Dwipantar
Author:
Yashodhara MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
ओड़िया की चर्चित कथाकार यशोधारा मिश्र की ये कहानियाँ जीवन के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं के विषय में हमें अनोखी अन्तर्दृष्टि देती हैं। सामान्यतः उच्च मध्यवर्ग की पृष्ठभूमि में स्थित इन कहानियों में हमें समाज, परिवार और मनुष्य-मन के वे कोने दिखाई देते हैं, जिन्हें हम आमतौर पर नहीं देख पाते।</p>
<p>कहानी को बयान करने की उनकी प्रवहमान शैली, परिवेश का विस्तृत चित्रण और अपने पात्रों को बेहद नज़दीक से जानने-समझने का उनका कौशल उनकी कहानियों को निरन्तर पठनीय बनाए रखता है। पात्रों के भूगोल को वे इस बारीकी से चित्रित करती है कि हम अनायास ही कहीं और होने की यात्रावृत्त जैसी अनुभूति से भर उठते हैं।</p>
<p>संग्रह की शीर्षक कथा ‘द्वीपांतर’ स्त्री-मन के एक अनछुए प्रान्तर के संधान की कहानी है जिसमें प्रौढ़वय नायिका को घर-परिवार को समर्पित अपने अब तक के लम्बे जीवन के बाद अचानक अपने होने का अहसास होना शुरू होता है, वह भी सुबह की सैर शुरू करने से। डॉक्टर के कहने पर हर सुबह बाहर निकलना उसके लिए ऐसा अनुभव बन जाता है जो सिर्फ़ उसका है, अपना; और, डेढ़-दो किलोमीटर के इस विस्तार में ही जैसे उसे अपना एक अलग द्वीप मिलने लगता है।</p>
<p>संग्रह में शामिल अन्य कहानियाँ भी सुख और संतृप्ति के अन्तस में छिपी किसी न किसी टीस का अवगाहन करती हैं। ‘सूर्यास्त के आसपास’ के अतनू और कल्लोला की ज़िन्दगी की दबी-ढँकी कामनाएँ हों, ‘मनोकामना’ के नीलेश और सीमा-सुरेश का ‘सेंस ऑफ़ लॉस’ हो या ‘अपना-अपना प्रेम’ की बढ़ती-बदलती प्रेमकथाएँ, हर कहानी एक टूटन की कथा है जिसे कथाकार ने गहरी संवेदना के साथ लिखा है। संग्रह में कुल दस कहानियाँ शामिल हैं और ये सभी सुख और दुःख के बीच गुम्फित कई विरोधाभासों को हमारे सामने खोलती हैं।
ISBN: 9789391950859
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘ब्लर्ब’ पर छपनेवाली सम्मतियाँ अक्सर खातिरन् लिखी जाती हैं, जिनमें अमूमन तआरुफ़ और तारीफ़ की बातें रहती हैं—कोई मूल्यांकन नहीं। शायद, कहानियों की इस किताब को रस्मी तौर पर लिखी गई ऐसी सम्मति की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इस संग्रह की कई कहानियों की अपनी औक़ात है।
अधिकतर कहानियों के कथा-कलन में बया के घोंसले जैसी संकुल और कलापूर्ण बुनावट है, जिसमें लेखिका इशारतन एक साथ कई बातें कह देती है। मानो इसकी कहानी उस चाकू या क़लमतराश की तरह है, जिसमें कई छुरियाँ एक साथ रहती हैं। ख़ासकर स्त्री-विमर्श से जुड़ी हुई कहानियाँ पठनीय हैं, जो मुनिया और अंजू जैसे चरित्रों के पक्ष में खुलकर खड़ी हैं और पुंप्रभुत्व से पीड़ित इस अलील समाज को दवा की कड़ी खुराक ही नहीं देना चाहती हैं, बल्कि उसे बेहोश किए बिना नश्तर भी लगा देना चाहती हैं। यह दूसरी बात है कि इस तासीर की कहानियों में भी कहीं-कहीं पुराने समाज के ‘सेंसर-मोरोंस’ के भय के साथ-साथ ‘प्यूडेंडा’—केन्द्रिक शब्दों व क्रियाओं के कथन से परहेज़ की झलक मिल जाती है।
अन्तर्यात्रा की ख़ास बातों को इशारों से कहने में माहिर और बर्फ़ के गाले में ‘आग’ को ढोने-सुलगानेवाली ये कहानियाँ इसलिए भी सराही जाएँगी कि घन की चोट से यथास्थिति को तोड़कर ‘अदल-बदल’ लाने की सूझ-समझ वाली हर कोशिश किसी नए ‘भिनसार’ को क़रीब लाती है।
—डॉ. कुमार विमल।
Amreeka Meri Jaan And Other Stories
- Author Name:
Hari Om
- Book Type:

- Description: Stories have a way of shaping the world we live in. They weave together our beliefs, emotions and the truths we hold dear, often blending reality with imagination. This book is a collection of such stories deeply rooted in the fabric of communal dynamics, yet echoing universal human experiences. Each story sheds light on the innocence, complexities and conflicts that emerge when communities, cultures and individuals collide. The tales in this book are set against the backdrop of day-to-day life in villages and towns. They feature vibrant characters, each with their own quirks and stories to tell. From Rahmat, the oil presser, whose quiet resilience and legendary past make him a figure of endless fascination, to the youthful debates and riddles that animate village temples, these stories explore the deep connections-and divides that define us. While these stories are fictional, they reflect the reality of the world around us. They are not just about individuals or communities; they are about humanity as a whole its flaws, its beauty and its unrelenting pursuit of harmony
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