Suraj Chand Sitare, Naksh-A-Paa Hain Saare
Author:
Syed Ali KazimPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
अली काज़िम उर्दू के जवाँ-साल और जवाँ-फ़िक्र शायर हैं। शायरी उन्हें विरासत में मिली है। मशहूर शायर और उस्ताद-ए-फ़न सैयद हसन काज़िम उरूज़ की तीसरी नस्ल में हैं। उनके वालिद महमूद काज़िम साहब ख़ुद एक अच्छे शायर और माहिर उरूज़ हैं। अली काज़िम की परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई<strong>,</strong> जहाँ दिन-रात शेर-ओ-अदब की चर्चा थी। उन्हें अदब का बहुत गहराई से मुतालअ करने का मौक़ा तो नहीं मिला<strong>,</strong> लेकिन घर की गुफ़्तगू और शोअरा की सोहबतों में अदब और शायरी का जो इल्म और शौक़ मिला<strong>,</strong> वो कम लोगों को नसीब होता है।</p>
<p>शायरी की दुनिया में अली काज़िम की ग़ज़लें तवातुर के साथ उर्दू अख़बारात और रेसायल में शाये होती रही हैं<strong>,</strong> जिससे उनकी ज़ूदगोई का अन्दाज़ा होता है। अली काज़िम की ग़ज़लों में एक ताज़गी और नयापन है<strong>,</strong> जिसे पढ़कर मुसर्रत का एहसास होता है :</p>
<p>“वो अकेला रात पर भारी पड़ा कल भी <strong>‘</strong>अली<strong>’</strong></p>
<p>शम्अ तारे चाँद सब रौशन रहे बेकार में।”</p>
<p>भारी पड़ने और बेकार में रौशन रहने में जो नजाकत<strong>, </strong>एहसास और ज़बान का लुत्फ़ है<strong>,</strong> वो बहुत ख़ूबसूरत है। इस तरह आम तौर पर उनके यहाँ इज़हार-ओ-बयान में कोई तसन्ना नहीं है। वो बड़ी सादगी और बेतक़ल्लुफ़ी से अपने जज़्बात और महसूसात को नज़्म कर देते हैं :</p>
<p>“रुसवाई हर क़दम पे मेरे साथ साथ थी</p>
<p>आवाज़ दे के तुम को बुला भी नहीं सका।”</p>
<p>(प्राक्कथन से)
ISBN: 9788126720262
Pages: 215
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Rubaru : Laxmikant
- Author Name:
Laxmikant Verma
- Book Type:

-
Description:
‘रूबरू : लक्ष्मीकान्त’ कवि की काव्य-यात्रा की अन्तिम परिणति है। ‘नयी कविता’ के परिसर में लक्ष्मीकान्त वर्मा का व्यक्तित्व सबसे अलग क़िस्म के विकास की छाप छोड़ती है। काव्य में उनका सर्जनात्मक व्यक्तित्व अधिक गहराई और व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है। ‘नयी कविता' में लक्ष्मीकान्त जी की अनेक कविताएँ छपकर आई थीं।
लक्ष्मीकान्त जी का कहना है कि ‘इन कविताओं के विषय में मुझे इतना ही कहना है कि यह मेरी व्यक्तिगत अनुभूतियों का संग्रह है। कहीं-कहीं इसमें पूरा परिवेश हमारे साथ रहा है, कहीं-कहीं मैं बिलकुल अकेला रह गया हूँ। जहाँ परिवेश ने मेरी अनुभूति को गहराई दी है, वहाँ मैं उसका ऋणी हूँ लेकिन जहाँ मैं बिलकुल अकेला रह जाता हूँ। वहाँ किसी को दोषी नहीं ठहराता क्योंकि अन्ततोगत्वा सब छूट जाते हैं। केवल कवि का व्यक्तित्व और स्थितियों का गहनतम दबाव यही दो शेष बचते हैं। उस साक्षात्कार की अभिव्यक्ति कठिन भी है और जटिल भी और वही कवि के व्यक्तित्व की परख भी होती है।’
कवि व्यक्तित्व की परख की जिस कसौटी की चर्चा लक्ष्मीकान्त जी ने इन पंक्तियों में की है, वह कसौटी आजीवन उनके काव्य के लिए निरन्तर बनी रही। ‘रूबरू : लक्ष्मीकान्त’ की प्रत्येक कविता आत्मदर्शन की कविता है। किन्तु यह आत्मदर्शन संकुचित आत्मदर्शन नहीं है। समाज की विस्तृत भूमि पर खड़ा एक रचनाकार समाज द्वारा कितना देखा जा सका और कितना अनदेखा रह गया, इसकी गहरी पीड़ा इन कविताओं में झलकती है।
‘‘नहीं जानते लक्ष्मीकान्त। इस पिंजरे की मैना—कब और किस दिन उड़ जाएगी और यादगार रहेगा केवल एक ठाठर। जिसे कहते हैं मिट्टी और जिस मिट्टी को सभी चाहते हैं। अकारथ न जाय—पूरी की पूरी स्वारथ हो जाय।’’ ‘रूबरू : लक्ष्मीकान्त’ की कविताओं को गहराई से समझना एक अनिवार्य शर्त है और यही कवि के प्रति सबसे गहरी श्रद्धांजलि भी है।
Gubare-Ayyaam
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Aanch
- Author Name:
Sumita Kumari
- Book Type:

-
Description:
सुमिता कुमारी प्रतिभावान कवि और गद्यकार हैं। उन्होंने अपने आस-पास के जीवन को कविता में ढाला है और कुछ मर्मस्पर्शी कविताओं की रचना की है। यहाँ स्त्रियों के पारिवारिक जीवन और श्रमिक स्त्रियों के संघर्ष तथा जीवट के नए चित्र मिलते हैं। ‘आँच’ शीर्षक कविता जीवन-संग्राम और प्रतिरोध की विशिष्ट कविता है। धान रोपती स्त्रियों और वृद्धाओं के जीवन के विश्वसनीय रेखांकन द्रवीभूत करते हैं। इन कविताओं की तेज आँच हमें तप्त कर देती है। अधिकांशतः ये कविताएँ गद्यबद्ध हैं। कहीं-कहीं लय का भी मिश्रण है। भाषा सरल, सहज और मुहावरेदार है। मगही के अनेक शब्दों का निपुण व्यवहार कवि की सृजन-क्षमता को दर्शाता है और उनकी रचनाओं को अद्वितीय बनाता है। कुछ नए बिम्ब और अलंकरण भी कवि ने सिरजे हैं। मगही भाषा की समृद्धि का समुचित उपयोग हिन्दी कविता में कम ही हो पाया है।
पेशे से प्रशासनिक पदाधिकारी होते हुए भी सुमिता जी ने निरन्तर काव्य-साधना की है और जीवन को बहुत ध्यान से देखा है। वास्तव में बाहरी दुनिया के साथ-साथ आन्तरिक दुनिया का भी अनवरत अवलोकन करती रहती हैं और अत्यन्त व्यस्त दिनचर्या के बीच काव्य-रचना के लिए किंचित अवकाश निकाल ही लेती हैं। इसीलिए इन कविताओं में आवेग और त्वरा है जो सुमिता जी को बाक़ी सभी समकालीनों से पृथक एक विशिष्ट स्थान पर स्थापित करती है।
आशा है कि सहृदय पाठक इन कविताओं का स्वागत करेंगे। हम यह भी आशा करते हैं कि भविष्य में सुमिता जी से परिपक्वतर एवं श्रेष्ठतर कविताएँ मिलेंगी और एक दिन वह कविता के शिखर की ओर उन्मुख होंगी। अस्तु। —अरुण कमल
Do Sharan
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
निराला की सम्पूर्ण गीत-रचना का एक बहुत बड़ा भाग शरणागति या प्रपत्ति-भाव के गीतों से सम्बद्ध है। भक्ति, प्रार्थना और शरणागति के गीत ‘परिमल’ संग्रह से ही हमें मिलने लगते हैं। इसकी क्षीण ध्वनि उनके पहले संग्रह ‘अनामिका’ की ‘माया’ कविता में हमें सुनाई देती है। ‘या कि ले कर सिद्धि तू आगे खड़ी, त्यागियों के त्याग की आराधना’—कहकर कवि अपनी रचनात्मकता की उस विशेष दिशा की ओर संकेतित करता है, जो आगे चलकर उसके अवसाद, उसकी उदासी, खिन्नता, मृत्यु-भय और आत्म-जर्जरता से होती हुई, अन्ततः शरणागति की प्रार्थना-भूमि पर उसे उतारती है।
‘आराधना’ और ‘अर्चना’ में उसकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। अकेले ‘अर्चना’ में शरणागति के लगभग 34-35 गीत संगृहीत हैं। ‘गीत-गुंज’ और उनके अन्तिम संग्रह ‘सांध्य काकली’ में भी यह प्रार्थना-क्रम तिरोहित नहीं हुआ है। यद्यपि अपने जीवन के अन्तिम दिनों में निराला ‘प्रार्थना की व्यर्थता’ की बात भी करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन यह उत्कट नैराश्य के क्षणों की ही अभिव्यक्ति लगती है, अन्यथा वे अपनी कारुणिक आत्म-जर्जरता में लगातार ‘प्रभु’ की अमर फ़ैंटेसी में शरण लेते हुए दिखाई देते हैं। उनके सारे संग्रहों को मिलाकर शरणागति और प्रार्थना-क्रम के इन गीतों की संख्या लगभग 90 के आस-पास पहुँचती है। इस तरह निराला के अन्तःसंगीत का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग ‘प्रभु’ के इसी साक्षात्कार से सम्बद्ध है।
वरिष्ठ लेखक दूधनाथ सिंह ने निराला की प्रपत्ति भाव की कविताओं को संकलित किया है। इन कविताओं में मनुष्य की उस आत्मिक मुक्ति की जद्दोजहद को सहज ही परिलक्षित किया जा सकता है, जो दरअसल सम्पूर्ण मानवमुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा है।
Aashna
- Author Name:
Yogita bajpaye Kanchan
- Book Type:

- Description: Yogita bajpaye Kanchan Potry Book
Pratinidhi Kavitayen : Bharatbhushan Agrawal
- Author Name:
Bharatbhushan Agrawal
- Book Type:

-
Description:
भारतभूषण अग्रवाल की कविता बिना किसी नाटकीयता, बिना कोई चीख़-पुकार मचाए ईमानदारी से अपनी सच्चाई को देखती-परखती कविता है। उसमें रूमानी आवेग से लेकर मुक्त हास्य, विद्रूप से लेकर अनुराग और कोमलता की कई छवियाँ, सभी शामिल हैं। कामकाजी मध्यवर्ग की विडम्बनाएँ, संवेदनशील व्यक्ति के ऊहापोह, शहराती ज़िन्दगी के रोज़मर्रा के सुख-दु:ख आदि को भारत जी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनी कविता में जगह देते हैं। उनमें अपनी विशिष्टता का रत्ती-भर भी आग्रह नहीं है। बल्कि अगर आग्रह है तो अपनी सीधी-सादी, सरल जान पड़ती लेकिन दरअसल जटिल साधारणता का। यह आग्रह उनकी आवाज़ को और सघन तथा उत्कट बनाता है।
उनकी कविता अपने को महत्त्वाकांक्षा के किसी विराट लोक में विलीन नहीं करती। वह अपनी उत्सुकताओं और बेचैनियों को जतन से नबेरती है। वह कविता में विकल्प इतना नहीं खोजती जितना सच्चाई की ही कई अन्यथा अलक्षित रह जानेवाली परतों को। कविता में कवि का यह अहसास बराबर मौजूद है कि सच्चाई और ज़िन्दगी कविता से कहीं बड़ी और व्यापक हैं और वे कविता में अँट नहीं पा रही हैं।
Jal Padya
- Author Name:
Taslima Nasrin
- Book Type:

- Description: दग्ध हृदय की अत्यन्त तरल और सजल अभिव्यक्ति हैं तसलीमा नसरीन की ये कविताएँ—अनवद्य जल पद्य है यह। जैसे पानी को मुट्ठी में बाँधकर नहीं रखा जा सकता, पानी की यह पुकार भी कुछ वैसी ही है। यह प्रवाह आपको बहाता है, डुबाता है, इसमें आप तैरते हैं और यह सीधे हृदय में उतर जाता है। नितान्त व्यक्तिगत-सी लगती ये कविताएँ दरअसल राख हो रहे जीवन को सजल और प्राणवान बनाने का उपक्रम हैं और गहरी जिजीविषा से उपजी हैं। जीवन के प्रति अदम्य मोह और ललक से भरी हैं ये कविताएँ। देश से, परिवेश से और परिवार से वंचित, निर्वासित जीवन बिता रही तसलीमा की इन कविताओं में यद्यपि दुःख की एक सर्वग्रासी छाया है लेकिन यह भी है कि दु:ख को जीकर-बरतकर ही उदात्त और महत्तर की आत्मोपलब्धि की जा सकती है। तसलीमा कहती हैं : ‘कविता को जन्म देने के लिए स्त्री होना होता है पहले।’ स्त्री-पुरुष के लिंग-भेद को अस्वीकार करती तसलीमा जीवन को अविभाज्य रूप में देखती हैं और ख़ुद के जीवन को ही काव्य-वस्तु बनाकर जिए और सहे जा रहे की नितान्त अकपट तथा साहसपूर्ण अभिव्यक्ति करती है। स्वीकार-अस्वीकार से लेकर धिक्कार-हाहाकार तक ये कविताएँ वैसी ही हैं जैसे जल की धारा चट्टान से टकराती है, उसे डुबाती है, उसका अतिक्रमण करती है और कई बार थककर चट्टान पर ही सिर रखकर सुस्ताती भी है। इन कविताओं में अपने प्रकृत रूप में उपस्थित हैं तसलीमा नसरीन।
Adhoora Koi Nahin
- Author Name:
R. Anuradha
- Book Type:

-
Description:
यह 1998 का साल था, जब आर. अनुराधा को पता चला कि उन्हें स्तन कैंसर है। उन दिनों कैंसर आज के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा डरावना था। लेकिन अनुराधा ने बड़े हौसले के साथ इस बीमारी का सामना किया। हँसते हुए, घूमते हुए, दोस्तों से फ़ोन पर बतियाते हुए, पढ़ते हुए, लिखते हुए, इन सबके बीच कीमोथेरेपी के कई यंत्रणादायी दौर झेलते हुए, अपने बाल झड़ते देखते हुए, अपनी कमज़ोर पड़ती प्रतिरोधक क्षमता को महसूस करते हुए। सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के बाद अन्तत: वे इन सबसे उबरीं। लेकिन इस दौर में हासिल अनुभव पर उन्होंने एक किताब लिखी—‘इन्द्रधनुष के पीछे-पीछे : एक कैंसर विजेता की डायरी’।
2005 के शुरू में जामिया मिल्लिया के कुछ छात्रों ने अनुराधा पर एक फ़िल्म बनाई—‘भोर’। पूरी फ़िल्म में अनुराधा की आवाज़ के अलावा कोई वायस ओवर नहीं है। फ़िल्म में अनुराधा बताती हैं—कैंसर के ख़िलाफ़ जंग में शरीर एक मैदान होता है, लेकिन यह लड़ाई बहुत सारे लोगों की मदद से जीती जाती है। घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार इस युद्ध में ज़रूरी रसद पहुँचाने का काम करते हैं। जब यह फ़िल्म बन ही रही थी कि अनुराधा को दुबारा कैंसर ने घेर लिया। फिर वही कीमोथेरेपी, सर्जरी, रेडियोथेरेपी वही सब कुछ और वही हिम्मत—अनुराधा ने इस दौरान भी फ़िल्म शूट करने की इजाज़त दी।
जैसा कि दोस्तों को भरोसा था, अनुराधा यह जंग भी जीतकर निकलीं। इस दौरान उन्होंने कैंसर के डर के ख़िलाफ़ एक पूरी लड़ाई छेड़ी। कैंसर की जद में आई दूसरी महिलाओं से जुड़ीं, यह समझाती रहीं कि कैंसर से लड़ा जा सकता है और बताती रहीं कि कैसे लड़ा जा सकता है.
साल 2012 में अनुराधा को फिर से कैंसर ने घेर लिया। इस बार उसने उनकी हड्डियों पर हमला किया है। हमेशा की तरह अनुराधा लड़ती रहीं. हमेशा की तरह. और इस बार उन्होंने बहुत सारी कविताएँ लिखीं।
मैं क़तई नहीं चाहूँगा कि आप इन कविताओं को किसी सहानुभूति के साथ पढ़ें। अनुराधा को ऐसी सहानुभूति नहीं चाहिए। वह हममें से कई लोगों से ज़्यादा स्वस्थ और मज़बूत बनी रहीं। हाँ, इन कविताओं के आस्वाद के लिए ज़रूरी है कि इन्हें कलावादी आग्रहों के जंजाल से बाहर निकलकर संवेदनशीलता से पढ़ा जाए। वैसे भी ये सिर्फ़ निजी तकलीफ़ की कविताएँ नहीं हैं, ये दर्द और मृत्यु के विरुद्ध मनुष्य के साझा युद्ध की कविताएँ हैं।
—प्रियदर्शन
Uska To Koi Gaon Hoga Hi Nahi
- Author Name:
Manoj Kumar Sharma
- Book Type:

-
Description:
‘‘मनोज कुमार शर्मा की कविताएँ आगामी कविता की ऐसी दस्तकें हैं जिनकी नादमयता में हम लोकभाषा की महीन किन्तु अविच्छिन्न उपस्थिति देख सकते हैं। शायद अच्छी कविता का लक्ष्य भी यही है। इनके पास जो भाषा है, वह आकस्मिक-सी नहीं है बल्कि वह धीरे-धीरे किसी उफनती हुई बाढ़ग्रस्त नदी की वास्तविकता की तरह है।’’
—गंगाप्रसाद विमल
‘‘प्रीत और सौन्दर्य की जो छवियाँ कवि श्री मनोज ने उकेरी हैं, वे हार्दिक हैं।’’
—ताराप्रकाश जोशी
‘‘अभिव्यक्ति का माध्यम शब्द, भाव और शिल्प है। मनोज कुमार शर्मा की कविताएँ अधिक लम्बी नहीं हैं। कहा जा सकता है कि छोटी-छोटी कविताओं में बहुत बड़ी बातों को सहज में कहने का ही नहीं अपितु ध्यान आकर्षित करने का सफल प्रयास है।’’
—मधुमती
(राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर)
Pida, Neend Aur Ek Ladki
- Author Name:
Prerana Sarwan
- Book Type:

-
Description:
डायरी से :
दु:ख का गर्भपात नहीं होता है। दु:ख सतमासे भी नहीं होते हैं। दु:ख तो सम्पूर्ण रूप से जन्मते हैं जीवन की कोख से, इस विचार मात्र से मेरे भीतर दु:खों की ज्वालामुखी उमड़ पड़ती है। उसी बहते हुए लावे में हैं हज़ारों दु:खों के भ्रूण, जो एक क्षण में पूर्ण रूप से जन्म लेते हैं। जो मेरे पतन के कारण हैं या उन्नति के, मैं नहीं जानती। मैंने स्वयं से बाहर निकलकर कभी कुछ देखने का साहस या प्रयास नहीं किया। मैं भीतर ही भीतर जीवन की खाई को गहरा करने में लगी रहती हूँ। मुझे याद है, मुझे चाँद ने कभी नहीं छुआ लेकिन बन्द कमरों में आकर सूरज की आग मेरी कोमल देह को झुलसाती रही, पीड़ा देती रही।
11 जुलाई, 1999
मेरी प्रत्येक कविता जीवन की प्रत्येक साँस का ऋण चुकाती है। मेरे जाने पर जीवन मुझ पर एहसान या दया की दुहाई न दे। मैं नहीं कहूँगी अपनी व्यथा, पर मेरी कविता जीवन के मुझ पर किए हुए अन्याय की कथा कहेगी। मृत्यु के बाद भी मेरी कविता ख़ामोश नहीं होगी। मेरी कविता की सत्यता से यह जीवन मृत्यु के बाद भी नहीं बच पाएगा।
25 जनवरी, 1999
कितना बचाया पर आज आख़िरकार गिन्नी चिड़िया के एक बच्चे को खा गई। हम क्या कर सकते हैं! ईश्वर ने जीवों की यही नियति निर्धारित की है। उसकी लीला वो ही जाने, चिड़िया जैसी कितनी इच्छाएँ मेरी रोज़ मरती हैं और आँसुओं में बहा दी जाती हैं।
20 मई, 2011
Amaltas
- Author Name:
Bipin Kumar Sharma
- Book Type:

- Description: Hindi poems by Bipin Kumar Sharma
Baat Phoolon Ki
- Author Name:
Sarwjeet Sarw
- Book Type:

- Description: This book has no description
Media Monthon
- Author Name:
Dr. Mukesh Kumar
- Book Type:

- Description: Book
Nigahon Ke Saye
- Author Name:
Jaan Nisar Akhtar
- Book Type:

-
Description:
जाँ निसार अख़्तर
फरवरी, 1914 को खैराबाद, ज़िला—सीतापुर में जन्म हुआ। पिता मुज़्तर खैराबादी उर्दू के प्रसिद्ध कवियों में से थे और घर का वातावरण साहित्यिक होने के कारण उनमें बचपन से ही शे’र कहने की रुचि पैदा हुई और दस-ग्यारह वर्ष की आयु से कविता करने लगे। सन् 1939 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर में उर्दू के प्राध्यापक नियुक्त हुए, किन्तु 1947 में साम्प्रदायिक दंगे छिड़ जाने से त्याग-पत्र देकर भोपाल चले गए और वहाँ हमीदिया कॉलेज के उर्दू-फ़ारसी विभाग के अध्यक्ष बने। फिर 1950 में वहाँ से त्याग-पत्र देकर बम्बई चले गए। प्रारम्भ के रूमानी काव्य में धीरे-धीरे क्रान्तिकारी तत्त्वों का मिश्रण होता गया और वे यथार्थवाद की ओर बढ़ते गए। साम्राज्यवाद का विरोध और स्वदेश-प्रेम की भावना से इनकी कविता ओत-प्रोत रही। दूसरा महायुद्ध, आर्थिक दुर्दशा, राजनीतिक स्वाधीनता, विश्वशान्ति और ऐसी ही अनेक घटनाएँ हैं जिनको ‘अख़्तर’ ने वाणी प्रदान की। आज के जीवन-संघर्ष को वे कल के नव-निर्माण का सूचक मानते थे। उनके काव्य में सामाजिक यथार्थ का गहरा बोध परिलक्षित होता है और उनके काव्य का लक्ष्य वह मानव है जो प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सुन्दर, सरस और सन्तुलित जीवन के निर्माण के लिए संघर्षशील है। उनके कला-बोध की परिपक्वता एक ओर तो उनकी सम्पन्न विरासत और दूसरी ओर उर्दू-फ़ारसी साहित्य के गहन अध्ययन की देन है। प्रस्तुत पुस्तक का विषय-चयन तथा काव्य-सम्पादन उनकी उपर्युक्त विशेषताओं का ही परिणाम है। वे वर्षों फ़िल्म-जगत से सम्बद्ध रहे और उनके अनेक फ़िल्मी गीत विशेषतः लोकप्रिय हुए।
निधन: 18 अगस्त, 1976
Subhadra Kumari Chauhan Ki 75 Kavitayen
- Author Name:
Anil Kumar
- Book Type:

- Description: सुभद्रा कुमारी चौहान आधुनिक हिंदी साहित्य की ऐसी लोकप्रिय कवयित्री हैं, जिनकी कविताओं ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीयों के होंठों का गीत बनकर गाँव-गाँव, गली-गली स्वाधीनता का अलख जगाया। उन्होंने ऐतिहासिक और राष्ट्रीय भावनाओं को समसामयिक व राजनीतिक जीवन के तात्कालिक संदर्भों से जोड़ा। उनकी कविता में राष्ट्रीयता 'प्रलयंकारी उच्च घोषणाएँ' बनकर नहीं आई, वरन उसने संघर्षमयी चेतना के रूप में आकार पाया। देशभक्ति की निर्भीक अभिव्यक्ति से साहित्य और राजनीति में उन्होंने अपना विशेष स्थान बनाया।
Niyati Ka Yayawar
- Author Name:
Harish Anand
- Book Type:

- Description: कोई भी रचनाकार अन्ततः अपने समय को समझने और उसे व्याख्यायित करने का शब्दयोग ही तो साधता है। ‘अपने समय’ की परिभाषा हर रचनाकार के लिए अलग-अलग होती है। ...यही ‘समय’ कवि हरीश आनंद की रचनाओं का बीज शब्द है। ‘नियति का यायावर’ संग्रह की कविताओं में समय के अनेक आयामों से साक्षात्कार किया गया है। इस प्रक्रिया में कवि व्यक्ति और समाज के बीच मंडित विखंडित सभ्यता के प्रारूपों का विश्लेषण करता रहता है। ‘यायावर’ अज्ञेय का प्रिय शब्द है।...और हरीश आनंद का भी। उन्हें क्षण की चेतावनी याद रहती है ‘अरे यायावर, रहेगा याद!’ हरीश की कविताएँ वस्तुतः वे सघन अन्तःयात्राएँ हैं जिनकी कुछ स्मृतियाँ शब्दों में समा गई हैं। यही कारण है कि ये कविताएँ विवरणों के अरण्य में भटकती नहीं हैं। संकेतों, बिम्बों, अनुभूतियों व व्यंजनाओं से समृद्ध ये कविताएँ आत्म से आत्मीय संवाद स्थापित करती हैं। इनमें विषय-वैविध्य है। जीवन-दर्शन की अबूझ सच्चाइयों से लेकर उत्तर-आधुनिकता की सभ्यता-समीक्षा तक हरीश आनंद की कविताओं की आवाजाही है। हरीश आनंद का कवि स्वभाव है कि वे शब्दों को उनके प्रचलित अर्थों से विचलित करते हुए नए निहितार्थों का उत्खनन करते हैं। ‘अर्थ’ कविता में वे शब्दों की ओर से एक गुहार लगाते हैं कि ‘हम तुम्हारी कुंठाओं की/परिभाषाएँ नहीं हैं।’ कवि के स्वभाव में दार्शनिकता सहज रूप से समाविष्ट है, अमूर्तन और पारिभाषिक पुनर्कथन वाले अर्थ में नहीं। हरीश आनंद की दार्शनिकता जीवन की सार्थकता का अनुसंधान करती है। ‘नियति का यायावर’ इसलिए भी एक महत्त्वपूर्ण कविता-संग्रह है क्योंकि इसमें संवेदनाओं के कई मन्द्र स्वर सुनने को मिलते हैं। कवि ने रंगमंचीय सन्दर्भों का भी अच्छा उपयोग किया है। यह सब सम्भव हुआ है एक प्राणवान, अर्थसम्पन्न और अनवरुद्ध भाषा में। हरीश आनंद शब्दों में निहित गतिशीलता व अर्थसम्भावना के पारखी रचनाकार हैं। स्वाभाविक रूप से यह संग्रह किसी भी पाठक का सहचर बन सकता है।
AAO BACHCHO TUMHEN BATAYEN
- Author Name:
Ram Badan Ray
- Book Type:

- Description: Children's poems and Short-stories
Shabri
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

- Description: ‘शबरी’ में कवि आधुनिकता के अधिक पास होते हैं। उन्होंने लिखा है—‘वाल्मीकि ने सामाजिक वर्ण-व्यवस्था से ऊपर व्यक्ति के आध्यात्मिक स्वत्व एवं असंग कर्म को प्रतिष्ठापित किया और शबरी वही बीज चरित्र है। चरित्र की दृष्टि से शबरी मंत्र चरित्र लगती है'—अपनी छोटी-सी उपस्थिति में सार-भूत। ‘शबरी’ काव्य विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक दलित स्त्री को अपने कर्म-श्रम के ज़रिए ऊपर उठाकर ऋषि मतंग जिस भूमि पर प्रतिष्ठित करते हैं, उससे पौराणिकता की रक्षा भी होती है और वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उठती आज की आवाज़ को भी बल मिलता है।
Dilli
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
style="font-weight: 400;">‘दिनकर’ की कविताओं में जो गीतात्मक लयात्मकता है वह ‘दिल्ली’ संग्रह की कविताओं में भी मुखर है। इसमें चार कविताएँ संकलित हैं जो दिल्ली के यथार्थ और निहितार्थ को इतने अनूठे ढंग से प्रकट करती हैं कि यह शहर एक प्रतीक बनकर सामने आता है।
संग्रह की पहली कविता ‘नई दिल्ली के प्रति’ 1929 की है। इसकी पृष्ठभूमि में नई दिल्ली का प्रवेशोत्सव है जो 1929 में मनाया गया था। उसी वर्ष भगत सिंह पकड़े गए और लाहौर-कांग्रेस में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पास हुआ। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उस उथल-पुथल भरे दौर में उत्सव और दमन के विरोधाभासों को यह कविता बखूबी मूर्त करती है।
संग्रह की दूसरी कविता ‘दिल्ली और मास्को’ है जिसका रचनाकाल 1945 का है। इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाजवादी क्रान्ति का जयघोष निहित है जो राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रमों की प्रभावी भूमिकाओं को दिल्ली के सन्दर्भों में देखे जाने की माँग करती है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व रचित उपरोक्त दोनों कविताओं के विपरीत शेष दो कविताएँ—‘हक़ की पुकार’ और ‘भारत का यह रेशमी नगर’—स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क्रमश: 1952 और 1954 की हैं। इन दोनों कविताओं में दिल्ली का तत्कालीन यथार्थ तो प्रकट हुआ ही है, वह विलासी रूप भी उजागर हुआ है जिससे राजनीतिक कर्मठता को प्रेरणा नहीं मिलती, उलटे बाधा पड़ती है। दिनकर कहते हैं कि देश के नवनिर्माण का कार्य जो इतनी धीमी गति से चल रहा है, उसका भी मुख्य कारण यही है कि कार्याधिकारी देश की आकुलता से अपरिचित हैं। जबकि दिल्ली हमारी सारी शिराओं का केन्द्र है। इसी ऊहापोह की राजनीतिक स्थिति से जो क्षोभ उठता है, वही इन कविताओं का मूल भाव है।
राष्ट्रीय राजधानी पर लिखी इन कविताओं को एक साथ पढ़ने पर पाठक कवि के उपरोक्त दृष्टिकोण को कुछ अधिक न्याय के साथ ग्रहण कर सकेंगे।
Daste-Tahe-Sang
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: नज़्मों, ग़ज़लों, क़तआत और कुछ अन्य रचनाओं के इस संकलन में फ़ैज़ की बेहद मशहूर नज़्मों में से एक ‘आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो’ भी शामिल है। इस नज़्म को उन्होंने 1959 में लिखा था। लाहौर की गलियों से उन्हें मय ज़ंजीरों के घोड़ागाड़ी से क़िला लाहौर की टॉर्चर सेल ले जाया गया था। इस नज़्म के पीछे उनका वही अनुभव है। हर हाल में आज़ादी के शैदाई फ़ैज़ की यह नज़्म उनकी शख़्सियत और शायरी दोनों की ऊँचाई को बयान करती है। 1960 के दशक के शुरुआती सालों में प्रकाशित ‘दस्ते-तहे-संग’ में उस दौर में लिखी हुई अन्य नज़्में, ग़ज़लें और क़तआत भी संकलित हैं जिनमें से कुछ मास्को, बम्बई और लन्दन में भी लिखी गईं। कविताओं के अलावा इस संकलन का ख़ास आकर्षण फ़ैज़ की एक तक़रीर है जो उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार ग्रहण करते हुए उर्दू में दी थी। ‘फ़ैज़... अज़ फ़ैज़’ शीर्षक से उन्हीं का लिखा हुआ एक और आलेख भी यहाँ आप पाएँगे जिसमें वे अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हैं और उस दौरान लिखी गई कविताओं की पृष्ठभूमि से भी हमें अवगत कराते हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...