Alochana Anukramanika

Alochana Anukramanika

Authors(s):

747,748

Language:

Hindi

Pages:

264

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

528 mins

Buy For ₹895

* Actual purchase price could be much less, as we run various offers

Book Description

स्वतंत्रता के बाद जिस तरह भारतीय समाज और राजनीति अपना रास्ता टटोल रहे थे; हिन्दी साहित्य की स्थिति बेशक वैसी नहीं थी। उसकी अपनी एक परम्परा थी जो ब्रिटिश भारत में भी विद्यमान और गतिशील रहती आई थी। लेकिन आजादी के बाद के नए भारत में उसके सामने कुछ नए कार्यभार थे; जिसमें सबसे अहम था भारतीय लोकतंत्र को एक सामूहिक बोध के रूप में स्थापित करना और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को आगे बढ़ाना।<br />इसके लिए सिर्फ साहित्य-सृजन की नहीं, एक वैचारिक नेतृत्व की भी जरूरत थी। हिन्दी समाज के लिए इस काम के लिए आलोचना सामने आई। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस त्रैमासिक पत्रिका का पहला ‌अंक अक्तूबर 1951 में आया; और पहले ही अंक से उसने अपनी क्षमता और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप में रेखांकित कर दिया।<br />आलोचना को सिर्फ साहित्यिक समीक्षाओं की पत्रिका नहीं होना था, और वह हुई भी नहीं। उसकी चिन्ता के दायरे में इतिहास, संस्कृति, समाज से लेकर राजनीति और अर्थव्यवस्था तक सभी कुछ था। विश्व के वैचारिक आन्दोलनों और अवधारणाओं को भी उसने बराबर अपनी निगाह में रखा। इसी विराट दृष्ट‌ि के चलते आलोचना हिन्दी मनीषा के लिए एक नेतृत्वकारी मंच के रूप में सामने आई, और धीरे-धीरे मानक बन गई।<br />आलोचना के सम्पादक बदले, लेकिन उसकी दृष्टि का दायरा और फोकस कभी नहीं बदला। आज भी, वह लोकतांत्रिक प्रगतिशील और समतावादी मूल्यों के पक्ष में साहसपूर्वक खड़ी हुई है। अक्टूबर 1951 में प्रकाशित पहले अंक से लेकर अप्रैल-जून 2019 में प्रकाशित ‘विभाजन के सत्तर साल’ विषयक अंक तक की सामग्री इसकी गवाह है, जिसका विवरण आप इस पुस्तक में देखेंगे। <br />इस पुस्तक में हर अंक की सामग्री का क्रमबद्ध विवरण है जो स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य की यात्रा का द्योतक भी है; और सामाजिक-सांस्कृतिक चिन्ताओं का भी।

More Books from Rajkamal Prakashan Samuh