The Prophet
Author:
Khalil GibranPublisher:
Mandrake PublicationsLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 119.2
₹
149
Unavailable
मोहब्बत तुम्हारे सिर पर ताज रखती है और तुम्हें सूली पर भी चढ़ा देती है।’’ ‘‘मोहब्बत अपने अलावा तुम्हें कुछ नहीं देती और मोहब्बत अपने अलावा तुमसे कुछ नहीं लेती।’’ ‘‘तुम्हें क़ानून बनाने और उसे लागू करने में कितना मज़ा आता है; लेकिन इससे भी ज़्यादा ख़ुशी तुम्हें उस वक़्त होती है जब तुम उसे तोड़ते हो।’’ ‘‘और अगर कोई ख़ौफ़ है, जिसे तुम मिटाना चाहते हो तो उसकी जगह तुम्हारे अपने ही दिल में है, न कि उस शख़्स के वजूद में, जिससे तुम डर रहे हो।’’ ‘‘हमेशा यही होता आया है कि मोहब्बत अपनी गहराई से बेख़बर रहती है, यहाँ तक कि जुदाई की घड़ी आ जाये।’’
ISBN: 9788194646389
Pages: 100
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव की त्रयी को ‘नई कहानी’ आन्दोलन के प्रवर्त्तक और उन्नायक के रूप में जाना जाता है। प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह को नई कहानी की प्रवृत्तियों को सूत्रबद्ध करने का श्रेय है। यह बात ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद के ये चार शिखर रचनाकार आपस में गहरे मित्र थे, 1950 तथा ’60 के दशक में इन लोगों के बीच ज़बरदस्त अन्तर्संवाद भी था। आलोचना-प्रत्यालोचना और आत्मालोचना से भरे इस अन्तर्संवाद ने उस आन्दोलन को बल दिया, इन रचनाकारों को भी इससे ऊर्जा मिली यह वह समय था जब भारत का नया समाज बन रहा था और साहित्य का भी स्वरूप बदल रहा था। ऐसे में कुछ भी नया करने के लिए गहन विचार-विमर्श जरूरी था और उसका सबसे सुगम मार्ग था पत्र। मित्रों की स्वस्थ आलोचना उस समय का युगधर्म था। जाहिर है, रचनाशीलता के विकास में भी उसकी गहरी भूमिका थी। राजेन्द्र यादव के नाम मोहन राकेश, कमलेश्वर और डॉ. नामवर सिंह तथा राजेन्द्र यादव के नामवर सिंह के लिए पत्रों का यह संग्रह अपने समय के लेखकीय अन्तर्संवादों का जीवन्त दस्तावेज़ है। इनके माध्यम से इन लेखकों के रचनात्मक संघर्ष को भी समझा जा सकता है और साहित्य की उन अन्तर्ध्वनियों को भी, जिन्हें साहित्य के किसी इतिहास के माध्यम से सुन-समझ पाना सम्भव नहीं है।
Chanakya Ka Naya Ghoshnapatra
- Author Name:
Pawan Kumar Verma
- Book Type:

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Description:
लगभग 2500 वर्ष पहले, ईसा पूर्व चौथी सदी में, जब विश्व के अधिकांश भागों की सभ्यता अपनी शैशवावस्था में थी, चाणक्य नाम के एक विद्वान और विचारक ने ‘अर्थशास्त्र’ शीर्षक से एक ग्रन्थ लिखा, जो संसार में राजनीति पर सर्वाधिक गहन और सघन रचनाओं में से एक है।
‘अर्थशास्त्र’ में लगभग 6000 श्लोक और सूत्र हैं। यहाँ व्यवस्थित रूप से प्रभावशाली प्रशासन,
लोककल्याण, आर्थिक समृद्धि, शासक के गुण, उसके मंत्रियों की योग्यता, अधिकारियों के कर्तव्यों, प्रशासनिक क्षमता, नागरिक दायित्व, क़ानून के शासन का महत्त्व, प्रभावी न्याय व्यवस्था, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के तरीक़े, दंडनीति अथवा अपराधियों को दंडित करने की नीति, विदेशनीति के संचालन, युद्ध की तैयारी और संचालन, गठबन्धनों की नीति और अन्य बातों पर राष्ट्रीय हितों की सर्वोपरिता की चर्चा की गई है।
यह निश्चित रूप से वही क्षेत्र हैं, जिनमें अपेक्षाकृत नवस्वतंत्र गणतंत्र भारत लगता है कि राह से भटका हुआ है। किन्तु यदि दो हज़ार साल पहले चाणक्य जैसा कोई व्यक्ति, इन्हीं परिस्थितियों में परिवर्तन ला सकता था और प्रशासन का एक नूतन दृष्टिकोण रच सकता था, तो कोई कारण नहीं कि हम भी यह न कर सकें और इस पुस्तक का प्रतिपाद्य भी यही है। क्षुद्र अहंमन्यता, बौद्धिक विशिष्टता या पक्षधर संकीर्णता से परे इसका उद्देश्य केवल यह है कि ‘परिवर्तन’ के लिए राष्ट्रव्यापी रूप से तत्काल और गहन बहस की शुरुआत हो सके।
Aranyapantha
- Author Name:
Pt. Sanjay Tignath
- Book Type:

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Description:
‘अरण्यपंथा’ में वे समस्त मौलिक दुविधाएँ अन्तर्निहित हैं जो ज्ञान के गहन प्रान्तरों में विद्यमान हैं, क्योंकि ‘अरण्यपंथा’ उन्हीं के अपार और संकीर्ण पथ से निकलती है। इसमें मात्र आशय है किन्तु प्रयोजन स्पष्ट नहीं है। यदि प्रयोजन के आग्रह को त्यागा जा सकता हो तो सम्भवतः ‘अरण्यपंथा’ रुचिकर लगे।
मैंने उपनिषद ग्रन्थों का पुनर्अध्ययन किया और यहाँ पाया कि मैं उनकी अनुभूतियों को पहले की अपेक्षा अधिक निकटता से अनुभव कर रहा था, तथापि ‘अरण्यपंथा’ न तो वैज्ञानिक व्याख्याओं में घुसती है और न ही उपनिषद को अपने तर्क का हिस्सा बनाने की चेष्टा करती है। सचमुच उपनिषद को तो इस पुस्तक के कथ्य में बिना स्पर्श करते हुए ही मात्र आनन्द के स्रोत की तरह उद्धृत किया गया है।
—लेखक की क़लम से
1000 Veer Savarkar Prashnottari | Revolutionaries And Pioneer Of Hindutva
- Author Name:
Anita Gaur
- Book Type:

- Description: यह धरा मेरी यह गगन मेरा, इसके वास्ते शरीर का कण-कण मेरा' - इन पंक्तियों को चरितार्थ करने वाले क्रांतिकारियों के आराध्य देव स्वातंत्र्य-वीर विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। वे न केवल स्वाधीनता संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान् क्रांतिकारी, चिंतक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं, जिन्होंने हिंदू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया था। अप्रितम क्रांतिकारी, दृढ़ राजनेता, समर्पित समाज-सुधारक, दार्शनिक, दृष्टा, महान् कवि और महान् इतिहासकार आदि अनेकोनेक गुणों के धनी वीर सावरकर हर भारतीय की श्रद्धा के केंद्रबिंदु हैं। उनका संघर्ष, त्याग, उन्हें मिली यातनाएँ और तिरस्कार की करुणगाथा हमें उद्वेलित करती है, राष्ट्रभाव जगाती है।
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