Mera Lahuluan Punjab
Author:
Khushwant SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Available
बैसाख की पहली तिथि पंजाबी पंचांग के अनुसार नववर्ष दिवस के रूप में मनाई जाती है। इसी दिन 13 अप्रैल, 1978 को जरनैल सिंह भिंडरावाले ने धूम-धड़ाके से पंजाब के रंगमंच पर पदार्पण किया। इस घटना से न केवल पंजाब के जन-जीवन में तूफ़ान आया बल्कि पूरे देश के लिए इसके दूरगामी परिणाम हुए। पूरा पंजाब अशान्त और आतंकवाद के हाथों क्षत-विक्षत हो गया और धीरे-धीरे यह समस्या इतनी पेचीदा बन गई कि देश की अखंडता के लिए यह सचमुच का ख़तरा बनती दिखाई दी। सुप्रसिद्ध लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह की प्रस्तुत पुस्तक सुस्पष्ट रूप से इस समस्या का इतिहास दर्शाती है, स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद पंजाबियों के गिले-शिकवों और असन्तोष का विवरण देती है, और सभी प्रमुख घटनाओं पर रोशनी डालती है।</p>
<p>लेखक का व्यक्तिगत जुड़ाव पुस्तक को विशेष प्रामाणिकता प्रदान करता है, जो लगभग इसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रकट है। इसमें लेखक ने एक तरफ़ पंजाब की राजनीति तथा दूसरी ओर केन्द्र सरकार द्वारा जानबूझकर खेले जानेवाले शरारतपूर्ण राजनीतिक खेलों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के सबसे उन्नतिशील राज्य की प्रगति के मार्ग में गत्यवरोध आ गया, यहाँ की कृषि और औद्योगिक अर्थव्यवस्था तहस-नहस होने लगी, इसका प्रशासन और न्यायपालिका पंगु बनकर रह गए। जो लोग इस गत्यवरोध को अधिक गहराई से समझना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय है।
ISBN: 9788126714568
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘निम्नवर्गीय प्रसंग’ : भाग 2 आम जनता से सम्बन्धित नए इतिहास को लेकर चल रही अन्तरराष्ट्रीय बहस को आगे बढ़ाने का प्रयास है। 1982 में भारतीय इतिहास को लेकर की गई यह पहल, आज भारत ही नहीं, वरन् ‘तीसरी दुनिया’ के अन्य इतिहासकारों और संस्कृतिकर्मियों के लिए एक चुनौती और ध्येय दोनों है। हाल ही में सबॉल्टर्न स्टडीज़ शृंखला से जुड़े भारतीय उपनिवेशी इतिहास पर केन्द्रित लेखों का अनुवाद स्पैनिश, फ़्रेंच और जापानी भाषाओं में हुआ है।
प्रस्तुत संकलन के लेख आम जनता से सम्बन्धित आधे-अधूरे स्रोतों को आधार बनाकर, किस प्रकार की मीमांसाओं, संरचनाओं के ज़रिए एक नया इतिहास लिखा जा सकता है, इसकी अनुभूति कराते हैं। रणजीत गुहा का निबन्ध 'चन्द्रा की मौत' 1849 के एक पुलिस-केस के आंशिक इक़रारनामों की बिना पर भारतीय समाज के निम्नस्थ स्तर पर स्त्री-पुरुष प्रेम-सम्बन्धों की विषमताओं का मार्मिक चित्रण है। ज्ञान प्रकाश दक्षिण बिहार के बँधुआ, कमिया-जनों की दुनिया में झाँकते हैं कि ये लोग अपनी अधीनस्थता को दिनचर्या और लोक-विश्वास में कैसे आत्मसात् करते हुए ‘मालिकों' को किस प्रकार चुनौती भी देते हैं। गौतम भद्र 1857 के चार अदना, पर महत्त्वपूर्ण बागियों की जीवनी और कारनामों को उजागर करते हैं। डेविड आर्नल्ड उपनिवेशी प्लेग सम्बन्धी डॉक्टरी और सामाजिक हस्तक्षेप को उत्पीड़ित भारतीयों के निजी आईनों में उतारते हैं, वहीं पार्थ चटर्जी राष्ट्रवादी नज़रिए में भारतीय महिला की भूमिका की पैनी समीक्षा करते हैं।
इस संकलन के लेख अन्य प्रश्न भी उठाते हैं। अधिकृत ऐतिहासिक महानायकों के उद्घोषों, कारनामों और संस्मरण पोथियों के बरक्स किस प्रकार वैकल्पिक इतिहास का सृजन मुमकिन है? लोक, व्यक्तिगत, या फिर पारिवारिक याददाश्त के ज़रिए ‘सर्वविदित' घटनाओं को कैसे नए सिरे से आँका जाए? हिन्दी में नए इतिहास-लेखन का क्या स्वरूप हो? नए इतिहास की भाषा क्या हो? ऐसे अहम सवालों से जूझते हुए ये लेख हिन्दी पाठकों के लिए अद्वितीय सामग्री का संयोजन करते हैं।
Maimood
- Author Name:
Shailesh Matiyani
- Book Type:

- Description: "“ससुरी, शंकर धामी के तंत्र को बबाल कहती है?” शंकरधामी ने, उसके सिर के बालों को फिर खींचकर, सिंदूर मलना शुरू किया, “ठकुरानी, इसकी बातों में मत आओ। यह तुम्हारा बेटा नहीं बोल रहा है। ऐसा बोलनेवाला कल तक क्यों नहीं बोलता था? क्यों री, शंकर धामी से चाल चलती है? बचने का सहारा ढूँढ़ती है? बोल, सिंदूर-चूड़ी लेकर जाएगी? बोल, कंघी-फुन्ना लेके जाएगी? बोल-बोल, खिचड़ी खाके जाएगी? या करूँ चिमटा लाल? दूँ मिर्चों की खड़ी धूनी?” बाहर उपन्याठीराम का ढोल बज रहा था। नगाड़े बज रहे थे। शंकर धामी ने फिर बाल खींचे, तो करन चीख उठा, क्षीण स्वर में, “माँ !...” ठकुरानी का कलेजा मुँह तक आ गया, “मेरे बेटे...!” शंकर धामी शरीर को जोर से कँपकँपाते हुए बोला, “ससुरी, मंत्र मारूँ...? आँख से कानी, पाँव से लूली बनाऊँ? औरत जात है, दया करूँ, तो और सिर चढ़े! बोल, बोल, ओं, हींग-क्लींग-कुरू-कुरू-फट्-फट्-घमसानी...शमशानी...शंकरा...कंकरा... फट्-फट्...!” —इसी अंक से लोक की भाषा में उन्हीं की बात कहते-सुनते प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेश मटियानी की सामाजिक कहानियों का एक और पठनीय संग्रह। "
Lohiya Ke Vichar
- Author Name:
Rammanohar Lohia
- Book Type:

- Description: लोहिया भारतीय राजनीति के विचार-पुरुषों में अपना एक अलग स्थान रखते हैं। गांधी और नेहरू की तरह उनका भी देश तथा विश्व को लेकर एक बड़ा विज़न था। विभिन्न विचारधाराओं के गहन अध्ययन और अपने देश-काल के अन्वीक्षण से उन्होंने अपने विचारों को लगातार धार दी और प्रत्येक विचारधारा से आगे बढ़कर एक सन्तुलित दृष्टि के विकास पर ज़ोर दिया। वे स्वप्नदर्शी थे, और मानते थे कि परिस्थितियों की विपरीतताओं से संघर्ष करते हुए भी, हमें एक बड़े सपने को अपने सामने जीवित रखना चाहिए। विश्व नागरिकता उनका ऐसा ही सपना था। वे चाहते थे कि मानव किसी एक देश का नहीं, बल्कि विश्व का नागरिक हो। एक से दूसरे देश में जाने के लिए कोई क़ानूनी रुकावट न हो। विश्व सभ्यता का सपना यह होना चाहिए। यह सपना लोहिया की विराट मनीषा का द्योतक है। इसमें हर तरह के विभाजन और विरोध का निषेध शामिल है। यह पुस्तक लोहिया के ऐसे ही विचारों का पुंज है। विभिन्न अवसरों पर लिखे गए उनके आलेखों का यह संकलन उनकी मौलिक सोच का प्रमाण है। संस्कृति, दर्शन, इतिहास, भाषा के साथ-साथ स्त्री-पुरुष असमानता और जाति जैसी समस्याओं पर भी उन्होंने नवीन दृष्टि से विचार किया है। वे लकीर के फकीर नहीं थे। किसी भी वाद को उन्होंने आँख मूँदकर न समर्थन दिया और न उसका अनुकरण करने को कहा। गांधीवाद, मार्क्सवाद, सभी को उन्होंने तटस्थ दृष्टि से पढ़ने की सलाह दी क्योंकि हर विचार की अपनी एक काल-संगति होती है, और नए समय में हर विचार के नवीकरण की आवश्यकता होती है।
Kosambi : Kalpana Se Yatharth Tak
- Author Name:
Bhagwan Singh
- Book Type:

-
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भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में दामोदर धर्मानन्द कोसंबी को मार्क्सवादी इतिहास का जनक माना जाता है, लेकिन यह विडम्बना ही है कि मार्क्सवादी इतिहासकारों तक ने उन पर ऐसा ठोस काम अभी तक नहीं किया है, जिससे कोसंबी को समझना आसान हो सके, और जो उनके अध्ययन की दिशाओं में आगे कुछ जोड़ सके। कोसंबी के अन्तर्विरोधों को रेखांकित करने और उनके पीछे निहित कारणों को जानने की कोशिश लगभग नहीं ही हुई है।
प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक भगवान सिंह की यह पुस्तक इस अर्थ में एक महत्त्वपूर्ण आरम्भ है। इसमें उन्होंने न सिर्फ़ कोसंबी की मौलिक उद्भावनाओं और स्थापनाओं पर विस्तार से विचार किया है, बल्कि उनकी प्रतिपादन-पद्धति का भी विश्लेषण किया है। साथ ही व्यक्ति कोसंबी और एक विलक्षण प्रतिभा के रूप में बनी उनकी 'मूरत' को भी समझने की कोशिश की है। कोसंबी के नाम-जाप से ही अपनी उपलब्धियों का आकाश छूनेवाले इतिहासकारों के विपरीत भगवान सिंह ने इस सुचिन्तित अध्ययन में उनके अन्तर्विरोधों को भी रेखांकित किया है। आमुख में वे लिखते हैं, ‘हमारा अपना प्रयत्न कोसंबी को समझने का रहा है, परन्तु जहाँ वे अपने ही सिद्धान्त के विपरीत आचरण करते दिखाई देते हैं या अपनी सैद्धान्तिकी के विपरीत दावे करते हैं...वहाँ उनकी निन्दा के लिए भी बाध्य हुए हैं।’
कहना न होगा कि यह पुस्तक इतिहासवेत्ता कोसंबी को समझने में इतिहास के विद्वानों और अध्येताओं के लिए बहस के नए बिन्दु प्रस्तावित करेगी।
Hind Swaraj : Nav Sabhyata Vimarsh
- Author Name:
Virendra Kumar Baranwal
- Book Type:

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गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ का प्रखर उपनिवेश विरोधी तेवर सौ साल बाद आज और भी प्रासंगिक हो उठा है। नव उपनिवेशवाद की विकट चुनौतियों से जूझने के संकल्प को लगातार दृढ़तर करती ऐसी दूसरी कृति दूर–दूर नज़र नहीं आती। उसकी शती पर हुए विपुल लेखन के बीच उस पर यह किताब थोड़ा अलग लगेगी। इसकी मुख्य वजह गांधी के बीज–विचारों को अपेक्षाकृत व्यापकतर परिप्रेक्ष्य में समझने की इसकी विशद–समावेशी और संश्लिष्ट दृष्टि है।
इसमें गांधी के सोच और कर्म के मूल में सक्रिय विचारकों और इतिहास नायकों—मैज़िनी, टॉलस्टॉय, रस्किन, एमर्सन, थोरो, ब्लॉवत्स्की, ह्यूम, वेडेनबर्न, नौरोजी, रानाडे, आर.सी. दत्त, मैडम कामा, श्याम जी कृष्ण वर्मा, प्राणजीवन दास मेहता और गोखले आदि के अद्भुत जीवन और चिन्तन की संक्षिप्त पर दिलचस्प बानगी तो है ही, साथ ही गांधीमार्गी मार्टिन लूथर किंग जू., नेल्सन मंडेला, क्वामेन्क्रूमा, केनेथ क्वांडा, जूलियस न्येरेरे, डेसमंड टूटू और सेज़ार शावेज़ आदि के विलक्षण अहिंसक संघर्ष की प्रेरक झलक भी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भ्रष्ट सरकारों के साथ निर्लज्ज दुरभिसन्धि को उजागर कर उनके पर्यावरण और मानवद्रोही चरित्र के विरुद्ध गांधी की परम्परा में संघर्षरत और शहीद नाइजीरिया के अदम्य केन सारो वीवा और उनके साथियों के मार्मिक प्रसंग इसमें गहराई से उद्वेलित करते हैं। आधुनिक सभ्यता की जड़ें मशीन और उससे प्रेरित अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण में हैं। उनके प्रबल प्रतिरोध का गांधी का जीवट जगज़ाहिर है। अकारण गांधी उत्तर–आधुनिकता के प्रस्थान–बिन्दु नहीं माने
जाते।पुस्तक सोवियत रूस की कम्युनिस्ट तानाशाही के ख़िलाफ़ हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड के आत्मवान राज नेताओं इमरे नागी, वैक्लाव हैवेल और लेस वालेश के अहिंसक प्रतिरोध की गौरव–झाँकी के साथ गांधी की सोच के वैश्विक और उत्तर–आधुनिक आयाम को बख़ूबी उद्घाटित करती है। ‘हिन्द स्वराज’ का गुजराती मूल इस पुस्तक के ज़रिए पहली बार देवनागरी में आया है। कई अनुशासनों से रस ग्रहण करता ‘हिन्द स्वराज’ पर इस अनूठे विमर्श का प्रांजल–ललित गद्य इसे बेहद पठनीय बनाता है।
Smriti Sakshya
- Author Name:
Ganga Prasad
- Book Type:

- Description: बिहार में 1974 में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, तानाशाही, संविधान एवं न्यायालय विरोधी सरकार के कार्य जैसे मुद्दों को लेकर छात्र आंदोलन शुरू हुआ और इसने प्रचंड रूप धारण कर लिया था। बाद में जयप्रकाश नारायणजी भी आंदोलन के समर्थन में आ गए थे। उस आंदोलन में मैं भी छात्रों का समर्थन कर रहा था, इस कारण मुझे आपातकाल के पूर्व दो बार जेल जाना पड़ा । फिर कुछ ही दिन बाद हम जेल से बाहर आए देशव्यापी आंदोलन से असहज होकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल के दौरान पटना शहर से कुछ दूर खाजपुरा गाँव स्थित मेरा पैतृक निवास 'आर्य भवन' आंदोलन संबंधी गतिविधियों के संचालन का गुप्त केंद्र बन गया था, इस बीच संघ एवं जनसंघ की आंतरिक गुप्त बैठकें 'आर्य भवन' में ही होती थीं। जिसमें संघ के अखिल भारतीय अधिकारी, जनसंघ एवं दूसरे दलों के भूमिगत शीर्षस्थ नेता भी शामिल होते थे। इस दृष्टि से 'आर्य भवन' आंदोलन संचालन का मुख्यालय बन गया था।
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