
Siddharth Aur Gilahari Chayan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
136
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
272 mins
Book Description
गहरी करुणा, वैचारिक परिपक्वता और संसार को मनुष्यों समेत हर जीव के लिए एक उदार खुली जगह बनाने की मंशा से युक्त के. सच्चिदानन्दन की ये कविताएँ हमें एक बड़े रचनाकार का भावप्रवण सान्निध्य उपलब्ध कराती हैं।</p> <p>के. सच्चिदानन्दन मलयालम भाषियों के लिए जितने अपने हैं, उतने ही हिन्दी भाषी पाठकों के भी हैं। अनामिका अनु द्वारा संकलित-अनूदित यह संग्रह उनकी कविता-यात्रा का अगला चरण है। वे ऐसे कवि हैं जो न अपने फ़ॉर्म को पुराना पड़ने देते हैं, न ही अपनी दृष्टि को। भीतर और बाहर की अपनी यात्राओं और कला-साहित्य के विभिन्न अनुशासनों से अपने लगाव के चलते वे अपनी कविता को लगातर नई करते रहते हैं। उन्हीं के शब्दों में : ‘मेरी कविता एक संवाद है जो मैं अपने से, दूसरों से, प्रकृति से और सृष्टि से अनवरत करता रहता हूँ। आधी सदी से भी ज़्यादा समय से मैं कविता लिख रहा हूँ, कविता का अनुवाद भी करता रहा हूँ, कविता के बारे में लिखता भी रहा हूँ, फिर भी हर नई कविता के सम्मुख मैं एक ‘बिगिनर’ की तरह ही प्रस्तुत होता हूँ। हर नई कविता में अपने अनुभव को व्यक्त करने के लिए मुझे नए सिरे से सही शब्दों और उपयुक्त शिल्प की तलाश करनी होती है।’</p> <p>इस संकलन की कविताएँ अपनी कथ्यगत विविधता और संवेदना की व्यापक परिधि के साथ पुन: हमें उनकी कविता के विराट लोक में ले जाती है जहाँ दु:ख के कमरे हैं, और देशों की सीमाएँ उलांघती मानवीयता के विशाल पंख भी।