Jeevan Beema : Kyun Aur Kaise?
Author:
Gyansundaram KrishnamurthyPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 60
₹
75
Available
हममें से हरेक ने अपने जीवन में या तो स्वतः या दूसरों के अनुभवों से अपने चहेतों की अचानक मृत्यु और सदमे की इस घबराहट का अनुभव किया है। वह हमारे मित्रों, संबंधियों और अपरिचितों में से कोई भी हो सकता है।
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इस पुस्तक का एकमात्र उद्देश्य जीवन बीमा को इसके बीमांकन या वित्तीय रूप में देखना नहीं है, बल्कि इसके कानूनी पहलुओं को सामने लाना है, ताकि यह लाखों पॉलिसीधारकों को उनकी आवश्यकता के समय बिना किसी परेशानी के इसके लाभ को प्राप्त करने और जिस उद्देश्य के साथ बीमा लिया गया है, उसको पूरा करने की सुनिश्चितता के लिए एक पथ-प्रदर्शक के रूप में सेवा प्रदान करे।
बीमा संबंधी समस्त जानकारी से परिपूर्ण एक उपयोगी पुस्तक।
अंतिम आवरण पृष्ठ
जीवन बीमा एक आवश्यकता है, जो कि जरूरत है समय वित्तीय सुरक्षा की सुनिश्चितता प्रदान करती है; परंतु यदि इसके नियम व शर्तों को नहीं समझा जाता या उनका पालन नहीं होता है तो यह भले के बजाय बुरा अधिक कर सकती है। लेखक ज्ञानसुंदरम कृष्णमूर्ति, पूर्व अध्यक्ष, भारतीय जीवन बीमा निगम ने जीवन बीमा और इसके दावों से जुड़े कानूनी पहलुओं का मुकदमों के अध्ययन द्वारा सोदाहरण विवेचना की है।
पुस्तक पथ-प्रदर्शक के रूप में—
पॉलिसीधारकों के लिए
• पॉलिसी खरीदने के पहले और बाद में उनके अधिकारों और दायित्व की विवेचना हेतु।
• दावों के अमान्य होने पर शिकायत सुधार प्रक्रिया के अनुसरण हेतु।
बीमाकर्ताओं के लिए
• बीमा की जानकारी एवं इसके कानूनी पहलुओं की आधुनिकता की समझ हेतु।
• मुआवजे और बिक्री के लिए अपने ग्राहकों को बेहतर मार्गदर्शन का प्रस्ताव देने के लिए।
• पॉलिसी लेने से पूर्व अपने ग्राहकों को विवेचित करना कि उन्हें ‘क्या’ जानना जरूरी है।
ISBN: 9789350481721
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव की त्रयी को ‘नई कहानी’ आन्दोलन के प्रवर्त्तक और उन्नायक के रूप में जाना जाता है। प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह को नई कहानी की प्रवृत्तियों को सूत्रबद्ध करने का श्रेय है। यह बात ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद के ये चार शिखर रचनाकार आपस में गहरे मित्र थे, 1950 तथा ’60 के दशक में इन लोगों के बीच ज़बरदस्त अन्तर्संवाद भी था। आलोचना-प्रत्यालोचना और आत्मालोचना से भरे इस अन्तर्संवाद ने उस आन्दोलन को बल दिया, इन रचनाकारों को भी इससे ऊर्जा मिली यह वह समय था जब भारत का नया समाज बन रहा था और साहित्य का भी स्वरूप बदल रहा था। ऐसे में कुछ भी नया करने के लिए गहन विचार-विमर्श जरूरी था और उसका सबसे सुगम मार्ग था पत्र। मित्रों की स्वस्थ आलोचना उस समय का युगधर्म था। जाहिर है, रचनाशीलता के विकास में भी उसकी गहरी भूमिका थी। राजेन्द्र यादव के नाम मोहन राकेश, कमलेश्वर और डॉ. नामवर सिंह तथा राजेन्द्र यादव के नामवर सिंह के लिए पत्रों का यह संग्रह अपने समय के लेखकीय अन्तर्संवादों का जीवन्त दस्तावेज़ है। इनके माध्यम से इन लेखकों के रचनात्मक संघर्ष को भी समझा जा सकता है और साहित्य की उन अन्तर्ध्वनियों को भी, जिन्हें साहित्य के किसी इतिहास के माध्यम से सुन-समझ पाना सम्भव नहीं है।
Aranyapantha
- Author Name:
Pt. Sanjay Tignath
- Book Type:

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Description:
‘अरण्यपंथा’ में वे समस्त मौलिक दुविधाएँ अन्तर्निहित हैं जो ज्ञान के गहन प्रान्तरों में विद्यमान हैं, क्योंकि ‘अरण्यपंथा’ उन्हीं के अपार और संकीर्ण पथ से निकलती है। इसमें मात्र आशय है किन्तु प्रयोजन स्पष्ट नहीं है। यदि प्रयोजन के आग्रह को त्यागा जा सकता हो तो सम्भवतः ‘अरण्यपंथा’ रुचिकर लगे।
मैंने उपनिषद ग्रन्थों का पुनर्अध्ययन किया और यहाँ पाया कि मैं उनकी अनुभूतियों को पहले की अपेक्षा अधिक निकटता से अनुभव कर रहा था, तथापि ‘अरण्यपंथा’ न तो वैज्ञानिक व्याख्याओं में घुसती है और न ही उपनिषद को अपने तर्क का हिस्सा बनाने की चेष्टा करती है। सचमुच उपनिषद को तो इस पुस्तक के कथ्य में बिना स्पर्श करते हुए ही मात्र आनन्द के स्रोत की तरह उद्धृत किया गया है।
—लेखक की क़लम से
Bihar Ke Vyanjan – Sanskriti Aur Itihas
- Author Name:
Ravishankar Upadhyay
- Book Type:

- Description: बिहारी खानपान का बेहद समृद्ध इतिहास रहा है. मगध साम्राज्य में जब बिहार लंबे समय तक सत्ता का केंद्र रहा तो यहां से शासन करनेवाले महान सम्राटों ने यहां के व्यंजनों को राज्याश्रय प्रदान किया. इसी कारण प्राचीन राजगृह के इर्दगिर्द आज भी व्यंजनों पर निर्भर कस्बे मौजूद हैं, चाहे वह खाजा के बेमिसाल स्वाद वाला सिलाव हो या पेड़ा बनाने वाला निश्चलगंज. गया में चावल और तिल के साथ प्रयोग कर तिलवा-तिलकुट से लेकर अनरसा जैसा प्रयोगधर्मी स्वाद बनाया गया. प्राचीन पाटलिपुत्र यानी आज का पटना देख लीजिए. यहां पर पुराने शहर में खुरचन, थोड़ी दूर पर बाढ़-बख्तियारपुर और धनरूआ में लाई, तो मनेरशरीफ में नुक्ती वाले लड्डू हैं. बड़हिया में रसगुल्ले हैं. भोजपुर इलाके के उदवंतनगर में खुरमा, ब्रह्मपुर में गुड़ई लड्डू, गुड़ की ही जलेबी तो बक्सर में सोनपापड़ी है. थावे, गोपालगंज चले जाइए तो वहां पर आपको पेडुकिया मिलेगा. मिथिला के दही- चूड़ा से लेकर अरिकंचन और बेसन के गट्टे की सब्जी के क्या कहने! ये उदाहरण तो बस बानगी हैं, आप राज्य के जिस किसी हिस्से में चले जाइए वहां पर आपको कोई न कोई बेमिसाल स्वाद मिल जाएगा. इस किताब में आपको बिहार की स्वाद परंपरा का लिखित इतिहास और सांस्कृतिक प्रयोग के अनुभव पढ़ने को मिलेंगे जो चौथी शताब्दी से शुरू होकर आजतक जारी है.
Footprints of Jagadev Ramji
- Author Name:
Vanvasi Kalyan
- Book Type:

- Description: The observations of Jagdev Ram ji encircle the Hindu philosophy along with academic research and study of contemporary social currents. He emphatically proclaimed that the soul of ‘Janjati’ way of life is intrinsically connected to the Hindu way of life. He dedicated his life for the emancipation of the janjati society and his teachings serve as guidance towards adoption of ethical practices to lead better lives.
Sanskriti Sangam
- Author Name:
Acharya Kshiti Mohan Sen
- Book Type:

- Description: इस पुस्तक में आचार्य क्षितिमोहन सेन के अद्भुत पाण्डित्य और तीक्ष्ण दृष्टि के साथ मानव-प्रेम और सहज भाव का परिचय मिलता है। पुस्तक में केवल शुद्ध पाण्डित्य की ज्ञान-चर्चा नहीं हैं, इसमें 'मनुष्य' के प्रति आचार्य सेन के अटूट विश्वास और दृढ़ निष्ठा का परिचय मिलता है। साथ ही अपने देश की उस महती प्रतिभा का साक्षात्कार पायेंगे जो विषम परिस्थितियों में अपना रास्ता निकाल लेती है और अनैक्य के भीतर ऐक्य का सन्देश खोज लेती है। पुराने युग से कितनी ही मानव-मण्डलियाँ इस देश में अपने आचार-विचारों और संस्कारों को लेकर आयी हैं, कुछ देर तक एक-दूसरे के प्रति शंकालु भी रही हैं पर अन्त तक भारतीय प्रतिभा ने नानात्व के भीतर से ऐक्य-सूत्र खोज निकाला है। सन्तों-महात्माओं की सहज दृष्टि प्रत्येक युग में बाह्य जंजाल के नीचे गुप्त रूप से प्रवहमान् प्राणधारा का सन्धान पाती रही है।
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