Tarkshastra
Author:
Neelima MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789352211586
Pages: 480
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारतीय समाजात अनुदार प्रवृत्तींचे प्रस्थ 1970 आणि नंतरच्या दशकांत वाढत गेले. मार्क्सवादी-लेनिनवाद्यांना भारतीय राज्यघटना कधीच पचनी पडली नाही; कारण तिने कोणा एका पक्षाचा (म्हणजे त्यांच्या पक्षाचा!) विशेषाधिकार मान्य केला नाही. तशीच ती हिंदू कट्टरवाद्यांनाही पचली नाही; कारण तिने कोणा विशिष्ट धर्माला (म्हणजे त्यांच्या धर्माला!) विशेषाधिकार दिले नाहीत. देशाला स्वातंत्र्य मिळाल्यापासूनच, धार्मिक अतिरेक्यांनी आणि डाव्या क्रांतिकारकांनी बळाचा वापर करून त्यांच्या पोथिनिष्ठा लादण्याचे वारंवार प्रयत्न केले. अलीकडच्या दशकांत लोकशाही कार्यपध्दतीला तिसरा धोका समोर येऊ लागला आहे. हा आहे भ्रष्टाचाराचा आणि व्यक्ती, घराणी आणि जातगटांच्या मार्फत सार्वजनिक संस्था आणि राजकीय पक्ष यांच्यावर ताबा मिळवत, घटनात्मक केंद्र पोखरून दुर्बळ होण्याचा... जिद्द हरवल्यामुळे वा संधिसाधूपणामुळे काही लेखक व बुध्दिजीवींनी काँग्रेसची खुशमस्करी सुरू केली. या लाचारीचा उद्वेग आल्याने इतर काहींनी भारतीय जनता पक्षाची कास धरली, पर्यायाने हिंदू धर्माधिष्ठित राष्ट्राच्या उद्दिष्टावर आपली मोहोर उठविली. बुध्दिजीवींचा तिसरा गट अपराधी भावनेपोटी वा निव्वळ मूर्खपणातून, मध्य भारतातील जंगल व डोंगराळ प्रदेशांत आपला प्रभाव वाढविण्याच्या प्रयत्नात असलेल्या क्रांतिकारी माओवाद्यांचा समर्थक बनला... वास्तव्य दिल्लीत नाही, तर बंगलोरमध्ये असल्यामुळे असेल कदाचित, मी राजकीय पक्षांपासून माझे स्वातंत्र्य अबाधित ठेवू शकलो. काँग्रेस, संघ परिवार आणि संसदीय डावे यांच्याविषयीच्या माझ्या मतभेदाच्या मुद्यांची चर्चा या पुस्तकातील निवडक निबंधांत केली आहे... मी माओवाद्यांचाही टीकाकार आहे; कारण सभ्यता आणि लोकशाही यांना काँग्रेसी भ्रष्टाचार आणि संघ परिवाराची असहिष्णुता यांपासून जेवढा धोका आहे, तेवढाच माओवाद्यांपासूनही आहे, असे मी मानतो. Deshbhakta aani Andhabhakta : Ramchandra Guha, Translated by Satish Kamat देशभक्त आणि अंधभक्त : रामचंद्र गुहा, अनुवाद : सतीश कामत
Kirtishesh : Mohan Rakesh
- Author Name:
Jaidev Taneja
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- Description: मोहन राकेश के समृद्ध और बहुआयामी व्यक्तित्व के अनेक पक्ष थे, जो शायद किसी एक मित्र के साथ पूरी तरह शेयर नहीं किये जा सकते थे। लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने जिस मित्र के साथ जो पहलू शेयर किया, वह पूरी ईमानदारी के साथ किया। फिर भी, आज इतने समय के बाद भी उनके दोस्त और दुश्मन, प्रशंसक और आलोचक, दर्शक, पाठक और इतिहासकार यही तय नहीं कर पाए कि वह व्यक्ति वास्तव में था क्या? उसके कृतित्व का मूल्य और महत्त्व क्या और कितना है? वह असीम भावुक था या चरम बौद्धिक? अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी अवसरवादी था या तमाम उपलब्धियों के मोहपाश को पल-भर में काटकर किसी नये, अज्ञात और बड़े लक्ष्य की ओर निर्भय आगे बढ़ जानेवाला निरासक्त संन्यासी? मोहन राकेश के अन्तर्विरोधी एवं चौंकानेवाले अप्रत्याशित-अनपेक्षित कारनामों को लेकर उनके दोस्त और दुश्मन समान रूप से सच्चे-झूठे किन्तु चकित करनेवाले क़िस्से, प्रसंग, लतीफ़े, कथा-कहानियाँ, ख़बरें और अफ़वाहें रचते रहे हैं। सत्य और कल्पना तथा हक़ीक़त और फ़सानों से उपजी इस धुंध ने राकेश के जीवनकाल में ही उन्हें एक जीवित किंवदन्ती बना दिया था। ‘कीर्तिशेष : मोहन राकेश’ पुस्तक उन्हें, उनके जटिल व्यक्तित्व को एक नये सिरे से समझने का रास्ता खोलती है। यहाँ आप उनके समकालीनों, सहकर्मियों, मित्रों, सम्पादकों, प्रकाशकों, नाट्य-निर्देशकों, अभिनेताओं, फ़िल्मकारों, आलोचकों, मीडिया-कर्मियों और शिष्यों के संस्मरण पढ़ेंगे। उम्मीद है कि इनसे हम मोहन राकेश के व्यक्तित्व को कुछ बेहतर समझ सकेंगे।
Patheya
- Author Name:
Jawaharlal Kaul
- Book Type:

- Description: दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ की कल्पना जैसे अनायास ही साकार हुई, वैसे ही मेरा उससे जुड़ना भी अनायास ही था। आत्म-साक्षात्कार के लिए निकले एक साधक के सामने अचानक कुष्ठ रोगियों के रूप में समाज खड़ा हो गया और ‘दिव्य प्रेम मिशन’ का जन्म हुआ। इस पुस्तक में पहाड़ों की संवेदनशीलता और पीड़ा की बातें हैं, जिन्हें हमारे पूर्वजों ने अरण्य नाम दिया, उन पर समाज और शासन के बीच तलवारें खिंचने की आशंकाएँ हैं, हिमानियों के लुप्त होने के खतरे, विकास के नाम पर प्रकृति के दोहन को शोषण में बदलने के कुचक्रों की दास्तान हैं। तीर्थों को निगलते पर्यटन स्थल, मलिनता के बीच तीर्थों की पवित्रता के दावे, अपनों से ही त्रस्त गंगा और ऐसी ही अनेक विचारणीय बातें हैं। बीच-बीच में महान् परिव्राजक विवेकानंद, योगी अरविंद, युगांतरकारी बुद्ध और स्वच्छता के पुजारी गांधी सरीखे लोगों की याद भी आती रही; जो पाथेय मिला, वह भौतिक नहीं, बौद्धिक और आध्यात्मिक था। वह बाँटकर ही फलित होता है, इसलिए आपके सामने है।
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