Ins and Outs of INDIAN THEATRE
Author:
H S ShivaprakashPublisher:
Sahitya AkademiLanguage:
EnglishCategory:
General-non-fiction3 Reviews
Price: ₹ 166
₹
200
Unavailable
Anthology of Essays on Contemporary Indian Theatre
ISBN: 9789390866076
Pages: 190
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Book Type:

- Description: भारतीय समाजात अनुदार प्रवृत्तींचे प्रस्थ 1970 आणि नंतरच्या दशकांत वाढत गेले. मार्क्सवादी-लेनिनवाद्यांना भारतीय राज्यघटना कधीच पचनी पडली नाही; कारण तिने कोणा एका पक्षाचा (म्हणजे त्यांच्या पक्षाचा!) विशेषाधिकार मान्य केला नाही. तशीच ती हिंदू कट्टरवाद्यांनाही पचली नाही; कारण तिने कोणा विशिष्ट धर्माला (म्हणजे त्यांच्या धर्माला!) विशेषाधिकार दिले नाहीत. देशाला स्वातंत्र्य मिळाल्यापासूनच, धार्मिक अतिरेक्यांनी आणि डाव्या क्रांतिकारकांनी बळाचा वापर करून त्यांच्या पोथिनिष्ठा लादण्याचे वारंवार प्रयत्न केले. अलीकडच्या दशकांत लोकशाही कार्यपध्दतीला तिसरा धोका समोर येऊ लागला आहे. हा आहे भ्रष्टाचाराचा आणि व्यक्ती, घराणी आणि जातगटांच्या मार्फत सार्वजनिक संस्था आणि राजकीय पक्ष यांच्यावर ताबा मिळवत, घटनात्मक केंद्र पोखरून दुर्बळ होण्याचा... जिद्द हरवल्यामुळे वा संधिसाधूपणामुळे काही लेखक व बुध्दिजीवींनी काँग्रेसची खुशमस्करी सुरू केली. या लाचारीचा उद्वेग आल्याने इतर काहींनी भारतीय जनता पक्षाची कास धरली, पर्यायाने हिंदू धर्माधिष्ठित राष्ट्राच्या उद्दिष्टावर आपली मोहोर उठविली. बुध्दिजीवींचा तिसरा गट अपराधी भावनेपोटी वा निव्वळ मूर्खपणातून, मध्य भारतातील जंगल व डोंगराळ प्रदेशांत आपला प्रभाव वाढविण्याच्या प्रयत्नात असलेल्या क्रांतिकारी माओवाद्यांचा समर्थक बनला... वास्तव्य दिल्लीत नाही, तर बंगलोरमध्ये असल्यामुळे असेल कदाचित, मी राजकीय पक्षांपासून माझे स्वातंत्र्य अबाधित ठेवू शकलो. काँग्रेस, संघ परिवार आणि संसदीय डावे यांच्याविषयीच्या माझ्या मतभेदाच्या मुद्यांची चर्चा या पुस्तकातील निवडक निबंधांत केली आहे... मी माओवाद्यांचाही टीकाकार आहे; कारण सभ्यता आणि लोकशाही यांना काँग्रेसी भ्रष्टाचार आणि संघ परिवाराची असहिष्णुता यांपासून जेवढा धोका आहे, तेवढाच माओवाद्यांपासूनही आहे, असे मी मानतो. Deshbhakta aani Andhabhakta : Ramchandra Guha, Translated by Satish Kamat देशभक्त आणि अंधभक्त : रामचंद्र गुहा, अनुवाद : सतीश कामत
Pratinidhi Hindi-Nibandhkar
- Author Name:
Jyotishwar Mishra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक 'प्रतिनिधि हिन्दी-निबन्धकार' इस भावना से प्रेरित होकर लिखी गयी है कि हिन्दी के प्रमुख निवन्धकारों की निबन्ध कला का समग्र परिचय एक ही स्थान पर उपलब्ध हो सके। यह पुस्तक प्रथम बार जनवरी, सन् 1975 में प्रकाशित हुई थी। कई संस्करणों के बाद अब पुस्तक के इस नये संस्करण में अनेक उल्लेखनीय नवीन निबन्धकारों को भी सम्मिलित कर लिया गया है। अन्तिम तीन निबन्धकारों- 'दिनकर', हरिशंकर परसाई तथा शरद जोशी का विवेचन डॉ. ज्योतीश्वर मिश्र द्वारा किया गया है। ग्रन्थ में बालकृष्ण भट्ट से लेकर शरद जोशी तक कुल 22 प्रतिनिधि हिन्दी निबन्धकारों और शैलीकारों को स्थान दिया गया है। प्रत्येक निबन्धकार के सम्पूर्ण निबन्ध साहित्य का परिचय, उसके निबन्धों का वर्गीकरण, निबन्धों में व्यक्त विचारधारा, निबन्ध-भाषा, विविध शैली-रूपों तथा निबन्ध साहित्य में उसके स्थान आदि का विवेचन किया गया है। निबन्धकारों के बारे में प्रतिष्ठित आलोचकों के मत भी यथास्थान उद्धृत हैं। आशा है निबन्ध साहित्य के अध्येता इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे।
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