Hum Ek Umra Se Wakif Hain
Author:
Harishankar ParsaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
परसाई जैसा बड़ा रचनाकार जब ‘हम इक उम्र से वाक़िफ़ हैं’ होने की बात करता है तो उसका मतलब सिर्फ़ उतना ही नहीं होता, क्योंकि उसकी ‘उम्र’ एक युग का पर्याय बन चुकी होती है। इसलिए यह कृति परसाई जी के जीवनालेख के साथ-साथ एक लम्बे रचनात्मक दौर का भी अंकन है। परसाई जी ने इस पुस्तक में अपने जीवन की उन विभिन्न स्थितियों और घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें न केवल उनके रचनाकार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ, बल्कि उनकी लेखनी को भी एक नई धार मिल सकी। उनका समूचा जीवन एक सक्रिय बुद्धिजीवी का जीवन रहा। वे सदा सिद्धान्त को कर्म से जोड़कर चले और अपनी रचनात्मकता पर काल्पनिक यथार्थवाद की छाया तक नहीं पड़ने दी। इसलिए आकस्मिक नहीं कि इस पुस्तक में हम उन्हें विभिन्न आन्दोलनरत संगठनों के कुशल संगठनकर्ता के रूप में भी देख पाते हैं। इसके अलावा यह कृति उनकी सहज व्यंग्यप्रधान शैली में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों से भी परिचित कराती है, जो किसी भी तरह उनसे जुड़े। कहना न होगा कि परसाई जी का यह संस्मरणात्मक आत्मकथ्य उन तमाम पाठकों और रचनाकारों के लिए प्रेरणाप्रद है जो कि एक बुनियादी सामाजिक बदलाव में साहित्यकार की भी एक रचनात्मक भूमिका को स्वीकार करते हैं।</p>
<p>
ISBN: 9789388183543
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भूपेन पर पहली किताब महेन्द्र देसाई ने लिखी। गाढ़े दोस्त थे भूपेन और महेन्द्र। लिखनेवाला हो महेन्द्र जैसा औघड़, और लिखा जा रहा हो भूपेन जैसे खिलन्दड़े और उसकी कला पर तो किताब असामान्य होनी ही थी। हुई। विलक्षण, मस्त, अपने विषय की आत्मा में प्रवेश करने को आतुर और, उसी कारण, अपनी विश्वसनीयता के प्रति लापरवाह। अकारण नहीं कि इससे बिलकुल उलट संवेदना से लैस अँग्रेज़ टिमथी हाइमन ने महेन्द्र की किताब से बहुत कुछ पाने के बावजूद महेन्द्र के वर्णन को 'गार्बल्ड’ कहा। काश! मैं भी देखने, सोचने और लिखने में महेन्द्र जैसा दुस्साहस बरत पाता।
भूपेन पर दूसरी किताब है इन्हीं टिमथी हाइमन की। ब्रिटिश कलाकार, कला मर्मज्ञ और भूपेन के परम मित्र। एक पारखी की पैनी नज़र है टिमथी की किताब में। ऐसी किताब भी नहीं लिख पाऊँगा मैं।
फिर भी लिख रहा हूँ। महेन्द्र जैसा फक्कड़ी सृजनशील न सही, दुस्साहस तो है ही मेरे इस प्रयास में। दोषी दरअसल भूपेन है। अपने जीते जी देश और विदेश में होनेवाली अपनी प्रदर्शनियों के आधे दर्जन ब्रोशर मुझसे लिखवाकर बगैर कुछ कहे समझा गया कि मण्डन मिश्र के तोता-मैना शास्त्रार्थ कर सकते थे तो मैं अपने दोस्त के अन्तरंग संस्मरण तो लिख ही सकता हूँ।
23 साल की निरन्तर गहराती दोस्ती रही भूपेन के साथ। अनेक रूप देखे उसके। उन सब के बेबाक विवरण हैं यहाँ। वह भी है जो इस किताब को लिखने के दौरान जाना : कि भूपेन नितान्त विलक्षण लेखक है और उसके साहित्य के साथ न्याय नहीं हुआ है। —इसी पुस्तक से
Mahamari Ka Rojnamacha
- Author Name:
Sorit Gupto
- Book Type:

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अच्छे वक्त के बारे में तो नहीं जानता पर हर बुरे वक्त का अपना एक खास चेहरा होता है। कभी वह दंगों की शक्ल में आता है तो कभी वह अकाल, बाढ़ या युद्ध की शक्ल में। सदियों में एक बार यह महामारी की शक्ल में भी आता है। 1919 में एक महामारी आई थी—स्पेनिश फ्लू। मेरे दादाजी और उनके साथ के लोगों ने एक महामारी को जीया। उसके बाद हम थे जिन्होंने कोविड को जीया।
एक महामारी हजारों, लाखों लोगों को अपने साथ ले जाती है। इस बार भी कुछ वैसा ही होना था। वैसा हुआ भी पर इस बार की महामारी अब तक की दूसरी महामारियों से अलग थी। इस बार महामारी से ज्यादा परेशानी लोगों को उस लॉकडाउन के चलते हुई जिसे अफरातफरी में लागू किया गया।
महामारियाँ हमेशा से पूरी आबादी को दो हिस्सों में बाँट देती हैं। एक हिस्सा उन लोगों का जो इस महामारी का शिकार बने। जो आज हमारे बीच नहीं हैं। दूसरा हिस्सा हमारा-आपका जो इस महामारी में बच गए, जिन्दा रहे। महामारी में जो हमें छोड़ गए, उन्होंने हम जिन्दा बच गए लोगों पर एक जिम्मेदारी डाली कि हम आने वाली पीढ़ियों को लॉकडाउन और महामारी से उनकी लड़ाई की कहानियाँ बताएँ।
यह किताब बस उसी जिम्मेदारी को पूरा करने की एक छोटी-सी कोशिश भर है।
SHABDAPURUSH MANIKCHANDRA VAJPAYEE
- Author Name:
Prof. Sanjay Dwivedi +1
- Book Type:

- Description: राष्ट्रीय भावधारा के कुछ महत्त्वपूर्ण पत्रकारों का उल्लेख जब भी किया जाएगा, श्री माणिकचंद्र वाजपेयी का नाम उसमें अग्रणी है। उनका समूचा जीवन रचना, सृजन और संघर्ष का अभूतपूर्व उदाहरण है। वे अपनी वैचारिकता में बहुत स्पष्ट हैं और जीवन में उतने ही उदार व समावेशी। आजादी के बाद पत्रकारिता के अनेक नायक सामने आते हैं, जिनमें देश के सर्वांगीण विकास की तड़प दिखती है। इसी दौर में भारतबोध से जुड़ी पत्रकारिता का प्रारंभ भी होता है, जिसके नायक पं. दीनदयाल उपाध्याय हैं। ‘राष्ट्रधर्म’, ‘स्वदेश’ और ‘पाञ्चजन्य’ जैसे तीन प्रकाशनों के माध्यम से वे पत्रकारिता में भारतीयता की अलख जगाते हैं, जिससे राष्ट्रीय भावधारा के पत्रकारों की एक मालिका खड़ी हो जाती है। बाद में ‘युगधर्म’ और ‘तरुण भारत’ जैसे पत्रों और ‘हिंदुस्थान समाचार’ जैसी समाचार एजेंसी से यह भाव और प्रखरता से सामने आता है। यह आवश्यक है कि हम अपने ऐसे नायकों को याद करें और उनका पुण्य स्मरण भी करें। स्व. माणिकचंद्र वाजपेयी की जन्मशती के अवसर पर यह पुस्तक उनके बारे में महत्त्वपूर्ण संदर्भ देती है। उनके कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण लेख इस पुस्तक में हैं, जो उनकी वैचारिकी के बारे में बताते हैं। साथ ही उनकी स्मृति को समर्पित कुछ लेख उनके जीवन और कृतित्व की बानगी भी देते हैं। आज जबकि भारतीय पत्रकारिता पर तमाम प्रश्न खड़े हो रहे हैं, ऐसे समय में मामाजी की याद बहुत स्वाभाविक और मार्मिक हो उठती है। —प्रो. संजय द्विवेदी महानिदेशक, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली
Yahi Tum The : Smaran "Viren Dangwal"
- Author Name:
Pankaj Chaturvedi
- Book Type:

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किसी भी मृत्यु के शोक से हर कोई अपनी तरह उबरता है। कई बार तो इस प्रक्रिया का भान नहीं होता और हम उस व्यक्ति को अपने भीतर से भी खो देते हैं, जिसे दैहिक तौर पर पहले खो चुके हैं। हिन्दी के विलक्षण कवि वीरेन डंगवाल के निधन के बाद अवसन्न छूट गई हिन्दी की दुनिया भी जब अपने ढंग से इस शोक से उबरने की कोशिश कर रही थी, तब कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी कवि के साथ अपनी स्मृति को पुनर्जीवित कर रहे थे। इसी का परिणाम है यह सुविचारित और संवेदनसिक्त किताब यही तुम थे; जिसके ज़रिए हम कुछ अचरज के साथ दो कवियों के बीच अंतर्गुम्फित उस संसार को देख सकते हैं, जो अपनी तरह से बेहद अर्थपूर्ण और तहदार था।
पंकज चतुर्वेदी की यह किताब दो लोगों के सम्बन्धों के बारे में ही नहीं है, यह इस बात के बारे में भी है कि हम अपने सम्बन्धों को किस तरह देखें और महसूस करें। फिर कहने की ज़रूरत है कि यह काम कोशिश करके सम्भव नहीं है; यह रिश्तों की उस संलग्नता, ऊष्मा और तीव्रता से ही सम्भव है, जो इस किताब के दोनों किरदारों—पंकज चतुर्वेदी और वीरेन डंगवाल के बीच बनती रही और दोनों को बनाती भी रही।
मूलतः स्मृतिविन्यस्त होने के बावजूद यह किताब शास्त्रीय या प्रचलित अर्थों में संस्मरण नहीं है। यह किताब अपने छोटे-छोटे प्रसंगों में हमें साहित्य, कविता, विचार और ज़िन्दगी के बारे में सोचने पर मजबूर तो करती ही है, लेकिन सबसे ज़्यादा इस बात की तरफ़ ध्यान खींचती है कि दो मनुष्य कैसे एक-दूसरे को देख और सिरज सकते हैं।
—प्रियदर्शन
Haashiye Par Padi Duniya
- Author Name:
Balkrishna Gupta
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‘हाशिए पर पड़ी दुनिया’ बहुआयामी व्यक्तित्व-कृतित्व के धनी बालकृष्ण गुप्त पर केन्द्रित अनूठी पुस्तक है। डॉ. राममनोहर लोहिया और बालकृष्ण गुप्त की राजनीतिक सहभागिता एक इतिहास निर्मित कर चुकी है। अध्ययन, अनुभव, सक्रियता व प्रतिबद्धता का ऐसा उदाहरण दुर्लभ है। प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय लिखते हैं : ‘आप यदि लोहिया पर लिखेंगे तो बालकृष्ण जी छाया बन जाएँगे और बालकृष्ण जी पर लिखेंगे तो लोहिया की देह बनना तय है। वैसे लोहिया मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं जबकि बालकृष्ण जी मेरे गुरु के गुरुत्व होने की शक्ति, यानी कि वह वजह, जिससे लोहिया थे, उस शक्ति पर लिखना निश्चित ही आसान काम नहीं है।’
स्वाभाविक है कि बालकृष्ण गुप्त पर लिखे गए संस्मरणों एवं स्वयं उनके महत्त्वपूर्ण आलेखों से समृद्ध यह पुस्तक अपने समय का ज्वलन्त साक्ष्य है। सम्पादक द्वय सारंग उपाध्याय व अनुराग चतुर्वेदी ने पुस्तक का संयोजन पाँच खंडों में किया है। खंड-1 में आत्मीयजनों के संस्मरण बालकृष्ण गुप्त के कर्मठ जीवन का व्यवस्थित विवेचन करते हैं। खंड-2 (हाशिए पर पड़ी दुनिया), खंड-3 (बुद्धिजीवी नेहरू, लोहिया और वामपंथ) तथा खंड-4 (बिड़ला, गोयनका और अंधी योजनाएँ) में बालकृष्ण गुप्त के विपुल लेखन से चुने गए कुछ महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। समाज, राजनीति, अर्थनीति, लोकतंत्र, विदेशनीति, प्रशासन और विश्व परिदृश्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध ये लेख गुप्त की लेखन क्षमता का अकाट्य प्रमाण हैं।
इन आलेखों की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। समकालीन राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भों को समझने में इन विचारों से बहुत प्रकाश मिलता है। यह भी पता चलता है कि राजनीति में सक्रिय रहने के लिए कितने अध्ययन व विवेक की आवश्यकता होती है। ‘लोहियावाद’ को मूर्तिमान करनेवाले बालकृष्ण गुप्त का लेखन प्रेरणा प्रदान करता है।
खंड—5 (दस्तावेज़) में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के प्रसंग सँजोए गए हैं। पुस्तक में अनेक चित्र हैं जो स्वयं में एक दस्तावेज़ हैं। समग्रत: यह सुसम्पादित व विचार-समृद्ध पुस्तक प्रत्येक जागरूक पाठक के लिए अनिवार्य है।
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