal Rai
- Book Type:

- Description: डॉ. राममनोहर लोहिया जितने बड़े विचार- पुरुष थे, उतने ही बड़े आचारण-पुरुष; जितने बड़े संस्कृति-पुरुष थे, उतने ही बड़े विधि पुरुष थे; उतने ही बड़े सत्याग्रह-पुरुष। डा. लोहिया के लिए धर्म दीर्घकालिक राजनीति था, और राजनीति अल्पकालिक धर्म। लोहिया सिद्धान्त को साधारणीकृत कार्यक्रम मानते थे और कार्यक्रम को ठोस व्यवहार-गत सिद्धान्त। वे कथनी और करनी के बीच किसी भेद को स्वीकार नहीं करते थे। लोहिया विश्व बन्धुत्व में विश्वास करते थे और विश्वयारी को गर्हित समझते थे। आचरण उनके लिए विचार की कसौटी था । लोहिया वैचारिकता के धरातल पर बहुत परिपक्व और स्पष्ट दृष्टि वाले नेता थे। उन्होंने समाजवाद के अपने चिन्तन को भारतीय परिस्थितियों और भारतीय संस्कृति-चेतना से जोड़कर महात्मा गाँधी के विचारों और आचरण से सम्बद्ध करके विकसित किया था। आचरण और विचार की एकता की परम्परा भारतीय समाज में अधिक से अधिक जगह बना सके, यही इस पुस्तक का उद्देश्य है।
Azadi Banam Phansi Athva Kalapani
- Author Name:
Raghunandan Sharma
- Book Type:

- Description: संवेदनशील मन के राष्ट्रबोध की छटपटाहट जब अभिव्यक्त होने को मचलती है तब आती है ‘आजादी बनाम फाँसी अथवा कालापानी’ जैसी कृति। भारतीयों के लिए काला पानी केवल शब्द या भू-खंड की संज्ञा नहीं है। वह भारत के हुतात्माओं के बलिदानों की, ब्रिटिश साम्राज्यवाद की क्रूर यातनाओं की कहानी का जीवंत इतिहास है। निस्संदेह अहिंसक सत्याग्रह ने सामान्य जन के मन में स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रज्वलित रखा लेकिन उन हुतात्माओं के बलिदानों की अनदेखी नहीं की जा सकती, जो हँसते-हँसते भारतमाता को स्वतंत्र कराने का सपना लेकर फँसी के फंदों पर चढ़ गए और मरते-मरते भी ‘वंदे मातरम्’ का जयघोष करते रहे। इस रक्तरंजित इतिहास का बार-बार स्मरण वही कर सकते हैं जिनके हृदयों ने राष्ट्रबोध को आत्मसात कर लिया है। इस कृति के रचनाकार श्री रघुनंदन शर्मा उस आत्मबोध को कहते ही नहीं, स्वयं जीते भी हैं। देश की नई पीढ़ी स्वतंत्रता संघर्ष की अनेक गाथाओं से अपरिचित है। प्रस्तुत पुस्तक उस इतिहास को सीधी सरल भाषा में उन तक पहुँचा देगी। यह इसलिए भी आवश्यक है कि हम उस पराधीन मानसिकता से मुक्त हों, जिसके कारण यह भुला दिया गया है कि भारत राजनीतिक रूप से भले ही पराधीन रहा हो, पर उसने स्वतंत्रता के मूल्य को संरक्षित रखने के लिए बडे़-से-बड़ा बलिदान देने की आत्म सजगता को बनाए रखा। —कैलाशचंद्र पंत (मंत्री संचालक म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति)
Anuvad Mimansa
- Author Name:
Nirmala Jain
- Book Type:

-
Description:
साधारणत: और इधर ज़्यादातर लोग किसी पाठ को एक भाषा से दूसरी भाषा में उल्था करने को ही अनुवाद मान लेते हैं। हिन्दी में यह प्रवृत्ति और भी ज़्यादा देखने में आती है। बहुत कम ऐसे अनुवादक हैं जो अनुवाद को अगर रचना-कर्म नहीं तो कम से कम एक कौशल का भी दर्जा देते हों।
वरिष्ठ हिन्दी आलोचक निर्मला जैन की यह पुस्तक अनुवाद के रचनात्मक, कलात्मक और प्रविधिगत पहलुओं को विश्लेषित करते हुए उसकी महत्ता और गम्भीरता को बताती है। अनुवाद दरअसल क्या है, गद्य और पद्य के अनुवाद में क्या फ़र्क़ है; मानविकी और साहित्यिक विषयों का अनुवाद अन्य विषयों के सूचनापरक अनुवाद से किस तरह अलग होता है, उसमें अनुवादक को क्या सावधानी बरतनी होती है; एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में पाठ के भावान्तरण में क्या दिक़्क़तें आती हैं, लोकभाषा और बोलियों के किसी मानक भाषा में अनुवाद की चुनौतियाँ क्या हैं, और अनुवाद किस तरह सिर्फ़ पाठ के भाषान्तरण का नहीं, बल्कि भाषा की समृद्धि का भी साधन हो जाता है—इन सब बिन्दुओं पर विचार करते हुए यह पुस्तक अनुवाद के इच्छुक अध्येताओं के लिए एक विस्तृत समझ प्रदान करती है।
निर्मला जी की समर्थ भाषा और व्यापक अध्ययन से यह विवेचन और भी बोधक और ग्राह्य हो जाता है। उदाहरणों और उद्धरणों के माध्यम से उन्होंने अपने मन्तव्य को स्पष्ट किया है, जिससे यह पुस्तक अनुवाद का कौशल विकसित करने में सहायक निर्देशिका के साथ-साथ अनुवाद-कर्म को लेकर एक विमर्श के स्तर पर पहुँच जाती है।
Sampoorn Rachnayen : Rahim
- Author Name:
Ramkishor Sharma
- Book Type:

- Description: रहीम मध्यकाल के ऐसे विलक्षण कवि हैं, जिनके अनुभव बहुआयामी हैं। इन्होंने जीवन में वैभव, सम्पन्नता तथा प्रतिष्ठा प्राप्त की और विपन्नता, तिरस्कार तथा बर्बर व्यवहार की पीड़ा भी झेली। इन्होंने धर्मनीति, राजनीति तथा लोकनीति से सम्बन्धित अपने अनुभूत विचारों को छन्दबद्ध करके जन-साधारण को चमत्कृत कर दिया। तुलसीदास, कबीरदास आदि भक्तों की तरह यदि किसी की उक्ति सामान्य शिक्षित व्यक्ति के द्वारा समय-समय पर उद्धृत की जाती है तो वह है रहीम की नीति सम्बन्धी उक्ति का कथन। रहीम की रचनाओं को सही ढंग से समझने के लिये उनका सटीक संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है। इनमें उनकी हिन्दी, संस्कृत तथा ज्योतिष सम्बन्धित सभी रचनाओं को समाहित किया गया है। एक लम्बी भूमिका में उनकी रचना की विशेषताओं को उद्घाटित किया गया है। भारतीय सांस्कृतिक उदारता, आस्था, विश्वास तथा सहिष्णुता आदि रहीम को उसी आलोक में परखने की चेष्टा इस कृति की विशेषता है। पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रन्थ रहीम की रचनाओं के मूल अभिप्राय को समझने में अध्येताओं, छात्रों तथा प्राध्यापकों के लिए उपयोगी होगा।
Nayi Kavita Ka Aatmasangharsh
- Author Name:
Gajanan Madhav Muktibodh
- Book Type:

-
Description:
कोई रचनाकार, रचनाकार होने की सारी शर्तों को पूरा करता हुआ अपने समय और साहित्य के लिए कैसे और क्यों महत्त्वपूर्ण हो जाता है, मुक्तिबोध इन सवालों के अकेले जवाब हैं। एक सर्जक के रूप में वे जितने बड़े कवि हैं, समीक्षक के नाते उतने ही बड़े चिन्तक भी।
‘कामायनी : एक पुनर्विचार’ तथा ‘समीक्षा की समस्याएँ’ नामक कृतियों के क्रम में ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’ मुक्तिबोध की बहुचर्चित आलोचना-कृति है, जिसका यह नया संस्करण पाठकों के सामने परिवर्तित रूप में प्रस्तुत है। छायावादोत्तर हिन्दी कविता के तात्त्विक और रूपगत विवेचन में इस कृति का विशेष महत्त्व रहा है। इसमें मुख्य निबन्ध शामिल हैं, जिनमें नयी कविता के सामने उपस्थित तत्कालीन चुनौतियों, ख़तरों और युगीन वास्तविकताओं के सन्दर्भ में उसकी द्वन्द्वात्मकता का गहन विश्लेषण किया गया है। कविता को मुक्तिबोध सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं और कवि को एक संस्कृतिकर्मी का दर्जा देते हुए यह आग्रह करते हैं कि अनुभव-वृद्धि के साथ-साथ उसे सौन्दर्याभिरुचि के विस्तार और उसके पुनःसंस्कार के प्रति भी जागरूक रहना चाहिए। उनकी मान्यता है कि आज के कवि की संवेदन-शक्ति में विश्लेषण-प्रवृत्ति की भी आवश्यकता है, क्योंकि कविता आज अपने परिवेश के साथ सर्वाधिक द्वन्द्व-स्थिति में है।
नई कविता के आत्मद्वन्द्व या आत्मसंघर्ष को मुक्तिबोध ने त्रिविध संघर्ष कहा है, अर्थात—1. तत्त्व के लिए संघर्ष, 2. अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए संघर्ष और 3. दृष्टि-विकास का संघर्ष। इनका विश्लेषण करते हुए वे लिखते हैं—‘प्रथम का सम्बन्ध मानव-वास्तविकता के अधिकाधिक सक्षम उद्घाटन-अवलोकन से है। दूसरे का सम्बन्ध चित्रण-दृष्टि के विकास से है, वास्तविकताओं की व्याख्याओं से है।’ वस्तुतः समकालीन मानव-जीवन और युग-यथार्थ के मूल मार्मिक पक्षों के रचनात्मक उद्घाटन तथा आत्मग्रस्त काव्य-मूल्यों के बजाय आत्मविस्तारपरक काव्यधारा की पक्षधरता में यह कृति अकाट्य तर्क की तरह मान्य है।
Aalochana Ka Sach
- Author Name:
Ganesh Pandey
- Book Type:

- Description: कवि-आलोचक गणेश पाण्डेय की आलोचना का रंग अलग है। एक ख़ास तरह की निजता गणेश पाण्डेय की आलोचना की पहचान है। उनकी आलोचना नए प्रश्न उठाती है। उनकी आलोचना साहित्यिक मुक्ति की बात करती है। यह पहली बार है। ‘आलोचना का सच’ कविता की पहुँच की समस्या पर तो विचार करती ही है, कवि और आलोचक के ईमान और साहस को भी कविता और आलोचना की कसौटी पर परखती है। इनके लिए आलोचना का अर्थ उसके पाठक-केन्द्रित और रचना-केन्द्रित होने में निहित है। यह आलोचना समकालीन आलोचना से गम्भीर असहमति रखती है। गणेश पाण्डेय की आलोचना एक अर्थ में समकालीन आलोचना का प्रतिपक्ष है। मुहावरे सिर्फ़ कविता में ही नहीं बनते हैं, एक ईमानदार आलोचक अपनी आलोचना का मुहावरा ख़ुद गढ़ता है। गणेश पाण्डेय अपनी आलोचना का मुहावरा ख़ुद बनाते हैं। आलोचना की सर्जनात्मक भाषा का जो प्रीतिकर वितान खड़ा करते हैं, बिलकुल नया है और हमारे समय की निर्जीव आलोचना को नई चाल में ढालने का काम करते हैं। गणेश पाण्डेय की यह पुस्तक समीक्षाओं का जखीरा नहीं है, बल्कि पुस्तक समीक्षाओं के आतंक और आलोचना के नाम पर ठस अपठनीय गद्य से पाठक को मुक्त करने की एक दिलचस्प और यादगार कोशिश है।
Pali-Pyush
- Author Name:
Vijaypal Singh
- Book Type:

- Description: Pali Pyush
1857 Aur Bihar Ki Patrakarita
- Author Name:
Md. Zakir Hussain
- Book Type:

- Description: बिहार शुरू से ही विभिन्न आंदोलनों का केंद्र रहा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार में लगभग आठ सौ लोगों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। हजारों लोगों पर मुकदमा चलाया गया, सैकड़ों गाँव जलाए गए। इसमें शामिल विद्रोहियों की जमीन-जायदाद जब्त कर ली गई और उसे गद्दारों में बाँट दिया गया था। वैसे तो बिहार में 1857 के महायुद्ध पर कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, पर मो. जाकिर साहब की इस पुस्तक की विशेषता है कि उन्होंने 1857 के दौरान उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में इस विद्रोह के बारे में जो कुछ लिखा गया, उसे सिलसिलेवार ढंग से संकलित किया है। किसी भी विद्रोह या आंदोलन को तब की उपलब्ध रपटों और खबरों का अध्ययन कर समझा जा सकता है। इसमें अखबार-ए-बिहार, दिल्ली उर्दू-अखबार, अखबार-अल-जफर, सादिक-अल-अखबार और नदीम के बिहार विशेषांक में प्रकाशित 1857 से संबंधित खबरों और लेखों को शामिल किया गया है। सन् सत्तावन के विद्रोह के दो साल पहले पटना से ‘हरकारा’ प्रकाशित हुआ था और सन् 1856 में ‘अखबार-ए-बिहार’ प्रकाशित होने लगा था। लेखक ने उर्दू की पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर 1857 के गदर से जुड़ी सामग्रियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। ऐसे में यह पुस्तक अधिक प्रामाणिक और उपयोगी बन गई है।
Sher-E-Garhwal : Azadi Ke Aandolan Ke Ek Gumnaam Nayak Ki Kahani
- Author Name:
Kranti Nautiyal
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bhartiya Puralipi
- Author Name:
Rajbali Pandey
- Book Type:

- Description: पुरालिपि-शास्त्र बड़ा ही रोचक विषय है। यह लिपि के विकास का अध्ययन सम्मुख रहता है। श्री डब्ल्यू.जी. बुहलर और महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के बाद पुरालिपि के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण खोज हुए हैं। मुअनजोदड़ों और हड़प्पा की खुदाइयों के बाद इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी और नई स्थापनाएँ हुई हैं। इन स्थानों से प्राप्त सामग्रियों से भारतीय लेखन-कला की प्राचीनता और उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस हालत में भारतीय पुरालिपि पर एक ऐसी पुस्तक की बड़ी उपयोगिता है। इस पुस्तक ने पुरालिपि क्षेत्र के तीस वर्षों का व्यवधान पाटने का काम किया है। प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन काल से सन् 1200 ई. तक भारतीय लेखन-कला का इतिहास प्रस्तुत है। विषय को सुगम बनाने के लिए क्रमबद्ध प्रकरणों में उसका विवेचन प्रस्तुत है। अन्त में आवश्यक सारणियाँ भी दी गई हैं। पुरालिपि-शास्त्र के छात्रों, भावी शोधकर्ताओं और अनुसन्धित्सु पाठकों के लिए यह ग्रन्थ विशेष उपयोगी है।
Hindi Aalochana Aur Bhaktikavya
- Author Name:
Rustam Roy
- Book Type:

-
Description:
‘हिन्दी आलोचना और भक्तिकाव्य’ में रुस्तम राय ने हिन्दी आलोचना के मूल्य-निर्माण की प्रक्रिया, काव्य में लोकमंगल की अवधारणा और उसका संधान, सौन्दर्यानुभूति की पहचान, भक्तिकाव्य की सामाजिक भूमिका, काव्यानुभूति की विशुद्धता और भक्तिकाव्य की प्रगतिशीलता पर विस्तार-पूर्वक विचार किया है। उन्होंने हिन्दी आलोचना के मूल्य-निर्माण की प्रक्रिया के साथ-साथ हिन्दी आलोचकों के भक्तिकाव्य विषयक मूल्यांकन को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करते हुए अपने मौलिक विचार भी प्रकट किए हैं। एक प्रकार से हिन्दी आलोचना और भक्तिकाव्य, दोनों पर इस किताब में पुनर्विचार का प्रयत्न है और भक्तिकाव्य से हिन्दी आलोचना के अंतरंग सम्बन्ध की नई व्याख्या भी। लेखक ने सगुण-निर्गुण और उसके सामाजिक आधारों पर विचार करते हुए न केवल भक्त कवियों के आन्तरिक द्वन्द्व को बल्कि आलोचकों के मतों के अन्तर्विरोध को भी उजागर किया है।
कबीर और तुलसी के प्रसंग में उठनेवाले विवादों पर भी इस पुस्तक में चर्चा की गई है। इन दोनों कवियों की विश्व-दृष्टियों के अन्तर को रेखांकित करते हुए उनके आध्यात्मिक विचारों के बदले सामाजिक विचारों को प्राथमिकता दी गई है। इस पुस्तक में एक तरह से भक्तिकाव्य की आलोचना के माध्यम से हिन्दी आलोचना का इतिहास भी प्रस्तुत किया गया है।
समग्रतः इस पुस्तक में लेखक ने न केवल परिश्रम, सूझबूझ और आलोचकीय विवेक का परिचय दिया है, बल्कि मूल्यों की टकराहट और मूल्यांकनों के द्वन्द्व में उसने अपना स्वतंत्र विवेक नहीं खोया है। इसीलिए लेखक के निष्कर्षों से उसके निर्णय की क्षमता भी प्रकट होती है। निश्चय ही पुस्तक की प्रस्तुति स्तरीय, भाषा विषयानुकूल, प्रवाहपूर्ण और परिमार्जित है।
—डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
Jo Bacha Raha
- Author Name:
Nand Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
वरिष्ठ रचनाकार नन्द चतुर्वेदी विविध विधाओं में लिखते रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक संस्मरण और आलोचना के मिश्रण से बने लेखों का संग्रह है। अनेक अनुभवों से समृद्ध इन लेखों में रचनाकारों का मूल्यांकन है, जीवन-शैली का विश्लेषण है, सिद्धान्तों की यात्रा है और सर्वोपरि उस दृष्टि की तलाश है जिसके बिना दिशाएँ विलुप्त हो जाती हैं।
नन्द चतुर्वेदी ने नईम, रजनीकान्त वर्मा, जीवनानन्द दास, लोहिया, मीराँ, हरीश भादानी, गणपतचन्द भंडारी और मदन डागा आदि पर लिखते हुए उनके सकारात्मक पक्षों को सामने रखा है। आलोचनात्मक दृष्टि सक्रिय है...लेकिन तर्कों और तथ्यों को विस्मृत नहीं किया गया है। व्यक्तिगत रिश्ता होते हुए भी लेखकीय तटस्थता लेखों की उल्लेखनीय विशेषता है। वे कई जगह भ्रान्तियों का निवारण भी करते चलते हैं।
इन लेखों के केन्द्र में केवल साहित्यकार नहीं हैं। पत्रकारिता के साथ कुछ ऐसे व्यक्तियों का ज़िक्र भी है जिनमें आदर्शों की झलक दिखाई देती है। मौसाजी, मास्साब रामचन्द्रजी और नेमिचन्द भावुक पर लिखते समय नन्द चतुर्वेदी ने यह ध्यान रखा है। यह कहना ज़रूरी है कि लेखों की भाषा में पर्याप्त पारदर्शिता है, जिससे अर्थ चमक उठता है, जैसे—'पोप और शंकराचार्य शान्ति और सद्भाव की प्रार्थनाओं के बावजूद वास्तविकताओं की बात नहीं करते और न उन व्यवस्थापकों को अपराधी करार देते हैं जो शोषकों के अगुआ हैं। ईश्वर को आगे करने से इस सारी व्यवस्था के अपराधी चरित्र को वैधता हासिल होती है और शोषकों को हैसियत मिल जाती है।’ इन लेखों को पढ़ते हुए ‘संवाद’ की अनुभूति होती है, यह बहुत सुखद है।
Shuddha Kavita Ki Khoj
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक 19वीं सदी में यूरोप में नई कविता का जो प्रवर्तन हुआ, उस पर विचार-विमर्श की एक व्यापक ज़मीन तैयार करती है। साथ ही, उसके परिप्रेक्ष्य में भारतीय कविता के विकास-क्रम में शुद्धता का पैमाना क्या रहा, और क्या होना चाहिए, इस पर भी अपना गम्भीर चिन्तन प्रस्तुत करती है। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि यह पुस्तक शुद्धतावादी आन्दोलन का एक दुर्लभ शोधपूर्ण इतिहास भी है और दस्तावेज़ भी।
दिनकर जी का मानना है कि नई कविता हमेशा शुद्ध कविता नहीं होती, न सभी श्रेष्ठ काव्य शुद्ध काव्य के उदाहरण होते हैं। फिर भी उन्हें लगता है कि शुद्धता को लक्ष्य मानकर चलने से काव्य का नया आन्दोलन समझ में कुछ ज़्यादा आता है। इसलिए उन्होंने ‘कविता और शुद्ध कविता’, ‘शुद्ध कविता का इतिहास—1’, ‘शुद्ध कविता का इतिहास—2’, ‘कविता में दुरूहता’, ‘शुद्ध काव्य की सीमाएँ’, ‘परिभाषाहीन विद्रोह’, ‘मनीषी और समाज’, ‘कला में व्यक्तित्व और चरित्र’, ‘कला का संन्यास’ और ‘साहित्य में आधुनिक बोध’ पाठों के ज़रिए जहाँ-तहाँ से सामग्रियाँ बटोरकर शुद्धतावादी आन्दोलन का इतिहास खड़ा किया है और कविता की अनेक समस्याओं पर अपने दृष्टिकोण से विचार किया है।
दिनकर जी ने अपनी यह किताब बीसवीं सदी के सातवें दशक में इस उद्देश्य से लिखी थी कि हिन्दी के जो लेखक, कवि और पाठक अंग्रेज़ी अथवा किसी अन्य विदेशी भाषा के द्वारा पाश्चात्य साहित्य के सीधे सम्पर्क में नहीं हैं, वे इसका लाभ उठा सकें, उनसे बातचीत का एक ठोस ज़रिया बनाया जा सके।
शुद्धतावाद के केन्द्र में लिखी गई यह पुस्तक अपने विशद विवेचन के कारण पचास साल बाद भी वही महत्त्व रखती है, जो उस समय रखती थी।
Puch Na Kabira Jag Ka Haal
- Author Name:
Rameshraaj
- Rating:
- Book Type:

- Description: तेवर लिखना अपने आप में एक कला है। तेवर सामाजिक ताने बाने के बीच रोष को उद्रित करता है, कई सारी बातें जो शायद केवल कवितावों के माध्यम से नहीं प्राप्त करना हमेशा संभव नहीं होता।
Kali Mitti Par Pare Ki Rekha
- Author Name:
Kanhaiya Singh
- Book Type:

-
Description:
डॉ. कन्हैया सिंह जी अपने यशस्वी जीवन के 85वें वर्ष पूर्ण कर 86वें वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर प्रकाशित यह ग्रन्थ पूरे देश के विद्वानों से प्राप्त पत्र-पुष्प है। अल्प समय में इतनी बड़ी संख्या में विद्वानों ने अपने आलेख भेजे हैं जो डॉ. कन्हैया सिंह जी की कीर्ति और साहित्यिक सक्रियता का परिणाम है। राजस्थान के माननीय राज्यपाल
श्री कलराज मिश्र, उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोवा की पूर्व राज्यपाल माननीय मृदुला सिन्हा, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष, डॉ. कमल किशोर गोयनका के आलेख ने इस ग्रन्थ की गरिमा को बढ़ाया है। हिन्दी के अनेक यशस्वी साहित्यकारों और आलोचकों के साथ ही युवा लेखकों की भागीदारी ने भी इसे महत्त्वपूर्ण बनाया है।डॉ. कन्हैया सिंह जी का जीवन और उनके द्वारा रचित समस्त साहित्य को केन्द्र में रखते हुए इस पुस्तक को पाँच खंडों में संयोजित किया गया है—‘जीवन पर्व : संघर्ष एवं साधना का उज्ज्वल इतिहास’ पहला खंड है। जिसमें विभिन्न लेखकों द्वारा लिखे गए संस्मरण और
डॉ. कन्हैया सिंह जी के जीवन सम्बन्धी आलेख हैं। पुस्तक का द्वितीय खंड ‘सृजन पर्व : विचार एवं वैभव का ताना-बाना’ है, जिसमें डॉ. सिंह के सृजनात्मक साहित्य को केन्द्र में रखकर लिखे गए आलोचनात्मक लेखों का संकलन किया गया है। इस पुस्तक के तृतीय खंड ‘भाषा पर्व : अक्षर-अक्षर भेद’ में डॉ. कन्हैया सिंह जी के पाठ-सम्पादन एवं भाषाविज्ञान सम्बन्धी कार्यों पर लिखे गए समीक्षात्मक लेखों को संयोजित किया गया है। ‘संस्कृति पर्व : समष्टि का रचनात्मक उछाह’ जो कि पुस्तक का चतुर्थ खंड है, में डॉ. कन्हैया सिंह जी द्वारा किए गए सूफ़ी साहित्य, सन्त साहित्य तथा इतिहास लेखन विषयक कार्यों की समीक्षा है। पुस्तक का पाँचवाँ और अन्तिम खंड ‘चिट्ठी-विट्ठी : हाल-ए-ज़ुबानी और’ है। इसमें हिन्दी जगत के विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यकारों, समाजसेवियों और प्रमुख राजनेताओं का डॉ. कन्हैया सिंह जी के साथ पत्र-व्यवहार एवं उन पर लिखित आलेख सम्मिलित हैं। साथ ही डॉ. कन्हैया सिंह जी का साक्षत्कार भी इसी खंड में संगृहीत है।यह पुस्तक हिन्दी के अध्येताओं के लिए हिन्दी पाठानुसन्धान, सूफ़ी साहित्य, सन्त साहित्य, भाषाविज्ञान तथा डॉ. कन्हैया सिंह जी के सम्पूर्ण रचना-संसार को एक साथ समझने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है।
Hindi Aalochana Ke Adhar-Stambh
- Author Name:
Suresh Chandra Gupt +1
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना के आधार-स्तम्भ’ में समीक्षात्मक लेखों का संकलन विश्वविद्यालयों की उच्चतम कक्षाओं के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर किया गया है। इसकी मूल प्रेरणा यह रही है कि हिन्दी आलोचना के चिन्तनगत उत्कर्ष बिन्दु और विषय प्रतिपादन की वैज्ञानिकता का समवेत रूप हिन्दी आलोचना के जिज्ञासु तथा प्रबुद्ध छात्र-अध्येताओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, जिससे कि वे उसकी अद्यतन उपलब्धि का कुछ अनुमान कर सकें। निश्चय ही समग्र चित्र प्रस्तुत करने में इस प्रकार के आयोजन को और भी विशद बनाने के लिए हिन्दी के अनेक लब्धप्रतिष्ठ आचार्यों और चिन्तकों की विचार-सरणियों की अपेक्षा व गुंजाइश हो सकती थी, पर योजना की साधन-सीमाओं के कारण अपने विचार को प्रस्तुत रूप देकर ही हमें सन्तुष्ट होना पड़ा। विद्वज्जन इस ग्रन्थ को हमारे मूल आशय का एक प्रतीक रूप समझकर ही ग्रहण करने की कृपा करें। यदि भविष्य में अवसर मिला तो इस शृंखला में कड़ियाँ जोड़कर हम इस कार्य को आगे बढ़ाने में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे।
इस ग्रन्थ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा आचार्य नगेन्द्र के आलोचनात्मक कृतित्व के उत्तमांश का कुछ श्रेष्ठ निबन्धों के रूप में संकलन किया गया है। प्रत्येक विद्वान् के कृतित्व को सम्यक् रूप से हृदयंगम करने की दृष्टि से उन पर अधिकारी विद्वानों के भी कुछ लेख परिपार्श्विक अध्ययन के लिए दिए गए हैं। आशा है, यह पद्धति नियत उद्देश्य की सिद्धि में विशेष रूप से सहायक होगी।
इन निबन्धों के रूप में अत्यन्त मननीय सामग्री प्रस्तुत करने का यथासम्भव प्रयत्न किया है। विश्वविद्यालय के छात्रों की चेतना में इनका रस घुल-मिल जाए और परिणामस्वरूप मेधावी छात्र अपनी-अपनी प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि से हिन्दी आलोचना की उत्कर्ष-रेखा को लाँघकर, आगे बढ़ने की स्फूर्ति से उज्जीवित हों, नए समीक्षा-प्रतिमानों की स्थापना का स्वप्न देखें और उसके लिए क्रियाशील हों—इसी में इस प्रयास की चरम सिद्धि होगी।
विद्वानों की रचनाएँ मुख्य सामग्री के रूप में इसमें संकलित की गई हैं और सहायक सामग्री के रूप में विद्वत्तापूर्ण लेखों को समाविष्ट किया गया है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...