Aurat : Uttarkatha
Author:
Archana VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
लगभग सात-आठ वर्ष पहले (1994 हठ ने ‘औरत : उत्तरकथा’ नाम से विशेषांक का आयोजन किया था, बीसवीं सदी के अन्तिम दशक तक लगने लगा था कि समाज और साहित्य में औरत की कथा अब वह नहीं रह गई है जो सौ-डेढ़ सौ सालों से कही जाती रही है, क्योंकि उसे ‘हम' कहते रहे हैं—‘उसकी’ ओर से। हमारे सामने कुछ सवाल थे जो समस्याओं के रूप में रेखांकित किए जा रहे थे, और हम उनके हल उन्हीं बँधे हुए साँचों में थोड़ी फेर-बदल के साथ तलाश रहे थे। लोकतांत्रिक खुलावों ने अब तक अनसुनी आवाज़ों को साहित्य में ‘मित्रो मरजानी’ (कृष्णा सोबती), ‘आपका बंटी’ (मन्नू भण्डारी), ‘रुकोगी नहीं राधिका’ (उषा प्रियंवदा) और ‘बेघर’ (ममता कालिया) के रूप में सबका ध्यान दूसरे पक्षों की ओर खींचना शुरू कर दिया था। लगा कि हमारे सवालों के उत्तर तो यहाँ से आ रहे हैं। इधर मैत्रेयी पुष्पा की ‘चाक’ और ‘कस्तूरी कुंडल बसै’ आदि किताबों को भी इस कड़ी में जोड़ा जा सकता है। पिछली सदी का अन्तिम दशक लगभग स्त्री और दलित-विमर्श के उभार का दशक रहा है। ‘हंस’ उस पर बात न करे, यह साहित्य और समय के साथ विश्वासघात होगा और यह ऋणशोध किया गया ‘औरत : उत्तरकथा’ के रूप में...
इधर यह विशेषांक शुरू से ही अनुपलब्ध हो गया था। आख़िर कब तक इसकी फ़ोटो प्रतिलिपियाँ दी जाती रहें—इसी दबाव में तय किया गया कि अब इसे पुस्तकाकार आना चाहिए...कुछ रचनाएँ छोड़कर अब यह आपके सामने है।
—भूमिका से
ISBN: 9788126704859
Pages: 226
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "घर वापसी" युवा कथाकार मनोज कुमार शिव का पहला कहानी-संग्रह है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के निकट के एक छोटे से क़स्बे से आने वाले मनोज की जड़ पहाड़ पर उगे देवदार की तरह गहराई तक है। वहाँ के जन-जीवन, लोक-परम्परा और निरंतर बदलते हालात के बीच पहाड़ी अस्मिता और मनुष्यता के संघर्ष की कहानियाँ इन्होंने जिस सहजता और खूबसूरती से कही है, इसने इस कथाकार से बड़ी उम्मीद जगा दी है। मनोज कुमार शिव की कहानियों के बाबत चर्चित कथाकार मुरारी शर्मा लिखते हैं-- "मनोज कुमार शिव नई पीढ़ी के संभावनाशील कथाकार हैं। इन कहानियों से गुज़रना दूर-दराज के अंचलों में बसे जनमानस के जीवन से साक्षात्कार करने जैसा है। मनोज बेहद संवेदनशील रचनाकार हैं और अपने लोक को सूक्ष्मता से पकड़ते ही नहीं बल्कि उसमें डूबकर जीते भी हैं। वे सही मायने में लोकजीवन के कथाकार हैं और ग्राम्य परिवेश में तेज़ी से आ रहे बदलाव को न केवल महसूस करते हैं, अपितु आम जनमानस के दर्द का हिस्सा बनकर प्रतिकार भी करते हैं। मनोज कुमार शिव नई पीढ़ी के ऐसे कथाकार हैं जो लोकजीवन में गहरी पैठ रखते हैं। अपने आसपास हो रहे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलावों को वे न केवल महसूस करते हैं बल्कि आमजन के आचार-व्यवहार, रहन-सहन, बोली-भाषा और समग्र जीवन में हो रहे बदलाव को अपनी रचनाशीलता का हिस्सा बनाते हैं। अपने पहले कथा-संग्रह से मनोज हिंदी के विशाल पाठकवर्ग के समक्ष अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। मनोज की अधिकांश कहानियों का कथानक पहाड़ी ग्रामीण परिवेश है जहाँ की मिट्टी में लोटपोट होकर, नदी-नालों, हाटघराट, जंगल-देवता के थान आदि में उनका बचपन बीता है। इसी परिवेश से उनकी कहानियों के किरदार सामने आते हैं।"
Kahaniyan Rishton Ki : Prem
- Author Name:
Akhilesh
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- Description: प्रेम एक बहुआयामी और छलिया शब्द! अपना ही विरोधी! आह्लादकारी और यातनादायी दोनों रहा है संसार के लिए यह शब्द। प्रेम और समाज दो विपरीत ध्रुव हैं और उनके बीच खड़ा है, दोनों को सहेजता मनुष्य। हम सबका जीवन ऐसी प्रेम कहानी/कहानियाँ होता है जिसका/जिनके क्लाइमेक्स अज्ञात या अन्तविहीन होते हैं। यह संकलन उन ख़ास कहानियों को चुनकर तैयार किया गया है, जिनमें प्रेम प्रखरता से उपस्थित है। वही प्रेम जो उबरने में नहीं, डूबने में सार पाता है...अपने प्रिय को खोकर प्रेम को पाने का गुमान रखने वाले साधारण, सिरफेरे चरित्रों की असाधारण कहानियाँ।
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