Samudri Shaiwal Aur Uski Bahu-Upyogita
Author:
Dr. Vaibhav A. Mantri, Dr. D.D. OjhaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
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Price: ₹ 400
₹
500
Available
शैवाल, एल्गी (Algae) या काई की संरचना अपेक्षाकृत अति सरल होने के कारण उन्हें एक कोशिकावाला पादप माना जा सकता है। ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। शैवाल स्वच्छ जल (तालाब, पोखर, झरना) और लवणीय जल (समुद्री जल) में मुख्यतया पाए जाते हैं। कुछ शैवाल कीचड़ में भी मिलते हैं। इनमें वास्तविक जड़ें, तना, पत्ती व संवहन ऊतक नहीं पाए जाते हैं तथा ये विश्व के सभी भागों में पाए जाते हैं। कुछ शैवाल बर्फ पर, पेड़ों के तनों, चट्टानों तथा अधिपादप के रूप में दूसरे पौधों पर भी पाए जाते हैं। ये कई रंगों के, यथा हरे, नील-हरित, भूरे तथा लाल रंग के भी होते हैं तथा इनमें विद्यमान वर्णकों तथा रासायनिक अवयवों के आधार पर ये कई क्षेत्रों, यथा औषधीय, कृषि, ऊर्जा, मत्स्यपालन, उद्योग, पर्यावरण सुधार तथा अन्य क्षेत्रों में उपयोगी हैं।
इस बहु-उपयोगी पुस्तक में शैवाल की परिभाषा, शैवाल विज्ञान का इतिहास, वर्गीकरण, सामान्य लक्षण, पर्यावास, खाद्योपयोगी शैवाल, औषधीय उपयोग, जैव उर्वरक, जैव ईंधन, शैवालीय ऊर्जा तथा पर्यावरण शोधन में अवदान, समुद्री शैवाल की वाणिज्यिक खेती एवं उसके विविध आयाम तथा अनेक तत्संबंधित विषयक तकनीकी जानकारी सरल एवं बोधगम्य भाषा में यथोचित श्वेत-श्याम एवं रंगीन चित्रों सहित प्रदान करने का सुप्रयास किया गया है, जिससे सभी वर्ग के सुधी पाठक लाभान्वित हो सकें।
ISBN: 9789392573361
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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