Ulat Pulat ka Roz-Naamcha
Author:
Patras BukhariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789391080242
Pages: 129
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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परसाई हँसाने की हड़बड़ी में नहीं होते। वे पढ़नेवाले को देवता नहीं मानते, न ग्राहक, सिर्फ़ एक नागरिक मानते हैं, वह भी उस देश का जिसका स्वतंत्रता दिवस बारिश के मौसम में पड़ता है और गणतंत्र दिवस कड़ाके की ठंड में। परसाई की निगाह से यह बात नहीं बच सकी तो सिर्फ़ इसलिए कि ये दोनों पर्व उनके लिए सिर्फ़ उत्सव नहीं, सोचने-विचारने के भी दिन हैं। वे नहीं चाहते कि इन दिनों को सिर्फ़ थोथी राष्ट्र-श्लाघा में व्यर्थ कर दिया जाए, जैसा कि आम तौर पर होता है।
देखने का यही नज़रिया परसाई को परसाई बनाता है और हिन्दी व्यंग्य की परम्परा में उन्हें अलग स्थान पर प्रतिष्ठित करता है। प्रचलित, स्वीकृत और उत्सवीकृत की वे बहुत निर्मम ढंग से चीर-फाड़ करते हैं। इसी संग्रह में 'इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर' शीर्षक व्यंग्य में वे भारतीय पुलिस की स्थापित सामाजिक सत्ता को ढेर-ढेर कर देते हैं। परसाई को राजनीतिक व्यंग्य के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है, लेकिन इस संग्रह में उनके सामाजिक व्यंग्य ज़्यादा रखे गए हैं। इन्हें पढ़कर पाठक सहज ही जान सकता है कि सिर्फ़ राजनीतिक विडम्बनाएँ ही नहीं, समाज ने जिन दैनिक प्रथाओं और मान्यताओं को अपनी जीवन-शैली माना है, उनकी खाल-परे छिपे पिस्सुओं को भी वे उतने ही कौशल से देखते और झाड़ते हैं।
परसाई का अपना एक बड़ा पाठक वर्ग हमेशा से रहा है जो उनकी तीखी बातें सुनकर भी उन्हें पढ़ता रहा है। इस संग्रह की यह प्रस्तुति निश्चय ही उन्हें सुखद लगेगी।
Jeep Par Sawar Illiyan
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

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‘जीप पर सवार इल्लियाँ’ एक ऐसा ‘व्यंग्य-संग्रह’ है जिसकी प्रत्येक रचना में शरद जोशी की पैनी दृष्टि किसी न किसी विसंगति का मार्मिक उद्घाटन करती है और रेखांकित करती है कि शरद जोशी की व्यंग्य-दृष्टि का कहीं कोई जोड़ नहीं है।
वस्तुतः संग्रह की रचनाएँ यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि शरद जोशी सतत जागरूक व्यंग्यकार की भूमिका में इसलिए चर्चित हुए कि उनकी नज़र अपने परिवेश पर ही नहीं, अपितु जीवन और समाज की हर छोटी-से-छोटी घटना पर टिकी रहती थी जिसके कारण इस संग्रह की रचनाओं में धर्म, राजनीति, सामाजिक जीवन, व्यक्तिगत आचरण और ऐसा ही बहुत कुछ समाया हुआ है—चकित करता हुआ, चौंकाता हुआ, चुटकी काटता हुआ या गुदगुदाता हुआ।
कम शब्दों में कहें तो शरद जोशी की यह कृति ‘जीप पर सवार इल्लियाँ’ व्यंग्य-विधा की कठिन चुनौतियों को पूरा करती है और व्यंग्य के निकष पर खरा उतरती है। उनके व्यंग्य भ्रष्ट नेताओं की कलई खोलनेवाले तो हैं ही, सामाजिक जीवन और लोकतंत्र की रखवाली भी करते हैं और उनकी व्यंग्य-दृष्टि इतनी पैनी है कि कोई भी विसंगति उससे बिंधे बिना नहीं रह पाती।
Tulsidas Chandan Ghisain
- Author Name:
Harishankar Parsai
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हरिशंकर परसाई के लिए व्यंग्य साध्य नहीं, साधन था। यही बात उनको साधारण व्यंग्यकारों से अलग करती है। पाठक को हँसाना, उसका मनोरंजन करना उनका मक़सद नहीं था। उनका मक़सद उसे बदलना था। और यह काम समाज-सत्य पर प्रामाणिक पकड़, सच्ची सहानुभूति और स्पष्ट विश्व-दृष्टि के बिना सम्भव नहीं हो सकता। ख़ास तौर पर अगर आपका माध्यम व्यंग्य जैसी विधा हो। हरिशंकर परसाई के यहाँ ये सब ख़ूबियाँ मिलती हैं। उनकी दृष्टि की तीक्ष्णता और वैचारिक स्पष्टता उनको व्यंग्य-साहित्य का नहीं विचार-साहित्य का पुरोधा बनाती है।
तुलसीदास चन्दन घिसैं के आलेखों का केन्द्रीय स्वर मुख्यत: सत्ता और संस्कृति के सम्बन्ध हैं। इसमें हिन्दी साहित्य का समाज और सत्ता प्रतिष्ठानों से उसके सम्बन्धों के समीकरण बार-बार सामने आते हैं। पाक्षिक ‘सारिका’ में 84-85 के दौरान लिखे गए इन निबन्धों में परसाई जी ने उस दुर्लभ लेखकीय साहस का परिचय दिया है, जो न अपने समकालीनों को नाराज़ करने से हिचकता है और न अपने पूर्वजों से ठिठोली करने से जिसे कोई चीमड़ नैतिकता रोकती है।
गौरतलब यह कि इन आलेखों को पढ़ते हुए हमें बिलकुल यह नहीं लगता कि इन्हें आज से कोई तीन दशक पहले लिखा गया था। हम आज भी वैसे ही हैं और आज भी हमें एक परसाई की ज़रूरत है जो चुटकियों से ही सही पर हमारी खाल को मोटा होने से रोकता रहे।
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