
Maran Sagar Pare
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
102
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
204 mins
Book Description
कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई ज़मीन बनाई थी, जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे। उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज़्यादा पढ़े जानेवाले लेखकों में एक होकर रहीं।</p> <p>कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया। अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने क़रीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया।</p> <p>इस पुस्तक में ‘वंकिम तोमार नाम’, ‘एक श्रद्धांजलि’, ‘केशव कहि न जाय’, ‘पेयेछी छूटी’, ‘दिशा प्रवर्त्तक’, ‘यात्री आमी ओरे’, ‘एक टी शिशिर बिन्दु!’, ‘लोक्खी टी’, ‘अब न आँखि तर’, ‘कहाँ गईलै हो…’, ‘मरण सागर पारे’, ‘डॉक्टर खजानचन्द्र’, ‘गंगा बाबू कौन’, ‘मेरा भाई’, ‘तुभ्यं श्री गुरुवे नम:’ शीर्षक संस्मरण और रेखाचित्रों को संकलित किया गया है। आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसन्द आएँगी।