Sarabjit Singh : A Case of Mistaken Identity
Author:
Awaish SheikhPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
Awating description for this book
ISBN: 9788126723973
Pages: 199
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यूँ तो भारत में वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक काल से पाए जाते हैं किन्तु उनका नाम-पता हमें ज्ञात नहीं है। विश्व-प्रसिद्ध सिन्धु-सभ्यता का निर्माण ऐसे ही अनजान वैज्ञानिकों ने किया था। भूख, रोग, सर्दी एवं गर्मी से हमारी सुरक्षा भी वैज्ञानिकों ने की। पशुपालन और खेती से नया युग आया। इससे आदिम समाज का ख़ात्मा और श्रेणी अर्थात् वर्गीय समाज का आरम्भ हुआ। व्यापार की तरक़्क़ी, रोज़मर्रा के कामों में रुपए-पैसे का चलन और शहरों का जन्म—इन ऐतिहासिक घटनाओं ने शिल्पकार-शूद्र-कृषक वर्ग के पैरों में पड़ी ज़ंजीरों को खोलने का उपाय किया। परम्परावादी बन्धन अपने आप ढीले हो गए। माना जाने लगा कि आज़ाद लोग अच्छी और सख़्त मेहनत करते हैं।
पुरानी सभ्यताओं की टूटी-फूटी निशानियाँ धरती की छाती पर आज भी शेष हैं। यह स्पष्ट करने के लिए कि विज्ञान ही इतिहास का वास्तविक निर्माता होता है, इस पुस्तक में कुछ नवीन शीर्षक वाले लेखों को रखा गया है। इनमें प्रमुख हैं—प्राचीन विज्ञान एवं वैज्ञानिक, महाभारत, रामायण, शूद्र, मन्दिर, सिक्के, कला में विज्ञान, दक्षिण भारतीय अभिलेख, ज्योतिष विद्या : मिथक या यथार्थ, शिल्पकार आदि।
अभी तक इतिहास की मुख्यधारा से जनसाधारण को अलग ही रखा गया है। उदाहरण के लिए किसान-मज़दूर, इमारत बनाने वाले, बढ़ई, मछुआरा, हज्जाम, दाई, चरवाहा, कल-कारख़ानों में काम करने वाले और शहरों की स़फाई करने वाले आदि। इस पुस्तक में इन सबके योगदान की यथासम्भव चर्चा की गई है ताकि उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और तकनीकी ज्ञान को समझा जा सके।
Bharatiya Samvidhan Ki Nirman-Yatra
- Author Name:
Anoop Baranwal
- Book Type:

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Description:
संविधान सभा की बहस आजादी आन्दोलन के महानायकों के अवचेतन मन का दर्शन है और यह दर्शन ही भारतीय संविधान की आत्मा है, जिसे जानने-समझने में ‘भारतीय संविधान की निर्माण-यात्रा’ पुस्तक मार्गदर्शक का काम करती है। लेखक ने इस पुस्तक में न केवल संविधान-निर्माण के सम्पूर्ण कार्य को समाहित किया है बल्कि लगभग साढ़े छह हजार पृष्ठों में विस्तृत दुर्लभ संविधान सभा बहस—जिसका हिन्दी अनुवाद : 10484 पृष्ठों में प्रकाशित है—को सरल भाषा में प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया है।
शासन-प्रणाली, संघवाद, नागरिकता, राष्ट्रध्वज, मूल अधिकार, आरक्षण, अल्पसंख्यकों के लिए राजनीतिक आरक्षण, समान नागरिक संहिता, पर्सनल लॉ संरक्षण, गौवध, शराबबन्दी, काम का अधिकार, आर्थिक लोकतंत्र, दासता, ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा, आपातकाल, राष्ट्रपति-शासन, न्यायपालिका एवं अन्य संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, भाषाई-विवाद, अनुच्छेद 370, संविधान-संशोधन, उद्देशिका जैसे तमाम जटिल मुद्दों पर हमारे संविधान-निर्माताओं की क्या मंशा थी और वे एक निर्णय पर पहुँच पाने में कैसे सफल हुए? इन सवालों का जवाब देने के साथ-साथ यह कृति, प्रेरक संवैधानिक उद्धरणों का आदर्श संकलन भी मुहैया कराती है।
संविधान-चक्र क्या है और संविधान के अन्तर्गत यह कैसे कार्य करता है, भारतीय संविधान एक सामाजिक दस्तावेज क्यों है, विविधताओं वाले भारत राष्ट्र को एकसूत्र में बाँधे रखने के लिए संविधान में क्या-क्या उपाय किए गए हैं, ऐसी कई जिज्ञासाओं का समाधान करती यह पुस्तक, ‘स्वराज’ को अक्षुण्ण बनाए रखने और ‘सुराज’ को हासिल करने के लिए प्रत्येक नागरिक को प्रेरित-प्रोत्साहित करने में सक्षम है।
Shri Guruji : Prerak Vichar
- Author Name:
Sandeep Dev
- Book Type:

- Description: विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया। इस दौरान देश-विभाजन, भारत की आजादी, गांधी-हत्या, भारत व पाकिस्तान के बीच तीन-तीन युद्ध (कश्मीर सहित) एवं चीन का भारत पर आक्रमण जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के भी साक्षी बने और उस इतिहास-निर्माण में लगातार हस्तक्षेप भी किया। श्रीगुरुजी सही मायने में न केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सारथि थे, बल्कि बँटवारे के समय वे पाकिस्तानी हिस्से के उस हिंदू समाज के उद्घाटक की भूमिका में भी थे, जिसे बँटवारे से उपजे सांप्रदायिक उन्माद से जूझने के लिए तत्कालीन सरकार ने बेबस छोड़ दिया था। यह पुस्तक श्रीगुरुजी के त्यागपूर्ण प्रेरणाप्रद जीवनी के साथ ही उनके ओजस्वी विचारों का नवनीत भी है।
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