Ek Bechain Ka Roznamcha
Author:
Fernando PessoaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
विधा चाहे कोई भी हो—गद्य, पद्य, नाटक, या निबन्ध—पैसोआ का प्रधान उद्देश्य हमेशा अपनी पहचान की खोज में भटकते मनुष्य की वेदना और द्वन्द्व को प्रकट करना रहता है। स्वभाव से अन्तर्मुखी पैसोआ किसी एक विचार और उसके विपरीत के बीच टकराते रहते थे। वे सभी सच्चाइयों की सापेक्षता पर भी ज़ोर देते थे। उनके सबसे पहले अनुवादक जोनाथन ग्रिफिन ने उन्हें ‘एक निष्पक्ष अन्तर्मुखी’ कहा है। वे ‘कला के लिए कला’ सिद्धान्त के समर्थक थे किन्तु साथ में इस बात में भी पूरा विश्वास करने लगे थे कि कलाकार को बिना आत्मनिर्भर हुए समकालीन विचारों को प्रकट करना चाहिए। इस तरह उनकी राय में सबसे बड़ा कलाकार वह होता है जो अपने सम्बन्धों को सबसे कम महत्त्व देता हो, अधिकतम साहित्यिक विधाओं में लिखता हो, और जिसके अनेक व्यक्तित्व हों।</p>
<p>फरनान्दो पैसोआ की मृत्यु के बाद उनके कमरे में लकड़ी की एक बड़ी-सी सन्दूक पाई गई, जो सीलबन्द लिफ़ाफ़ों से खचाखच भरी थी। इन लिफ़ाफ़ों में पैसोआ ने अपनी कविताएँ, नाटक, गद्य, सौन्दर्यशास्त्र पर लेख, साहित्यिक समालोचना, दर्शन पर निबन्ध तथा अप्रकाशित दैनिकी की मूल पांडुलिपियाँ जमा कर रखी थीं। इसी सामग्री से 1991 में एक पुस्तक तैयार की गई—‘दि बुक ऑव डिस्क्वाएट्यूड’। एक बेहद बेचैन, जीवन से विरक्त नौजवान के देखे हुए सपनों के वर्णन और उसके स्फुट विचारों का संग्रह। ‘एक बेचैन का रोज़नामचा’ इन्हीं अंशात्मक रचनाओं के प्रकाशित संग्रह में से संकलित किया गया है। अत्यधिक अस्त-व्यस्त रूप में पाई गई इन रचनाओं का नायक है बैरनार्दो सुआरैश जो फरनान्दो के बहत्तर नामों में से एक है। सुआरैश समय बिताने या जीवन से दूर भागने के लिए सपने नहीं देखता। वह सपने देखता है उस वस्तु को पाने के लिए जिसकी उसके जीवन में कमी है। इन सपनों की वास्तविकता से वह अपनी कला का निर्माण करता है जो उसका स्थायी आश्रय है, और जहाँ से परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर वह फिर यथार्थ में लौटता है।
ISBN: 9788126713394
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
प्रख्यात विद्वान प्रोफ़ेसर वारिस किरमानी की आत्मकथा ‘घूमती नदी’ एक दस्तावेज़ी किताब है। किताब के पहले अध्याय को ‘ख़ुश्बू-ए-पैरहन’ का शीर्षक दिया गया है। यह नहीं मालूम कि प्रो. किरमानी ने ‘गोमती नदी’ का नाम ‘घूमती नदी’ कहाँ से लिया है। हमारे पुराने हिन्दुस्तानी साहित्य में इस नदी को गोमती नदी ही लिखा गया है। किरमानी साहब ने गोमती के किनारे हरे-भरे मैदानों, खेतों और पुराने क़स्बों की आलीशान मस्जिदों और मन्दिरों का ज़िक्र बड़े ख़ूबसूरत अन्दाज़ में किया है, और फिर उस इलाक़े के मशहूर क़स्बे देवा शरीफ़ में अपनी पैदाइश सन् 1925 में लिखी है। इसी के साथ अवध की रंगारंग तह्ज़ीब, मेले-ठेले, त्योहारों और उत्सवों का दिलचस्प उल्लेख किया गया है। अवध का रहन-सहन, साहित्य, संस्कृति, भाषा, आपसी मेलजोल, भाईचारा, आपसी एकता और अखंडता की जीती-जागती तस्वीरें इस किताब में विशिष्ट प्रकार से मौजूद हैं। अवधी ज़बान, हिन्दुस्तानी मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं की ऐसी झलकियाँ पेश की गई हैं कि पाठक उन अनुभूतियों में खो जाता है और गुज़री हुई ज़िन्दगी की प्रतिध्वनि साफ़ सुनाई देती है।
किरमानी जी के माता-पिता की मृत्यु के बाद मजबूरियों और अभावों का वर्णन भी बहुत मार्मिक है। किताब में जगह-जगह ऐतिहासिक घटनाएँ दुहराई गई हैं, जिससे उनके ऐतिहासिक ज्ञान का पता चलता है। जैसा कि उन्होंने देहली के सुल्तान इल्तुतमिश के बचपन का वर्णन एक फ़ारसी किताब से उद्धृत किया है। इसी तरह औरंगज़ेब के समय की भी एक घटना उल्लिखित की है, जिससे शहंशाह के बारे में ग़लतफ़हमी दूर होती है। इसी के साथ वारिस साहब ने अपने पूर्वजों के बारे में एक दिलचस्प घटना लिखी है जिसके स्रोत का उल्लेख किताब में नहीं है। किताब में वारिस साहब के बचपन, उनके माता-पिता और गुरुजनों की आदतों, तौर-तरीक़ों, लिबास और व्यावहारिक रंग-ढंग का उल्लेख सामाजिक इतिहास का हिस्सा है, जिसे दस्तावेज़ी हैसियत हासिल है।
किरमानी साहब की आत्मकथा जोश मलीहाबादी की ‘यादों की बारात’ से कहीं ज़ियादा साहित्यिक और दिलचस्प है, जिसे पूरी पढ़े बग़ैर रखने को जी नहीं चाहता।
—पुस्तक की भूमिका से
1857 Ki Kranti Aur Neemuch
- Author Name:
Dr. Surendra Shaktawat
- Book Type:

- Description: "डॉ. सुरेंद्र शक्तावत द्वारा लिखित ग्रंथ ‘1857 की क्रांति और नीमच’ क्षेत्रीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नीमच के क्रांतिकारियों की विशिष्ट भूमिका रही है। मध्य प्रदेश में सर्वप्रथम क्रांति का सूत्रपात नीमच की लाल माटी से 3 जून, 1857 को मोहम्मद अलीबेग ने किया था। ये क्रांतिवीर नीमच से विजय-पताका लेकर चित्तौड़, बनेड़ा, नसीराबाद, देवली होते हुए आगरा पहुँचे, जहाँ अंग्रेजों पर विजय प्राप्त की। नजफगढ़, दिल्ली में नीमच के क्रांतिकारियों ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपने रक्त की अंतिम बूँद तक संघर्ष किया। मंदसौर के स्वयं घोषित सम्राट् शाहजादा फिरोज की सेनाओं की युद्धस्थली नीमच की लाल माटी रही है। उनके सैनिकों ने जीरन में अंग्रेजों के सिर काटे। नीमच में दो-दो बार अंग्रेजों को परास्त कर उन्हें भागने को विवश किया। महान् क्रांतिवीर तात्या टोपे नीमच को लक्ष्य में रखकर नीमच के चहुँओर सिंगोली, जावद, रामपुरा, प्रतापगढ़ में अंग्रेजों से युद्ध करते रहे। मारवाड़ के स्वाधीनता संग्राम के महानायक ठाकुर कुशाल सिंह आउवा का आत्मसमर्पण नीचम में हुआ। प्रस्तुत ग्रंथ में अंग्रेजों की क्रूरता का प्रतीक भूनिया खेड़ी का अग्निकांड, निबाहेड़ा के निर्दोष पटेल ताराचंद की हत्या व तात्या की फाँसी पर अंग्रेजी न्याय की सप्रमाण पोल खोलने का प्रयत्न लेखक ने किया तथा सिद्ध किया कि नीमच की क्रांति केवल सैन्य विद्रोह न होकर जनक्रांति थी, जिसमें स्थानीय जन-समुदाय की भी भागीदारी थी। —डॉ. विकास दवे (राज्यमंत्री) निदेशक : मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल "
Aamader Shantiniketan
- Author Name:
Shivani
- Book Type:

- Description: कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई ज़मीन बनाई थी, जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे। उन्होंने मानवीय संवेदना और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज़्यादा पढ़े जानेवाले लेखकों में एक होकर रहीं। कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया। अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने क़रीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया। इस पुस्तक में ‘गुरुपल्ली’, ‘गुरुदेव की कर्मभूमि’, ‘शान्तिनिकेतन की गुरुपल्ली’, ‘आश्रम के पर्व’, ‘कुछ महत्त्पूर्ण उत्सव’, ‘आश्रम के विकास में गुरुदेव का योग’, ‘गांधीजी और गुरुदेव’, ‘अनेक विभूतियों का आगमन’, ‘श्रीनिकेतन का मेला’, ‘खेलकूद और मनोरंजन’, ‘आश्रमवासियों के लिए गुरुदेव के गीत’, ‘छात्रों का अतिथि-प्रेम’, ‘गुरुदेव की आत्मीयता’, ‘सादा पर कलापूर्ण रहन-सहन’, ‘गुरुर्ब्रह्मा’, ‘ओ रे गृहवासी’, ‘तुई जे पुरुष मानुष रे!’, ‘आश्रम पर काले बदल’ शीर्षक निबन्ध शामिल हैं, जिनका सम्बन्ध लेखिका के शान्तिनिकेतन प्रवास से है। आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसन्द आएँगी!
C.V. Raman : A Biography
- Author Name:
Uma Parameswaran
- Book Type:

- Description: Celebrated for his groundbreaking discovery, the Raman Effect, C.V. Raman (1888–1970) was the first non-white and the first Asian to receive a Nobel Prize in the sciences in 1930. He also became the first Indian director of the Indian Institute of Science in Bangalore. While Raman’s scientific work is significant and well documented, his personal story is less known. In this thoroughly researched and comprehensive volume, the biographer sheds light on Raman’s personal vision, quirks, and struggles. In her attempt to record his life, she traces the influences and events that shaped Raman into the fascinating man and scientist he was.
Katha Shesh
- Author Name:
Gyanchand Jain
- Book Type:

- Description: इस पुस्तक में प्रख्यात कथा-शिल्पी अमृतलाल नागर के साहित्यिक जीवन के अंतरंग संस्मरण उनके बालसखा ज्ञानचंद जैन ने लिखे हैं। वे पैंसठ बरस तक उनके मित्र और साथी रहे। उनकी मित्रता का सूत्रपात उस समय हुआ जब दोनों की अवस्था नौ-दस बरस थी और स्कूल में पाँचवें दर्जे में साथ पढ़ते थे। पढ़ने और लिखने में साथ-साथ रुचि उत्पन्न हो जाने से दोनों उत्तरोत्तर अभिन्न मित्रता की डोर में बँधते चले गए। दोनों ने साथ-साथ कहानी-लेखन आरंभ किया और साहित्यिक जीवन में प्रवेश किया। ज्ञानचंद जैन अमृतलाल नागर के संपूर्ण साहित्यिक जीवन के भी साक्षी रहे। उनकी रचना-यात्रा में अंतरंग सहयोगी रहे और उनकी प्रत्येक रचना के प्रथम श्रोता भी। लेखक के ‘दो शब्द’ के अनुसार—“उनके न रहने पर मेरे जीवन में जो सूनापन आया उसे भरने के लिए मैंने 1992 में इन संस्मरणों का लेखन आरंभ किया। एक बात यह भी मेरे मन में थी कि अमृतलाल नागर जिस साधना के बल पर, हम दोनों के मित्र डॉ. रामविलास शर्मा के शब्दों में, 'कथा-पंडित' बने, उसका विवरण कहीं मेरे साथ न चला जाए। इसलिए चींटी की चाल से लिखते हुए पुस्तक 15-12-95 को पूरी की।” निःसंदेह ये संस्मरण नागरजी के रचना और व्यक्ति-जीवन के कुछ अछूते कोणों पर प्रकाश डालेंगे।
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