Ek Kahani Yah Bhi
Author:
Mannu BhandariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
'आपका बंटी'और 'महाभोज'जैसे उपन्यास और अनेक बहुपठित-चर्चित कहानियों कीलेखिका मन्नू भंडारी इस पुस्तक में अपने लेखकीय जीवन की कहानी कह रही हैं ।यह उनकी आत्मकथा नहीं है,लेकिन इसमें उनके भावात्मक और सांसारिक जीवन केउन पहलुओं पर भरपूर प्रकाश पड़ता है जो उनकी रचना-यात्रा में निर्णायक रहे ।एक ख्यातनामा लेखक की जीवन-संगिनी होने का रोमांच और एक जिद्दी पति कीपत्नी होने की बाधाएँ,एक तरफ अपनी लेखकीय जरूरतें (महत्वाकांक्षाएँ नही)और दूसरी तरफ एक घर को सँभालने का बोझिल दायित्व,एक धुर आम आदमी की तरहजीने की चाह और महान उपलब्धियों के लिए ललकता,आसपास का साहित्यिकवातावरण-ऐसे कई-कई विरोधाभासों के बीच से मनजी लगातार गुजरती रहीं,लेकिनउन्होंने अपनी जिजीविषा,अपनी सादगी,आदमीयत और रचना-संकल्प को नहीं टूटनेदिया । आज भी जब वे उतनी मात्रा में नहीं लिख रही हैं,ये चीजें उनके साथहैं,उनकी सम्पत्ति हैं ।यह आत्मस्मरण मनजी की जीवन-स्थितियों के साथ-साथ उनके दौर की कईसाहित्यिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी रोशनी डालता है और नईकहानी दौर की रचनात्मक बेकली और तत्कालीन लेखकों की ऊँचाइयों-नीचाइयों सेभी परिचित कराता है । साथ ही उन परिवेशगत स्थितियों को भी पाठक के सामनेरखता है जिन्होंने उनकी संवेदना को झकझोरा ।
ISBN: 9788183612395
Pages: 227
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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—इरशाद कामिल; मशहूर फ़िल्म गीतकार
जयपुर के पत्रकार ईशमधु तलवार ने किसी ज़माने में ख्याति पाए संगीतकार दान सिंह, जिनके मृत होने की अफ़वाह थी, को जीवित खोज निकाला और तनहा गुमशुदा-सी ज़िन्दगी के अँधेरों से वे बाहर आए।
—जयप्रकाश चौकसे; प्रसिद्ध फ़िल्म समीक्षक
दान सिंह जी के संगीत की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वो अपने समय के सभी दिग्गजों के बीच अपनी अलग धारा चले, पक्की और मधुर धुनों के साथ-साथ दान सिंह ने कविता की ऊँचाई को भी क़ायम रखा।
—यूनुस ख़ान; मशहूर रेडियो एनाउंसर, विविध भारती, मुम्बई
Jeevan Yauvan
- Author Name:
Anndashankar Roy
- Book Type:

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Description:
‘जीवन यौवन’ अन्नदाशंकर राय की आत्मस्मृति है। इसमें उनका व्यक्तिचित्र अंकित है। उनकी आशा-आकांक्षा, उनकी चिरन्तन नारी को खोजने की प्यास, उनकी सत्य को पाने की ललक, प्रशासनिक कामों में व्यस्त रहने के बाद भी अपनी लेखकीय सत्ता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, उनका बचपन, उनकी छात्रावस्था, पढ़ने की निरन्तर ललक, अपनी भाषा की खोज, उसके लिए अपने पूर्वपुरुषों और समकालीन साहित्यिक दाय को आत्मसात् करने का प्रयास, निरन्तर प्रश्नाकुलता, जिज्ञासाएँ, उनके दिगन्तरों की खोज—ये
सब दिशाएँ उनके इस ‘जीवन यौवन’ का आधार बनी हैं।
इसमें लेखक ने अपनी सत्ता को, अपनी निजता को खोला है। इसमें ‘पथे-प्रवासे’ भी है और चिरन्तन पथ भी है, पथिक भी है, उसकी चिर-यात्रा भी है, जीवन भी है, जीवन को पार करता दूसरा छोर भी है। सरला की ओर उनका खिंचाव, प्रायः उसे नित्य पत्र लिखना, इसी पत्राचार के क्रम में उनकी गद्यभाषा में निखार आना, फिर और एक विदेशिनी के साथ लम्बे-लम्बे प्रवास, यूरोप को निकट से जानना, उन प्रश्नों को, जिज्ञासाओं को जिनसे यूरोप परिचालित हो रहा है—इन सब तरंगाघातों को इस पुस्तक में देखा जा सकता है।
सत्य और स्वप्न के आकर्षण-विकर्षण से ही अन्नदाशंकर राय के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है जिसकी बहुविध झाँकी इस पुस्तक में मिलती है।
Lohia : Ek Pramanik Jivani
- Author Name:
Omkar Sharad
- Book Type:

- Description: डॉ. लोहिया के चालीस साल के राजनीतिक जीवन में कभी उन्हें सही मायने में नहीं समझा गया। जब देश ने उन्हें समझा, लोगों की उनके प्रति चाह बढ़ी और उनकी ओर आशा की निगाहों से देखना शुरू किया तो अचानक ही वे चले गए। हाँ, जाते-जाते अपना महत्त्व लोगों के दिलों में जमा गए। लोहिया का महत्त्व! उन्हें गए इतना समय बीत गया, देश की राजनीति में कितना परिवर्तन आ गया, फिर भी आज नए सिरे से लोहिया की ज़रूरत महसूस की जा रही है। यह तो भावी इतिहास ही सिद्ध करेगा कि देश में आए आज के परिवर्तन में लोहिया की क्या भूमिका रही है। लगता है कि लोहिया ऐसे इतिहास-पुरुष हो गए हैं, जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, उनका महत्त्व बढ़ता जाएगा। किसी लेखक ने ठीक ही लिखा है—“डॉ. राममनोहर लोहिया गंगा की पावन धारा थे, जहाँ कोई भी बेहिचक डुबकी लगाकर मन और प्राण को ताज़ा कर सकता है।” एक हद तक यह बड़ी वास्तविक कल्पना है। सचमुच लोहिया जी गंगा की धारा ही थे—सदा वेग से बहते रहे, बिना एक क्षण भी रुके, ठहरे। जब तक गंगा की धारा पहाड़ों में भटकती, टकराती रही, किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब मैदानी ढाल पर आकर वह तीव्र गति से बहने लगी तो उसकी तरंगों, उसके वेग, उसके हाहाकार की ओर लोगों ने चकित होकर देखा, पर लोगों को मालूम न था कि उसका वेग इतना तीव्र कि समुद्र से मिलने में उसे अधिक समय न लगा। शायद उस वेगवती नदी को ख़ुद भी समुद्र के इतने पास होने का अन्दाज़ा न था। यह इस देश, समाज और आधुनिक राजनीति का दुर्भाग्य है कि वह महान चिन्तक इस संसार से इतनी जल्दी चला गया। यदि लोहिया कुछ वर्ष और ज़िन्दा रहते तो निश्चय ही सामाजिक चरित्र और समाज संगठन में कुछ नए मोड़ आते। —ओंकार शरद
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