Aadhunik Itihas Mein Vigyan
Author:
Om Prakash PrasadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
भारत में आधुनिक विज्ञान का नक़्शा बनाने में हिन्दुओं से ज़्यादा मुसलमानों और मुसलमानों से ज़्यादा भूमिका अंग्रेज़ों की रही। आज़ादी के पूर्व से ही भारत जात-पाँत और ऊँच-नीच के दलदल में फँसा हुआ है। आधुनिक भारतीय इतिहास पर भारत में जितनी पुस्तकें लिखी गईं, उनमें से अधिकांश के लेखक हिन्दू रहे। उनके द्वारा अधिकांश पुस्तकें भारत के प्रमुख नेताओं के पक्ष में, अंग्रेज़ों के विरोध में, मुसलमानों के योगदान और वैज्ञानिक गतिविधियों को नज़रअन्दाज़ करते हुए लिखी गईं।</p>
<p>आधुनिक काल के क़रीब सभी भारतीय वैज्ञानिक इंग्लैंड से विज्ञान पढ़-लिख-जान कर आए। भारत के निवासियों को अंग्रेज़ों ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अथवा छूत-अछूत अथवा हिन्दू-मुसलमान में कोई भेदभाव न कर सबको एक नाम भारतीय दिया। भारत का मानचित्र भी अंग्रेज़ों ने तैयार किया। अंग्रेज़ी शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाएँ, बैंक, प्रयोगशाला, रेलवे आदि सब अंग्रेज़ों की देन है। कलकत्ता में अंग्रेज़ों ने अपने कर्मचारियों को भारतीय भाषाओं से परिचित कराने के लिए फ़ोर्ट विलियम कॉलेज नमक विशेष विद्यालय की स्थापना की थी, जहाँ भारतीय भाषाओं में अनेक पाठ्य-पुस्तकों की रचना भी की गई। अठारहवीं सदी में महलों, सड़कों, पुलों आदि से युक्त अनेक नए नगर पैदा हुए। अठारहवीं सदी में भारत में विशेष रूप से बंगाल में यूरोपीय शैली के भवन भी बनने लगे थे। 1882 में टेलीफ़ोन आया। 1914 में प्रथम ऑटोमेटिक टेलीफ़ोन एक्सचेंज लगाया गया। अगस्त 1945 से लम्ब्रेटा स्कूटर बनना शुरू हुआ।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक में आधुनिक वैज्ञानिकों पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। इन सभी वैज्ञानिकों को सर्वाधिक प्रोत्साहन एवं प्रेरणा इंग्लैंड से मिली। प्रथम अध्याय में आधुनिक भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियों की चर्चा की गई है। प्रथम और द्वितीय महायुद्ध के दौरान भारत में विज्ञान की एक विशेष धारा दिखाई देती है। आधुनिक तकनीक और सामाजिक विकास से भारत किन-किन रूपों में प्रभावित हुआ, इसका विशद वर्णन दूसरे अध्याय में किया गया है। इसके अलावा 'द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तकनीक एवं समाज’, 'द्वितीय महायुद्ध के उपरान्त’, 'विज्ञान एवं पेट्रोल’, 'प्लास्टिक और चलचित्र तकनीक’, 'आपदा प्रबन्धन’ और 'भारतीय विज्ञान एवं अंग्रेज़ों का योगदान’ आदि अध्यायों में आधुनिक भारत में विज्ञान के विभिन्न चरणों पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है।
ISBN: 9789388183178
Pages: 26
Avg Reading Time: 1 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी-भाषी समाज के लिए यह स्थिति दुखद है कि देश की ज्वलन्त समस्याओं का परिप्रेक्ष्य स्पष्ट करनेवाली गम्भीर और व्यवस्थित सामग्री का हिन्दी में आज भी घोर अभाव है। प्रख्यात संविधान-विद् और पूर्व संसदीय सचिव सुभाष काश्यप की यह किताब राजनीति को प्रस्थान बिन्दु बनाते हुए भ्रष्टाचार अपराधीकरण, जातिवाद और साम्प्रदायिकता आदि जैसे विषयों पर संविधान और संसद की भूमिकाओं का एक विकास-क्रम में खुलासा करती है। पुस्तक चार भागों में विभाजित है—‘स्वाधीनता की अर्द्धशती’, ‘भारत का संविधान’, ‘भारत की संसद’ और ‘राज्यों में विधानपालिका’। इसमें जहाँ एक ओर संविधान- निर्माण, संविधान की आत्मा और संसद की बहुआयामी भूमिका जैसे मूलभूत प्रश्नों का गहराई के साथ विवेचन हुआ है, वहीं कुछ बिलकुल ताज़ा मुद्दों; जैसे—न्यायिक सक्रियता, लोकपाल, दल-बदल, राज्यपालों की भूमिका, राष्ट्रपति शासन और अनुच्छेद 356, सदन-अध्यक्ष की भूमिका और संसदीय विशेषाधिकार आदि जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है।
Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Rajneeti
- Author Name:
Arvind Mohan
- Book Type:

- Description: दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों के विपरीत भारत में निर्धन, ग्रामीण और दलित-दमित लोगों की चुनावी भागीदारी एक विशेष परिघटना है, जिसे राजनीति-विज्ञानी रजनी कोठारी जाति और लोकतंत्र की अर्न्तक्रिया से आया बदलाव मानते हैं। उनका मानना था कि जाति और लोकतांत्रिक राजनीति की उथल-पुथल के बीच समाज में बदलाव की एक सकारात्मक धारा गतिमान रहती है। यह किताब मोटे तौर पर इसी स्थापना को लेकर चलती है। इसमें संकलित आलेख भारत में जाति व्यवस्था के अहम पड़ावों, उससे जुड़े तर्क-वितर्क और जाति को समझने की जद्दोजहद को सामने लाते हैं। चुनावों में उसकी भूमिका का विश्लेषण भी इसमें है। जाति के गुण-दोषों की विवेचना करनेवाले, उसके परिणामों को रेखांकित करते बाबा साहब, लोहिया और किशन पटनायक के लेख भी इसमें शामिल हैं। गांधी जाति को लेकर कैसे सोचते थे, और इसे लेकर आगे अपने जीवनकाल में क्या करना चाहते थे, इस विषय में भी पुस्तक का एक लेख विचारणीय बिन्दु प्रस्तुत करता है। इस समय जब अपनी पहचानों को लेकर बढ़ती सजगता समाज के हर स्तर पर गहरी बेचैनी पैदा कर रही है, और तकनीक के रास्ते पर तेजी से बढ़ती दुनिया में अपनी अस्मिता को बचाए-बनाए रखने की नई चुनौती सामने है, अपनी उस सामाजिक संरचना को समझना निश्चय ही उत्तेजक होगा, जिसके लिए पूरी दुनिया भारत को आश्चर्य से देखती है। यह किताब हमें इस दिशा में काफी आगे तक ले जाती है।
Yashasvi Bharat
- Author Name:
Mohan Bhagwat
- Book Type:

- Description: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा सांस्कृतिक संगठन है, जिसके लाखों समर्पित स्वयंसेवक राष्ट्र-निर्माण में लगे हैं और भारत को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए कृतसंकल्पित हैं। परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सन् 1925 की विजयादशमी को इसी उद्देश्य से संघ की स्थापना की। समर्पित भाव से व्यक्ति-निर्माण के महती कार्य को लक्षित कर संघ के स्वयंसेवक देश-समाज के प्रायः सभी क्षेत्रों—सेवा, विद्या, चिकित्सा, छात्र, मजदूर, राजनीति—में ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मूलमंत्र को जीवन का ध्येय मानकर प्राणपण से जुटे हैं। संघ दुनिया में अपनी तरह का अकेला संगठन है। पिछले कुछ समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निकट से जानने और गहराई से समझने की जिज्ञासा बढ़ी है। संघ के छठे और वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के विचारों पर आधारित यह पुस्तक इस दिशा में दीपशिखा का काम करेगी। यह पुस्तक अलग-अलग अवसरों पर दिए उनके व्याख्यानों का संग्रह है। ‘हिंदुत्व का विचार’, ‘भारत की प्राचीनता’, ‘हमारी राष्ट्रीयता’, ‘समाज का आचरण’, ‘स्त्री सशक्तीकरण’, ‘विकास की अवधारणा’, ‘अहिंसा का सिद्धांत’, ‘बाबा साहेब आंबेडकर’ और ‘भारत का भवितव्य’ जैसे विषयों पर दिए गए उनके व्याख्यान संघ को समझना आसान बना देते हैं। वैसे अपने व्याख्यानों में मोहनराव भागवत बार-बार कहते हैं कि ‘संघ को समझना हो तो संघ में आइए’। यह पुस्तक पाठक के विचारों को परिष्कृत करेगी और समाज में ऐसे राष्ट्रभाव जाग्रत् करेगी, जिससे ‘यशस्वी भारत’ का लक्ष्य सिद्ध होगा।
Madhyakalin Bharat Me Rajniti
- Author Name:
Heramb Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
इस पुस्तक को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि इतिहास और राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी मात्र इतिहासक्रम के अध्ययन से ही संतुष्ट नहीं होते अपितु वे ऐतिहासिक प्रक्रिया के विश्लेषण को भी महत्व प्रदान करते हैं और यही विषय को समझने की उनकी दृष्टि को भी विकसित करती है। इसी प्रकार के अध्ययन से समाज की शक्तियों और राज्य की शक्तियों की परस्परता और अंतरक्रियाएं समझ आती हैं।
इस कृति में इस्लाम के अंतर्गत राज्य की अवधारणा की पृष्ठभूमि में मध्यकालीन भारत में राज्य की प्रकृति का विश्लेषण; दोनों विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों, यथा उलेमा (धर्माधिकारियों) तथा उमरा (अमीरों) की संरचना, विशेषताओं और समकालीन राज्य में उनकी भूमिका की व्याख्या की गई है अर्थात ऐतिहासिक घटनाक्रम के कारणों की पड़ताल पर विशेष जोर दिया गया है।
Mission Impossible
- Author Name:
Renu Saini
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Rashtriya Mahattva Ke 100 Bhashan
- Author Name:
Fanish Singh
- Book Type:

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Description:
स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर अब तक के सौ चर्चित भाषणों के इस संग्रह का उद्देश्य एक तरफ़ नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास के महत्त्वपूर्ण पड़ावों से अवगत कराना है तो दूसरी तरफ़ उन मूल्यों को रेखांकित करना है जो हमारी राष्ट्रीय चिन्तन-धारा में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
आज सारा भारतीय समाज विखंडित होने की ओर अग्रसर है, यद्यपि हमारा विश्वास है कि राष्ट्रीयता की वह भावना जो विगत 160 वर्षों में उदित एवं पल्लवित हुई, कमज़ोर नहीं हो पाएगी। जातीय पार्टियाँ भले ही इस संकुचित भावना को उद्वेलित करती रहती हैं, किन्तु अपनी लाख कोशिशों के बावजूद वे कमज़ोर पड़ रही हैं। पिछले कई चुनावों से यह धारणा पुष्टि हुई है कि राष्ट्रीयता सदैव जातीयता पर भारी पड़ेगी जिसका उल्लेख आर.आर. दिवाकर ने संविधान सभा में अपने भाषण में 17 फरवरी, 1948 को किया था।
प्रस्तुत पुस्तक में 1858 से 2008 तक के प्रमुख भाषणों को संगृहीत करने की कोशिश की गई है। काल-विभाजन के अनुसार पुस्तक को दो भागों में रखा जा सकता है : 1858 से 1946 एवं 1946 से 2008। कांग्रेस के निर्माताओं, राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं, विभिन्न राष्ट्रीय पार्टियों के नेताओं, राजनीतिज्ञों के साथ-साथ इस युग के समाज सुधारकों, वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के भाषणों का भी समावेश इसमें किया गया है जिन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ सोचा और किया। यह संकलन आज के संक्रमण-काल में व्यापक पाठक समुदाय के लिए निस्सन्देह एक बेहद महत्त्वपूर्ण कृति है।
Meri Vichar Yatra ( Samajik Nyay : Antaheen Pratiksha )
- Author Name:
Ramvilas Paswan
- Book Type:

- Description: सामाजिक ताने-बाने को बदलने की दिशा में संघर्षरत रामविलास पासवान के वैचारिक लेखों का महत्त्वपूर्ण संकलन है: 'मेरी विचारा यात्रा' ! ये लेख नियमित रूप से मासिक पत्रिका 'न्याय चक्र में सम्पादकीय रूप में छपते रहे हैं, अब पहली बार पुस्तकाकार में !दो जिल्दों में प्रकाशित 'मेरी विचार यात्रा' के इस प्रथम भाग को छह अध्यायों में विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय में जहाँ 1991 से 2003 के बीच दलित उत्पीड़न और उसके खिलाफ वैचारिक संघर्ष को बल मिलता है, वहीं महिला आरक्षण तथा निजी क्षेत्र के आरक्षण सम्बन्धी उनके विचार नई सोच पैदा करते हैं। दूसरे अध्याय में रामविलास पासवान अपने लेखों के माध्यम से साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिशों को बेनकाब करते हैं। तीसरे अध्याय में संसदीय लोकतन्त्र के विभिन्न पक्षों पर उनकी सार्थक टिप्पणियां हैं। ये टिप्पणियां बताती हैं कि यदि हम अब भी चेते नहीं तो लोकतन्त्र का स्वरूप विकृत हो सकता है। चौथे, पांचवें और छठे अध्यायों में भारतीय आजादी की वास्तविकता, देश में मीडिया की स्थिति के रेखांकन के साथ बाबा साहेब अम्बेडकर, महात्मा गांधी, लोकनायक जयप्रकाश, मधु लिमए, विश्वनाथ प्रताप सिंह, एपीजे अब्दुल कलाम तथा अपने पिताजी के प्रति उनकी भावभीनी श्रद्धांजलि है। 'मेरी विचार यात्रा' रामविलास पासवान के वैचारिक लेखों का ऐसा संकलन है, जो हमें देश में व्याप्त ज्वलन्त समस्याओं से रू-ब-रू ही नहीं कराता, बल्कि उस दिशा में सोचने के लिए भावोद्वेलित भी करता है।
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