Dharamsatta Aur Pratirodh Ki Sanskriti
Author:
Rajaram BhaduPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 220
₹
275
Unavailable
कभी धर्म राजनीतिक सत्ता के बावजूद पूर्ण स्वायत्त था। मध्यकालीन भारत में धर्म अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए सैन्य-संघर्ष तक पर उतारू हो जाता था। मौजूदा दौर में राजनीति धर्म की पारम्परिक सत्ता पर क़ब्ज़ा कर उसे अपनी सफलता की सीढ़ी बनाना चाहती है। पिछले दो दशकों से धर्म इसीलिए बौद्धिक विमर्श के केन्द्र में रहा है। अतः धर्म-सत्ता में आई विकृति के अध्ययन में अन्य अनुशासनों के विचारकों के तत्पर होने की आवश्यकता बनती है कि धार्मिक टकराव के कारण क्या हैं? क्या इसका कारण धर्म के बाहर है या धर्म के भीतर?</p>
<p>बहुदेववादी हिन्दू धर्म की सत्ता कभी केन्द्रीकृत नहीं रही, जबकि एकेश्वरवादी इस्लाम, ईसाइयत, यहूदी, पारसी धार्मिक सत्ता केन्द्रीकृत रही। इस अन्तर के बावजूद सबमें उभयबिन्दु यह है कि सभी धर्म महत् तत्त्व, सुप्रीम बीइंग, में आस्था रखते हैं। धर्म ने स्वयं को दर्शन और सामाजिक कर्तव्यशास्त्र से जोड़ा, इसलिए उसका असर मनुष्य के समस्त ज्ञान-विज्ञान, साहित्य और कलाओं में दिखता है। अपने यहाँ धर्मनिरपेक्षता पर अधिक अध्ययन हुए, धर्म उपेक्षित रह गया। धर्मनिरपेक्षता के प्रवर्तक होली ओक ने 1860 में कहा था, “धर्मनिरपेक्षतावाद न तो धर्मशास्त्र की उपेक्षा करता है, न उसकी स्तुति करता है और न उसे अस्वीकार करता है।” इसीलिए लेखक ने धर्म-निषेध वाले नज़रिए के बजाय धर्म की स्वीकार्यता को प्रस्थान-बिन्दु बनाया है।</p>
<p>प्रकृतिदेव से शुरू हुई अवधारणा ईश्वर के रूप में विकसित हुई। बीसवीं सदी में ईश्वर की अवधारणा क्या है? कहाँ तक विकसित हुई? हिन्दू धर्म के संजाल में पीठ, आश्रम, मठ, धामों के बाद हिन्दू अध्यात्म के नए केन्द्र और नए पैग़म्बर कौन-कौन से हैं? नई धर्म-सत्ता का बाज़ार से क्या रिश्ता है? हिन्दू धर्म सिकुड़ या फैल रहा है? बहुदेववादी हिन्दू धर्म अनुदारता, धार्मिक कट्टरता और बर्बरता की राह पर कैसे चलने लगा? आज हिन्दू धर्म के सम्बन्ध इस्लाम, बौद्ध, जैन और ईसाइयत से तनावपूर्ण हैं। यह तनाव हमारे वृहत्तर समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा। ऐसे में हिन्दू धर्म के लिए आत्म-परीक्षण का ही मार्ग बचता है। हिन्दू धर्म, उसके सम्प्रदायों, धर्मों के पारस्परिक सम्बन्ध, अद्यतन धार्मिक विकास के विस्तृत विवरणों और विश्लेषण से सजी यह पुस्तक प्रखर आलोचक और समाज-अध्येता राजाराम भादू का गम्भीर प्रयास है। पाठक आस्थावादी हों या अनास्थावादी, यह दोनों के लिए ज़रूरी किताब है। </p>
<p>—अरुण प्रकाश।
ISBN: 9788126706297
Pages: 280
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: महात्मा गांधीजी ने गीता को ‘माता’ की संज्ञा दी थी। उसके प्रति उनका असीम अनुराग और भक्ति थी। उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल-सुबोध भाषा में तात्पर्य दिया, जो ‘गीता-बोध’ के नाम से प्रकाशित हुआ। उन्होंने सारे श्लोकों की टीका की और उसे ‘अनासक्तियोग’ का नाम दिया। कुछ भक्ति-प्रधान श्लोकों को चुनकर ‘गीता-प्रवेशिका’ पुस्तिका निकलवाई। इतने से भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने ‘गीता-पदार्थ-कोश’ तैयार करके न केवल शब्दों का सुगम अर्थ दिया, अपितु उन शब्दों के प्रयोग-स्थलों का निर्देश भी किया। गीता के मूल पाठ के साथ वह संपूर्ण सामग्री प्रस्तुत पुस्तक में संकलित है। गीता को हमारे देश में ही नहीं, सारे संसार में असाधारण लोकप्रियता प्राप्त है। असंख्य व्यक्ति गहरी भावना से उसे पढ़ते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं। जीवन की कोई भी ऐसी समस्या नहीं, जिसके समाधान में गीता सहायक न होती हो। उसमें ज्ञान, भक्ति तथा कर्म का अद्भुत समन्वय है और मानव-जीवन इन्हीं तीन अधिष्ठानों पर आधारित है। महात्मा गांधी की कलम से प्रसूत गीता पर एक संपूर्ण पुस्तक, जो जीवन के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालकर पाठक की कर्मशीलता को गतिमान करेगी।
Islam Ke Dharmik Aayam
- Author Name:
Zafar Raza
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Description:
इस्लाम के धार्मिक आयाम का समुचित संज्ञान हुसैनी क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में ही
सम्भव है, जिसके नायक इस्लामी पैग़म्बर के सगे नाती हज़रत इमाम हुसैन थे, जिन्होंने सत्य एवं न्याय की प्रतिरक्षा में जिहाद किया और अपने सहयोगियों तथा परिवारजनों सहित कर्बला में शहीद हुए। इमाम हुसैन की शहादत के सर्वव्यापी प्रभाव का अनुमान इससे किया जा सकता है कि हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी ने इमाम हुसैन के व्यक्तित्व को ही वास्तविक इस्लाम माना है—“दीन अस्त हुसैन व दीनपनाह अस्त हुसैन।”
हुसैनी क्रान्ति के अनेक आयाम हैं—धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आदि। इस महत्त्वपूर्ण विषय पर हिन्दी भाषा में किसी पुस्तक का नितान्त अभाव रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ इस कमी
को पूरा ही नहीं करता, वरन् इस महत्त्वपूर्ण विषय पर यह एक प्रामाणिक दस्तावेज़ है। विद्वान लेखक प्रो. जाफ़र रज़ा ने जिस प्रकार हुसैनी क्रान्ति के उद्देश्यों, घटनाक्रमों एवं निष्कर्षों का वस्तुनिष्ठ एवं निष्पक्ष भाव से विश्लेषण किया है, वह अत्यन्त सराहनीय है। संवेदनशील विषयों पर उनका दृष्टिकोण सन्तुलित, सहज एवं उदार रहा है। जो बात भी कही है, वह ठोस आधार पर प्रामाणिक है। इस्लाम विषयक उनकी विशिष्ट कृतियों के अध्ययन से लगता है कि यही उनका अस्ल मैदान है। इस्लामी इतिहास, धर्म एवं संस्कृति पर उन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
हुसैनी क्रान्ति विषयक पुस्तकों में प्रस्तुत ग्रन्थ शोधपरक वैज्ञानिक दृष्टि के आधार पर अद्वितीय है। उर्दू ही नहीं, फ़ारसी, अरबी या अंग्रेज़ी में भी ऐसी कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं है। विश्वास है कि हिन्दी-
जगत् प्रस्तुत ग्रन्थ का स्वागत करेगा।
—प्रो. वहाब अशरफ़ी; 16 फरवरी, 2011
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