Bhakti Andolan Aur Bhakti Kavya
Author:
Shivkumar MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
प्रस्तुत पुस्तक का सम्बन्ध भक्ति-आन्दोलन और भक्ति-काव्य से है, भक्ति-आन्दोलन के मूल में जनता के दुःख-दर्द ही हैं और उन दुःख-दर्दों को बड़ी जीवन्त मानवीयता के साथ उभरने, उनसे एकमेक होकर सामने आने में ही भक्ति-आन्दोलन की शक्ति को देखा जा सकता है। अनुमान कर सकते है कि तीन शताब्दियों से भी अधिक समय तक अपने पूरे वेग के साथ गतिशील होनेवाले इस भक्ति-आन्दोलन में जनता के ये दुःख-दर्द कितनी गहरी संवेदनशीलता के सान्निध्य में उभरे होंगे। भक्तिकाव्य में, उसके रचनाकारों में, अन्तर्विरोध भी हैं, उनकी सीमाएँ भी हैं। पुस्तक में उनकी चर्चा भी की गई है।</p>
<p>हम भक्तिकाव्य जैसा काव्य आज नहीं चाहते, पर जिन मूलवर्ती गुणों के कारण भक्ति कविता कालजयी हुई, वे गुण ज़रूर उससे लेना चाहते हैं, और इन गुणों के नाते ही हम उसे साथ लेकर चलना भी चाहते हैं।</p>
<p>पुस्तक में निबन्धों में पुनरुक्ति भी मिल सकती है। अलग-अलग समय में लिखे गए निबन्ध ही मिल-जुलकर यह किताब बना रहे हैं। इनमें से कबीर, सूर तथा भक्ति-आन्दोलन से जुड़े निबन्ध प्रकाशित भी हो चुके हैं। यहाँ वे कुछ संशोधित परिवर्द्धित रूप में फिर से प्रकाशित हो रहे हैं। मलिक मुहम्मद जायसी, तुलसी, भक्ति-आन्दोलन का पहला निबन्ध अप्रकाशित है। वे यहाँ पहली बार ही प्रकाशित हो रहे हैं। नानकदेव तथा गुरु गोविन्द सिंह पर लिखे निबन्ध भी अप्रकाशित हैं। ये विशेष अवसर के लिए लिखे गए निबन्ध थे, किन्तु किताब के विषय की सीमा में आ सकने के नाते उन्हें भी समेट लिया गया है। भक्ति-आन्दोलन सम्बन्धी निबन्धों में प्रमुखतः के. दामोदरन, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारों को ही रेखांकित किया गया है।
ISBN: 9788180314919
Pages: 303
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Jitendra Jeetu
- Book Type:

- Description: लघुकथा लेखन को आसान सी विधा मानकर बहुत लोग इस विधा के लेखन की ओर मुड़े और जाने–अनजाने अपनी अधकचरी बौद्धिकता और अज्ञान के बूते इस विधा का अहित करते चले गए। इन बहुत से लोगों में वे भी थे जो खालिस पाठक थे और लेखक बनना चाहते थे। जो कुछ बनना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे बन गए। वे बिना पढ़े लेखक बन गए। उन्होंने बस उसी तरह की लघुकथाएं पढ़ी थीं और वे उसी तरह के लघुकथा लेखक बन गए। यह विराट स्तर पर धर्म परिवर्तन से भी अधिक संगीन मामला था जिसने साहित्य को बहुत बड़े पैमाने पर चोट पहुंचाई लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पुस्तक में लघु कथा के सौन्दर्यशास्त्र पर चर्चा की गई है और इस विधा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास ही प्रधान है।
Uttar Aadhunikta Aur Samkalin Katha-Sahitya
- Author Name:
Lakshmi Gautam
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक ‘उत्तर-आधुनिकता व समकालीनता बोध’ को भारतीय सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का मौलिक प्रयास है। मौलिक इस दृष्टि में, क्योंकि यह विमर्श का विखंडनवादी स्वर लेकर उपस्थित होता है जो केन्द्र व हाशिया दोनों की स्थिति को एक साथ लेकर चलता है, जिसमें टकराहट की त्रासदी से उत्पन्न परिस्थितियों की निर्मिति है। यहाँ ‘महाआख्यानों के अन्त’ के साथ, नवीन लघुता बोध व हाशिए का केन्द्रवर्ती स्वर ही प्रमुखता प्राप्त करता है। इस कृति का मूल मन्तव्य यही रहा है कि हिन्दी जगत आयातित उत्तर-आधुनिक चिन्तन से बचते हुए भारतीय परिदृश्य में उत्तर-आधुनिकता को किसी पूर्वग्रह से मुक्त हो ‘स्वतंत्र विमर्श’ के रूप में उपस्थित करता है।
Kadam Ki Phooli Daal
- Author Name:
Vidhyaniwas Mishra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत संग्रह ‘कदम की फूली डाल’ में शतकिञ्जल्कित कुसुम को अक्षय सौन्दर्य तथा सौभाग्य की पूर्णता दर्शाई गई है जिसमें इसकी आराधना तीन सोपानों में संकलित है। पहला है भ्रमण, जिसके अन्तर्गत विन्ध्यभूमि के सौन्दर्य-दर्शन से आकलित अनुभव संगृहीत हैं, दूसरा है चिन्तन, जिसमें साहित्य के कुछ तात्कालिक प्रश्नों की जिज्ञासा है और अपनी मान्यताओं के समर्थन में कुछ विशिष्ट कवियों या काव्यों का पर्यालोचन है और तीसरा है स्वप्न, जिसमें बौद्धिक धरातल से ऊपर उठकर अन्तःकरण अपनी आराध्य भावभूमि में पहुँचकर आश्वस्त हो गया है। अन्तिम खंड सबसे छोटा है, क्योंकि ऐसी आश्वस्तता के क्षण इधर बहुत वायरल रहे हैं।
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