Ramuva-Kaluva-Budhiya Aur Rashtrawad

Ramuva-Kaluva-Budhiya Aur Rashtrawad

Authors(s):

Ram Milan

Language:

Hindi

Pages:

168

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

336 mins

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Book Description

‘रमुआ-कलुआ-बुधिया और राष्ट्रवाद’ पुस्तक एक गम्भीर विषय है। रमुआ-कलुआ-बुधिया दरअसल सिर्फ़ नाम न होकर आम-जनमानस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें कभी जाति के नाम पर कभी धर्म के नाम पर तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर छला जाता है।</p> <p>भारत के परिप्रेक्ष्य में आज जब भुखमरी, बेरोज़गारी एवं आर्थिक विफलता जैसे गम्भीर मुख्य मुद्दों को छद्म राष्ट्रवाद के सहारे कुचल देने का प्रायोजित षड्यंत्र चल रहा हो तो यह पुस्तक राष्ट्रवाद के विमर्श में आम जनमानस की आकांक्षाओ का प्रतिनिधित्व करती दिखाई पड़ती है।</p> <p>देश में अफ़ीमचियों से भी अधिक ख़तरनाक छद्म राष्ट्रवादी आज गली-नुक्कड़ और चौराहों पर आसानी से देखे जा सकते हैं, या टेलीविज़न चैनलों और अख़बार के पन्नों पर तो इनकी भरमार है।</p> <p>राष्ट्रवाद का आधार तर्क और वैचारिकता ही है। मनुष्य और पशु में मात्र ‘विचारों’ का अन्तर होता है। आज के परिवेश में जहाँ एक तरफ़ ‘विचारों’ की हत्या की जा रही हो तो ऐसी पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।</p> <p>राष्ट्रवाद की परिकल्पना जाति, धर्म, मज़हब, सम्प्रदाय, लिंग, भाषा, संस्कृति, क्षेत्र, उपनिवेश, राजनीति जैसे संकीर्ण दायरों को तोड़ते हुए सार्वभौमिक राष्ट्रवाद के सन्निकट दिखाई पड़ती है जिसके केन्द्र में निश्चित तौर पर रमुआ-कलुआ-बुधिया अर्थात् आम-जनमानस ही हैं।</p> <p>सामाजिक विमर्श में रुचि रखनेवाले अध्येताओं, छात्रों एवं विद्वानों के लिए यह पुस्तक उपयोगी हो सकेगी।</p> <p>सुबचन राम</p> <p>प्रधान आयकर आयुक्त</p> <p>भारत सरकार

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