Mohan Rakesh : Adhoore Rishton Ki Poori Dastan
Author:
Jaidev TanejaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
मोहन राकेश अपने आत्मानुभव के आधार पर बिलकुल सहज, सरल और स्वाभाविक शब्दों में केवल इतना ही कहते हैं, ‘आओ, प्यार करें, बिना ये जाने कि प्यार क्या है?’ उनके लिए प्यार सीखने की नहीं, करने की कला है। राकेश के प्यार का दायरा केवल व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक मानवीय सम्बन्धों तक ही सीमित नहीं है। उनका प्यार पशु-पक्षियों, पहाड़ों, नदियों, झरनों, समुद्र तटों, पेड़-पौधों, जंगलों, चाँद-सितारों, सृष्टि और प्रकृति के लघु-विराट् और अनन्त रूपों तक फैला है।</p>
<p>इस पुस्तक का विषय राकेश के जीवन में अनेक बार आया प्यार और उस प्यार की आलम्बन रही स्त्रियों से उनके आधे-अधूरे रिश्तों के ज्ञात इकतरफा सच को, अनेक स्रोतों एवं सूत्रों से प्राप्त दूसरी तरफ के अल्पज्ञात सच के बरक्स रखकर, अपेक्षाकृत पूरे सच की तलाश पर केन्द्रित है।</p>
<p>अपनी भावनात्मक ज़रूरतों और ‘घर’ की तलाश में राकेश आजीवन छटपटाते-भागते रहे। कई स्त्रियाँ उनके जीवन में आईं, लेकिन फिर भी उनके जीवन का वह मूल प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है कि वह स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के मामले में कभी भी पूरी तरह सुखी और सन्तुष्ट क्यों नहीं हो पाए?</p>
<p>अधूरे रिश्तों का यह सवाल राकेश के सन्दर्भ में अपेक्षाकृत अधिक जटिल, गम्भीर और महत्त्वपूर्ण है, खासतौर से तब जब हम यह जानते हैं कि इसका वास्तविक सम्बन्ध राकेश के अपने अन्तर्विराेधों तथा उनकी शर्तों एवं लगभग असम्भव अपेक्षाओं से है।</p>
<p>‘किसी विशिष्ट स्त्री’ की तलाश ही शायद वह मूल कारण रहा होगा जिसके लिए मोहन राकेश को अपने जीवन में कई स्त्रियों से होकर गुज़रना पड़ा।</p>
<p>इस पुस्तक में आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, साक्षात्कार, इतिहास, आत्मालोचना और किसी हद तक नाटक एवं कथा, आदि विधाओं के भी कई तत्त्व समाहित हैं। इन्हीं के सहारे यह पुस्तक आधुनिक हिन्दी साहित्य और रंगकर्म के सम्मोहक तथा विवादास्पद मिथक पुरुष के व्यक्तित्व के रहस्यमय नेपथ्य-लोक की अन्तर्यात्रा करने का प्रयास करती है।
ISBN: 9788196148720
Pages: 400
Avg Reading Time: 13 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘‘न’ की जीत हुई’ के. सुरेश की संस्मरणात्मक कहानियों की दूसरी पुस्तक है। वस्तु, शैली और संरचना की दृष्टि से इसे उनकी पहली पुस्तक 'इक्कीस बिहारी और एक मद्रासी' का विस्तार माना जा सकता है; अर्थात् प्रस्तुत संग्रह की नौ कहानियाँ भी पाठक को पिछले संग्रह की ग्यारह कहानियों के अनुभव संसार में शामिल कर अनुभूति के कुछ और मार्मिक स्थलों की ओर ले जाती हैं।
सुरेश जी वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी हैं। अपनी दीर्घकालीन सेवा के दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों में विभिन्न प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन किया है। इस अवधि में भाँति-भाँति के लोगों से उनका साक्षात्कार हुआ है, क़िस्म-क़िस्म की समस्याओं से उन्होंने मुठभेड़ की है और तरह-तरह की घटनाओं का वे हिस्सा बने हैं। कहीं संघर्ष, कहीं सहानुभूति, कहीं कृतज्ञता का भाव। इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ ऐसे
व्यक्तियों, परिस्थितियों, घटनाओं, अनुभवों और भावों का साक्षात्कार हैं, जो संवाद के इच्छुक हैं। ये संस्मरण एक ऐसे चैतन्य प्रशासक की रागात्मक अभिव्यक्ति हैं, जिसका चित्त शुद्ध और संवेदना जाग्रत
है।इन रचनाओं की सहजता और कथ्य के स्तर पर बरती गई ईमानदारी के माध्यम से अभिव्यक्ति की सच्चाई को परखा जा सकता है। इसे एक प्रशासक के अनुभव का निचोड़ कहा जा सकता है। यह निचोड़ ‘हम सिंगल ही अच्छे थे’ में प्रशासकों के बँगलों पर स्थायी समस्या के रूप में उपस्थित ‘अच्छे’ अथवा ‘अनुकूल’ भूत्या की तलाश के रोचक प्रसंग के रूप में देखा जा सकता है। ‘दिल में जो तमन्ना थी’, ‘कैसे नहीं लिखूँ’, ‘बाक़ी सब ठीक है’, ֹ‘कटी नाक की अमर कहानी’, ‘कलेक्टर साहब के बँगले की गाय’ आदि संस्मरण भी रोचक मुहावरों, प्रसंगों और घटनाओं की सार्थक भूमिका के साथ किसी ज्वलन्त समस्या और उसके निराकरण के लिए किए गए प्रयासों की प्रशासनिक सूझ से जुड़ते हैं।
इन संस्मरणों के मार्फ़त तत्कालीन मध्य प्रदेश के दूरस्थ अंचलों, ख़ास तौर पर जनजाति बहुल ज़िलों की विषम स्थितियों, कठिन जीवन-संघर्ष और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की वास्तविकता का पता भी चलता है।
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