Atal Bihari Vajpayee Shiksha Samvaad
Author:
Shri Atul KothariPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। वह भारतवासियों के हृदय में एक राष्ट्रवादी चिंतक, प्रखर वक्ता और साहित्यानुरागी राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने अपने दीर्घकालिक राजनीतिक जीवन में भारतीय समाज और संस्कृति के बारे में गहन चिंतन किया है। उनकी राजनीतिक दृष्टि में भारतीयता रची-बसी हुई है। उनकी चिंतन-दृष्टि आज भी हमारे लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है। इस पुस्तक में आदरणीय अटलजी के शिक्षा विषयक विचारों को संकलित कर प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक हमें अटलजी के विचारों के माध्यम से समकालीन संदर्भों में शिक्षा के अर्थ, लक्ष्य, स्वरूप एवं भविष्य को समझने में सहयोग करती है। अटलजी के शिक्षा संबंधित विचारों में उनका लोकचिंतक रूप, समावेशी दृष्टि और भारत के उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पना परिलक्षित होती है।
ISBN: 9789355211675
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Sansad mein Vikas Ki Baaten
- Author Name:
Narendra Pathak
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bharat Ka Samvidhan : Sankshipt Parichay
- Author Name:
Subhash Kashyap
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
लोकतंत्र में हर नागरिक को अपने देश के संविधान को जानना चाहिए और समझना चाहिए कि हम किस प्रकार शासित हो रहे हैं। भारत के संविधान के मूल कर्तव्य सम्बन्धी भाग के अनुसार देश के हर नागरिक का सबसे पहला कर्तव्य है संविधान का पालन करना। परन्तु उसका पालन करने के लिए संविधान को जानना ज़रूरी है। दुर्भाग्यवश भारत में आज भी भयंकर संवैधानिक निरक्षरता है। ऐसी स्थिति में संविधान के बारे में बुनियादी जानकारी प्राप्त करने के लिए यह किताब अत्यन्त उपयोगी है। भारतीय संविधान के विश्वविख्यात विशेषज्ञ डॉ. सुभाष काश्यप ने सरल और सुगम शब्दों में पुस्तक तैयार की है इसका विशेष उद्देश्य यह है कि पाठक को भारतीय संविधान का संक्षिप्त परिचय मिले तथा वह इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, संविधान निर्माण की प्रक्रिया, तथा वह इसकी संविधान की आत्मा का समुचित ज्ञान प्राप्त सकते हैं।
वस्तुत: यह किताब आधुनिक भारत के इतिहास; एक लोकतंत्र के रूप में भारत के निर्माण और विकास तथा भारत के संविधान में दिलचस्पी रखने वाले हरेक छात्र और सामान्य पाठक के लिए समान रूप से उपयोगी है।
Hind Swaraj
- Author Name:
Mohandas Karamchand Gandhi
- Book Type:

-
Description:
'हिन्द स्वराज’ पाठक और सम्पादक के बीच बातचीत की शैली में लिखा गया है। लन्दन प्रवास के दौरान गांधी जिन क्रान्तिमार्गी अराजकतावादियों से मिले थे उनमें दामोदर विनायक सावरकर, टी.एस.एस. राजन, वीरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय, वी.वी.एस. अय्यर और डॉ. प्राणजीवन मेहता प्रमुख थे। वस्तुत: 'हिन्द स्वराज’ स्वयं गांधी के शब्दों में डॉ. प्राणजीवन मेहता से हुई बातचीत की लगभग जस की तस प्रस्तुति है। इस रहस्य का उद्घाटन उन्होंने 21 फरवरी, सन् 1940 को बंगाल की मलिकंदा की बैठक में किया था। डॉ. प्राणजीवन दास जगजीवन दास मेहता (1864-1932) बम्बई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के स्नातक थे। बू्रसेल्स से एम.डी. और लन्दन से बैरिस्टरी की उपाधियाँ अर्जित करने के बाद सन् 1889 में हिन्दुस्तान लौट आए थे। यहाँ गुजरात के ईडर रियासत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और बाद में दीवान के पद पर रहने के बाद वह रंगून (बर्मा) चले गए थे।
जब सन् 1909 में गांधी लन्दन पहुँचे थे तो डॉ. मेहता संयोग से वहीं थे। एक महीने दोनों साथ एक होटल में रहे थे। गांधी से डॉ. मेहता लगभग पाँच साल बड़े थे और उनके प्रति गहरा स्नेह भाव रखते थे। स्वयं गांधी के शब्दों में वह उन्हें (गांधी को) मूर्ख और भावुक मानते थे। अपने समय की चिकित्सा और क़ानून की उच्चतम उपाधियों से लैस डॉ. मेहता एक प्रबल बुद्धिवादी तार्किक थे। गांधी उन्हें क्रान्तिकामी अराजकतावादियों में प्रमुख मानते थे। जो विचार बिन्दु 'हिन्द स्वराज’ के विषय बने, उन पर दोनों के बीच लगभग एक माह तक विचार-विमर्श चलता रहा। अन्तत: डॉ. मेहता गांधी के विचारों से सहमत हो गए। गांधी को पहले मूर्ख और भावुक समझनेवाले उन्हीं डॉ. प्राणजीवन मेहता ने 28 अगस्त, सन् 1912 को रंगून के लिए पोर्ट सईद पर जहाज़ की प्रतीक्षा करते हुए हिन्दुस्तान में गोपाल कृष्ण गोखले को लिखा कि मनुष्यता और मातृभूमि के उत्थान के लिए गांधी जैसे विरल व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर यदा-कदा ही अवतरित होते हैं।
—वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
Itihas Chakkra
- Author Name:
Rammanohar Lohia
- Book Type:

- Description: वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसे नेताओं की कमी बहुत खलती है जो सत्ता की तिकड़मों के बजाय समाज और देश की वास्तविक चिन्ताओं को लेकर न सिर्फ़ सोचने की प्रवृत्ति रखते हों, बल्कि उनमें तमाम परिस्थितियों को एक व्यापक नज़रिए के साथ देखने की क्षमता भी हो। भारतीय राजनीति में एकाधिक व्यक्तित्व ऐसे रहे हैं जो अपनी वैचारिक उद्यमिता में विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखते थे। राममनोहर लोहिया ऐसे ही नेता थे। अपने तकरीबन चार दशकों के राजनीतिक जीवन में वे ज़मीनी हक़ीक़तों के अध्ययन और चिन्तन-मनन में इस तरह व्यस्त रहे कि सत्ता-केन्द्रित राजनीति ने उन्हें बहुत अहमियत नहीं दी। न ही उन्होंने इसके लिए कोई हड़बड़ी दिखाई। और जब देश की निगाह उनकी सामर्थ्य की ओर गई, वे चले गए। लेकिन उनकी वैचारिक थाती उनके लेखन के रूप में आज भी हमारे पास है, और हम चाहें तो एक सम्पूर्ण तथा न्यायसंगत समाज का विज़न उनके आधार पर गढ़ सकते हैं। इस पुस्तक में हम इतिहास को लेकर उनकी दृष्टि तथा विचारों से अवगत होते हैं। देखने लायक है कि उनकी इतिहास-दृष्टि जन-गण के जीवन को कभी अपने सामने से ओझल नहीं होने देती। उनके शब्द हैं : “इतिहास को बनाने व समझने में एक हानिकारक भूल यह होती है कि आंशिक कौशल को पूर्ण कौशल समझ लिया जाए और संसार के एक भाग की स्थिति को समस्त संसार पर लागू मान लिया जाए। हम इतिहास के अब तक सूखे रेगिस्तान को ऐसी मृग मरीचिकाएँ और सपनों के ऐसे बाग़ न पैदा करने दें कि दिमाग़ को ऐसे बीजों को अंकुरित होते देखने का भ्रम हो जाए जो अभी बोए भी नहीं गए हैं।” यह पुस्तक लोहिया के इतिहास बोध और दृष्टि की परिचायक है।
Gandhi Aur Akathaniya : Satya Ke Sath Unka Antim Prayog
- Author Name:
James W. Douglass
- Book Type:

- Description: “इतिहास जब-तब जीवन की शक्तियों और मृत्यु की शक्तियों के बीच ऐसे संघर्षों का साक्षी बनता है जहाँ एक ओर, मृत्यु की शक्ति की हर पराजय असत्य पर सत्य की विजय में आस्था को बल प्रदान करती है तो दूसरी ओर, असत्य की हर कामयाबी में मनुष्यता के सम्पूर्ण विनाश की सम्भावना निहित होती है। अहिंसा में गाँधी की आस्था और उनके हत्यारों की पथभ्रष्ट विचारधारा पर आधारित जेम्स डॅगलॅस की यह गहन शोधपरक, छोटी-सी अद्भुत कृति उन दो परस्पर विरोधी फ़लसफ़ों की एक वाग्मितापूर्ण कहानी है जिनका सामना आज मानव-जाति कर रही है—एक ऐसी कहानी जो हमें ठहरकर सोचने के लिए विवश करती है।” —नारायण देसाई
Aadhunik Bharat Ka Aarthik Itihas : 1850-1947
- Author Name:
Sabyasachi Bhattacharya
- Book Type:

-
Description:
प्रो. सब्यसाची भट्टाचार्य देश के जाने-माने इतिहासकार हैं, जिनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र औपनिवेशिक भारत रहा है। उनकी पुस्तक ब्रिटिश राज के वित्तीय आधार चर्चित और प्रशंसित पुस्तकों में से है।
आधुनिक भारत के आर्थिक विकास पर रमेशचंद्र दत्त तथा रजनी पाम दत्त की पुस्तकें काफी पहले प्रकाशित हुई थीं, लेकिन प्रस्तुत पुस्तक उनकी पुस्तकों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें इस विषय पर किए गए अद्यतन शोधों तथा अभिलेखागार में उपलब्ध सामग्री का भरपूर उपयोग किया गया है। यह सामग्री उपर्युक्त पुस्तकों के लेखन के समय उपलब्ध नहीं थी।
प्रो. भट्टाचार्य ने अपनी इस पुस्तक में औपनिवेशिक भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की है। लेकिन यह एक जटिल कार्य था और औपनिवेशिक भारत के आर्थिक इतिहासकारों के जो कई घराने हैं, उनके विकास और वैशिष्ट्य का मूल्यांकन किए बिना प्रतिपाद्य विषय के साथ न्याय नहीं किया जा सकता था। अतएव प्रो. भट्टाचार्य ने इस शताब्दी की सीमाओं में विभिन्न ऐतिहासिक विचारधाराओं का आकलन करते हुए अनेक बुनियादी सवाल उठाए हैं और बाद के अध्यायों में उन सवालों पर विस्तार से विचार किया है। भारत का अर्थनीतिक उपनिवेशीकरण कैसे हुआ, इस प्रश्न को उन्होंने विभिन्न कोणों से देखा-परखा है और इस प्रसंग में ब्रिटिश सरकार की विभिन्न नीतियों के अच्छे या बुरे परिणामों को सामने रखा है। साथ ही, उन नीतियों की संपूर्ण रूप से और साम्राज्यवादी राष्ट्र के चरित्र को साधारण रूप से समझने की चेष्टा भी की है। उल्लेखनीय है कि प्रो. भट्टाचार्य ने उपनिवेशवादी शोषण के चरित्र और विद्रूपित आर्थिक विकास को विशेष रूप से रेखांकित किया है।
The Beliefs Of Arya Samaj
- Author Name:
Mahendra Arya
- Book Type:

- Description: The prime object of Arya Samaj is to do good to the whole world, i.e. to achieve physical, spiritual and social prosperity for all. —Swami Dayanand Sarswati What is Arya Samaj? May be a different kind of cult! They don’t believe in God! I heard—they worship only fire! They talk negative about others! They are not Hindus! So on! And so forth! So many misconceptions about Arya Samaj! This book is written to address all the queries pertaining to beliefs of Arya Samaj. The book gives point to point information about principles and practices of Arya Samaj. This book will be a handbook for all those readers who want to have a feel of Arya Samaj. It has all the answers—in short bullet points— as people want them in today’s life!
1857 Ke Amar Nayak Raja Jailal Singh
- Author Name:
Pratap Gopendra
- Book Type:

-
Description:
अखण्ड राष्ट्र के रूप में संगठित होने के पूर्व भारतवर्ष ने साहस एवं उत्सर्ग की अनगिनत परीक्षाएँ दी हैं। धीरोदात्त वीरों ने सैकड़ों वर्षों की आततायी शोषणकारी राज्य व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए अदम्य संघर्ष किये हैं। इन संघर्षो को इतिहास के अनेक स्वनाम-गुमनाम नायकों ने शक्ति एवं नेतृत्व प्रदान किया है। सूचना क्रान्ति के इस युग में ऐसी शख्सियतों व उनकी अमर कृतियों की खोज कर दिग्-दिगन्त तक उनका उद्घोष किया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को जीवन संघर्ष में अडिग रहने की प्रेरणा तो मिले ही, स्वतन्त्रता का मूल्य भी उनके हृदयों में दृढ़ता से स्थापित हो सके। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा जयलाल सिंह ऐसे ही देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन्हें समय के बादलों ने आच्छादित कर रखा है। सत्तावनी क्रान्ति का एक ऐसा किरदार जिसने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध व्यक्तिगत शौर्य का परिचय देते हुए न केवल प्रत्यक्ष युद्ध लड़े वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष में क्रान्तिकारियों की आश्रयस्थली बने शहर लखनऊ में पूरे युद्ध-तन्त्र का संचालन व प्रबन्धन करते हुए अन्तिम नवाबी सरकार के मन्दराचल को कूर्मावतार बन अपनी पीठ पर धारण किया। स्वतन्त्र भारत का भव्य प्रासाद नींव के जिन कीर्त्ति स्तम्भों पर खड़ा है, निःसन्देह राजा जयलाल सिंह उनमें से एक हैं।
यह पुस्तक उनके व्यक्तित्व एवं उत्सर्गपूर्ण कृतित्वों को जानने-समझने का एकमात्र प्रामाणिक दस्तावेज है।
Ek Doosre Shikhar se
- Author Name:
Chandrashekhar
- Book Type:

- Description: यह तीसरा खंड पूर्व के दोनों खंडों से इसलिए भी भिन्न है क्योंकि इस दौरान चन्द्रशेखर देश के मुख्य कार्यकारी की भूमिका में हैं। इस दौरान वे देश की जनता की बुनियादी समस्याओं के बारे में कैसा रुख रखते हैं और इनके निदान के लिए उनके पास क्या कार्यक्रम है, इसकी झलक इस खंड के साक्षात्कारों से मिलती है। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने धर्म, सांप्रदायिकता, राजनीति, राष्ट्रीय सरकार, समाजवाद, विदेश नीति तथा अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर खुलकर अपना पक्ष रखा है। प्रधानमंत्री के रूप में दिए गए चन्द्रशेखर के साक्षात्कारों की विशेषता है कि वे दृढ़ता से भारत का पक्ष रखते हैं। भेंटवार्ताओं में विभिन्न बुनियादी मुद्दों पर चन्द्रशेखर के विचार अनायास व्यक्त हुए हैं। विभिन्न मुद्दों पर चन्द्रशेखर की मान्यताओं से उनकी अंतर्दृष्टि का भी पता चलता है। उन्हें और मूलभूत राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रश्नों को जानने-समझने में भी ये साक्षात्कार मदद पहुँचाते हैं। सत्तर के दशक से शुरू हुआ विमर्श पूर्व-पक्ष है तो इस तीसरे खंड का विमर्श उत्तर-पक्ष।
Magadhnama : Magadh Ke Itihas Ki Kathatmak Yatra
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: अपने आरम्भिक दिनों में वैदिक आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा है। तब वह 'व्रात्य-सभ्यता' का केन्द्र हुआ करता था। वैसे आगे चलकर च्यवन और दधीचि जैसे ऋषियों का जन्म मगध में ही हुआ। अथर्ववेद की रचना भी यहीं हुई। मगध की धरती पर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को तत्वज्ञान हुआ, चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर को कैवल्य ज्ञान मिला; और गौतम सिद्धार्थ क्रो बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई। मगध की धरती पर यदि शूरवीरों की तलवारों की झंकार गूँजी; तो पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य और अहिंसा का संदेश देनेवाले बुद्ध और महावीर की अमृतवाणी भी मुखरित हुई। महावीर ने राजगृह में पहला सामूहिक उपदेश दिया; और राजगृह के समीप पावापुरी में राजा संस्थिपाल के राजभवन में उनका देहान्त हुआ। कुल चौबीस जैन तीर्थंकरों में से दो को छोड़कर अन्य सभी ने मगध की धरती पर ही निर्वाण प्राप्त किया। यहीं खगोलविद् आर्यभट पैदा हुए और गद्यकवि बाणभट्ट भी। यहाँ चाणक्य और कामन्दक जैसे कूटनीति-दक्ष आचार्य हुए; तो जीवक और धनवन्तरि जैसे आयुर्वेदाचार्य भी। बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, कालाशोक, महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, पुष्यमित्र शुंग, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजाओं की एक लम्बी शृंखला है, जिनकी जन्मदात्री होने पर किसी को भी गर्व हो सकता
Gandhi Aur Unke 'Satyagrah' Ki Yatra
- Author Name:
Heramb Chaturvedi
- Rating:
- Book Type:

- Description: जब तक मानव सभ्यता का अस्तित्व है तब तक गाँधी की प्रासंगिकता बनी रहेगी, क्योंकि गाँधी ने मानवता के साथ मानव सभ्यता के मौलिक मूल्यों और मानवता के आदर्शों, प्रतिमानों पर ही अपना दर्शन आधारित किया और उसे क्रियान्वित करते हुए अपना जीवन भी जी कर दिखा दिया। जब तक विश्व में युद्ध और युद्धपरक परिस्थितियाँ बनी रहेंगी, मानव-समाज और विश्व में उनके दर्शन का महत्त्व सदैव बना रहेगा। गाँधी मानवता, शान्ति, शान्तिपूर्ण अस्तित्व के साथ विकास के समर्थक थे और सत्य शाश्वत मूल्य अधारित हो अर्थात् सृष्टि, विश्व और समाज के मध्य भी सामंजस्य, सन्तुलन और सहभाग का भाव स्थायी हो, इसके इच्छुक थे। इसलिए किसी एक आयाम को लेकर गाँधी को समझने के लिए अध्ययन करना ख़तरा मोल लेना ही है। उनके व्यक्तित्व के समस्त आयामों के बिना उनका समावेशी अध्ययन सम्भव नहीं है। अत: गाँधी जी का हर अध्ययन उनकी जीवन-यात्रा का ही अध्ययन हो जाता है और इसलिए उन 'संस्कारों' और उनके व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक विकास को भी विश्लेषित करना पड़ेगा तब हम उनको एवं उनके विचारों को समझ सकेंगे। बिना वांग्मय के अध्ययन के किसी लेखक, विचारक, ऐतिहासिक व्यक्तित्व को पूर्णता में समझा ही नहीं जा सकता। अत: गाँधी के 'सत्याग्रह' की यात्रा भी उनकी जीवन-यात्रा ही हो जाती है।
Trishanku Rashtra : Smriti, Swa Aur Samkalin Bharat
- Author Name:
Deepak Kumar
- Book Type:

-
Description:
आज़ादी के सत्तर साल बाद आज भारत हमें जिस रूप में प्राप्त होता है, वह विडम्बनाओं और विरोधाभासों का कहीं से सिला, कहीं से उधड़ा एक जटिल ताना-बाना है। उसका कोई एक रूप नहीं है। विस्तृत भूभाग और इतिहास में दूर तक फैली सांस्कृतिक जड़ों के चलते उसे समझना यूँ भी सहज नहीं है। आज़ादी के बाद बने राष्ट्र के रूप में वह और पेचीदा हुआ है। यहाँ अगर आधुनिकता अपने शुद्धतम रूप में दिखती है तो परम्पराओं की जकड़बन्दी भी उतनी ही कसी हुई है। विकास है तो भ्रष्टाचार भी है, बहुरंगी विविधता में सहअस्तित्व और सहिष्णुता की भावना चमत्कृत करती है तो साम्प्रदायिकता और जातिवाद की भयावह अकुलाहट डराती भी है।
‘त्रिशंकु राष्ट्र’ भारतीय अस्मिता की इसी पहेली को समझने की कोशिश है। निजी और ऐतिहासिक स्मृतियों को व्यापक सामाजिक और सभ्यतागत सन्दर्भों में विश्लेषित करते हुए लेखक ने स्वातंत्र्योत्तर भारत का एक दिलचस्प ख़ाका तैयार किया है जिसमें हम, जाति, धर्म, साम्प्रदायिकता, प्रशासन, भ्रष्टाचार, शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति आदि का गहरा विश्लेषण पाते हैं।
दुर्लभ वाग्विदग्धता के साथ अपने और आसपास के संस्मरणों के आईने से यह किताब भारतीय उपमहाद्वीप के वृहत्तर जीवन की विभिन्न तहों को उघाड़ती है।
Bharatiya Sahitya Mein Kashmir
- Author Name:
Prof. Kripashankar Chaubey +1
- Book Type:

- Description: जम्मू-कश्मीर सदा सर्वदा से भारतीय साहित्य में केंद्रीय स्थान रखता रहा है। जम्मू-कश्मीर, कश्मीर मंडल, शारदा क्षेत्र, सप्त सिंधु प्रदेश आदि विविध नामों से इतिहास, पुराण, नाटक, उपन्यास, कविता, कथा, कहानी; सर्वत्र संस्कृत सहित सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में स्थान प्राप्त करता रहा है। स्वतंत्रता के पूर्व, स्वतंत्रता के बाद और 1990 के बाद; ये तीन ऐसे विशिष्ट कालखंड हैं जिनके बीच समस्त भारतीय साहित्य में कश्मीर संबंधी विमर्श और प्रस्तुतियां अलग-अलग रूपों में दिखाई देती हैं। प्राकृतिक सुषमा से लेकर मानव निर्मित आपदाओं तक व्यक्ति और समाज के जीवन का कोई ऐसा रंग नहीं है जो कश्मीर में न हो और कश्मीर में जो कुछ होता रहा है, वह समकाल में ही भारतीय साहित्य में प्रतिध्वनित भी होता रहा है। उन सब को एक स्थान पर एकत्रित करना लगभग असंभव है, पर कश्मीर को ले करके विविध भारतीय भाषाओं में, सामासिक रूप से कहा जाए तो भारतीय साहित्य में जो कुछ भी लिखा गया है, रचा गया है, उन सबको प्रवृत्तिररक अनुशीलन के द्वारा प्रस्तुत करने के यत्न करने के रूप में यह पुस्तक उपादेय है।
Bhajpa Hinduttva Aur Musalman
- Author Name:
Vedpratap Vaidik
- Book Type:

-
Description:
‘भाजपा, हिन्दुत्व और मुसलमान’ अपने ढंग की अनूठी कृति है। इस विषय का यह पहला मौलिक और विचारोत्तेजक ग्रन्थ है। उक्त तीनों मुद्दों और उनके आपसी सम्बन्धों पर जितनी गहराई और जितने कोणों से विद्वान लेखक ने विचार किया है, अब तक किसी भी ग्रन्थ में नहीं किया गया है। भाजपा का असली संकट क्या है, उसका समाधान क्या है, उसका भविष्य कैसा है, वह कहीं कांग्रेस की कार्बन-कॉपी तो नहीं बन गई है, संघ और भाजपा के बीच अन्तर्द्वन्द्व के मुद्दे कौन-कौन से हैं, आदि अनेक प्रश्नों पर डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
सावरकर का हिन्दुत्व अब कितना प्रासंगिक रह गया है? उसमें से क्या घटाया और क्या जोड़ा जाए, इस जटिल और विवादास्पद विषय पर डॉ. वैदिक ने जो मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं, वे भाजपा ही नहीं, 21वीं सदी के भारत के लिए भी ध्यातव्य हैं। हिन्दुत्व और इस्लाम के नाम पर चले अभियानों पर लेखक के जिन बेबाक निबन्धों ने देश की तत्कालीन राजनीति पर सीधा असर डाला था, वे भी इस ग्रन्थ में संकलित किए गए हैं। इस ग्रन्थ में कुछ निबन्ध ऐसे भी हैं, जिनके बारे में आपको लगेगा कि वे अपने आप में एक-एक ग्रन्थ के बराबर हैं। मुस्लिम राजनीति और मुसलमानों के प्रति भाजपा के रवैए पर भी लेखक ने अपनी दो-टूक राय ज़ाहिर की है। मुसलमान भारतीय इतिहास को कैसे देखें और शेष भारत मुसलमानों को कैसे देखे, आदि अत्यन्त पेचीदा और नाजुक मुद्दों पर भी लेखक ने अपने निर्भीक विचार प्रस्तुत किए हैं। डॉ. वैदिक के ये निबन्ध राजनेताओं, विद्वानों, पत्रकारों और प्रबुद्ध पाठकों के लिए दिशा-बोधक और उपयोगी हैं।
Pt. Deendayalji : Prerak Vichar
- Author Name:
Dr. Ravindra Agarwal
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bihar Ek Etihasik Adhyayan
- Author Name:
Om Prakash Prasad
- Book Type:

-
Description:
बिहार में ऐतिहासिक गतिविधियों की शुरुआत उत्तरवैदिक काल से होती है। इस इलाक़े में ई.पू. छठी शताब्दी के दौरान विकास की गति तेज़ हो गई। प्रारम्भ में इसे मगध के नाम से जाना गया। राजगृह और गया का इलाक़ा प्रारम्भ में तथा मौर्यकाल के दौरान गंगा नदी के उत्तर और दक्षिण का इलाक़ा ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया। पाटलिपुत्र विश्व के प्रमुख नगरों में से एक हो गया। शुंग और कुषाण राजवंश के बाद सम्पूर्ण आधुनिक बिहार के इलाक़े पर किसी एक राजवंश का प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रहा।
पूर्व मध्यकाल में आधुनिक बंगाल और उत्तर प्रदेश के शासकों ने बिहार को खंडित कर दिया। यह सिलसिला बाद के सैकड़ों वर्षों तक चलता रहा। मराठों का आधिपत्य भी इसके कुछ हिस्से पर स्थापित रहा।
शेरशाह और अकबर के ज़माने में बिहार का पुनः एक राजनीतिक नक़्शा तैयार हुआ।
अंग्रेज़ीकाल में बिहार का अस्तित्व बंगाल के उपनिवेश के समान 1912 ई. और उसके बाद तक बना रहा।
मौर्यकाल के बाद बिहार की आर्थिक स्थिति अफ़ग़ानों और मुग़लशासकों के काल में बेहतर हुई। बिहार के कई छोटे-छोटे क़स्बे आर्थिक बेहतरी और उद्योग के केन्द्र रहे। अंग्रेज़ीकाल में चीनी मिलें बिहार के क़रीब 30 स्थानों में स्थापित हुईं। बिहार में नदियों की भूमिका काफ़ी अनुकूल रही। तिरहुत की ज़मीन भारतवर्ष में सर्वाधिक उपजाऊ थी। भारतवर्ष में सबसे ज़्यादा पेय जल-सुविधा आज भी यहीं है।
Nagrikta Sanshodhan Adhiniyam Ke Virodh Ki Rajneeti
- Author Name:
Dr. Kuldip Chand Agnihotri
- Book Type:

- Description: भारत के नागरिकता अधिनियम में हुए संशोधन (नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019) को लेकर देश भर में बहस शुरू हो गई। इस संशोधन के द्वारा पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बँगलादेश से भारत में आ चुके अल्पसंख्यक समुदाय के नागरिकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। विरोध करनेवाले दो समूह हैं। पहला ऐसा समूह, जो विरोध में अपना राजनीतिक स्वार्थ देखता है। दूसरा ऐसा समूह, जो जानबूझकर या फिर अनजाने में संशोधन को लेकर भ्रम का शिकार हो गया है। वह इस संशोधन को नागरिकों के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के साथ नत्थी करके देखता है, जबकि दोनों का आपस में कुछ लेना-देना नहीं है। आज सत्तर साल बाद नरेंद्र मोदी ने इस शरणार्थी हिंदू समाज, अफगानी हिंदू-सिख समाज और भारतीय नागरिकता के बीच नेहरू और उनकी पार्टी द्वारा खड़ी की गई दीवार को तोड़ दिया है। यह कांग्रेस द्वारा किए गए भारत विभाजन से उपजे पाप के एक दाग को धोने का ऐतिहासिक फैसला है, लेकिन इसे क्या कहा जाए, कि आज कांग्रेस और मुसलिम लीग मिलकर एक बार फिर पाप की उस दीवार को बचाने का प्रयास कर रही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इस समस्या का भारत विभाजन के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
The Gandhian Statesman of Bihar Nitish Kumar
- Author Name:
Ashok Choudhary +1
- Book Type:

- Description: "In the eyes of those who had lost all hopes in Bihar, Nitish Kumar has acquired the status of a miracle man. After all, how did he work for the revival of the state? Nitish Kumar is not a professional manager, he is a politician. When he took over as the Chief Minister of Bihar in November 2005, he frequently reminded the officials that the performance of the government was at stake in his ministry and not in the bureaucracy. If the government succeeds, then all the credit will be given his ministry. If it fails, his ministry will have to own the responsibility. Bureaucrats would not lose their jobs, but he (the Chief Minister) will have to go. Inspite of all this, Nitish Kumar earned a permanent place in the hearts of the people by working towards solving the issues related to the basic needs of the people and he emerged as the pioneer of social revolution. This process of improvement continues unabated. A readable and collectable saga that introduces you to the untold, inspiring, interesting, and adventurous campaigns of the social revolution of Nitish Kumar."
Chunav 2019 : Kahani Modi 2.0 Ki
- Author Name:
Aaku Shrivastava
- Book Type:

- Description: वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार की शुरुआत सब दलों ने विकास की बातों से की, लेकिन प्रचार जब चरम पर पहुँचा तो यह एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने पर केंद्रित हो गया। यहाँ तक कि नेताओं के बिगड़े बोलों से आजिज आकर सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग को निर्देश देने पड़े। दूसरी ओर चुनाव आयोग की भूमिका पर भी खूब सवाल उठाए गए। ई.वी.एम. की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल खड़े किए गए। चुनाव प्रचार निम्न स्तर पर पहुँच गया था। इस तरह से वर्ष 2019 का चुनाव पिछले सत्तर वर्षों में एक अलग ही तरह का चुनाव देखा गया। इस चुनाव में प्रचार के पारंपरिक तरीके तो गायब हुए ही, जनता के सरोकार भी बहुत पीछे छूट गए। इसके अलावा इस लोकसभा चुनाव में कई ऐसे सवाल खड़े किए, जो 2014 में उठाए गए थे। कुछ के जवाब मिले, कुछ ने और सवालों को जन्म दिया; कुछ भुला दिए गए तो कुछ बहस का मुद्दा बन गए। क्या भविष्य होगा, इन सवालों का और उनके जवाबों का—इसी पर एक गहन चर्चा इस पुस्तक में की गई है।.
Hadappa Sabhyata Aur Vaidik Sahitya
- Author Name:
Bhagwan Singh
- Book Type:

-
Description:
हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य (1987) के प्रकाशन से पहले तक इतिहासकार और पुरातत्त्वविद् अपने-अपने क्षेत्रों में अर्ध-दिग्भ्रमित से प्राचीनतम इतिहास को समझने का प्रयत्न कर रहे थे और अपने साक्ष्यों से टकराते हुए ख़ुद पछाड़ खाकर गिर जाते थे। अन्तर्विरोधी दावों का ऐसा दबाव था कि उनके पक्ष में प्रमाण भी नहीं मिल रहे थे और फिर भी उनका निषेध नहीं हो पा रहा था। सच तो यह है कि न तो इतिहास को अपना पुरातत्त्व मिल रहा था, न पुरातत्त्व को अपना इतिहास। ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’ के प्रकाशन ने इन दोनों अनुशासनों और इनके प्रमाण-पुरुषों के आत्मनिर्वासन को पहली बार पूरे अधिकार और विपुल प्रमाणों के साथ खंडित किया और उसके बाद भारतीय पुरातत्त्व में पुरातात्त्विक सामग्री को साहित्य से जोड़कर भी देखने का आरम्भ हुआ। इस अर्थ में इसे एक युगान्तरकारी कृति के रूप में स्वीकार किया गया।
इस बीच शब्दमीमांसा को आधार बनाकर भी लेखक ने ऋग्वैदिक भाषा का अध्ययन किया और साहित्यिक सन्दर्भ से हटकर उनके शब्दों के मूलार्थ को ग्रहण करते हुए तकनीकी शब्दावली के आधार पर अपनी स्थापनाओं की जाँच करते हुए लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इनसे उसकी स्थापनाओं की पुष्टि ही नहीं होती, अपितु ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’ में प्रकाशित उसकी स्थापनाएँ आइसबर्ग के दृश्य भाग को ही प्रकट कर पाई हैं। हड़प्पा सभ्यता के लगभग सभी प्रमुख पार्थिव लक्षणों की पुष्टि तो ऋग्वेद से होती ही है, यह ऐसे अनेक उदात्त और जीवन्त सांस्कृतिक पक्षों का भी उद्घाटन करता है जिनकी आशा पार्थिव अवशेषों से की ही नहीं जा सकती। उसके इस अध्ययन का सार The Vedic Harappans (1995) के रूप में प्रकाशित हुआ।
इस पुस्तक के वर्तमान संस्करण में इस पक्ष का समावेश भी किया गया है जिससे इसकी सार्थकता इसके ही पूर्व संस्करणों से अधिक बढ़ जाती है। इस संस्करण को आदि से अन्त तक सम्पादित करते हुए कुछ और भी परिवर्द्धन-संशोधन किए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता का वैभव और वैदिक साहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने की दृष्टि से यह पुस्तक अनन्य है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...