Nanga

Nanga

Author:

Srinjay

Language:

Hindi

Category:

Short-story-collections

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Price: ₹ 159.2

199

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Book Details

अपने पहले कथा-संकलन ‘कामरेड का कोट’ से ही चर्चित कथाकार सृंजय ने स्पष्ट कर दिया था कि वे ‘महाजनों’ की पिटी-पिटाई लीक पर नहीं चलेंगे<strong>, </strong>कि उनकी प्रतिबद्धता ‘जन’ के साथ होगी<strong>, </strong>जन के सिवा किसी अन्य के साथ नहीं। इस प्रतिज्ञा को और भी पुख़्ता करता है उनका यह दूसरा कथा-संकलन—‘नंगा’।</p>
<p>दृश्य, अदृश्य कितनी ही बेड़िया और कितने-कितने दबाव हैं इस ‘जन’ पर<strong>, </strong>इनके बीच उसकी आकांक्षाएँ हैं<strong>, </strong>सपने हैं, दुर्निवार संकल्प हैं, जीवट है, जिजीविषा है, साथ ही क़दम-क़दम पर स्खलन और भटकाव भी। अतीत की धुँधली परछाइयों से लेकर अनागत की आहटों तक फैले सृंजय के कथा-संसार में एक और लोककथाओं का परम्परा-प्रवाह है तो दूसरी ओर लोक-शत्रुओं को पहचानने की अधुनातन दृष्टि भी। इस तरह राष्ट्रीय से लेकर अन्तरराष्ट्रीय साज़िशों को नंगा करती हैं ‘नंगा’ की कहानियाँ।</p>
<p>एकरसता से दूर सृंजय की इन कहानियों का रचना-संसार अलग-अलग बुनावटों और बनावटों<strong>, </strong>अलग-अलग मिज़ाज और तेवरों से लैस है। इस तरह इनके व्यापक फलक में अगर सामन्तवाद का पूँजीवाद के आगे आत्मसमर्पण कराती ֹ‘मूँछ’ है<strong>, </strong>तो विश्व बाज़ार के नवऔपनिवेशिक जाल में गुड़प होता स्वदेशी ‘बुद्धिभोजी’ भी<strong>, </strong>असमान विकास को एक्सपोज करती ‘खल्ली छुलाई’ है<strong>, </strong>तो धर्म के पाखंड को एक्सपोज करती ‘हममज़हब’ भी...स्वप्नों और आग्रहों की स्वनिर्मित ग़ुलामी की शिनाख़्त करती ‘बैल’ और तमाम अशुभ छायाओं के दंश के बीच आदमी की आदमियत को बचाए रखने की कोशिश के रूप में ‘डमर’ भी...साथ ही सत्ता-समीकरण के प्रलोभन और दबाव के अन्तर्गत जनप्रतिबद्धता के अपचय की प्रक्रिया को दर्शाती अतीत के मिथक के माध्यम से अपने समय को व्यंजित करती ‘राजमार्ग पर’ भी।</p>
<p>इन कहानियों की एक विरल विशेषता यह है कि इनकी व्यंजना ऊपर से कम<strong>, </strong>मगर अन्दर गहरे<strong>, </strong>बहुत गहरे उतरती जाती है और अपने परिवृत्त में कितने ही प्रत्ययों को समेटती चलती है। कलात्मकता की सर्वथा नूतन बानगी प्रस्तुत करती ये कहानियाँ एक बार पुन: बलपूर्वक प्रमाणित करती हैं कि कला का आरोपण ऊपर से नहीं होता<strong>, </strong>बल्कि जीवन में गहरे धँसकर ही उसका अवगाहन होता है।

ISBN: 9788119092291

Pages: 152

Avg Reading Time: 5 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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