Viveki Rai : Anchlikta Aur Lok Jivan
Author:
Vinamra Sen SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
विवेकी राय हिन्दी साहित्य के पांक्तेय साहित्यकार हैं। उनके लेखन का समग्र रूप गाँव, किसान और उनकी दशा-दुर्दशा पर केन्द्रित है। वैसे तो गाँव को केन्द्र में रखकर लिखनेवाले साहित्यकार और भी हैं पर विवेकी राय ऐसे रचनाकार हैं जिनका सम्पूर्ण उर्वर और लेखकीय ऊर्जा का कालखंड गाँव में बीता।</p>
<p>कोई भी लेखक तभी सफल होता है जब वह जो लिखता है, वही जीता है अर्थात् जो गाँव में रहा नहीं, गाँव की प्रकृति, उसके सौन्दर्य और खुलेपन को अपनी आँखों से निहारा नहीं, गाँववालों के सीधे-सरल व्यवहार के साथ समरस नहीं हुआ, खेती, किसानी गाय-बैल से जुदा नहीं, वह गाँव का आत्मीय चित्र प्रस्तुत करने में उतना समर्थ नहीं हो सकता, जितना स्वयं गाँव को भोगनेवाला या गाँव को ही जीनेवाला लेखक समर्थ हो सकता है।</p>
<p>विवेकी राय ऐसे ही विरल रचनाकारों में से एक हैं जिन्होंने गाँव को जिया है।</p>
<p>यह पुस्तक विशेष रूप से विवेकी राय के साहित्य पर आंचलिकता और लोकजीवन के प्रभाव को दर्शाती है। उनके साहित्य के साथ ही उनके व्यक्तित्व दर्शन की दृष्टि से भी महत्त्व रखती है।
ISBN: 9789386863584
Pages: 222
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
नाट्यशास्व की रचना देव-भाषा संस्कृत या देव वाणी में हुई है, जिसकी महिमा से पार नहीं पाया जा सकता है।
नाट्योत्पत्ति, नाट्यशास्त्र क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता। इस विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध नृशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शरीर विज्ञान, भाषा विज्ञान आदि से है। फिर नाट्योत्पत्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर रूपक-संरचना समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। यह मानवीय क्रिया है। इसका सम्बन्ध समाज-प्रकृति-परिवेश से है, प्रगति प्रक्रिया से है, समय और स्थान से है। भविष्य से सम्बन्धित विचारों और तदनुरूप आशाओं से रहित मनुष्य की कल्पना करना असम्भव है। मानव जाति हमेशा ही बेहतर भविष्य का स्वप्न देखती रही है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास ही मानवजाति की मूल समस्या रही है। मनुष्य की गतिशीलता और उनके सक्रिय जीवन से भाषा की भाँति नाट्य का गहरा सम्बन्ध है। लेकिन ऐतिहासिक प्रगति या सामाजिक विकास के आधार को मान्यता न देकर धार्मिकता या दैवाधीनता को महत्त्व देकर इस नाट्यशास्त्र को बड़ा या विस्तृत आकार दिया गया है।
Mopala Kand-1921
- Author Name:
Go. Sthanumalayan
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- Description: 1921 में केरल के मलबार में मोपलाओं द्वारा किए गए हिंदू नरसंहार के जघन्य कुकृत्य को एक शताब्दी बीत चुकी है | लेकिन इस लंबे कालखंड में भी इस बृशंस हत्याकांड के बारे में झूठा और मिथ्या दुष्प्रचार किया जाता रहा | हिंदुओं पर अत्याचार करना, हिंदुओं की संपत्तियों को लूटना, धर्मांतरण आदि जैसे नीच कार्य करनेवालों को स्वतंत्रता सेनानी के समान जनता के सामने पेश करने का दुस्साहस वामपंथियों की बौद्धिक रीति का आक्रमण ही है ।कांग्रेस और वामपंथियों ने मोपला दंगे को स्वतंत्रता-संग्राम और किसानों के आंदोलन के रुप में प्रस्तुत कर इतिहास को बदलने का अक्षम्य कार्य किया | साजिश के तहत मोपला दंगे को कांग्रेस व कम्युनिस्टों ने मजदूरों और जमींदारों के बीच का झगड़ा बताया | आध्यात्मिक प्रदेश केरल में बेचारी अल्पसंख्यक हिंदू जनता ने मुसलमानों के अत्याचारों और बर्बरता की जितनी यातनाएँ झेलीं, उन्हें ठोस प्रमाण के साथ लेखक ने इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है मंदिरों को ध्वस्त करना, स्त्रियों का मान भंग करना, हिंदुओं की संपत्तियों को लूटना, हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण कराना तथा दंगों के समय भारत के अन्य प्रदेशों से मोपलाओं को इस कुकृत्य में मदद मिली-ऐसे अनेक विषयों का भी उल्लेख लेखक ने इस पुस्तक में किया है | आज की पीढ़ी हिंदुओं के उस बीभत्स नरसंहार के पीछे की कुत्सित मानसिकता को जान पाए, इस मंतव्य से यह पुस्तक लिखी गई है |
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