Pragatisheel Sahitya Ki Jimmedari

Pragatisheel Sahitya Ki Jimmedari

Authors(s):

Markandey

Language:

Hindi

Pages:

136

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

272 mins

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Book Description

हिन्दी साहित्य में मार्कण्‍डेय की पहचान मुख्यतः कहानीकार के रूप में है<strong>।</strong> 2-डी, मिन्टो रोड से सीधे जुड़े रहे लोग भी उन्हें एक बेहतरीन क़िस्सागो के रूप में ही याद करते हैं<strong>।</strong> लेकिन देश और समाज-संस्कृति की लेकर उनकी चिन्ताएँ व ज़िम्मेदारी का भाव उन्हें कहानी से निर्बन्‍ध भी करता रहता और विचार-रूप में सीधे व्यक्त हो उठता<strong>।</strong> यह पुस्तक मार्कण्डेय की इस पहचान को सामने लाती है।</p> <p>इस पुस्तक की अन्तर्वस्तु का फैलाव साहित्य से लेकर राजनीति की हद तक है<strong>।</strong> मार्कण्डेय यहाँ जिस चिन्तनधारा व इतिहासबोध को अपनाते हैं, वह आधुनिक समाज-विज्ञानों से आता तो है लेकिन अपने समाज की आन्तरिक स्थिति, ‘जन’ तथा ‘लोक’ से अन्तःक्रिया के साथ<strong>।</strong></p> <p>इस पुस्तक में वैचारिक लेखों के आलावा ‘गोदान’ तथा अन्य ग्राम-उपन्यासों पर लिखे लेख तथा पुस्तक समीक्षाएँ भी शामिल हैं<strong>।</strong> लोक-साहित्य पर दो लेख और दो भाव-चित्र हैं जो आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टि को ही अपना प्रस्थान-बिन्दु बनाते हैं<strong>।</strong> इस पुस्तक में मार्कण्‍डेय सर्वथा भिन्न रूप में पाठकों से रू-ब-रू होते हैं। मार्कण्डेय के साहित्य-संवाद का यह संस्करण ‘प्रगतिशील साहित्य की ज़िम्मेदारी’ पर खरा उतरता है।</p> <p>—भूमिका से

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