Shiksha, Samaj Aur Bhavishya
Author:
Shyamacharan DubePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Unavailable
राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के शिक्षा एवं समाज–वैज्ञानिक प्रो. श्यामाचरण दुबे की इस पुस्तक में शिक्षा, परम्परा और विकास के अन्तर्सम्बन्धों पर चौदह महत्त्वपूर्ण निबन्ध शामिल हैं। इनमें तीसरी दुनिया के शैक्षिक परिदृश्य का समाजशास्त्रीय दृष्टि से सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है।</p>
<p>प्रो. दुबे की यह पुस्तक वैकल्पिक भविष्य के निर्माण में शिक्षा की भूमिका पर जो स्थापनाएँ प्रस्तुत करती हैं, वे निश्चय ही मौलिक और प्रभावशाली हैं। इसके अतिरिक्त यह कृति भारतीय शिक्षा–व्यवस्था पर भी लेखक की पैनी नज़र से परिचित कराती है। इस सन्दर्भ में सुधार की दिशा में जो दिशा–निर्देश दिए गए हैं, उनकी प्रासंगिकता भी निर्विवाद है।</p>
<p>कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रो. दुबे की यह कृति सम्बद्ध विषय का पूरी गम्भीरता और गहराई से विश्लेषण करती है।
ISBN: 9788171195459
Pages: 131
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Book Type:

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Description:
‘मनुष्य! कितना सुन्दर शब्द है!’—मैक्सिम गोर्की ने कहा था लेकिन सब जानते हैं कि सारे मनुष्य ‘सुन्दर’ शब्द से अलंकृत होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर पाते। सुन्दरता की तीव्र इच्छा रखते हुए भी देश के हज़ारों मनुष्य असुन्दर जीवन जीने के लिए बाध्य होते हैं।
हमारे संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान रूप से अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान है, लेकिन हज़ारों-लाखों नागरिक ऐसे हैं जो इस तथ्य से अवगत नहीं हैं। बड़ी संख्या में ऐसे दलित, पीड़ित, शोषित इनसान हैं जो मानव अधिकारों से बिलकुल वंचित हैं। ये निरन्न, निर्वस्त्र, निस्सहाय लोग भी मानव कहलाने योग्य हैं। उनके प्रति मानवोचित बर्ताव करना सभ्य समझे जानेवाले समाज का धर्म है। उपेक्षा और अवहेलना का पात्र बनकर सामाजिक जीवन के अँधेरे बन्द कमरों में ढकेले गए पशु समान जीवन बितानेवाले इन निरीहों को मानवता के महान आसन पर आसीन कराना अनिवार्य है।
इस महान उद्देश्य से प्रेरित होकर मलयालम के मशहूर पत्रकार जॉन कुन्नप्पल्लि ने सात मर्मस्पर्शी लेख लिखे। जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित कुछ ज्वलन्त समस्याओं का गहन अध्ययन तथा विशद विश्लेषण इनमें किया गया है। उन्होंने यथार्थ की ठोस धरती पर खड़े होकर तथ्यों का अनावरण किया है जिसमें असत्य या अतिशयोक्ति का रंग नहीं पोता गया।
इस तरह देखें तो मलयालम से हिन्दी में अनूदित यह पुस्तक सामयिक मुद्दों के सन्दर्भ में चिन्तन और विश्लेषण-दृष्टि के स्तर पर जो पृष्ठभूमि तैयार करती है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है। सुविज्ञ पाठकों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक है ‘अभिशप्त मासूम चेहरे’।
Vaikalpik Oorja Ka Sach
- Author Name:
Ajay Shankar Pandey
- Book Type:

- Description: सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर भारत के नेतृत्व को लेकर जो प्रशंसा की जाती है और हम ख़ुद भी जो सारे विश्व को पीछे छोड़ देने का दम भरते हैं, वह पूरी तरह से दिवास्वप्न है। वास्तविकता यह है कि हम इन दोनों ही क्षेत्रों में सिर्फ़ उपभोक्ता हैं, उत्पादक नहीं। हम अपने यहाँ इन ऊर्जाओं के लिए बस मार्केट बना रहे हैं। यही सच्चाई है। पुस्तक देश-विदेश के तमाम वैकल्पिक ऊर्जा सम्बन्धी आँकड़ों का तार्किक विश्लेषण कर, तकनीकी विशेषज्ञों के समय-समय पर व्यक्त मतों का निहितार्थ निकालते हुए, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे विकसित देशों के विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं वर्ल्ड बैंक आदि से प्राप्त जानकारियों एवं अनुभवों के निष्कर्ष के आधार पर राष्ट्रहित में लिखी गई है। इस पुस्तक का उद्देश्य है सरकार और जनसाधारण तक यह सन्देश पहुँचाना कि हमें अपने ढंग से वैकल्पिक ऊर्जा के उत्पादन और संरक्षण का प्रयास करना चाहिए।
Yadon Se Racha Gaon
- Author Name:
M.N. Shrinivas
- Book Type:

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Description:
‘यादों से रचा गाँव’ अतीत के दुर्घटनाग्रस्त ब्यौरों को सामने लाने के रचनात्मक संकल्प का परिणाम है। एक हादसे में सारे काग़ज़ात जलकर राख हो जाने के बाद एम.एन. श्रीनिवास ने इस पुस्तक में पूरी तरह अपनी यादों के सहारे अपने क्षेत्रकार्य के अनुभवों की पुनर्रचना की है।
प्रस्तुत पुस्तक में यूँ तो दक्षिण भारत के एक बहुजातीय ग्राम का नृतत्त्वशास्त्रीय अध्ययन दिया गया है, लेकिन एक बदलते ग्राम का प्रौद्योगिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और अन्तर्जातीय सम्बन्धों का जिस प्रकार विवेचन किया गया है, वह पूरे भारत के गाँवों की स्थिति को दर्शाता है।
‘यादों से रचा गाँव’ में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, धर्म, परिवार, और कृषि से सम्बन्धित मामलों का भी व्यापक विश्लेषण है। वस्तुत: प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसी कृति है जिसे मूल आँकड़ों के समुद्र में गोता लगाकर गाँव की अपनी शब्दावली में रचा गया है।
श्रीनिवास जी ने इस पुस्तक में बहुजातीय भारतीय समुदाय के क्षेत्र-अध्ययन का जिस ढंग से वैज्ञानिक विश्लेषण किया है, वह न केवल मानवशास्त्रियों, बल्कि दूसरे सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी है। इस कृति का प्रमुख आकर्षण इसकी रचनात्मक शैली है।
Uttar-Poorva Bharat Ke Vikas Mein Neist Ki Praudyogikiyan
- Author Name:
Dr. Mohan Lal +1
- Book Type:

- Description: "किसी भी राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन न केवल उसका गौरव होते हैं, वरन् उसकी वास्तविक संपत्ति भी होते हैं। ऐसे संसाधनों में मुख्य रूप से महत्त्वपूर्ण पौधे, पशु, पारंपरिक संपदाएँ और खनिज शामिल हैं। देश की 38 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में से उत्तर- पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला है- उत्तर-पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (नॉर्थ- ईस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी - निस्ट)। यह प्रयोगशाला पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में अपनी विशेषज्ञताओं और क्षमताओं को बढ़ाते हुए विकास की ओर अग्रसर रही है। वस्तुतः इस संस्थान का उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत में उपलब्ध विपुल प्राकृतिक संपदाओं का दोहन करते हुए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को विकसित करना, संबंधित क्षेत्र में विशिष्टता हासिल करना एवं आवश्यक क्षेत्र में अवसंरचना सुविधा प्रदान करना है। यह हर्ष का विषय है कि इस लब्धप्रतिष्ठ संस्थान ने अपनी स्थापना से अभी तक 125 से अधिक जनोपयोगी स्वदेशी प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं जो कृषि, औषध, वी.एस. के. सीमेंट, तेल से संबंधित रसायनों, जैव-चिकित्सा, पेट्रो रसायनों से संबंधित हैं। इन कार्यों द्वारा देश के सामाजिक- आर्थिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में अतुलनीय अवदान कर करोड़ों रुपयों का राजस्व भी प्राप्त किया है। 'उत्तर-पूर्व भारत के विकास में निस्ट की प्रौद्योगिकियाँ' विषयक बहुरंगी पुस्तक में निस्ट का परिचयात्मक विवेचन, अनुसंधान समूह, विकसित प्रौद्योगिकियों का विहंगावलोकन, नूतन प्रौद्योगिकियाँ, उद्यमिता एवं अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों पर रोचक हिंदी भाषा में सचित्र तकनीकी जानकारी प्रदान करने का सुप्रयास किया गया है, जिससे सभी वर्गों के सुधी पाठकगण लाभान्वित हो सकें।"
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