Dilli
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
style="font-weight: 400;">‘दिनकर’ की कविताओं में जो गीतात्मक लयात्मकता है वह ‘दिल्ली’ संग्रह की कविताओं में भी मुखर है। इसमें चार कविताएँ संकलित हैं जो दिल्ली के यथार्थ और निहितार्थ को इतने अनूठे ढंग से प्रकट करती हैं कि यह शहर एक प्रतीक बनकर सामने आता है।</p>
<p style="font-weight: 400;">संग्रह की पहली कविता ‘नई दिल्ली के प्रति’ 1929 की है। इसकी पृष्ठभूमि में नई दिल्ली का प्रवेशोत्सव है जो 1929 में मनाया गया था। उसी वर्ष भगत सिंह पकड़े गए और लाहौर-कांग्रेस में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पास हुआ। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उस उथल-पुथल भरे दौर में उत्सव और दमन के विरोधाभासों को यह कविता बखूबी मूर्त करती है।</p>
<p style="font-weight: 400;">संग्रह की दूसरी कविता ‘दिल्ली और मास्को’ है जिसका रचनाकाल 1945 का है। इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाजवादी क्रान्ति का जयघोष निहित है जो राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रमों की प्रभावी भूमिकाओं को दिल्ली के सन्दर्भों में देखे जाने की माँग करती है।</p>
<p style="font-weight: 400;">स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व रचित उपरोक्त दोनों कविताओं के विपरीत शेष दो कविताएँ—‘हक़ की पुकार’ और ‘भारत का यह रेशमी नगर’—स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क्रमश: 1952 और 1954 की हैं। इन दोनों कविताओं में दिल्ली का तत्कालीन यथार्थ तो प्रकट हुआ ही है, वह विलासी रूप भी उजागर हुआ है जिससे राजनीतिक कर्मठता को प्रेरणा नहीं मिलती, उलटे बाधा पड़ती है। दिनकर कहते हैं कि देश के नवनिर्माण का कार्य जो इतनी धीमी गति से चल रहा है, उसका भी मुख्य कारण यही है कि कार्याधिकारी देश की आकुलता से अपरिचित हैं। जबकि दिल्ली हमारी सारी शिराओं का केन्द्र है। इसी ऊहापोह की राजनीतिक स्थिति से जो क्षोभ उठता है, वही इन कविताओं का मूल भाव है।</p>
<p><span style="font-weight: 400;">राष्ट्रीय राजधानी पर लिखी इन कविताओं को एक साथ पढ़ने पर पाठक कवि के उपरोक्त दृष्टिकोण को कुछ अधिक न्याय के साथ ग्रहण कर सकेंगे।</span>
ISBN: 9788119996902
Pages: 111
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Jai Kanhaiyalal Ki
- Author Name:
Rameshraaj
- Rating:
- Book Type:

- Description: कवि ने प्रथम पृष्ठ पर ही शीर्षक के नीचे टिप्पणी दी है –“ कृष्ण-रूप में कंस जैसे हर शासक के प्रति “, जिससे मुख्य मन्तव्य स्पष्ट हो जाता है ‘ करारे व्यंग्य – देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर ‘ | रमेशराज के व्यंग्यों की ख़ास बात यह है कि स्तरहीनता नहीं, कहीं अशिष्टता नहीं, न कहीं मर्यादा का उल्लंघन, फिर भी करारे प्रहार | जीवन का भोगा हुआ यथार्थ जैसे साकार सामने खड़ा हो | कैसी सहज-सरल अभिव्यक्ति, लक्ष्य की ओर दनदनाते-सनसनाते तीर की तरह – जन को न रोटी-दाल, जै कन्हैयालाल की नेताजी को तर माल, जै कन्हैयालाल की! नीति है कमाल की !! व्यंग्य को अधिक धारदार और मारक बनाने के लिए कवि ने उद्धव-गोपी प्रसंग को बड़ी होशियारी के साथ जोड़ दिया है- ऊधौ देश पर आप कर्ज विश्वबैंक का लाद-लाद हो निहाल, जै कन्हैयालाल की ! नीति है कमाल की !! कथ्य की सशक्तता के साथ कवि का कौशल भी प्रभावित करता है | इसे मैं उक्ति-वैचित्र्य का कमाल मानता हूँ, साथ ही वर्ण-मैत्री भी निर्दोष एवं प्रभावी है | प्रकृति से जो प्रतीक लिए गए हैं वे कवि के मन्तव्य को भी स्पष्ट करते हैं तथा उनसे काव्य में कलात्मक विम्ब-सौन्दर्य भी प्रभावित करता है | देखिये एक उदाहरण – खुशियों का मानसून अँखियों से दूर है सूख गए सुख-ताल, जै कन्हैयालाल की ! नीति है कमाल की !! कवि ने अपने कथ्य को अधिक ग्राह्य बनाने के लिए पौराणिक इंगित भी दिए हैं | कहीं विरोधाभास से अपना मन्तव्य स्पष्ट किया है तो कहीं आधुनिक योजनाओं की विडम्बनाओं की ओर इंगित है – केवल अंगूठे नहीं मांगें आज द्रोण जी भील को करें हलाल, जै कन्हैयालाल की ! नीति है कमाल की !!
Hum Jo Dekhate Hain
- Author Name:
Mangalesh Dabral
- Book Type:

-
Description:
‘पहाड़ पर लालटेन’ और ‘घर का रास्ता’ के बाद मंगलेश डबराल के तीसरे कविता–संग्रह ‘हम जो देखते हैं’ का पहला संस्करण 1995 में प्रकाशित हुआ था। इन वर्षों में इस संग्रह के कई संस्करणों का प्रकाशित होना इसका साक्ष्य है कि बाज़ार, उपभोगवाद, भूमंडलीकरण और साम्राज्यवादी पूँजी की बजबजाती दुनिया के बावजूद समाज में कविता के व्यापक और संवेदनशील कोने बचे हुए हैं और उसके सच्चे पाठक भी। यह संग्रह इस कठिन समय में भी ऐसी कविता को सम्भव करता है जो विभिन्न ताक़तों के ज़रिए भ्रष्ट की जा रही संवेदना और निरर्थक बनती भाषा में एक मानवीय हस्तक्षेप कर सके। ये कविताएँ उन अनेक चीज़ों की आहटों से भरी हैं जो हमारी क्रूर व्यवस्था में या तो खो गई हैं या लगातार क्षरित और नष्ट हो रही हैं। वे उन खोई हुई चीज़ों को ‘देख’ लेती हैं, उनके संसार तक पहुँच जाती हैं और इस तरह एक साथ हमारे बचे–खुचे वर्तमान जीवन के अभावों और उन अभावों को पैदा करनेवाले तंत्र की भी पहचान करती हैं। अपने समय, समाज, परिवार और ख़ुद अपने आपसे एक नैतिक साक्षात्कार इन कविताओं का एक मुख्य वक्तव्य है।
‘हम जो देखते हैं’ में कई ऐसी कविताएँ भी हैं जो चीज़ों, स्थितियों और कहीं–कहीं अमूर्तनों के सादे वर्णन की तरह दिखती हैं और जिनकी संरचना गद्यात्मक है। किसी नए प्रयोग का दावा किए बग़ैर ये कविताएँ अनुभव की एक नई प्रक्रिया और बुनावट को प्रकट करती हैं, जहाँ अनेक बार विवरण ही सार्थक वक्तव्य में बदल जाते हैं। लेकिन गद्य का सहारा लेती ये कविताएँ ‘गद्य कविताएँ’ नहीं हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ एक गहरी चिन्ता और यहाँ तक कि नाउम्मीदी भी जताती लगती हैं, लेकिन शायद यह ज़रूरी चिन्ता है जो हमारे वक़्त में विवेक और उम्मीद तक पहुँचने का एकमात्र ज़रिया रह गया है। इनकी रचना–सामग्री हमारी साधारण, तात्कालिक, दैनंदिन और परिचित दुनिया से ली गई है, लेकिन कविता में वह अपनी बुनियादी शक़्ल को बनाए रखकर कई असाधारण और अपरिचित अर्थ–स्वरों की ओर चली जाती है। विडम्बना, करुणा और विनम्र शिल्प मंगलेश डबराल की कविता की परिचित विशेषताएँ रही हैं और इस संग्रह में वे अधिक परिपक्व होकर अभिव्यक्त हुई हैं। यह ऐसी विनम्रता है, जो गहरे नैतिक आशयों से उपजी है और जिसमें आक्रामकता के मुक़ाबले कहीं अधिक बेचैन करने की क्षमता है।
Taki Vasant Mein Khil Saken Phool
- Author Name:
Kapilesh Bhoj
- Book Type:

- Description: collection of poems
Swachchhand
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
कविश्री सुमित्रानंदन पंत का काव्य-संसार अत्यन्त विस्तृत और भव्य है। प्रायः काव्य-रसिकों के लिए इसके प्रत्येक कोने-अँतरे को जान पाना कठिन होता है। पंत जी की काव्य-सृष्टि में, किसी भी श्रेष्ठ कवि की तरह ही, स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठता के शिखरों के दर्शन होते हैं, नवीन काव्य-भावों के अभ्यास का ऊबड़-खाबड़, निचाट मैदान भी मिलता है और अवरुद्ध काव्य-प्रयासों के गड्ढे भी। किन्तु किसी कवि के स्वभाव को जानने के लिए यह आवश्यक होता है कि यत्नपूर्वक ही नहीं, रुचिपूर्वक भी उसके काव्य-संसार की यात्रा की जाए। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने पंत जी के बारे में लिखा कि आरम्भ में उनकी प्रवृत्ति इस जग-जीवन से अपने लिए सौन्दर्य का चयन करने की थी, आगे चलकर उनकी कविताओं में इस सौन्दर्य की सम्पूर्ण मानव जाति तक व्याप्ति की आकांक्षा प्रकट होने लगी। प्रकृति, प्रेम, लोक और समाज-विषय कोई भी हो, पंत-दृष्टि हर जगह उस सौन्दर्य का उद्घाटन करना चाहती है, जो प्रायः जीवन से बहिष्कृत रहता है। वह उतने तक स्वयं को सीमित नहीं करती, उस सौन्दर्य को एक मूल्य के रूप में अर्जित करने का यत्न करती है।
सुमित्रानंदन पंत की जन्मशती के अवसर पर उनकी विपुल काव्य-सम्पदा से एक नया संचयन तैयार करना पंत जी के बाद विकसित होती हुई काव्य-रुचि का व्यापक अर्थ में अपने पूर्ववर्ती के साथ एक नए प्रकार का सम्बन्ध बनाने का उपक्रम है। यह चयन पंत जी के अन्तिम दौर की कविताओं के इर्द-गिर्द ही नहीं घूमता, जो काल की दृष्टि से हमारे अधिक निकट हैं; बल्कि उनके बिलकुल आरम्भिक काल की कविताओं से लेकर अन्तिम दौर तक की कविताओं के विस्तार को समेटने की चेष्टा करता है। चयन के पीछे पंत जी को किसी राजनीतिक-सामाजिक विचारधारा, किसी नई नैतिक-दार्शनिक, दृष्टि जैसे काव्य-बाह्य दबाव में नए ढंग से प्रस्तुत करने की प्रेरणा नहीं है—यह एक नई शताब्दी और सहस्राब्दी की उषा वेला में मनुष्य की उस आदिम, साथ ही चिरनवीन सौन्दर्याकांक्षा का स्मरण है, पंत जी जैसे कवि जिसे प्रत्येक युग में आश्चर्यजनक शिल्प की तरह गढ़ जाते हैं।
किसी कवि की जन्मशती के अवसर पर परवर्ती पीढ़ी की इससे अच्छी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है कि वह उसे अपने लिए सौन्दर्यात्मक विधि से समकालीन करे। पंत-शती के उपलक्ष्य में उनकी कविताओं के संचयन को ‘स्वच्छंद’ कहने के पीछे मात्र पंत जी की नहीं, साहित्य मात्र की मूल प्रवृत्ति की ओर भी संकेत है। संचयन में कालक्रम के स्थान पर एक नया अदृश्य क्रम दिया गया है, जिसमें कवि-दृष्टि, प्रकृति, मानव-मन, व्यक्तिगत जीवन, लोक और समाज के बीच संचरण करते हुए अपना एक कवि-दर्शन तैयार करती है। ‘स्वच्छन्द’ के माध्यम से पंत जी के प्रति विस्मरण का प्रत्याख्यान तो है ही, इस बात को नए ढंग से चिह्नित भी करना है कि जैसे प्रकृति का सौन्दर्य प्रत्येक भिन्न दृष्टि के लिए विशिष्ट है, वैसे ही कवि-संसार का सौन्दर्य भी अशेष है, जिसे नई दृष्टि अपने लिए विशिष्ट प्रकार से उपलब्ध करती है।
Beautiful Poem (Series-1)
- Author Name:
Dr.Sanjay Rout
- Book Type:

- Description: Beautiful Poem (Series-1) is a book written by Dr.Sanjay Rout published by ISL Publicaions. It is a collection of poetry based on the theme of 'Love'. It is helpful for all age group people who want to make their life more meaningful and meaningful through nature poetry.
Amrit Manthan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
‘अमृत मंथन’ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संकलन है।
इस पुस्तक में दिनकर जी की कुछ कविताएँ 1945 से 1948 के बीच लिखी गई थीं, जो तत्कालीन परिस्थितियों की दस्तावेज़ हैं तथा राष्ट्रकवि की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता को हमारे सामने लाती हैं।
इन कविताओं में जहाँ देश के विराट व्यक्तित्वों के प्रति कवि का श्रद्धा-निवेदन है, वहीं कुछ कविताओं में उत्कट देश-प्रेम की ओजस्वी अभिव्यक्ति है। कुछ कविताएँ देशी एवं विदेशी कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का सरस अनुवाद हैं तो कुछ कविताओं में निसर्ग का सुन्दर चित्रण है।
इन कविताओं की विशेषता है—इनकी प्रांजल, प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद-विधान और सहज भाव-सम्प्रेषण।
हिन्दी काव्य के स्वर्ण-युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक उत्तम साधन है।
Doha-Vallari
- Author Name:
Dinesh Chandra Awasthi
- Book Type:

- Description: "आधुनिक दोहा शिल्प और आकार में पारंपरिक होकर भी अपने कथ्य और संवेदन में अत्यंत अर्वाचीन और तरोताजा है, जो समकालीन हिंदी कविता के यथार्थ रूपों और उसकी संवेदना को पकड़ने में सक्षम है। डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थी दोहा छंद के एक समर्थ एवं सशक्त हस्ताक्षर हैं। ईश्वर, धर्म, दर्शन, परिवार, पत्नी, बच्चे, माता-पिता, घर, गली, शहर, कार्यालय, पशु-पक्षी, राजनीति, व्यंग्य, अवसरवादिता, न्याय, मक्कारी, भ्रष्टाचार, मनोविकार, देशभक्ति, आतंक, अफसर, नेता, श्रमजीवी, जीवन, नीति, व्यवहार, सिद्धांत, प्रेम, मित्रता, विश्वजनीन घटनाएँ और चिंतन को जिस मानवीय दृष्टिकोण से डॉ. अवस्थीजी ने देखने का यत्न किया है, वह सब छोटे-छोटे सांस्कृतिक चित्रों के रूप में सहज ही मन को विमुग्ध करती है। डॉ. अवस्थी के दोहे अभिधा की नींव पर प्रतिष्ठित होते हुए भी लाक्षणिकता के सोपानों पर आरूढ़ होते हुए व्यंजना की ऊँचाइयों को सहज ही संस्पर्श करते हैं। डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थीजी द्वारा विरचित प्रस्तुत कृति ‘दोहा-वल्लरी’ सुधी साहित्यकारों, विचारकों एवं सहृदयों के मध्य लोकप्रिय एवं समादृत होगी। "
Mokshadhara
- Author Name:
Sudhir Ranjan Singh
- Book Type:

-
Description:
सुधीर रंजन सिंह के पहले संग्रह और 'मोक्षधरा' के बीच लम्बा अन्तराल है। कारण सम्भवत: ऐतिहासिक है। ’90 के बाद की घटनाओं ने कुछ समय के लिए उन कवियों के कवि-कर्म को बाधित किया जो कविता में भविष्य को फलित करने की चेष्टा कर रहे थे। पुरानी काव्य-भंगिमाएँ बेअसर हो गई थीं।
यह आकस्मिक नहीं कि सुधीर रंजन सिंह ने पिछले काव्य-अभ्यास को पकड़े रहने के बजाय भर्तृहरि के काव्य-श्लोकों की अनुरचना का मार्ग पकड़ा। भर्तृहरि की नैतिक दृष्टि और विकल अन्त:ऊर्जा ने नई काव्य-स्फूर्ति पैदा कर दी। एक बिलकुल नई ज़मीन मिल गई। विकल अन्त:ऊर्जा ‘अनन्त प्रकृति’ में प्रवेश का द्वार है, जिससे गुज़रते हुए सन्तुलन बनाना आसान नहीं होता। सुधीर रंजन सिंह कवि के साथ-साथ आलोचक भी हैं। सन्तुलन बनाने में उनका आलोचनात्मक विवेक सहयोग करता है। आधुनिक कविता के काव्यशास्त्र में आलोचना का पक्ष काफी वजनदार है। सुधीर रंजन सिंह की आलोचनात्मक भंगिमा और कुछ नहीं विकल्प की चेतना है। यह ‘निद्रा अनुभव’ से बाहर निकालती है। मनुष्य और समाज को समझने की दृष्टि देती है।
सुधीर रंजन सिंह संकट के अनुभवों से बिना अलग हुए उल्लास और मुक्ति के उस संसार को रचने की चेष्टा करते हैं, जिसमें जीवन का अर्थ स्पन्दित होता है। उस अर्थ की लालसा, जो किसी अन्य पीड़ाहारक दिलासा से अधिक ज़रूरी है, उनकी कविता को गढ़ने का काम करती है। इस काम में ‘स्मृति की क्रीड़ा’ भूमिका निभाती है। स्मृति की क्रीड़ा यानी अनुभवों का प्रवाह। ‘मोक्षधरा’ ऐतिहासिक अनुभवों को आत्मचेतना के स्तर पर रचने और 'उत्कर्ष लोक' तैयार करने का सफल प्रयास है।
Veerta Par Vichlit
- Author Name:
R. Chetankranti
- Book Type:

-
Description:
आर. चेतनक्रान्ति की कविताएँ औसत जीवन की महत्तर कविताएँ हैं।
उत्तर-पूँजीवाद ने पिछले दो दशकों में बेकारी, विस्थापन, ऊब और उदासी का अपरम्पार गाद जमा किया है। चेतनक्रान्ति इससे गुज़रकर इस महाजीवन की धकधक को पकड़नेवाले सबसे संवेदनशील कवि हैं। और उनकी कविताएँ औसत आदमी की अकुलाहट, हताशा, टूटन व बाज़ार द्वारा गढ़े मौज़-मज़ा-मस्ती की बर्बरता के बीच अन्तर्निहित सूत्रों को बहुत सहज ढंग से उद्घाटित करती हैं। ये कविताएँ हमारे स्वप्न, डर, उन्माद और उपभोग में निहित ताक़त और दमन के महीन सूत्रों को अनायास खोलती चलती हैं। यहाँ ‘ताक़त’ अलग-अलग व्यंजनाओं में सबसे केन्द्रीय पद है। हमारे तमाम भाव-अनुभाव ताक़त की इस अदृश्य संरचना का ही प्रभावोत्पाद हैं, इस बात को समझने के लिए यहाँ संकलित प्रेम कविताओं को धैर्य से पढ़ना चाहिए। प्रेम यहाँ हिन्दी के सामान्य तन्द्रिल संसार से भिन्न; दैनंदिन जीवन की कशमकश और औसत आदमी की बेचारगी के बीच एक सघन मानुष गन्ध की तरह है। प्रेम यहाँ औसतपने में जीवन की सार्थकता और अस्तित्व को थोड़ा गहरा संवेदनात्मक आधार देता है।
इन कविताओं में स्थिति और अवस्थितियों के कारणभूत तत्त्वों तक पहुँचने की तड़प के साथ संरचनात्मक अन्तर्विरोधों से पैदा हुआ बहुत जैविक तरह का प्रतिरोध है। इसे प्रचलित मुहावरों और लोकप्रिय मुद्राओं में घटाकर समझने का प्रयास व्यर्थ है। यह किसी विचार-व्यवस्था और क्रान्ति के शास्त्र से नहीं बल्कि पूँजी और पितृसत्ता के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा, खीझ और न्याय की आकांक्षा है जो कौरवी बोली के देशज ताप से ख़ास संवादधर्मी शिल्प में ढल जाता है।
—आशीष मिश्र
Jayasi Soor Bihari
- Author Name:
Ram Bux Jat
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक सिविल सेवा, विश्वविद्यालय परीक्षा समेत समस्त प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
पुस्तक में जायसी, सूरदास और बिहारी के प्रमुख पद सरलार्थ सहित उपलब्ध कराए गए हैं।
परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कवि की रचना पर आलोचनात्मक लेख भी पुस्तक में शामिल है।
Phir Kabhi Aana
- Author Name:
Sitakant Mahapatra
- Book Type:

-
Description:
ओड़िया के वरिष्ठ कवि सीताकान्त महापात्र का यह संग्रह मृत्यु के विरुद्ध जीवन की हठ और प्रकृति में निबद्ध जीवन की अलग-अलग सम्भावनाओं का आख्यान है। जीवन के मौन क्षणों को भाषा में अंकित करते हुए वे इन कविताओं में जिस तरह जिजीविषा की नि:शब्द बोली को स्वर देते हैं वह अद्भुत है। चाहे यमराज से दोस्ताना बातें करते हुए उन्हें फिर कभी आने के लिए कहना हो या पृथिवीवासी वृक्षविरोधी यमदूतों को सम्बोधित वृक्ष-संहिता की कविताओं में बिंधा वृक्षालाप, और संग्रह की अन्य कविताएँ, सीताकान्त जी मनुष्य और प्रकृति से बने समवेत लोक की उत्तरजीविता की कामना को मंत्र की तरह जपते हैं।
“कल नहीं रहूँगा मैं/कुआँ-कुआँ का स्वर सुनाई दे रहा होगा/नन्ही मुस्कान होगी उसकी/फूल होंगे, मधुमक्खियाँ होंगी/ईश्वर उस बच्चे की मुस्कान देख तब भी आशान्वित होंगे।”
मरण के ऊपर जीवन की सम्भावनाओं को धन की तरह संचित करती ये पंक्तियाँ एक बड़े कवि की ओर से अपने आगे आनेवाले समय को शुभ आमंत्रण की तरह प्रकट होती हैं। एक अन्य कविता में वे कहते हैं :
“कितनी ख़ुशी से/इन्तिज़ार करती है लॉन की घास/दो नन्हे पैरों को चूमने का/फूलों के गमले गिर जाने का/तरह-तरह के रंग पहचाने जाने के लिए/रंग-बिरंगी दवा की गोलियाँ/पन्नी की क़ैद से मुक्त हो बाहर आने को।”
लेकिन धरती के जीवन को किसी परालोक का उपहार वे नहीं मानते। मनुष्य की संघर्ष-शक्ति और अपनी दुनिया आप सिरजने, बचाने और बढ़ाने की उद्दाम इच्छा को वे दैवी शक्ति से स्वतंत्र एक सत्ता के रूप में रेखांकित करते हैं, और जिस तरह यम को वापस जाने के लिए कहते हैं उसी तरह देवताओं को भी सुना देते हैं कि हमारे उद्धार के लिए नहीं, आप अवतार लेकर आते हैं, तो अपनी किसी परेशानी के कारण आते होंगे।
“स्वर्ग की चकाचौंध से चौंधियाकर/दीर्घ तनु, दिव्य रूप देवता गण/उससे अधीर हो भाग आते हैं हमारे बीच/धरातल के अँधेरे में/...दो, उन्हें अपना साथी बनने दो।”
Man Akela Ho Gaya Hai
- Author Name:
Vijay Joshi
- Book Type:

-
Description:
भावनाओं से भरा इनसान शायरी न करे तो क्या करे। विजय जोशी बड़े जज़्बाती इनसान हैं। हर बात उन्हें छू जाती है, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में, सुबह की हवा और सूरज की पहली किरन से लेकर, दिन डूबने और चाँद निकलने तक, हर लम्हे से भिड़ते हुए गुज़रते हैं। उन्हें सचमुच जीना आता है। इसीलिए जज़्बात पल-पल बुलबुलों की तरह उठते हैं और वह उन्हें टूट जाने से पहले पकड़ लेना चाहते हैं। कविता के कटोरे में आ जाएँ तो बच जाते हैं, वरना बह जाते हैं और फिर अगला दिन...
‘‘दोस्त
उस दिन तीस साल बाद
तुम्हारे सफ़ेद हो रहे बालों ने कही
समय के थपेड़ों की कई कहानियाँ
और मेरे चश्मे के नम्बर में छुपी थीं
गुज़रे पलों की निशानियाँ।’’
क्योंकि विजय बाक़ायदा शायरी नहीं करते, यानी मेरी तरह यह उनके लिए ज़रिया-ए-रोज़गार नहीं है। लेकिन ग़मे-रोज़गार के लिए बाक़ायदा लिखते रहते हैं अख़बारों में, रिसालों में और ख़तों में। मैं उनके शायराना ख़ुतूत हासिल कर चुका हूँ। उनकी नज़्में निजी लगती हैं लेकिन वह इतनी निजी हैं नहीं। एक जागी हुई चेतना और मुकम्मिल Social consciousness का एहसास देती हैं। वह अपना चौगिर्द लफ़्ज़ों से पेंट करते हैं, लेकिन लफ़्ज़़ों के वक़्फ़ों में इतना कुछ लिख देते हैं कि उसमें इतिहास नज़र आने लगता है। एक कोताहिये ‘ज़मीर’—
‘‘कल रात मेरा ज़मीर मर गया—
मर तो शायद काफ़ी पहले गया था...
मैंने इस एहसास को,
आत्मा तक उतरने नहीं दिया।
आख़िर अपनों की मौत से कौन समझौता कर पाया है!’’
वह अपना माज़ी और वरसे में मिली धरती और उसकी सुन्दरता बयान करते हैं और उनमें छोटे-छोटे चित्र भी उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा रहे हैं। स्कूल के पीछे इमली का पेड़ खेतों की कोरों पर मिट्टी की मेंड़ सब गुम हो गया मेरे बच्चो, मैं तुमसे शर्मिन्दा हूँ—विरासत के नाम पर छोड़कर जाऊँगा उजड़ी-सी धरती, स्याह आसमान। विजय जितनी CASUALLY लिखते हैं, उतने ही ग़ौर से पढ़ने के क़ाबिल हैं, क्योंकि इस सादगी के पीछे एक निहायत ज़िम्मेदार की आत्मा जाग रही है।
Shaniwar Ke Intzaar Me
- Author Name:
Nilima Sharma
- Book Type:

- Description: Description Awaited
Yeh Unindi Raton Ka Samay Hai
- Author Name:
Jyoti Chawla
- Book Type:

-
Description:
ज्योति चावला के इस तीसरे कविता-संग्रह—‘यह उनींदी रातों का समय है’ की कविताएँ प्रमाण हैं कि उनका स्वर उत्तरोत्तर अधिक राजनीतिक होता गया है। इन कविताओं में अपने समय की भयावहता को बरीकी से दर्ज करती हुई वे उसका तीव्र प्रतिरोध करती हैं और स्त्री की आजादी के ख्वाब भी रचती हैं। उनके लिए स्त्रियों के हक की लड़ाई एक राजनीतिक मामला है, जिसके रास्ते के अवरोधों की शिनाख्त वे समाज के व्यवहार में बहुत गहरे पैठकर करती हैं। स्वाभाविक ही धर्म, संस्कृति, भाषा सहित समाज की तमाम बुनियादी सत्ता-संरचनाओं के अन्दर जड़ जमाए बैठी पितृसत्ता उनके निशाने पर है। उनके लिए प्रतिपक्ष पुरुष नहीं बल्कि समाज और संस्कृति के वे घटक हैं जिनसे पुरुष का पितृसत्तात्मक मनोविज्ञान निर्मित होता है। इसलिए वे अपने कवितालोक में स्वप्न-पुरुष से लेकर आदिम पुरुष तक की तलाश करती हैं और स्त्री-पुरुष अन्तर्सम्बन्धों का ऐसा पुनर्पाठ तैयार करती हैं जहाँ दोनों परस्पर पूरक हैं, विरोधी नहीं। इन कविताओं में एक ऐसी स्त्री दिखलाई पड़ती है जो अपने समय के संघर्षों से और उनके अन्तर्द्वन्द्वों से निर्मित हुई है; उसका सौन्दर्य आदिम, अकुंठ और संघर्ष की आभा से दीप्त है।
ज्योति की कविताओं की एक और विशेषता है—उनका मुहावरा। माँ और बेटी के संवाद को प्रतीक की तरह बरतते हुए निजता से शुरू कर वे अपनी कविताओं को समूची स्त्री जाति का आह्वान बना देती हैं। इन कविताओं में स्त्री-विमर्श की एक नई दिशा तब खुलती है जब ज्योति बेटी के साथ-साथ बेटे को भी गढ़ रही स्त्री को रेखांकित करती हैं।
प्रतिरोध के साथ-साथ अभिव्यक्ति के गहराते संकट को उजागर करती ये कविताएँ वस्तुत: अपने समय का समानान्तर इतिहास हैं और अपनी सूक्ष्म संवेदनशीलता में बेहतर भविष्य का स्वप्न भी।
Chirag-E-Dair
- Author Name:
Mirza Ghalib
- Book Type:

-
Description:
मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने फ़ारसी में, जो उनकी प्रिय काव्यभाषा थी, एक मसनवी ‘चिराग़-ए-दैर' नाम से लिखी थी। यों तो बनारस सदियों से एक पुण्य-नगरी है और उसकी स्तुति में बहुत कुछ इस दौरान लिखा गया है। ग़ालिब की मसनवी उस परम्परा में होते हुए भी अनोखी है जो एक महान कवि की एक महान तीर्थ की यात्रा को सच्चे और सशक्त काव्य में रूपायित करती है। एक ऐसे समय में जब हिन्दू और इस्लाम धर्मों के बीच दूरी बढ़ाने की अनेक प्रबल और निर्लज्ज दुश्चेष्टाएँ हो रही हैं, इस मसनवी का हिन्दी अनुवाद एक तरह की याददहानी का काम करता है कि यह दूरी कितनी बहुत पहले पट चुकी थी।
—अशोक वाजपेयी।
Pratinidhi Kavitayen : Gajanan Madhav Muktibodh
- Author Name:
Gajanan Madhav Muktibodh
- Book Type:

-
Description:
मुक्तिबोध की कविता अपने समय का जीवित इतिहास है : वैसे ही, जैसे अपने समय में कबीर, तुलसी और निराला की कविता। हमारे समय का यथार्थ उनकी कविता में पूरे कलात्मक सन्तुलन के साथ मौजूद है। उनकी कल्पना वर्तमान से सीधे टकराती है, जिसे हम फन्तासी की शक्ल में देखते हैं। नई कविता की पायेदार पहचान बनकर भी उनकी कविता उससे आगे निकल जाती है, क्योंकि समकालीन जीवन के हॉरर की तीव्रतम अभिव्यक्ति के बावजूद वह एक गहरे आत्मविश्वास की उपज है। चीज़ों को वे मार्क्सवादी नज़रिए से देखते हैं, इसीलिए उनकी कविताएँ सामाजिक यथार्थ के परस्पर गुम्फित तत्त्वों और उनके गतिशील यथार्थ की पहचान कराने में समर्थ हैं। वे आज की तमाम अमानवीयता
के विरुद्ध मनुष्य की अन्तिम विजय का भरोसा दिलाती हैं। इस संग्रह में, जिसे मुक्तिबोध और उनके साहित्यिक अवदान की गहरी पहचान रखनेवाले सुपरिचित कवि, समीक्षक
श्री अशोक वाजपेयी ने संकलित-सम्पादित किया है, उनकी प्रायः वे सभी कविताएँ संगृहीत हैं, जिनके लिए वे बहुचर्चित हुए हैं, और जो प्रगतिशील हिन्दी कविता की पुख़्ता पहचान बनी हुई है।
Indraprasth Ke Kash-Pushp
- Author Name:
Kantesh Mishra
- Book Type:

- Description: भले हम किसी की आशाओं में न हों। हम हों हर प्रकार से बहिष्कृत विकल्प। हमारी प्रार्थना में किसी एक का भी होना, पृथ्वी पर प्रेम की सम्भावना, प्रबल बनाता है। -इसी पुस्तक से
Pratinidhi Kavitayen : Vishnu Khare
- Author Name:
Vishnu Khare
- Book Type:

-
Description:
विष्णु खरे एक विलक्षण कवि हैं—लगभग लासानी। एक ऐसा कवि जो गद्य को कविता की ऊँचाई तक ले जाता है और हम पाते हैं कि अरे, यह तो कविता है! ऐसा वे जान-बूझकर करते हैं—कुछ इस तरह कि कविता बनती जाती है—कि गद्य छूटता जाता है। पर शायद वह छूटता नहीं—कविता में समा जाता है। ...वे लम्बी कविताओं के कवि हैं—जैसे मुक्तिबोध लम्बी कविताओं के कवि हैं। पर दोनों में अन्तर है। मुक्तिबोध की लम्बाई लय के आधार को छोड़ती नहीं—धीरे-धीरे वह कम ज़रूर होता गया है। विष्णु खरे गद्य की पूरी ताक़त को लिए-दिए चलते हैं—उसे तोड़ते-बिखेरते हुए, बीच-बीच में संवाद का सहारा लेते और जहाँ-तहाँ उसे डालते हुए चलते हैं और लय को न आने देते हुए।
किसी चीज़ को शब्दों में ज़िन्दा कर देना एक कवि की सिफ़त है और विष्णु खरे के पास वह जादू है।
—केदारनाथ सिंह
Aatmadroh
- Author Name:
R. Chetankranti
- Book Type:

-
Description:
‘आत्मद्रोह’आर. चेतनक्रान्ति का आत्मवान संग्रह है, इस अर्थ में कि जो शक्तियाँ नागरिकता और राष्ट्र की आत्मा को नष्ट करना चाहती हैं, वे उनकी गहरी पहचान करते हैं और इस तरह सामूहिक आत्मा के पुनर्वास की युक्तियाँ तलाशते हैं। उन्हें इस बात का पूरा अभिज्ञान है कि समुदायों का नैतिक बल घटा है। वह अफ़वाह, असत्य और घृणा का शिकार हुआ है। वह गहरे अफ़सोस के साथ देखते हैं इस परिघटना को जो उनकी कविता में तंज़ और आत्मावगाहन में बदलती जाती है। सामाजिक और राजनीतिक अधःपतन को वह व्यंग्यार्थ और कई बार गहरे कटाक्ष के साथ कहते हैं। उनकी नागरिक सजगता भाषिक सजगता में संक्रमित होती है जो अन्तत: विरल काव्यात्मक उठान में परिलक्षित होती है।
शमशेर बहादुर सिंह की परम्परा में चेतन हिन्दी के उन गिने-चुने विशिष्ट कवियों में हैं जो उर्दू ग़ज़लें और नज़्म, जो इस संग्रह का भी हिस्सा हैं, कहते हुए अविलेय आपसदारी का पुनर्स्मरण कराना नहीं भूलते। इस संग्रह में यदि कवि का स्वर बदला हुआ है, वह अधिक तल्ख़ और तेज़ाबी हुआ है तो इसलिए कि समय बदला है और सामाजिक विषाक्तता बहुत तेज़ी के साथ बढ़ी है। कोमलता और पारस्परिकता के इस संहार के सामने न तो निरुपाय हुआ जा सकता है और न ही तटस्थ। चेतन इस अवस्थिति के लिए विडम्बना और आत्म-धिक्कारवाले स्वर और संरचना को उन्मोचित करते हैं।
शोकनाच’ (2004) और ‘वीरता पर विचलित’ (2017) के बाद ‘आत्मद्रोह’ आर. चेतनक्रान्ति का तीसरा कविता-संग्रह है। सांस्कृतिक कूद-फाँद वाले इस अवसरवादी माहौल में चेतन ने आत्म-निर्वासन और सन्त जैसे काव्य-व्यक्तित्व की जो विलक्षणता अर्जित की है, वह हिन्दी की बड़ी उपलब्धियों में एक है।
—देवी प्रसाद मिश्र
Gagan Neela Dhara Dhani Nahi Hai
- Author Name:
Keshav Sharan
- Book Type:

- Description: collection of ghazals
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...