Vyomkesh Darvesh
Author:
Vishwanath TripathiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
आकाशधर्मा गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने जीवन-काल में ही मिथक-पुरुष बन गए थे। हिन्दी में ‘आकाशधर्मा’ और ‘मिथक’ इन दोनों शब्दों के प्रयोग का प्रवर्तन उन्होंने ही किया था।
उनका रचित साहित्य विविध एवं विपुल है। उनके शिष्य देश-विदेश में बिखरे हैं। लगभग साठ वर्षों तक उन्होंने सरस्वती की अनवरत साधना की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास का नया दिक्काल एवं प्राचीन भारत का आत्मीय-सांस्कृतिक पर्यावरण रचा। हिन्दी की जातीय संस्कृति के मूल्यों की खोज की, उन्हें अखिल भारतीय एवं मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में परिभाषित किया। परम्परा और आधुनिकता की पहचान कराई। सहज के सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया। वे उन दुर्लभ विद्वान सर्जकों की परम्परा में हैं जिसके प्रतिमान तुलसीदास हैं और जिसमें पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी स्मरणीय हैं।
उनका जीवन-संघर्ष विस्थापित होते रहने का संघर्ष है। उनकी जीवन-यात्रा के बारे में लिखना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा मुश्किल। इस पुस्तक के लेखक को दो दशकों से भी अधिक समय तक उनका सान्निध्य और शिष्यत्व प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। इसलिए पुस्तक को संस्मरणात्मक भी हो जाना पड़ा है। प्रयास किया गया है कि प्रसंगों और स्थितियों को यथासम्भव प्रामाणिक स्रोतों से ही ग्रहण किया जाए। आदरणीयों के प्रति आदर में कमी न आने पावे। काशी की तत्कालीन साहित्य-मंडली, लेखक की मित्र-मंडली अनायास पुस्तक में आ गई है।
ISBN: 9788126722020
Pages: 464
Avg Reading Time: 15 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: जननायक कर्पूरी ठाकुर की ख्याति मुख्यमंत्री के रूप में कम और 'विपक्ष के प्राण' के रूप में ज्यादा थी। समाजवादी धारा के अग्रणी नेता के रूप में कर्पूरीजी भारतीय राजनीति में प्रतिष्ठित रहे हैं। संसदीय मर्यादा और विधाओं के भरपूर पालन तथा संसदीय व्यवस्था में कर्पूरीजी की अटूट आस्था थी। बिहार विधानसभा तथा लोकसभा में उनकी भागीदारी अत्यन्त उच्चकोटि की रही है। इस पुस्तक में विभिन्न संसदीय विधाओं, राज्यपाल के अभिभाषण, प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, बजट, वाद-विवाद, लोक महत्त्व के विषयों, प्रस्तावों तथा अविश्वास प्रस्ताव आदि में नेता विपक्षी दल के रूप में कर्पूरीजी की भागीदारी का निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न संसदीय विधाओं के सैद्धान्तिक पक्ष का अनुशीलन करते हुए उन सिद्धान्तों की कसौटी पर कर्पूरीजी की भूमिका का परीक्षण किया गया है। कर्पूरीजी की सदन के अन्दर नेता विपक्षी दल के रूप में निभाई गई भूमिका का विस्तृत विवरण देनेवाली यह पुस्तक भारतीय राजनीति के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की सूचना भी देती है।
Yoon Guzari Hai Ab Talak
- Author Name:
Seema Kapoor
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- Description: हिन्दी सिनेमा की सुपरिचित निर्माता, निर्देशक और लेखक सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ सिर्फ़ उनके ही जीवन की कहानी नहीं है, इसमें हम एक पूरे दौर के जाने-माने कलाकारों, फ़िल्मकारों के साथ-साथ उनके परिवार के बारे में भी जान पाते हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पारसी थियेटर के ज़माने की कला से जुड़ी रही है। पिता मदनलाल कपूर का पारसी रंगमंच को जो योगदान रहा, उसे अब भी याद किया जाता है। माँ कमल कपूर ‘शबनम’ शायर थीं। बड़े भाई रंजीत कपूर रंगमंच के और अन्नू कपूर हिन्दी सिने-जगत के जाने-माने चेहरे हैं। छोटे भाई निखिल कपूर कवि हैं। सीमा जी प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी की जीवन-संगिनी हैं, तो ज़ाहिर है इस आत्मकथा में उनका जीवन भी हमारे सामने आता है, वे संघर्ष भी दिखाई देते हैं जिनसे आप दोनों को गुज़रना पड़ा और ख़ुशियों के वे पल भी जो उन्होंने जिये। ओम पुरी के जीवन के अन्तिम दिनों की उदास करनेवाली छवियाँ हमें सिर्फ़ इसी पुस्तक में मिलती हैं। कलाकार-दम्पती ने उन दिनों को जैसे जिया, वह पठनीय तो है ही अनुकरणीय भी है। कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी सिने-जगत की बड़ी दुनिया के कई अहम पहलू भी इसमें पाठकों को देखने-जानने को मिलेंगे।
Sarvahara Saamant : D. P. Tripathi
- Author Name:
Raghavendra Dubey Bhaau
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Description:
एक ऐसे व्यक्ति के बारे में लिखना, जो अपने जीवन काल में ही लीजेंड बन चुका हो, वास्तव में दुस्साहस ही कहलाएगा। लेकिन मुझे यह दुस्साहस करना ही था क्योंकि जिस व्यक्ति की शान में मैं ये शब्द कह रहा हूँ, आखिरकार उसी ने तो दुस्साहस करना सिखाया था। मैं जानता हूँ कि मेरे ही शब्द मुझसे छल करेंगे, जब मैं डी. पी. त्रिपाठी को शब्दों की श्रद्धांजलि दूँगा।
17 मार्च, 1983 को लन्दन के हाईगेट कब्रिस्तान में कार्ल मार्क्स की कब्र पर बोलते हुए उनके दोस्त फ्रेडरिक एंजिल्स ने कहा था, “तमाम पीड़ा और पीड़ादायकों की कटु आलोचनाओं को यूँ तो कार्ल मार्क्स अनदेखा ही करते थे। जवाब तभी देते थे जब अत्यन्त जरूरी हो जाए। लोगों का प्यार और उनसे मिलनेवाली प्रतिष्ठा के बीच उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। साइबेरिया से लेकर कैलिफोर्निया और यूरोप से लेकर अमेरिका तक में लोगों ने शोक मनाया। मैं जोर देकर कहना चाहता हूँ कि उनकी जिन्दगी में उनके हजारों विरोधी थे लेकिन उनमें एक भी उनका व्यक्तिगत शत्रु नहीं था।” डी. पी. त्रिपाठी के जाने पर भी कुछ ऐसा ही हुआ था। डी. पी. मार्क्स नहीं थे लेकिन दोनों के बीच एक बात में तो साम्य अवश्य है कि डी. पी. त्रिपाठी के जीवन में भी कोई उनका शत्रु नहीं था। वे अजातशत्रु थे। उनके पास विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों के साथ बेहतर रिश्ता बनाने और कायम रखने का हुनर तो था ही, अपनी प्रतिबद्धताओं और सरोकारों के प्रति हमेशा सचेत रहना भी उन्हें अलहदा दर्जे का अधिकारी बनाता है।
विचार और सरोकार को अपने जीवन में साकार करने वाला उनके जैसा विरले होते हैं। विचार और चिन्तन की उनकी उत्कंठा ने ‘थिंक इंडिया’ जैसे जर्नल को जन्म दिया। विचारों की स्वायत्तता का उनका आग्रह इतना प्रबल था कि जिस विचार से वे सर्वथा इत्तेफाक नहीं रखते थे या यूँ कहें कि जिस विचार के विरोधी होते थे, उस विचार को भी बहस के बीच में ले आने का प्रयत्न करते थे।
डी. पी. त्रिपाठी ने राजनीति को अपना ठिकाना तो जरूर बनाया, लेकिन उनका मन कविता में ही रचा रहा। यदि मैं कहूँ कि वे राजनीति की कविता थे, तो शायद गलत नहीं होगा। उनके विरोधी विचार के लोग भी उनकी इज्जत करते थे। सच कहें, तो वे इस युग के धरोहर थे, आज के सुकरात थे। जो भी उनके सम्पर्क में आया, उनसे मुहब्बत कर बैठा।
—कुमार नरेंद्र सिंह
The World As I See It
- Author Name:
Albert Einstein
- Book Type:

- Description: The World as I See It is a book by Albert Einstein, translated from the German by A. Harris. The Bodley Head (London). The original German book is “Mein Weltbild” by Albert Einstein. Composed of assorted articles, addresses, letters, interviews, and pronouncements, it includes Einstein’s opinions on the meaning of life, ethics, science, society, religion, and politics. Albert Einstein believed in humanity, in a peaceful world of mutual helpfulness, and in the high mission of science. This book is intended as a plea for this belief at a time that compels every one of us to overhaul his mental attitude and his ideas.
C.V. Raman : A Biography
- Author Name:
Uma Parameswaran
- Book Type:

- Description: Celebrated for his groundbreaking discovery, the Raman Effect, C.V. Raman (1888–1970) was the first non-white and the first Asian to receive a Nobel Prize in the sciences in 1930. He also became the first Indian director of the Indian Institute of Science in Bangalore. While Raman’s scientific work is significant and well documented, his personal story is less known. In this thoroughly researched and comprehensive volume, the biographer sheds light on Raman’s personal vision, quirks, and struggles. In her attempt to record his life, she traces the influences and events that shaped Raman into the fascinating man and scientist he was.
Chor Ka Roznamcha
- Author Name:
Jean Genet
- Book Type:

- Description: ‘चोर का रोज़नामचा’ ज्याँ जेने की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में एक है। कथा और आत्मकथा के सटीक मिश्रण से तैयार इस पुस्तक में लेखक ने 1930 के दशक में अपनी यूरोप-यात्रा का वर्णन किया है। भूख, उपेक्षा, थकान और दुराचार को झेलते और चिथड़े पहने उन्होंने स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, जर्मनी आदि की यात्रा की और तत्कालीन जन-जीवन के एक उपेक्षित पहलू को अपनी भाषा में वाणी दी। उपन्यास की कथा विभिन्न अपराधियों, कलाकारों, दलालों और यहाँ तक कि एक जासूस के साथ भी लेखक के समलैंगिक सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। सभी उपकथाओं की सामान्य विषयवस्तु है एक आदर्श-विपर्यय जिसमें समर्पण का चरम रूप विश्वासघात है, क्षुद्र अपचार नायकत्व की पराकाष्ठा है और क़ैद का अर्थ आज़ादी है। उपन्यास में जेने समलैंगिकता, चोरी और विश्वासघात जैसे ‘गुणों’ से एक वैकल्पिक ‘साधुता’ का निर्माण करते हैं और इसके लिए वे ईसाई शब्दावली को इस्तेमाल करते हैं। हर चोरी वहाँ धार्मिक कर्मकांड की तरह होती है और उसके लिए उनकी तैयारी उसी तरह होती है जैसे संत प्रार्थना के लिए जाते हैं। जिन चीज़ों के लिए इस उपन्यास को विशेष रूप से जाना जाता है, वे हैं : गहन आत्मान्वेषण, रूढ़ नैतिक मूल्यों का अतिक्रमण और सामान्य समझ के अनुसार ‘नीच’ मानी जानेवाली स्थितियों के लिए एक सौन्दर्य शास्त्र गढ़ने का प्रयास। प्रस्तुत अनुवाद में कोशिश की गई है कि मूल की लय और कथ्य बरक़रार रहे।
Marfat Dilli
- Author Name:
Krishna Sobti
- Book Type:

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Description:
दिल्ली से कृष्णा सोबती का रिश्ता बचपन से है। आज़ादी से पूर्व उनका वेतनभोगी परिवार साल के छह माह शिमला और छह माह दिल्ली में निवास करता था। अपने किशोर दिनों में वे दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हॉकी खेलती रही हैं। बँटवारे के बाद लाहौर से आकर वे स्थायी तौर पर दिल्ली की हो गईं। दिल्ली का नागरिक होने पर उन्हें गर्व भी है और इस शहर से प्रेम भी। यहाँ के इतिहास और भूगोल को वे बहुत गहरे से जानती रही हैं। दिल्ली के तीन सौ से ज़्यादा गाँवों को और उनके बदलने की प्रक्रिया को उन्होंने पारिवारिक भाव से देखा है। हर गाँव को उन्होंने पैदल घूमा है।
‘मार्फ़त दिल्ली’ में उन्होंने आज़ादी बाद के समय की कुछ सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक छवियों को अंकित किया है। यह वह समय था जब ब्रिटिश सरकार के पराए अनुशासन से निकलकर दिल्ली अपनी औपनिवेशिक आदतों और देसी जीवन-शैली के बीच कुछ नया गढ़ रही थी। सड़कों पर शरणार्थियों की चोट खाई टोलियाँ अपने लिए छत और रोज़ी-रोटी तलाशती घूमती थीं। और देश की नई-नई सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से दो-चार हो रही थी।
उस विराट परिदृश्य में साहित्य समाज भी नई आँखों से देश और दुनिया को देख रहा था। लेखकों-कवियों की एक नई पीढ़ी उभर रही थी। लोग मिलते थे। बैठते थे। बहस करते थे और अपने रचनात्मक दायित्वों को ताज़ा बनाए रखते थे। बैठने-बतियाने की जगहें, काफी हाउस और रेस्तराँ साथियों की-सी भूमिका निभाते थे। मंडी हाउस और कनाट प्लेस नए विचारों और विचारधाराओं की ऊष्मा का प्रसार करते थे।
कृष्णा जी ने उस पूरे समय को सघन नागरिक भाव से जिया। भारतीय इतिहास की कुछ निर्णायक घटनाओं को उन्होंने उनके बीच खड़े होकर देखा। आज़ादी के पहले उत्सव का उल्लास और उसमें तैरती विभाजन की सिसकियों को उन्होंने छूकर महसूस किया। बापू की अन्तिम यात्रा में लाखों आँखों की नमी से वे भीगीं। दिल्ली में हिन्दी को एक बड़ी भाषा के रूप में उभरते हुए भी देखा। इन पन्नों में उन्होंने उस दौर की कुछ यादों को ताज़ा किया है।
Aap-Biti
- Author Name:
Marc Chagall
- Book Type:

- Description: इन सफों का वही अर्थ है जो चित्रित सतह का है। यदि मेरे चित्रों में छिपने की कोई जगह होती, तो मैं उसमें सरक जाता...या शायद वे मेरे किसी चरित्र के पीछे चिपके होते या ‘संगीतकार’ के पाजामे के पीछे होते जिसे मैंने अपने म्यूरल में चित्रित किया है?...कौन जानता कि पीठ पर क्या लिखा है? आर.एस.एफ़.एस.आर. के समय में। मैं चाहकर चिल्लाता : हमारे बिजली के मचान हमारे पैरों तले सरक रहे हैं, क्या तुम महसूस कर सकते हो? और क्या हमारी सुघतय कला में पूर्व चेतावनी नहीं थी, हालाँकि हम लोग वास्तव में हवा में हैं और एक ही रोग से ग्रस्त, स्थायित्व के लिए लालायित। वे पाँच साल मेरी आत्मा मथते हैं। मैं दुबला हो चूका हूँ। मैं भूखा भी हूँ। मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ फिर से, बी...सी...पी...मैं थक चूका हूँ। मुझे अपनी पत्नी और बेटी के साथ आना चाहिए। मुझे तुम्हारे नज़दीक आकर लेटना चाहिए। और, शायद, यूरोप मुझसे प्रेम करे, उसके साथ, मेरा रूस।
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